Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
12-19-2018, 01:55 AM,
#91
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
एक काली सी छाया मेरे पास हवा में तैरती हुई दिखाई दे रही थी, उस छाया ने अपना दाँया हाथ आगे किया और उसके हाथ से नीले रंग की अत्यंत चमकदार रोशनी निकली और मेरे शरीर में प्रवेश कर गयी. 

अंदर जाकर उस रोशनी ने मेरे सूक्ष्म शरीर (आत्मा) को अपने अंदर क़ैद सा कर लिया, अब मेरा सूक्ष्म शरीर अपनी स्वेक्षा से हिल भी नही सकता था.

देखते देखते मेरा सूक्ष्म शरीर मेरे स्थूल शरीर से बाहर आने लगा और उस नीली रोशनी में क़ैद उस काली छाया की ओर हवा में तैरता हुआ बढ़ने लगा. 

मे ये सब साक्षी भाव से अपने सामने होते देख रहा था, पर कुछ भी कर पाने की स्थिति में नही था.

उन नीली चमकदार किरणों में क़ैद मेरा सूक्ष्म शरीर हवा में तैरता हुआ उस काली छाया की ओर बढ़ रहा था.

इससे पहले कि वो उस तक पहुँच पाता कि अचानक एक सफेद रंग का सुनहरा चम्कीला तेज प्रकाश उस नीली रोशनी से टकराया और एक अत्यंत तेज प्रकाश युक्त बिस्फोट जैसा हुआ, वो नीली प्रकाश की रेखा बीलुप्त हो गयी और मेरा सूक्ष्म शरीर वही पर हवा में स्थिर हो गया.

मेरी नज़रों ने जैसे ही उस सफेद सुनहरे प्रकाश की किरणों का पीछा किया, तो वहाँ कुछ दूरी पर एक अत्यंत सफेद चम्किली आकृति को हवा में तैरते हुए पाया.

गौर से देखने पर वो आकृति जानी पहचानी सी लगी, कुछ ही क्षणों में मे उस आकृति को पहचान गया, वो वही देवदूत था, जो मुझे मेरे शरीर में पुनः प्रवेश कराके गया था मेरे जन्मकाल में.

वो काली छाया यमदूत थी.. अब मे उन दोनो के बीच होने वाली वार्ता को साफ-साफ सुन रहा था.

देवदूत- ये प्राणी अभी इस पृथ्वी लोक को नही छोड़ सकता तुम फ़ौरन चले जाओ यहाँ से और इसे यहीं छोड़ दो.

यमराज दूत- मुझे जो आदेश दिया गया है, मे उसी का पालन कर रहा हूँ श्रीमान !

देवदूत- नही ! तुम इसे नही ले जा सकते, आदरणीय चित्रगुप्त का आदेश है ये.

यमराज दूत- मुझे ऐसा कोई आदेश नही प्राप्त हुआ, वरना मे यहाँ क्यों आता इसे लेने.

देवदूत- एक ताम्रपत्र को दिखाते हुए.. ये देखो उनका आदेश, अब जाओ यहाँ से.

उस ताम्रपत्र पर देवनागरी में कुछ लिखा हुआ था और नीचे मुन्हर का निशान था, उसे देखते ही वो काली छाया ने अपना सर झुकाया और वहाँ से बीलुप्त हो गयी.

अब वो देवदूत मुझसे मुखातिब हो बोला - हे ! जीवात्मा अब अपने शरीर में वापस जाओ, अभी तुम्हारा काम इस लोक में पूरा नही हुआ है. इससे पहले कि तुम्हारे इस स्थूल शरीर को कोई हानि पहुँचाए, फ़ौरन इसमें चले जाओ.

डॉक्टर और नर्स मेरे निर्जीव शरीर पर लगे पड़े थे, करीब 15 मिनट से उसमें प्राणों का कोई लक्षण नही दिखा, साँसें बंद हो चुकी थी. वेंटिलेटर के सारे सिग्नल बंद हो चुके थे.

थक हार कर डॉक्टर ने फाइनली मुझे मृत घोसित कर दिया और बॉडी को पोस्ट मॉर्टेम के लिए बोल दिया.

मेरे सभी नज़दीकियों की आँखें जार-2 बरस रही थी. 

हॉस्पिटल प्रशासन ने मेरे शरीर को ले जाने की तैयारी शुरू कर दी. मैने एक बार अपने शरीर की तरफ देखा और उस देवदूत से कहा.

मे- पर श्रीमान ये तो बुरी तरह घायल है, क्या मेरा वापस जाना उचित होगा..?

देवदूत- तुम उसकी चिंता ना करो वत्स ! और अतिशीघ्र अपने शरीर में प्रवेश करो. नियती को तुम्हारे द्वारा अभी और बहुत सारे काम करने हैं. समय समय पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मेरा मार्गदर्शन तुम्हें मिलता रहेगा. कल्याडमस्तु..!

इतना कह कर वो देवदूत अदृश्य हो गया और मेरा सूक्ष्म शरीर वापस अपने शरीर में आगया…!

अचानक मेरी आँखें खुल गयी, मैने उठने की कोशिश की लेकिन उठ ना सका, पीठ में दर्द की एक तेज लहर सी उठी और मेरे मुँह से कराह निकल गयी.

पास खड़ी नर्स जो अब बॉडी को ले जाने की प्रक्रिया में लगी थी, मेरी कराह सुन कर मेरे पास आई और मेरे कंधों को पकड़ कर मुझे लेटे रहने को कहा और वापस मूड कर डॉक्टर को आवाज़ दी.

अभी-2 हुई अलौकिक घटनायें मेरे जेहन में चलने लगी और एक बार फिर से मेरी आँखें बंद हो गयी.



जब मेरी आँखें खुली तो पाया कि एक अधेड़ उम्र का डॉक्टर मेरे उपर झुका हुआ मुझे फिर से चेक कर रहा था.

मेरी खुली आँखें और मुँह से कराह सुन कर डॉक्टर सर्प्राइज़ हो गया, उसके चेहरे पर आश्चर्य से भरे कीटाणु नृत्य कर रहे थे. 

वो खुशी से चिल्लाते हुए बोला - कंग्रॅजुलेशन्स यंग मॅन ! तुम बच गये.. बताओ अब कैसा फील कर रहे हो ?

मेरे मुँह से मरी सी आवाज़ निकली - मेरे पीठ में बहुत दर्द है,

डॉक्टर - अरे वो तो होगा ही, एक तलवार जो तुम्हारे आर-पार हो गयी थी, वैसे तुम बहुत बहादुर हो जो इस जानलेबा हमले में बच गये. एक तरह से तुमने मौत को ही हरा दिया है.

फिर उसने एक इंजेक्षन दिया, रिपोर्ट्स चेक की और मुझे आराम करने की सलाह देकर बाहर चला गया. 

उसके जाते ही मेरे दोस्त अंदर आए और मुझे होश में देख कर खुशी से रो पड़े..

मेरे चेहरे पर एक दर्दयुक्त मुस्कान आई और अत्यंत धीमी आवाज़ में बोला- अरे रोते क्यों हो मेरे शेरो अभी तुमहरा ये कमीना दोस्त जिंदा है.

धनंजय जो मेरे सबसे करीब था बोला- ये तो खुशी के आँसू है मेरे यार ! तू नही जानता कि पिच्छले 36 घंटों में हम कितनी मौतें मरे हैं तेरी याद कर-करके, लेकिन ना जाने क्यों कभी दिल ने नही माना कि तू इतनी जल्दी और ऐसे हमें छोड़ कर जा सकता है. 

क्या..! 36 घंटे..? तो क्या मे 36 घंटे तक बेहोश था..?

तभी प्रिन्सिपल सर भी अंदर आए और आते ही बोले- हां अरुण तुम 36 घंटे के बाद होश में आए हो, डॉक्टर ने तो तुम्हें डेड डिकलेयर कर दिया था. लेकिन तुमने मौत को भी हरा दिया मेरे बच्चे ! और उनकी आँखें छलक पड़ी.

बातों-2 में पता चला कि मंजीत को कॉलेज से निकाल दिया गया है, और इस समय वो पोलीस हिरासत में है. 

हमारी तरफ से और कोई ज़्यादा गंभीर रूप से घायल नही हुआ था, लेकिन उधर से 4-6 लोगों को रोड की मार से भीतरी चोटें आई थी.

मेरा शरीर चमत्कारिक रूप से सही हो रहा था, दूसरे दिन ही मुझे हॉस्पिटल से छुट्टी दे दी गयी, 

हॉस्पिटल से रति सीधे मुझे अपने घर ले गयी और मेरी सेवा में उसने अपनी जी-जान एक करदी, खुद से उसने मेरी देखभाल की जबकि उसकी प्रेग्नेन्सी को 7वाँ महीना चल रहा था.

एलेक्षन गुजर गया, धनंजय प्रेसीडेंट चुन लिया गया था, मैने भी अब कॉलेज आना जाना शुरू कर दिया था, लेकिन रति ने रखा मुझे अपने ही पास.

सब कुछ फिर से एक बार अच्छे से हो गया, कॉलेज प्रशासन और छात्र संघ मिलकर छात्रों के हित में काम कर रहे थे.

इधर रति की डेलिवरी का समय नज़दीक था, तो उसकी सास उसके पास आ गयी, जिसकी वजह से मे अपने हॉस्टिल चला आया.

और फिर एक दिन रति ने एक सुंदर सी परी को जन्म दिया, आलोक और उसके घर वाले सभी बड़े खुश हुए लक्ष्मी को पाकर. 

मैने भी मौका पाकर अपनी प्यारी सी गोरी चिटी, छुयि-मुई सी नन्ही परी को गोद में लेकर प्यार किया, रति थोड़ा एमोशनल हो गयी तो मैने उससे आँखों के इशारे से समझा दिया.

4-5 दिन बाद वो हॉस्पिटल से घर आ गई, उसकी सास बच्ची की देखभाल में लग गयी, सब कुछ अच्छे से चलने लगा.

देखते-2 साल का अंत आ गया, एग्ज़ॅम शुरू हो गये थे, हमारा ये अंतिम साल था. प्रिन्सिपल ने हमारे विदाई समारोह के लिए कुछ स्पेशल इवेंट सोच रखा था, डेट फिक्स करके कमिशनर और सिटी एसपी को भी इन्वाइट किया था, जिसे उन्होने सहर्ष स्वीकार किया.

वो दिन भी आ गया सबने हमारे बारे में कुछ ना कुछ कहा और हमें हमारे आनेवाले भविश्य के लिए ढेर सारी सूभकामनाएँ दी. सबकी आँखों में विदाई का दुख दिखाई दे रहा था.

लेकिन जीवन चलने का नाम, चलते रहो सुबह शाम , किशोरे दा के इस गाने की लाइन भी तो यथार्थ से जुड़ी हुई है.

हमने सबको थॅंक्स बोला, अपने 4 साल बिताए समय को याद किया, खट्टी मीठी यादों को दोहराया और इवेंट ख़तम हुआ.
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12-19-2018, 01:55 AM,
#92
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
प्रिन्सिपल ऑफीस में कमिशनर, एसपी के साथ हमने स्पेशल भेंट की और उन्हें पर्षनली थॅंक्स कहा. उन्होने वादा किया कि जिंदगी में कभी भी हमें उनकी ज़रूरत लगे बेझिझक माँग सकते हैं, चाहे वो कहीं भी हों, और अपने पर्सनल कॉंटॅक्ट्स शेयर किए.

जाने से पहले सभी दोस्त एक दूसरे से विदा लेते वक़्त थोड़ा सेनटी हो गये थे, जो स्वाभाविक भी था, भविष्य में मिलते रहने के प्रॉमिस के साथ सब एक दूसरे से विदा हुए.

मुझे रति ने ज़िद करके एक हफ्ते के लिए अपने पास रोक लिया. उसकी सास अपने घर जा चुकी थी. हमारी परी अब बैठना जो सीख गयी थी और घुटनों पर थोड़ा बहुत चलने भी लगी थी.

मैने अपना समान पॅक किया और रति के बंगले में लाके पटक दिया. एक हफ़्ता जो माँगा था उसने मुझसे. इस एक हफ्ते को वो मेरे साथ मिलकर बिताना चाहती थी.

अब मुझे सिर्फ़ अपने घर लौटने के अलावा और कोई काम नही था, सो दिन भर अपनी गुड़िया रानी और उसकी माँ के साथ खेलना था. 

शाम को हम ऐसे ही अपनी बच्ची को खिला रहे थे, वो मेरी गोद में खेल रही, रति मेरे कंधे पर सर रख कर बैठी थी कि अचानक बोली-

रति – अरुण ! अब तुम हमें हमेशा के लिए छोड़ कर चले जाओगे..? 

मे- ये जीवन है जान! एक बहती नदी के समान होता है, जो हमेशा बहती रहती है, अगर ठहर गयी, तो जो उसका पानी अमृत समान होता है वो जहर बन जाता है.

जीवन के किसी मोड पर फिर मुलाकात होगी, अगर नियती हमें मिलाएगी तो.

रति- तो जाने से पहले कुछ और माँग सकती हूँ तुमसे..? अगर दे सको तो..?

मे- मेरे पास है ही क्या..? सिवाय इस नन्ही सी जान के..! ये चाहिए तो अभी दे सकता हूँ.

वो तड़प कर मेरे सीने से लिपट गयी और बोली – आहह... ये भी अब तुम्हारी अकेले की नही है, इसका कुछ हिस्सा तो हम दोनो माँ-बेटी का भी है. मुझे तो इसका भाई चाहिए..! दोगे..?

मे- ओह्ह्ह… जानेमन ! तुम बहुत लालची हो.. है ना !

रति- क्या करूँ..! सामने खजाना देख कर रहा नही गया, सो माँग लिया थोड़ा सा..! बोलो ना..दोगे..?

मे- कोशिश करना हमारा काम है, फल तो उपेर वाले को देना है..! क्या ये सही समय है..?

रति- एकदम परफेक्ट टाइम है, कल ही मेरे पीरियड्स ख़तम हुए हैं.

मे- तो फिर ठीक है कोशिश शुरू कर देते है, और ये कह कर मैने उसको अपनी बाहों में समेट लिया, और उसके रसीली पंखुड़ियों को चूसने लगा.

रति इस समय एक हल्के से कपड़े के वन पीस गाउन में थी, नीचे वो ब्रा नही पहने थी, कुछ देर पहले ही उसने परी को दूध पिलाया था, सो उसके निप्प्लो के उपर वो गीला हो रहा था.

उसके 36” साइज़ की चुचियाँ अभी भी दूध से भरी हुई थी, और उसके कड़क हो चुके निपल जो अब काफ़ी बड़े हो चुके थे गाउन के कपड़े को फाड़ डालने को उतावले दिखा रहे थे.

मैने जैसे ही एक हाथ से उसकी दूध की एक टंकी को मसला… उसका गावन् भीगने लगा और उसके मुँह से एक जोरदार सिसकी निकलने लगी…

आअहह…. रजाआ… ईसीई पीलूओ.. ना… ऐसे क्यों बहा रहे हूऊ…

तो उतारो ना इसको… और उसका गाउन उपर उठाकर उसके शरीर से अलग कर दिया…

एक भरी पूरी काम की प्रतिमुरत.. हस्थिनि औरत, जिसके दोनो दूध की टँकियाँ लबालब भरी हों..! कल्पना कीजिए क्या हाल होता होगा सामने वाले मर्द का…

मे उसकी टँकियों पर टूट पड़ा और जब तक वो दोनो खाली नही हो गये, अपना मुँह नही हटाया…

मेरा पेट भर गया था, ना जाने परी इतना दूध कैसे पीती होगी..? मेरे मुँह से एक डकार निकल गयी जिसे सुन कर रति की हसी निकल गयी..

मैने कहा – बाप रे इतना दूध बनता है तुम्हें.. मेरी बेटी कैसे पीती होगी इतना..?

वो – कहाँ पी पाती है पूरा.. जब मुझे चैन नही पड़ता तो अपने हाथ से मसल-मसल कर इन्हें खाली करती हूँ..

फिर मे उसके पेट को चूमता हुआ उसकी चूत के उपर आ गया जो उसकी पेंटी को गीला कर चुकी थी.

एक बार हाथ से सहला कर मैने उसकी पेंटी को भी निकाल दिया, और उसकी चूत को चूमा, फिर थोडा चाट कर चिकना किया…

रति मज़े में अपनी आँखें बंद किए अपनी कमर को लचका रही थी.

फिर मैने अपने मूसल को उसके मुँह में देकर चुस्वाया, जब वो पत्थर जैसी हालत में पहुँच गया तो मैने उसकी टाँगें चौड़ा कर उसकी चूत में डाल दिया, सरसराता मेरा पूरा लंड उसकी चूत में समा गया, और उसका सुपाडा उसकी बच्चे दानी का मुँह खोल कर उसमें झाँकने लगा...

हम दोनो का मज़े से बुरा हाल हो रहा था.. दोनो ही अपनी तरफ से पूरी कोशिश में लगे थे एक दूसरे को पछाड़ने की. 

लेकिन अंत में बाज़ी दोनो के ही हाथ लगी और मॅच बराबरी पर छूटा.…

इस तरह हमारी काम क्रीड़ा शुरू हो गयी, एक दूसरे में खोते चले गये, एक तूफान आता, चला जाता, फिर से आता, और चला जाता. जब तक पूरी तरह निढाल नही हो गये, सेक्स में डूबे रहे. थक कर चूर एक दूसरे की बाहों में सो गये.

शाम को उठे, चाइ नाश्ता किया, बच्ची को दूध पिलाया, फिर से राउंड शुरू. रति ने मुझे हर खुशी देने की कोशिश की और खुद भी तृप्त होती रही.

इसी तरह एक हफ़्ता हम दोनो एक दूसरे में खोए रहे, फिर मैने एक दिन निकलने का मन बना ही लिया.

रति ने बड़े दुखी मन से मुझे विदा किया, कितनी ही देर तक मेरे सीने से लग कर रोती रही, मैने समझा बुझाकर उसे मनाया. अपना अड्रेस दिया कि जो भी खुशख़बरी हो वो मुझे ज़रूर सूचित करे. 

वो मुझे स्टेशन तक छोड़ने आई, मैने अपना रिज़र्वेशन करा लिया था सो सीट की कोई समस्या नही थी. सीट के नीचे अपना समान लगा कर में गेट पर आ गया रति परी को गोद में लिए प्लेटफार्म पर खड़ी थी.

सिग्नल हो चुका था, मैने परी के गाल पर किस किया, गाड़ी छूटते वक़्त मेरी नन्ही परी मेरी उंगली को पकड़े हुए थी, जब गाड़ी चली तो वो उसके हाथ से छूट गयी, अनायास ही मेरी आँखें छलक पड़ी.

बहुत दूर तक वो माँ बेटी मुझे देखती रही, हाथ हिला कर मुझे अलविदा करती रही जब तक में उनकी आँखों से ओझल नही हो गया.

मेरी कॉलेज लाइफ का पड़ाव पीछे छूट रहा था, गाड़ी अपनी गति से मेरे अगले पड़ाव की ओर बढ़ी चली जा रही थी.
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12-19-2018, 01:55 AM,
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RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
में अपनी सीट पर बैठा अभी भी परी और रति से अंतिम विदाई के पलों को आँखों में बसाए सोच में डूबा हुआ था.

ये एक 2 टीर एसी कॉमपार्टमेंट था, मेरी सीट उपर की थी, मेरे नीचे की सीट पर दो अधेड़ पति-पत्नी थे और सामने उपर की सीट पर उनकी बेटी थी, शायद शादी शुदा लग रही थी. देखने से ही एक सभ्रान्त परिवार लगा मुझे.

जान-पहचान हुई तो वो लोग मेरे से एक स्टेशन आगे जाने वाले थे रात हो चुकी थी, मेरा स्टेशन कोई 10 बजे तक आने वाला था, अभी 7 बजे थे.

अगले स्टेशन पर गाड़ी रुकी और वहाँ से 4 लड़के मेरी उम्र के लग रहे थे वो चढ़े, इधर-उधर देखते हुए चले आरहे थे, अचानक उनकी नज़र उनकी लड़की पर पड़ी तो वो वहीं उनको एक साइड में खिसका कर बैठने लगे.

उन बुजुर्ग ने जब पुछा कि तुम लोगो की सीट कहाँ हैं, ये तो हमारी रिज़र्व सीट्स हैं, तो वो गुंडा गर्दि करने लगे उनके साथ और बदतमीज़ी पर उतर आए... 

मे अपने उपर बर्थ पर लेटा अपने ही विचारों में डूबा हुआ था, अब वो लड़के उस लड़की को भी परेशान करने लगे, एक ने तो उसका हाथ ही पकड़ लिया और अपनी ओर खींचा, मेरी नज़र उस पर पड़ी तो वो नीचे गिरने ही वाली थी कि तभी मैने उसे उसका कंधा पकड़ कर गिरने से बचा लिया.

उसने मेरी ओर याचना भरी नज़रों से देखा, मज़रा समझते ही मैने उन लड़को से कहा-

क्यों भाई क्या तकलीफ़ है आप लोगों को ? क्यों परेशान कर रहे हो सवारियों को..?

एक- अब्बे ओये.. लौन्डे..! तू चुपचाप लेटा रह.. हम लोंगों के बीच में टाँग मत अड़ा समझा..

मे- टाँग तो तुम लोग अड़ा रहे हो ! ये रिज़र्वेशन बोगी है, तुम लोग इसमें आ कैसे गये ?

दूसरा- अब्बे साले हमें नियम क़ानून सिखाएगे ? तेरी तो…. और जैसे ही वो मेरी ओर लपका, एक लात उसकी नाक पर पड़ी, धडाम से वो साइड वाली सीट के पार्टीशन से जा टकराया.. नाक से खून बहने लगा उसकी.

उसे देखकर एक और बढ़ा मेरी ओर उसका भी वही हुआ जो पहले वाले का हुआ था क्योंकि मे उपर था और वो नीचे खड़े थे. वो भी उसकी बगल में जा गिरा.

अब मैने नीचे जंप लगा दी और लपक के उन वाकी दो के कॉलर पकड़ के उठाए और गॅलरी में ले जाके धकेल दिया, तब तक और लोग भी आ गये और फिर उनकी वो धुनाई शुरू हुई की बस पुछो मत, बाद में उनको रेलवे पुलिस के हवाले कर दिया.

उन बुजुर्ग दंपत्ति ने मुझे खूब-2 आशीर्वाद दिया और फिर हम सभी नीचे बैठ कर बात-चीत करने लगे. एक दूसरे से जान पहचान करते करते समय का पता ही नही चला और मेरा स्टेशन आ गया.

मे उन लोगो से विदा ले अपने स्टेशन पर उतर गया….!!!

ज़िम्मेदारियों का बोझ ढोते-2 पिताजी समय से पहले बूढ़े हो गये थे, एलर्जिक तो वो थे ही, उपर से काम और ज़िम्मेदारियों के बोझ ने उनकी कमर ही तोड़ के रख दी थी. 

हालाँकि श्याम भाई अपना ग्रॅजुयेशन कंप्लीट कर चुके थे और फिलहाल दो सालों से घर पर ही थे, लेकिन वो अपनी ही मुसीबतों में फँसे हुए थे.

हुआ यूँ कि एक बार कहीं जॉब के लिए इंटरव्यू देने जा रहे थे, रात का ट्रेन का सफ़र था, पॅसेंजर ट्रेन भीड़ थी नही, सो गये लाट साब सामने की सीट पर बॅग रख कर, ले गया कोई उठाके.

सारे पैसे टके, कपड़े लत्ते, और सबसे बड़ी बात डिग्री तक के सारे डॉक्युमेंट्स भी उसी बॅग में थे, एक साल से ड्यूप्लिकेट बनवाने में ही भाग-दौड़ में लगे थे, नौकरी का भूत दिमाग़ से फिलहाल निकल चुका था.

मैने तय किया कि अब में कुछ दिन रह कर यहीं पिता जी का हाथ बाँटता हूँ, जब उनकी तबीयत थोड़ा सुधरेगी, या श्याम भाई अपनी मुसीबतों से फारिग हो जाएँगे, तब देखा जाएगा आगे क्या करना है, सो लग गया खेती वाडी के कामों में जो मेरे लिए कोई नया तो था नही.

जुलाइ का महीना था, बरसात की शुरुआत हो चुकी थी, एक दो बरसात के बाद मौसम में उमस कुछ ज़्यादा ही बढ़ जाती है, हर समय पसीने की चिपचिपाहट होती रहती है.

एक दिन ऐसे ही मे पड़ोसी के लंबे चौड़े चबूतरे पर पीपल के पेड़ के नीचे अपनी शर्ट उतार कर उसकी चारपाई पर बैठा अपना पसीना सुखा रहा था, पड़ोसी अपनी बेटी को लेकर वहीं चारा कूटने की मशीन लगी थी जिससे गाय भैसो के लिए चारी (ज्वार) के चारे को काट रहा था.

आप में से शायद कुछ लोगों ने चारा काटने की मशीन को देखा हो, यह एक 4-5 फीट दिया का आइरन का कस्टेड व्हील होता है, जिसमें आर्क शेप में दो गन्डासे (शार्प ब्लेड) लगे होते, एक गन्डासे के बाहरी साइड में व्हील की परिधि के पास ही एक लोहे की रोड का हॅंडल फिट रहता है जिसके उपर एक लकड़ी का पाइप जैसा चड़ा देते हैं, जिससे हाथों को तकलीफ़ ना हो और वो स्वतः ही पोज़िशन के हिसाब से घूमता रहे.

हॅंडल को पकड़ कर व्हील को घुमाया जाता है, सेंटर में एक मुँह होता है जिसमें से साबुत चारा डाला जाता है, जो अपनी नियमित गति से गियरिंग सिस्टम की वजह से आगे बढ़ता रहता है और गन्डासे उसे एक़ुआली काटते जाते हैं. 

कठोर ज्वार के डंठल काटने में एक आदमी की ताक़त से काम नही चलता जिससे दोनो साइड में ऑपोसिट खड़े होकर दो आदमी उस व्हील को घुमाते हैं तब वो काटता है.

बाप चारे को मशीन के मुँह में डाल रहा था, और लड़की उस व्हील को घुमाने में लगी थी जो उसके लिए मुश्किल पड़ रहा था.

मीरा नाम की वो लड़की मेरे से 3 साल छोटी 18-19 साल की गोरी-चिटी 5’4” की हाइट इकहरे बदन की जिसकी 32 की चुचिया, पतली कमर, लगभग 32 के ही कूल्हे, कुल मिलाकर एक नयी-2 जवानी की दहलीज़ पर कदम रखने वाली एक आवरेज लड़की थी. गोल चेहरा, आँखें कुछ गोल-गोल सी थी.

चारा लगा के उसके बापू भी उसकी मदद करने व्हील पर लग जाते लेकिन उसमें उनका काम सही से नही हो पा रहा था. 

मे अभी चारपाई पर बैठा ही था कि वो काका बोले, मे उस पड़ोसी को काका बोलता था- अरे अरुण ! बेटा थोड़ा हमारी मदद कर दे, मीरा से अकेले मशीन चल नही पा रही.

मे जब से लौटा था तभी से वो मीरा मुझे अजीब सी नज़रों से देखती थी.. मुझे भी उसकी नज़रों का अंदाज़ा था लेकिन ज़्यादा तबज्ज़ो नही देता था.

जब मे उसके सामने जाके उसके साथ मशीन खींचने में लग तो उसका ध्यान मेरी ओर हो गया मशीन खींचने की वजाय, और उसकी वजह से पूरी ताक़त मुझे ही लगानी पड़ रही थी.

मैने उसको झिड़का, क्यों री मीरा बड़ी चालू है तू…, पूरा मुझसे ही ज़ोर लगवा रही है, तो वो फुफूसाकर बोली ज़्यादा ज़ोर तो आदमी को ही लगाना पड़ता है ना और इतना कह कर उसने मेरे हाथों के उपर अपने हाथ रख दिए. 

मैने भी अपने हाथ उसके हाथों के नीचे से निकाल कर उसकी उंगली में नोंच लिया, ये सब करते-2 काम भी साथ-2 होता जा रहा था. उसके बापू का ध्यान चारा डालने में ही था. 

अब वो हॅंडल के नज़दीक आके मशीन चलाने लगी थी जिससे जब भी हॅंडल उसकी तरफ जाता तो मेरे हाथ उसकी मुलायम चुचियों से टच हो जाते. 

मैने सोचा ये तो बड़ी चालू लौंडिया है, साली से बचके रहना होगा कहीं अपना ही बलात्कार ना कर्दे.

खैर जैसे-तैसे करके मैने उसका चारा कुटवा दिया, हम दोनो ही हाफने लगे थे, क्योंकि पूरी ताक़त लगानी पड़ती है मशीन खींचने में, यह एक तरह की एक्सर्साइज़ भी है, जो मुकलेस को मजबूत करती है.

हम दोनो ही चारपाई पर आकर बैठ गये, उसके बापू मशीन के नीचे से कुटा हुआ चारा निकालने में लग गये. मे पैर नीचे लटका के चारपाई पर लेट गया, 

वो चारपाई पर पैर रख के घुटने मोड़ कर बैठ गयी मेरे बाजू में.

मे- मीरा ! तू तो बहुत चालू है, बेह्न्चोद पूरी ताक़त मेरे से ही लगवा दी.

वो- हुउन्न्ं… जैसे मैने कुछ नही क्या .. हीन्न्न..!

मे- तू तो उल्टा मेरे को परेशान और कर रही थी…!

वो- मेरे नंगे बदन पर चुटकी काटते हुए.. अच्छा !! झुटे कहीं के..!

मे- अच्छा साली ये बदमाशी…? और मैने उसकी जाँघ को सलवार के उपर से ही जोरे से कचोट दिया..

वो- आययईीीई… मुम्मि…,

उसका बापू हमें देख कर बोला- क्या हुआ ?

वो- कुछ नही बापू.. कोई चींटी थी शायद..!

ओ तेरी का…! ये तो साली बहुत चालू है..., कैसे अपने बाप को ही घुमा दिया..

मे उठने को हुआ तो वो मेरा कंधा पकड़ कर फिर से लिटाते हुए बोली - अरे अरुण बाबू ढंग से पसीना तो सूखने दो..! कहाँ तुम्हारे लिए भैंस बैठी है जिसका दूध निकालना है तुम्हें ?

मे- एक भैंस से बचने के लिए उठना ही पड़ेगा यहाँ से, पता लगा कहीं वो अपना ही दूध निकलवाने को ना कहने लगे..!!

वो मेरी छाती पर हाथ रख कर दबाते हुए बोली – भैंस किसको बोला हैन्न..? मे भैंस दिखती हूँ तुम्हें…? हैन्न.. बोलो..! 

ये करते-2 हँसती भी जा रही थी… और हां !क्या बोले..? में अपना दूध तुमसे निकल वाउन्गी..? क्यों ? शक्ल देखी है कभी शीशे में..? बड़े आए… दूध निकल वाउन्गी मे इनसे. दूध निकालना आता भी है या ऐसे ही पहाड़ हो रहे हो ?

मे- आता तो है..! तू कहे तो मे तेरा भी निकाल सकता हूँ, और इधर-उधर देख कर उसका एक बोबा मसल दिया…!

वो- हाईए…! राम… क्या करते हो ? पागल हो क्या..? कोई देख लेता तो..?

मे- चल कहीं ! निकाल के दिखूं..! बोल निकलवाना है अपना दूध..?

थोड़ा अंधेरा सा होता जेया रहा था, हम दो ही वहाँ बैठे थे, उसके बापू भी घर के अंदर जा चुके थे.

वो- कैसे निकालते हो ..? मैने उसे अपनी ओर खींच लिया और गॉड में बैठके उसकी दोनो मुलायम गोल-2 चुचियों को मुट्ठी में भरके दबा दिया…! 

वो एकदम गन्गना गयी… और सिसकारी भरती हुई बोली… नही यहाँ नही…, 

तो मैने उसकी चूत को मुट्ठी में भर कर भींचते हुए कहा- बोल कहाँ निकलवाएगी ? जहाँ कहेगी वहीं निकाल दूँगा.

जहाँ मशीन लगी थी उसके ठीक बगल में एक कच्चा बड़ा सा उसका कमरा था. 

वो बोली- सुबह 4 बजे से में जानवरों को चारा डालने आती हूँ, तो उस टाइम तुम इस कमरे में आ जाना. बोलो आओगे..?

मे- कभी पहले निकलवा चुकी है अपना दूध किसी से.

वो- ये तो एक दो बार दबा दिए हैं हमारे दूध वाले ने, उससे ज़्यादा कुछ नही हुआ.

इसका मज़ा नही लिया अभी तक ? मैने उसकी चूत पर हाथ फेरते हुए कहा.. 

तो उसने अपनी जंघें भींचते हुए ना में गर्दन हिला दी और झुरजुरी सी लेती हुई उठ गयी, अपनी मुन्डी नीची करके मुस्कराती हुई घर के अंदर भाग गयी…..!

मैने अलार्म . में 3:45 आम का अलार्म भरा और सो गया लेकिन पता नही क्या हुआ ? साला अलार्म नही बजा और जब मेरी नींद अपने समय से खुली तो 4:30 हो चुके थे, मे लपक के उठा और सीधा उसके उस कच्चे कमरे में पहुँचा, 
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12-19-2018, 01:59 AM,
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RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
दरवाजा खुला हुआ था, अंदर झपाझप अंधेरा था हाथ को हाथ सुझाई नही दे रहा था, जब साला दिन के उजाले में अंधेरा रहता था इस कमरे में तो अभी तो रात थी.

मैने हल्के से लकड़ी के दवाजे को सांकल से बजाया, तो थोड़ी देर के बाद मेरे पीछे से आवाज़ आई..

अब आए हो..! मे कब से इंतजार कर रही थी. मैने कहा यार साला अलार्म ही नही बजा मे क्या करता.

हम दोनो अंदर आ गये, और अंधेरे में टटोलते हुए वहाँ पड़ी एक बड़ी सी चारपाई पर बैठ गये, दिख तो कुछ नही रहा था बस हाथों की आँखों से काम चलाना था सो जकड लिया उसे अपनी गोद में और अपना मुँह उसके बालों से होते हुए, उसके कान को जीभ से चाटा और फिर उसके गाल को काट लिया.

उसके मुँह से हल्की सी चीख निकल गयी और सरसराती हुई आवाज़ में नाराज़गी दिखाते हुए बोली- जंगली हो क्या बिल्कुल. काटते क्यों हो ? दाँतों के निशान बन गये तो क्या जबाब देंगे किसी को ?

मे- अरे मेरी जान तेरे ये माल पुआ जैसे गाल हैं ही ऐसे की काटने का मन किया सो काट लिया. गेट बंद कर दिया तुमने ?

वो- नही तो ! गेट बंद करने की क्या ज़रूरत है.. यहाँ कॉन देखने वाला है हमें.

मे- अगर किसी ने निकलते करते अपनी बातें सुन ली तो..! जा गेट बंद कर दे, वो उठी और गेट बंद करके अंदाज़े से आके फिर मेरी गोद में बैठ गयी.

मीरा तू तो इतनी जल्दी पट गयी री, तैयार ही बैठी थी क्या..?

वो- कितने दिनो से इंतजार कर रही हूँ अपने दिल की बात बोलने को ? मुझे तुम बचपन से ही अच्छे लगते थे. कल मौका मिला तो कैसे जाने देती ?

मे- ऐसा क्या ? और फिर मैने उसे अपने एक बाजू के उपर लिटाके उसके होठों का चुंबन ले लिया, गाँव में लड़कियों को चुंबन-वुम्बन लेने का पता ही नही होता तो उसने अपना मुँह हाथ से पोंच्छा, और बोली-मेरा मुँह क्यों झूठा करते हो.

तू तो बिल्कुल अनाड़ी है री..! मे बोला- देख इसमें कितना मज़ा आता है और मैने उसके दोनो होठों को अपने मुँह में भर लिया और चूसने लगा, कुछ देर तो उसने छुड़ाने की कोशिश की लेकिन कुछ ही देर में उसके बदन में सुरसूराहट होने लगी, अब तो वो भी मेरे होठों को मेरी तरह ही चूसने लगी.

मेरे दोनो हाथ उसकी चुचियों को सहला रहे थे, नीचे मेरा लंड उसकी गान्ड की गर्मी पा कर सर उठाने लगा था, कुछ ही देर में अकड़ कर उसकी गान्ड की दरार में ठोकर लगाने लगा.

मीरा मज़े में आ चुकी थी, मैने उसकी कुर्ता को उतार दिया, वो ब्रा नही पहने थी, बिना ब्रा के ही उसके गोल-मटोल इलाहाबादी अमरूद एक दम सुडौल थे, मैने अपना मुँह नीचे करके उसके एक बोबे को मुँह में भर लिया, दूसरे को एक हाथ में पकड़ कर उसके चुचक को उमेठ दिया.

उसकी कमर हवा में उठ गयी और मुँह से एक लंबी सी सिसकी निकल पड़ी..
सस्सिईईई…आअहह…उउफ़फ्फ़…हाए रामम्म…मारीइ रीए…ये क्याअ..ह..हहूओ..राहहा…हाई..मुझहहीए.. ओ माआ..उऊहह..

मेरे एक हाथ ने उसकी सलवार का नाडा भी खोल दिया, नीचे वो पैंटी भी नही पहने थी..

अब मेरे मुँह में उसकी एक चुचि थी, एक हाथ दूसरी चुचि पर, दूसरा हाथ उसकी चूत को सहला रहा था, नीचे गान्ड की दरार में मेरा पप्पू ठोकरें लगा रहा था. मज़े के मारे उसका बदन बार-2 कंपकंपा रहा था, उसके पूरे शरीर में जैसे लहरें उठ रही हों, चूत एक दम लिसलिसा गयी उसकी.

जेसे ही मेरी एक उंगली ने उसके कंचे को कुरेदा जो चोंच बाहर निकाले अकड़ रहा था कि उसकी कमर मेरी गोद से 6” उपर उठी और एक लंबी हुंकार सी भरती हुई झड़ने लगी. 

मेरा हाथ उसके चूत रस से भीग गया, जिसे मैने उसके मुँह पर रख दिया, पहले तो उसे अंधेरे में कुछ पता नही चला लेकिन जा उसका टेस्ट उसकी जीभ पे लगा तो वो उसे चाटने लगी.

मे- पूरा अकेले ही स्वाद ले लेगी, थोड़ा मुझे भी लेने दे ना, …

वो- किस चीज़ का स्वाद था, बड़ा ही अच्छा था..

मे- तेरी चूत के रस का.., तो वो चोंक गयी और बोली…

वो- छी कितने गंदे हो तुम, मेरा ही पेसाब चटवा दिया..

मे- तेरी माँ को चोदु, भोसड़ा की तुझे ये पेसाब जैसा लगा..? ये तेरा अपना ही अमृत है, देख मे भी चाट रहा हूँ. इससे ताक़त मिलती है समझी..

फिर मैने उसकी सलवार को भी उतार फेंका और अपना पाजामा और अंडरवेर निकाल के उसे चारपाई पर लिटा दिया.

गान्ड के नीचे कुछ दरी सी रखी थी चारपाई पर, तो उसको तह बना कर रख दिया जिससे उसकी गान्ड थोड़ी उपर उठ गयी और उसकी टांगे चौड़ी करके अपने लंड को उसकी लिसलीसी चूत पर दो-तीन बार घिसा.

मेरा लंड लट्ठ की तरह अकड़ गया था. मैने उसका हाथ पकड़ के उसके हाथ में पकड़ा दिया, जैसे ही उसने मेरे लंड को हाथ में पकड़ा और थोड़ा सहला के देखा, वो डरी सी आवाज़ में बोली- हाई..दैयाआ… इतना बड़ाअ…? कैसे जाएगा..ये मेरे अंदर.. मर जाउन्गी… मुझे नही लेना .. छोड़ो मुझे..

मे- मैने उसके कंधो को दोनो हाथों से दबा रखा था, और बोला- अरे मेरी जान ये देखने में ही बड़ा लग रहा है, जब अंदर जाता है ना तो पिचक कर पतला हो जाता है, तुझे पता भी नही चलेगा कि कब घुस गया तेरी सुरंग में, तू देखती जा.

वो- तुम झूठ बोल रहे हो मैने उसे पूरा दम लगा कर दबाया तो भी नही दबा… ज़रूर फट जाएगी मेरी तो..!

मैने कहा- क्या फट जाएगी तेरी..? बता..बकवास कर रही है.. चुप चाप लेटी रह अब..

वो अभी कुछ बोल भी नही पाई थी कि मैने थोड़ा धक्का लगा दिया, जिससे मेरा सुपाडा उसकी चूत में सेट होगया और साथ ही एक-डेढ़ इंच तक जाके फँस गया, इतने में ही उसकी चीख निकल गयी. 

मैने उसके मुँह पर अपना हाथ रख दिया और उसके कान में फुसफुसाकर कहा-

साली तब तो अपनी चूत उठाए मेरे पीछे पड़ी थी, अब क्या पूरे गाँव को बताना चाहती है, कि मे चूत फटवा रही हूँ आ जाओ सब लोग देखो. 

वो- रोती हुई…बोली - बहुत दर्द हो रहा है, प्लीज़्ज़ज्ज्ज्ज. मान जाओ.. निकाल लो ना.. बाद में कर लेना.. हें..!!

मे- थोड़ा सा दर्द सहन करले फिर तू खुद लेने के लिए कुदक्की मारेगी.. और उसके मुँह पर अपने होठ रख कर एक करारा सा झटका दिया अपनी गान्ड में, फूच..सी आवाज़ करके उसकी झिल्ली फट गयी. 

गरम-2 खून का एहसास मेरे लंड पे हुआ, उसके मुँह से गून-2 की आवाज़ आराही थी. मैने उसकी चुचियों को सहलाना शुरू कर दिया, और 2-3 मिनट वही रुके रहा उसके होंठ चुसते हुए. 

उसको मैने तसल्ली दी की बस अब सब कुछ हो गया, अब कोई प्राब्लम की बात नही है.
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12-19-2018, 01:59 AM,
#95
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
थोड़ी देर में ही उसका दर्द कम हुआ और उसकी कमर में थिरकन होने लगी, मैने धीरे-2 अपने 3/4 लंड को 1/2 तक खींचा तो वो सिसक उठी, फिर से अंदर कर दिया उतना ही तो उसके मुँह से हाईए.. निकली, ऐसे ही धीरे-2 अंदर बाहर करता रहा 3/4 चौथाई लंड को. 

कुच्छ ही धक्कों में उसको मज़ा आने लगा, अब उसकी कराहें सिसकियों में बदलने लगी थी. वो अभी यही समझ रही थी कि मेरा लंड पूरा उसकी चूत के अंदर है, 

जब उसको ज़यादा मज़ा आने लगा और वो भी नीचे से अपनी कमर उठाने लगी तो सही मौका देख मैने एक और लास्ट सुलेमानी धक्का उसकी चूत में मार दिया, 

मज़े में फँसी वो चीख तो नही पाई पर मज़े की कराह उसके मुँह से निकल गयी और बोली -.. आईईई… और कितना डालोगे…? 

मे- बस लास्ट हो गया मेरी रानी, देख मेरे टटटे भी तेरी चौखट पे अड़ गये. मेरी बात सुनके उसकी हँसी छूट गयी और अपना दर्द भूल गयी.

बस देखते-2 मैने अपने घोड़े को उसकी कीचड़ भरी नयी-2 बनी कच्ची सड़क पर दौड़ा दिया, वो कुछ देर तो हाए-2 करती रही, पर थोड़ी ही देर में जब उसकी सड़क थोड़ी सेट हुई, संभाल लिया मेरे घोड़े को उसने.

सुबह-2 के ठंडे मौसम में भी हम पसीने से लथपथ थे, वो भी बहुत गरम लौंडिया थी, मेरे घोड़े की टॅपो को आराम से झेलती रही, और जब घोड़े को मंज़िल मिली तब तक वो अपनी कच्ची सड़क पर कई बार छिड़काव कर चुकी थी.

हम दोनो एक दूसरे को जकड़े हुए, आधे घंटे तक पड़े रहे, जब उसका फाटक खुलने की आवाज़ आई, तो उसने मुझे धक्का दिया और अपने उपर से धकेला. 

झटपट कपड़े पहने और मुझे थोड़ी देर वही रुकने को बोल कर बाहर निकल गयी.

उसकी माँ शौच के लिए निकली थी, जब वो कमरे से बाहर आई तभी उसकी माँ भी फाटक खोल के बाहर निकली हाथ में लोटा लिए हुए.

मीरा की माँ- क्यों री तबसे भैसो को चारा ही डाल रही है ?

वो- दूसरी बार डाला है, पहली बार डालके थोड़ा कमरे में ही लेट गयी थी, अब डालके सानी लगाने वाली हूँ (सानी:- अनाज को मोटा सा पीस कर उसे पानी में घोल कर जानवरों को चारे के साथ खिलाया जाता है जिससे उनको शक्ति मिलती है और गाय-भैंस दूध ज़्यादा देती हैं, कुछ वेस्टर्न यूपी, हरियाणा, पंजाब के रीडर्स शायद समझ भी रहे होंगे).

मीरा की माँ - ठीक है, जल्दी कर फिर दूध भी निकलवाना है मेरे साथ. इतना बोलकर वो चली गयी शौच के लिए और वो फिर मेरे पास आई और बोली- अरुण तुमने पता नही क्या कर दिया है मेरे यहाँ दर्द हो रहा है.

मे- अरे तेरी चूत नयी-2 फटी है, थोड़ा तो होगा, एक काम कर जल्दी से घर जा कर थोड़ा गुनगुना पानी करके सिकाई जैसी कर ले सब ठीक हो जाएगा.

इतना बोल कर मे अपने खेतों की ओर चल दिया और वो अपने घर के अंदर चली गयी......!!

मीरा रानी की चूत क्या फटी, उसको तो चस्का ही लग गया चुदवाने का.. जब भी मौका लगे खींच ले जाए मेरा हाथ पकड़ के. 

पड़ोसी तो थे ही, भाई बहनों में सबसे बड़ी थी वो, उसके दूसरे नंबर की भी एक बेहन ही थी उसके बाद 3 भाई…फिर एक छोटी बेहन और लास्ट में एक और भाई. कुल मिला कर 7 भाई बेहन थे वो.

उसके दूसरे नंबर की बेहन ही उसकी थोड़ी समझदार थी वाकियों के तो सामने ही छेड़ छाड़ करते रहते थे, 

जैसे की मे चारपाई पर लेता हूँ वो मेरे बगल में नीचे पैर लटका कर बैठ जाती, मे उसकी चुन्नी के पीछे उसकी चुचियों को मसलता रहता, वो मुँह ही मुँह में सिसक पड़ती.

कभी-2 तो उन बच्चों के सामने ही उसकी सलवार का नाडा खोलकर कुर्ता में हाथ डालकर उसकी चूत में उंगली करता रहता और बैठे-2 ही उसका पानी निकाल देता बड़ा मज़ा लेती रहती वो, बहुत डेरिंग थी उसमें.

कभी-2 खेतों में ही हम चुदाई कर लेते थे. 

ऐसे ही समय व्यतीत होता रहा, सावन का महीना था, मीरा के मामा की लड़की जिसका नाम अंजलि था, आई हुई थी अपनी बुआ के घर.

लंबी छरहरि हल्के साँवले रंग की गोल चेहरा, मस्त चुचियाँ, एकदम सतर खड़ी आगे को नोक निकाले, मानो बड़े-बड़े दो लट्टू (घूमने वाले) नयी-2 ताज़ा-2 जवान नाम था अंजलि. 

मीरा से भी बड़ी थी उसकी चुचियाँ, लेकिन उससे ज़्यादा रसीली. पतली कमर उसके नीचे गोल-2 हल्की उभरी हुई गान्ड का उठान. एकदम मस्त लगी मुझे.

मे भी मीरा की चुदाई करते-2 ज़्यादातर गरम ही रहता था, सो उसको पहली बार देखते ही मेरा लॉडा खूँटा तोड़के फनफनाने लगा, जैसे कह रहा हो कि ये चोदनी है, इसकी चूत चाहिए मुझे. 

अब मे तो आजकल लौडे के वशीभूत हो चुका था सो उसे हाथ से सहलाते हुए पूछकर कर बोला.. सबर कर मेरे शेर उपरवाले ने चाहा तो ज़रूर मिलेगी.

एक-दो दिन में ही वो लौंडिया ताड़ गयी कि मेरा और मीरा का कोई चक्कर ज़रूर है, खेली खाई थी वो भी, मीरा की तरह नयी-2 चुदास रहती थी शायद उसको भी, सो उसकी नज़र हम दोनो पर ही रहती.

मे भी यही चाहता था कि ये हमें देखे, सो जान बूझकर उसके सामने ही मे मीयर्रा के साथ कोई ना कोई छेड़-छाड़ कर ही देता था.

मैने एक दिन मीरा को बोल ही दिया.. कि मुझे इसको चोदना है, बोल क्या कहती है, तो वो बोली- कैसी बातें करते हो, वो मेरे मामा की लड़की है, मे कैसे कह सकती हूँ उसको..?

मे- तुझे कुछ कहने की ज़रूरत ही नही है, वो खुद ही चुदना चाहती है, तू बस मौका दिलवादे उसके साथ.

वो- क्या बात करते हो..? तुम्हें कैसे लगा कि वो भी करवाना चाहती है..?

मे- अरे मेरी जान ! हम वो हैं जो उड़ती चिड़िया के पर गिन लेते हैं, और ये चिड़िया तो हमारी डाल पे बैठने के लिए उतावली हो रही है, तू बस मौका दिला फिर देख तुम दोनो को मिला के क्या मज़े कराता हूँ.

एक दिन उसने वो मौका निकल ही लिया..! मुझे इशारा किया कि मे उसे लेकर खेतों पर जा रही हूँ, थोड़ी देर में तुम आ जाओ.
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12-19-2018, 01:59 AM,
#96
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
उस दिन उसके बापू बाज़ार गये थे बच्चों को कुच्छ किताब-कॉपी और दूसरा त्योहार का समान लेने जाना था, रक्षाबन्धन जो आने वाला था, वो पैदल ही जाते थे तो लगभग पूरा दिन ही निकाल कर आते थे. 

उसकी दूसरी बेहन घर पर अपनी माँ की काम काज में मदद के लिए घर पर थी.

मौका अच्छा था, मेरे भी कुछ खेत उसके खेतों के पास थे, कुछ फसल तो नही थी उस समय उनमें, खाली हरी खाद के लिए ऐसा ही कुछ बो दिया था जिसे जोत कर हरी खाद खेतों को मिल सके, फिर भी देखने के बहाने अपने खेतों पर चक्कर लगाने चला गया. 

मीरा अपने ज्वर के खेत से चारा काट रही थी और उसके मामा की लड़की झोपड़ी में ही चारपाई पड़ी थी उसपर लेटी थी.

मे सीधा मीरा के पास गया और उसको पकड़ लिया पीछे से, और उसकी चुचियों को उमेठने लगा, वो हड़वाड़ा कर मूडी और नकली गुस्सा दिखाते हुए बोली- क्या करते हो ? कोई आजाएगा.? छोड़ो मुझे..!

मे- थोड़ा उँची आवाज़ में जिससे मेरी आवाज़ झोपड़ी तक पहुँच जाए- अरे रानी कॉन देख रहा है यहाँ, बारिस का मौसम है, किसको पड़ी है जो आएगा यहाँ.

मैने उसके गाल पर काट लिया तो वो हल्की आवाज़ में चिल्लाई.. छोड़ो.. नही मानोगे..अभी बताती हूँ रूको और उसने अपनी दरान्ती फेंकी और मूड के झपट लिया मेरे खड़े लौडे को और मरोडने लगी…! 

मेरी सिसकी निकल गयी.. जब सामने नज़र पड़ी तो उसकी मामा की लड़की हमें देख कर हंस रही थी और अपने नीचे के होंठ को दांतो से काट रही थी, मैने मीरा को इशारा किया तो उसने मेरे लंड को छोड़ दिया और झेंप गयी.

अब वो भी हमारे पास आकर खड़ी हो गयी और बोली- कोई नही मीरा लगी रह, ऐसा लंड नसीब वालों को मिलता है, तुझे नही चाहिए तो मुझे दिलवादे, और बेशर्मी से हँसने लगी. 

मीरा अवाक खड़ी उसके मुँह की तरफ देख रही थी....

मे- देखा मीरा ! धीरे से उसके कान में कहा- मैने क्या कहा था..? और प्रत्यक्ष मे उस लड़की से बोला- अरे रानी चिंता क्यों करती हो, तुम दोनो ही लेलो इसे, ये दोनो को बराबर मौका देगा.

फिर हम तीनो झोपड़ी में आ गये…मे चारपाई पर बैठ गया और वो दोनो मेरे अगल-बगल में बैठ गयी, मैने जैसे ही उस लौंडिया की चुचि पर हाथ लगाया…. हाईए… क्या मुलायम गद्देदार थी उसकी चुचि, बिना ब्रा के भी एकदम आगे को खड़ी चोंच निकाले हुए. 

वो साड़ी ब्लाउज में थी और मीरा सलवार सूट में. ब्लाउस के उपर से ही उसकी चुचि का एहसास मेरे हाथ को ऐसा लगा जैसे मैने कोई वूल का गोला हाथ में ले लिया हो. हाए मेरी छम्मक्छल्लो क्या चुचियाँ हैं तेरी तो, मैने उसको बोला तो वो शर्मा कर मुस्कराने लगी..

अब में मीरा को भूल गया और उसकी पतली कमर में हाथ डालकर अपनी गोद में खींच लिया और पूरे हाथों से उसकी चुचियों को मसल्ने लगा, सच कहता हूँ, इतनी जानदार वेल शेप चुचियाँ मैने आजतक नही देखी थी. 

मेरा और कुछ करने का मन ही नही कर रहा था बस मसले जा रहा था, वो सीसियाए जा रही रही थी, अपने हाथ मेरे हाथों के उपर रख कर काँपति आवाज़ में रोक रही थी मुझे..

आअहह… जोरे से नही… दर्द्द्द..होता है…हाईए…नाहहिईिइ…सस्सिईईई….ऊहह…प्लेआस्ीईईई… नहिी..उउफ़फ्फ़…ऊहह….माआ…म्माअरीी.. रीई…हाईए…रामम..

इसी तरह की सिसीक़ियों में डूबी आँखें बंद किए मेरे हाथों को अपनी चुचियों से हटाने की कोशिश कर रही थी लेकिन उसका प्रयास नाम मात्र का था.

मीरा उसके लाल पड़ चुके चेहरे को ही देखे जारही थी और अपनी चुचियों को अपने ही हाथ से मसल्ने लगी.

मुझसे सबर नही हुआ, अब मेरा मन उसकी चुचियों को नंगी देखने का होने लगा सो मैने फटाफट उसके ब्लाउस को उतार फेंका, हड़बड़ी में उसका एकाध बटन भी टूट गया.

नंगी चुचियाँ जैसे ही मेरी आँखों के सामने आई…. ऑम्ग !!! लगा जैसे दो बड़े-2 कुल्हड़ चिपका दिए हों..
(कुल्हड़ समझते हो?- 

जी हां वोही जो लालू प्रसाद ने रेलवे में चाइ के लिए लागू किए थे जब वो रेल मंत्री बने थे) ये मलाई वाला दूध पीने वाले जैसे थे. 

अभी भी ना समझ आया हो तो कभी मथुरा जाकर रात 9 बजे के बाद किसी हलवाई के यहाँ मलाई वाला दूध पीना, पता लग जाएगा.


लपक के मुँह में भर लिया एक उनमें से और वो चुसाइ की बदल-2 कर कि वो लाल हो कर और ज़्यादा गदरा गये, चुचक कन्चे की तरह कड़क हो गये जिन्हें मैने मसल दिया… उसका मुँह औंत की तरह उपर को हो गया और मुझसे लिपट गयी.
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12-19-2018, 01:59 AM,
#97
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
मैने मीरा और अंजलि दोनो को अपने-2 कपड़े निकालने को बोला और अपने भी निकाल दिए, हम तीनों ही नंगे हो गये. उसकी हल्के बालों से घिरी चूत माल पुआ की तरह फूली हुई थी. 

मैने उसके कान में पुछा- क्यों रानी कितने लंड ले चुकी हो अबतक, 

तो वो बोली ज़्यादा नही बस एक दो बार ही गया है अभी तक.

मैने मीरा को घोड़ी बना कर उसके उपर आने को कहा और उसको पीठ के बल चारपाई पे लिटा दिया और उसकी रस से लिथडी चूत में अपना मूसल डाल दिया, आधा लंड ही गया होगा कि वो आँखे बंद करके गर्दन उँची करके कराह…

आहह…हह… धीरीई… द.एयेए..र्र…ड्ड.. होता है, मैने मीरा का मुँह दबा के उसकी चुचियों को चूसने के लिए कहा तो वो उसकी चुचियों को पीने लगी मैने अपने दोनो हाथ मीरा की चुचियों पर कस दिए और उसकी चूत को जीभ से चाटने लगा… मीरा के मुँह से भी चुचि छोड़ कर सिसकारी फूटने लगी.. 

इधर मेरा मूसल उसकी रस से लबालब ओखली की कुटाई में लगा था. बता नही सकता कितना मज़ा किसको आ रहा था. 10 मिनट उसकी चूत चोदने के बाद वो पानी छोड़ गयी.

मैने अपना गीला लंड उसकी पानी छोड़ चुकी चूत से खींचा और मीरा की रस गागर में पेल दिया, मीरा भी रम्भाति हुई हाए-हाए करने लगी और अपनी गान्ड मटका-2 के मेरा लंड लेने लगी. 

2 घंटों की धमा चौकड़ी के बाद हम तीनों ही पस्त होकर पड़ गये, कुछ देर के बाद मीरा उठके अपने काम में लग गयी. 

मैने अंजलि की गान्ड में उंगली डाल दी, तो वो उछल पड़ी, 

मैने कहा चल मज़े ले लिए हों तो जाके उसकी मदद कर, काम जल्दी हो जाएगा वरना बेचारी को डाँट पड़ेगी, तो फिर वो भी उसके साथ काम में हाथ बांटने चली गयी और मे अपने रास्ते हो लिया……!!!

ऐसे ही एक-दो बार और मौका पा कर मैने उस मस्तानी लौंडिया को चोदा, कुछ दिनो में वो अपने गाँव चली गयी.

अब मीरा पूरी तरह से अकेले फुल मज़ा ले रही थी, समय बीतता रहा, सर्दियाँ शुरू हो गयी.

सर्दियों में पिता जी की हालत बिगड़ने लगी एलेर्गिक होने की वजह से और बीते दिनों में ज़रूरत से ज़यादा काम का बोझ और ज़िम्मेदारियों ने उनकी शारीरिक क्षमता को ख़तम ही कर दिया था, 

अब वो आए दिन बीमार रहने लगे, जिसकी वजह से मे कहीं जाके अपने जॉब वग़ैरह की सोच भी नही पारहा था, पिता जी को दमा हो गया, और दौरे पड़ने लगे.

श्याम भाई एक-दो बार दिल्ली भी ले गये चेक कराने, लेकिन पिता जी एल्लोपेथिक इलाज़ के फेवर में नही थे सो आयुर्वेद का इलाज़ चलने लगा, जिसकी महीने के महीने दवाएँ दिल्ली से आती, जिसे लेने श्याम भाई जाते एक हफ्ते पहले और इसी बहाने मौज मस्ती कर के लौटते.

खेती का ज़्यादातर काम मेरे ज़िम्मे आ गया, मे मजदूरों को लेके खेती वाडी देखने में लगा रहता.
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12-19-2018, 01:59 AM,
#98
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
जन्वरी के महीने की शुरुआत ही हुई थी, भयंकर सर्दी, पारा कभी-2 शून्य से भी नीचे चला जाता था, श्याम बिहारी 3 दिन से दिल्ली में पड़े मौज कर रहे थे. 

मुझे एक लास्ट खेत मे गेहूँ की बुआई करनी थी, अरहर (टूअर) काट कर खेत तैयार करने में देरी हो गयी थी.

सुबह-2 जब मे खेत बोने घर से चला ही था, पिता जी धूप में बैठे थे मुझे रोक कर बोले थोड़ा जल्दी काम ख़तम करके आना, ना जाने उनको आभास सा हो गया था शायद की अब समय आ चुका है जाने का. 

मैने कहा ठीक है दोपहर तक गेहूँ खेत में डालकर ट्रॅक्टर से मिलाने को बोल कर आता हूँ.

मैने खेत में पहुँच कर गेहूँ का बीज़ पूरे खेत में फैलाया, कोई 3-4 एकर का खेत था, इसी काम में 2 घंटे निकल गये, ट्रॅक्टर से मिलने की शुरुआत ही की थी, कि एक पड़ोसी भागते हुए आया और बोला, अरुण जल्दी चल तेरे पिता जी की हालत ज़्यादा खराब हो गयी है.

मे उसको ट्रॅक्टर थमा कर भागा-2 घर पहुँचा, जब उनके पास पहुँचा तो हमारे गाँव के ताउजी जो कि वैद्या भी हैं, वो उनकी नब्ज़ पकड़े हुए थे. 

पिता जी ने मेरी ओर देखा, आँखों के कोरों से पानी बह रहा था, मुझसे कुछ बोलना चाहते थे आवाज़ नही निकली, कफ ने गले को जकड रखा था.

बोलने की कोशिश में कुछ घरर-2 सी आवाज़ निकली और उनका मुँह खुला का खुला रह गया. 

वैद्य जी ने कहा उनके पैर की नाड़ी को दवा के देखा, मैने उनके पैर में हील के जस्ट उपर की नाड़ी को टटोला एक-दो हल्की सी फड़कन महसूस हुई, और बस….. उनकी आत्मा मुँह के रास्ते वातावरण में विलीन हो गयी..

वैद्य जी ने हाथ छोड़ दिया और बोले- इनको जल्दी चारपाई से नीचे लेलो अब ये नही रहे.

आख़िरकार अपने कमजोर शरीर और बीमारियों से हार कर पिता जी हम दोनो भाइयों को बेसहारा छोड़ कर अंतःपुर को चले गये.

नीचे ज़मीन पर लिटा कर भावशून्य अवस्था में खड़ा होकर मे उनके खुले हुए मुँह को ही ताड़ता रहा कितनी ही देर. 

भले ही मैने अकेले रह कर कितने ही ज़िम्मेदारी भरे काम किए थे अपने गुज़रे दिनो में लेकिन ना जाने क्यों आज मुझे ऐसा लग रहा था जैसे आज मे बिल्कुल अकेला रह गया हूँ, आज मे अपने को अनाथ महसूस कर रहा था.

मेरे चचेरे बड़े भाई प्रेम चन्द जी ने मेरे कंधे पकड़ कर हिलाया और आवाज़ दी- अरुण..अरुण.. कब तक खड़ा रहेगा..? इनका दाह संस्कार भी करना है, तब मेरी आँखों से दो बूँद आसुओं की टपकी लेकिन मुँह से एक हिचकी तक नही निकली.

मैने हड़बड़ा कर कहा- अब क्या होगा भैया..? मे तो अकेला हो गया, अब क्या करूँ..?

वो बोले- अरे तू अकेला कहाँ है, हम सब हैं ना तेरे साथ.. ! तू जो बोलेगा, जैसा कहेगा, हम सब इंतेजाम कर देंगे, तू चिंता ना कर मेरे भाई..!

मे उनके कंधे से लग कर फफक पड़ा… उन्होने मुझे ढाढ़स बँधाया और जैसे-तैसे मुझे चुप कराया. 

मेरी माँ और छोटी वाली बेहन जो वहीं थी, वो दहाड़ें मार-2 कर रो रही थी, औरतें उनको चुप करने में लगी थी और साथ-2 खुद भी रो रही थी.

गाँव मोहल्ले के सभी लोगों ने मिलकर दाह संस्कार की विधि को जैसा विधान के हिसाब से होना चाहिए संपन्न कराया और मैने अपने पिता के पार्थिव शरीर को अग्नि के सुपुर्द कर दिया.

सभी भाइयों को प्रेम भैया ने टेलीग्राम कर दिया था, टेलिफोन की सुविधा अभी तक नही थी आस-पास. 

तीसरे दिन दोनो बड़े भाई और श्याम बिहारी पधारे तब तक हम सभी मुंडन संस्कार भी कर चुके थे. मैने किसी से कोई सवाल जबाब नही क्या, सबने श्याम को बहुत खरी-खोटी सुनाई, वो मुँह लटकाए सुनते रहे.

तेरहवीं के बाद हम चारों भाई एक साथ बैठे और भविश्य के बारे में सलाह मशविरा किया, जिसमें तय हुआ कि हम चारों में से किसी एक को तो गाँव में रहना ही होगा, अच्छी-ख़ासी ज़मीन जायदाद की देखभाल भी करनी है. 

दोनो बड़े तो अपनी-2 नौकरियों पर सेट थे बाल-बच्चे दोनो के हो चुके थे जो पढ़ लिख भी रहे थे, बचे हम दोनो जो अभी तक नौकरी की तलाश मे थे. 

मुझे इन्मिच्योर डिक्लेर करते हुए फ़ैसला कर दिया कि श्याम इस सबकी देख भाल करेगा, जब तक उसके बाल-बच्चे अपने पैरों पर खड़े नही हो जाते, कोई भी अपना हिस्सा नही माँगेगा उससे, अरुण की जब तक नौकरी नही लगती है वो घर रह कर मदद करेगा.

उन दोनो के चले जाने के बाद मेरा भी ज़्यादा दिन घर पर मन नही लगा और मे भी एक दिन अपना बॅग उठाए हरियाणा अपने चचेरे भाई यशपाल जी जो मेरे ज़्यादा हितैषी थे पूरे घर में उनके पास चला गया जहाँ बहुत सारी कंपनियाँ थी.

जैसा कि मे पहले उनके बारे में लिख चुका हूँ कि यशपाल भैया वहाँ स्टेट गॉव में अग्रिकल्चर ऑफीसर हैं.

में कुछ दिन उनके पास मुफ़्त की रोटियाँ तोड़ता रहा, और भाग-दौड़ करके जल्दी ही एक लिमिटेड कंपनी में ट्रेनी इंजिनियर के तौर पर लग गया. 

एक साल की ट्रैनिंग थी, तो स्टाइ फंड के तौर पर उस समय 1500/- महीना मिलता था. अकेले के लिए ठीक ही थे, वैसे भी भाई साब ने मुझे अलग रहने से मना कर दिया था, क्योंकि कुछ उनको भी सहारा था मुझसे और मेरा उनसे.

उनकी उस समय 3 बड़ी प्यारी बच्चियाँ थी सबसे बड़ी बेटी ने अभी स्कूल जाना शुरू ही किया था, दूसरी उससे ढाई साल छोटी और तीसरी मेरे वहाँ जाने के कुछ महीने पहले ही पैदा हुई थी.

वो एक किराए के मकान में रहते थे, 4 कमरों का मकान दो हिस्सों में बना था, एक हिस्से में उनके ही महकमे के मुछड भाई साब रहते थे नाम था इंद्रमनी शर्मा, 

वो भी यूपी से ही थे बड़ी-2 मूँछे, हॅटा-कट्ता शरीर, देखने से ही कोई पोलीस के बड़े अधिकारी लगते थे. 

दोनो में घनिष्ट मित्रता थी. उनकी शादी 5 साल पहले ही हुई थी लेकिन अभी तक कोई बच्चा नही था. उनकी वृद्ध माँ और छोटा भाई भी उनके साथ रहता था, जो उन दिनो पोस्ट ग्रॅजुयेशन कर रहा था.

पिता जी की मृत्य के बाद मे कुछ धार्मिक सा हो गया था क्योंकि जब मैने 10 दिनो तक वैदिक रीति से उनका कर्म- कांड कराए थे सारे दिन सिर्फ़ एक चाइ के सहारे सर्दियों में नंगे बदन तर्पण करना शास्त्री जी के साथ बैठ कर. 

तो आदत सी पड़ गयी थी शुद्ध और धार्मिक रहने की, हर मगलवार (ट्यूसडे) को व्रत के साथ-2 सुंदरकांड का पाठ भी करता था.

मे सारी बीती हुई घटनाओं को भूल कर अपनी ड्यूटी और अपनी प्यारी-2 भतीजियों के साथ में बिज़ी हो गया, भैया और भाभी दोनो ही बहुत अच्छे थे, मुझे अपने सगे भाइयों से भी ज़्यादा प्यार मिल रहा था उनके साथ....

हम जिस एरिया में रहते थे, वो रहने के हिसाब से बहुत अच्छा था, लेकिन थोड़ा पहाड़ी के नीचे का था जो शाहर के दूसरे हिस्सों से थोड़ा उचाई पर था, जिसकी वजह से कॉर्पोरेशन का पानी वहाँ तक कभी-2 ही पहुँच पाता था. इसलिए हम सभी को रात में ही उठके कुछ नीचे के एरिया से बल्टियों से पानी ढोना पड़ता था.

भैया भाभी की 12 महीने की आदत थी सुबह 3-4 बजे से उठ के ही नहाना-धोना, पानी का इंतेजाम करना, जिसमें मुझे भी उनकी हेल्प करनी होती थी.

इंद्रमनी और उनका परिवार इतना जल्दी नही उठते थे, और उनको हर रोज़ पानी की समस्या से दो-चार होना पड़ता था.

एक दिन मगलवार का दिन था, नहा धोकर मे फॅक्टरी जाने से पहले सुंदरकांड का पाठ कर रहा था, मात्र अंडरवेर और उसके उपर एक तौलिया लपेटे हुए, कोई 52 दोहे हो चुके थे मात्र 7-8 दोहे का पाठ ही शेष था. भाई साब अपने फील्ड के दौरे पर गये हुए थे.

कि भाभी घबराई हुई आई और बोली, भाई साब देखना वो इंद्रमनी भाई साब के साथ कुछ झगड़ा हो गया है नीचे. 

मैने रामायण के गुटके को प्रणाम किया और क्षमा माँगी शेष बचे हुए पाठ के लिए और यूँही तौलिए में ही उठके भागा. 

जिन लोगों से झगड़ा हो रहा था वो 6 भाई थे और उनकी एक ताड़िका जैसी माँ थी, सबके सब साले हरामखोर, पूरे मोहल्ले को डरा के रखा था. उस दिन पानी लेने इंद्रमनी जी उसके दरवाजे के सामने वाले नाल पर पहुँच गये और खाली देखकर अपनी बाल्टी वहाँ लगा दी, 

तभी उनमें से एक भाई आया और उनकी बाल्टी उठाके फेंक दी, जब उन्होने उससे कारण पुछा तो बस हो गया झगड़ा.

जब मे वहाँ पहुँचा तो क्या देखता हूँ कि वो साले 6 के 6 इंद्रमनी के चारों ओर चिपके हुए थे, वो दो-तीन हो तो टक्कर भी लें अब 6-6 को कैसे संभालते. 

उनका छोटा भाई तो उनकी ताड़िका माँ को ही संभालने में नाकाफ़ी था, वो पहाड़ जैसी उसके सामने खड़ी थी, और वो सिर्फ़ बाल्टी घुमाने के अलावा और कुछ नही कर पा रहा था बेचारा.
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12-19-2018, 02:00 AM,
#99
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
मे भावशून्य अवस्था में था, वहाँ जाकर परिस्थिति को देखा और उन 6 लोगों में से दो के पीछे से गले पकड़े और उनको इंद्रमनी जी से अलग करके दूर धकेल दिया और दोबारा दो को पकड़ा और उन्हें भी अलग छिटक दिया. 

मेरे चेहरे पर ना गुससा ना खुशी कोई भाव नही था, अभी भी मे अपने सुंदरकांड पाठ के इंप्रेशन में ही था.

वाकी बचे दो को उन्होने आराम से संभाल लिया, उनमें से एक का गला मेरे हाथ में आ गया सो मैने एक ही हाथ से उसे दो दीवारों के कोने में सटा कर एक ही हाथ पर लटका लिया, उसके भाई उसको छुड़ाने आए, तो किसी को लात से किसी को दूसरे हाथ से दूर छिटकता रहा.

मेरा ध्यान उस पकड़े हुए की तरफ था ही नही, मे दूसरे जो छुड़ाने आ रहे थे उनकी तरफ ही ध्यान लगाए था.

जब इंद्रमनी ने अपने शिकारों पर काबू पा लिया तब उनका ध्यान मेरी तरफ गया, एक पर्मनेंट उपर लटका रखा था, दो नीचे गान्ड के बल पड़े थे, एक और आया उसको भी उल्टे हाथ का पड़ा तो वो भी दूर जाके गिरा. 

क्या कर रहा है अरुण छोड़ इसे नही तो ये मर जाएगा- जब ये इंद्रमनी के शब्द मेरे कानों में पड़े तब मेरा ध्यान उसकी तरफ गया. 

बहुत देर तक गला दबे रहने के कारण उसका मुँह लाल पड़ गया था जीभ बाहर को निकालने वाली थी, अंडरवेर उसी के पेसाब से गीला हो चुका था.

जैसे ही मैने उसको छोड़ा, अनाज के बोरे की तरह धडाम से वो वहीं ढेर हो गया. 

इतने में उनमें से जिसने ये झगड़ा शुरू किया था वो एक चाकू लेके मेरी ओर झपटा, मेरा ध्यान दूसरी तरफ था, लेकिन इंद्रमणि जी ने उसको झपटते हुए देख लिया और चिल्ला कर बोले- अरुण बचो.

जैसे ही मेरी नज़र घूमी, उसका चाकू वाला हाथ मेरी ओर आ ही रहा था कि मैने झट से उसकी कलाई थामी और बाजू से पकड़ कर उसको पीठ पर डाल लिया, चाकू अभी भी उसके हाथ में ही था. 

पीठ पर लदे हुए उसको अपने घर के बरामदे में लाके पटक दिया और डंडे से उसके घुटने तोड़ने लगे.

अब हमारा प्लान सबूत के साथ पोलीस केस करने का था, लेकिन कुछ हमारे हितेशियों ने ही आकर उसे छुड़वा दिया कि अब इनके लिए इतना सबक काफ़ी है, नौकरी-पेशा वाले आदमी हो आप लोग कहाँ पोलीस कचहरी के चक्कर में पड़ते हो. बात इन्द्र जी को जम गयी और उसे छुड़वा दिया.

मेरी तौलिया भी ना जाने कब खुल कर गिर गयी थी, किसी दूसरे ने लाकर दी. हम कपड़े वग़ैरह पहन के चुके ही थे कि भाई साब आ गये, उन्होने जैसे ही सुना तो बड़े गुस्सा हुए कि क्यों छोड़ दिया साले को.

उनके एक मित्र भी आ गये, जो ठाकुर थे और उनकी वहाँ के ठाकुरों के साथ संबंध थे, तो तय हुआ कि चौपाल के ठाकुरों को लेके पोलीस केस किया जाए, वरना इनकी हिम्मत और बढ़ जाएगी.

जब हम ठाकुरों की चौपाल पर पहुँचे तो दूर से ही हमें वो सभी छहो भाई वहाँ बैठे दिखाई दिए और जैसे ही उनकी नज़र हम पर पड़ी तो जो अंडरवेर में मूत गया था वो थर-2 काँप उठा और बोला- 

ठाकुर साब यही वो लोग हैं, हमें बचा लो प्लीज़.. ये यूपी के डाकू हैं मुझे जान से मार देंगे.

हम अभी चौपाल पर चढ़े ही थे कि ठाकुर साब ने उसकी कमर में एक लात मारी और बोले- हरामखोर, मे तुम लोगों की आदत जानता हूँ, इन लोगों पर ऐसा घिनोना इल्ज़ाम लगा रहा है, अरे सालो ये सरकारी अधिकारी हैं, भले लोग हैं, ज़रूर तुम लोगों ने इनके साथ कोई ग़लत हरकत की होगी, फिर तो उनकी नानी ही मर गयी. 

फिर जब हमने सारी बात बताई तब वो ठाकुर बोले- हरामियो इनसे माफी माँगो, और भविष्य में अगर कोई ऐसी वैसी बात सुनाई दी तो समझ लेना ये मारेंगे वो तो अलग, हम तुम्हारी खाल खींच लेंगे. 

इस तरह से मामले को सुलझा कर उन्हें घर भेजा और हमसे भी कहा कि आप लोग जाओ अब इन सालों की हिम्मत नही पड़ेगी आप लोगों से उलझने की.

पूरा मोहल्ला हमें बधाई दे रहा था उन बदमाशों को सबक सिखाने के लिए. 

इंद्रमनी जी ने मेरी पीठ थपथाइ उनका साथ देने के लिए, और अपने भाई को झिड़का नाकाम होने की वजह से. क्योंकि जो लोग तमाशा देख रहे थे उन्होने ही बोला कि तुम इस लड़के की वजह से बच गये वरना पता नही वो लोग क्या कर डालते तुम्हारा.

खैर एक और मुशिबत टल गयी थी मेरी वजह से और लोगों में मान भी बढ़ा मेरे भाई का. 

पर एक जोड़ी आँखें और थी जिनमें मेरे प्रति कृीतग्यता, चाहत और प्रेम की भावना पनप रही थी जिसका मुझे कोई भान नही था……!

इस घटना के कुछ महीने बाद ही श्याम जी की शादी हो गयी, जिसके लिए हम सब गाँव गये, 10-15 दिन गाँव में रहने के बाद फिर आकर वही ड्यूटी और पानी की समस्या.

इंद्रमनी भाई साब की 29 वर्षीया धर्म पत्नी कोमल, जो अपने पति से कोई 7-8 साल छोटी थी, फक्क सफेद हल्का गुलाबी पन लिए उनका रंग, 

सुंदर हंसता हुआ गोल चेहरा जिसपर मुख्य आकर्षण का कारण थी उनकी आँखें, जिसे मृगनयनी कहते हैं. 

36-30-36 का एक दम साँचे में ढला बदन 5’5” की हाइट, कुलमिलाकर किसी भी व्यक्ति को आकर्षित करने के सारे गुण थे. लंबे घने काले बाल, कमर तक आते थे.

वैसे तो वो हरसंभव खुश ही दिखाई देती थी हर समय, किंतु उनकी आँखों में कुछ तो ऐसा था जो व्यक्त करता था उनके अधूरेपन को. 

पर मे ठहरा छोटा भाई, मेरी नज़र चाहे वो मेरी अपनी भाभी हो या वो कभी उनके कमर से उपर ही नही पहुँची थी अभी तक. 

दोनो में सग़ी बहनों जैसा प्रेम था, सो जो रेस्पेक्ट मेरी अपनी भाभी के लिए थी वही उनके लिए. 

लेकिन कहते हैं ना, कि जो होना होता है, वो हमारे बस में नही होता और जब हो जाता है, तब सोचते हैं कि ये हुआ तो कैसे हुआ ? हमने तो ये सोचा भी नही था. 

उस घर के बाहरी पोर्षन में हम रहते थे और अंदर के पोर्षन में इंद्रमनी जी की फॅमिली. 

हमारे पोर्षन के सामने एक वरामदा था और उससे हमारे वाले पोर्षन का गेट, मेन गेट से वरामदे में आना होता और सीधे जाओ तो गॅलरी से होते हुए एक आँगन और उसके वाद उनका पोर्षन, 

गेलरी के एक साइड में ही हम दोनो के अलग-2 टाय्लेट बात थे. आँगन के दूसरी साइड में बराबर में ही दो किचिन पहले हमारा, फिर उनके साइड में उनका.

इंद्रमनी जी की माताजी बीमारी की वजह से ज़्यादातर पड़ी ही रहती थी, बिना किसी के सपोर्ट के वो चल फिर भी नही पाती थी.

कुछ दिनो के बाद उनका छोटा भाई भी अपने एग्ज़ॅम देने जबलपुर अपने बड़े भाई के पास चला गया.

सनडे का दिन था, भाई साब और इंद्रमनी दोनो कहीं बाहर गये हुए थे, मेरी भाभी अपनी दो छोटी बेटियों को लेके अपनी किसी सहेली के यहाँ गयी हुई थी, मेरी बड़ी भतीजी विजेता और मे ही घर पर थे, 

वो टीवी देखने में लगी थी उसके पसंदीदा कार्टून चल रहे थे.

उसे भूख लगी तो मेरे से बोली- अंकल जी मुझे भूख लगी है, मैने कहा दूध पिएगी, तो उसने हाँ करदी. 

मे उसके लिए किचेन में जाके दूध ग्लास में डाल रहा था कि तभी कोमल भाभी बाथरूम से निकली मात्र एक पेटिकोट जो उन्होने अपने वक्षों के उपर बाँध रखा था. 

अनायास उनकी पायल की आवाज़ सुनकर मेरा ध्यान उनकी ओर चला गया.
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12-19-2018, 02:00 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
मेरी नज़र जैसे ही उधर गयी तभी उनकी भी नज़र मुझ पर पड़ गयी, जैसे ही हमारी नज़र चार हुई, वो थोड़ा ठितकी और फिर सर नीचे करके मुस्कराती हुई जल्दी से अपने बेड रूम में घुस गयी. 

मैने विजेता को दूध दिया और मे भी टीवी देखने में लग गया पर अब मेरा ध्यान टीवी में नही लग रहा था, बार-2 उनका वो सेक्सी रूप पेटिकोट में जबर्जस्ती से जकड़ा हुआ हुश्न मेरी आँखों के सामने आजाता.

बहुत दिमाग़ हटाने की कोशिश करता पर कुछ देर बाद फिर वही सीन सामने आ जाता. 

गीले लंबे बाल जो कुल्हों तक आ रहे थे, शर्म से झुकी मुस्कुराती वो चंचल आँखें जिनकी एक झलक ने ही पता नही मेरे दिल में झंझनाहट सी पैदा करदी थी, सुरहिदार गर्दन, 

और उसके नीचे जहाँ वो पेटिकोट खाली उडेसा ही हुआ था.. उफ़फ्फ़… क्या मदभरे कलशो का उठान जो पेटिकोट के अंदर से ही अपनी पुश्टता बयान कर चुके थे.

घुटनों से थोड़ा सा उपर तक पहुँच पाया था वो पेटिकोट, उतने से ही उन केले के तनों का आकर पता लग रहा था कि वो उपर कैसे होंगे.

बार-बार वोही सीन, साला करूँ तो क्या करूँ मैने बहुत कोशिश की उस बारे में ना सोचूँ, लेकिन सोचों को आज तक थम पाया है क्या कोई ??? 

विश्वामित्र जैसे ऋषि नही रोक पाए तो फिर हम आम इंसानो की क्या बिसात.

मैने थोड़ा बाज़ार में चक्कर लगाने की सोची की शायद कुछ ध्यान बँटेगा लेकिन समस्या विजेता की थी, और अगर उसको भी साथ ले जाता हूँ तो घर में ताला लगाना पड़ेगा. 

करूँ तो क्या करूँ अजीब कस-म-कस में फँस गया.

फिर मैने सोचा कि बाहर की साइड से अंदर से बंद करके किचेन साइड से निकल जाता हूँ गॅलरी से होके, 

कोमल भाभी को बोल देता हूँ वो ध्यान रखेंगी, क्योंकि किचेन साइड का गेट उनके बेडरूम के सामने ही था. 

मैने विजेता से पूछा की मार्केट घूमने चलेगी तो वो तैयार हो गयी, मैने अंदर से बाहर वाला गेट बंद किया और किचेन साइड वाले गेट की कुण्डी लगाई, 

विजेता की उंगली पकड़ी और उनको ध्यान रखने के लिए बोलने उनके बेडरूम के गेट पर पहुँचा, 

वो तब तक कपड़े पहन कर ड्रेसिंग टेबल के सामने तैयार हो रही थी, मुझे देखते ही खड़ी हो गयी और मेरी ओर देखकर हल्की सी मुस्कराहट के साथ बोली- जी भाई साब कोई काम था.

मे - भाभी जी मे और विजेता बाज़ार की तरफ जा रहे हैं तो आप थोड़ा घर की तरफ ध्यान रखना.

वो - कोई काम है बाज़ार में..?

मे- नही बस ऐसे ही थोड़ा मूड चेंज करने जा रहा था.

वो थोड़ा स्माइल करके बोली- मार्केट में ऐसा क्या है मूड चेंज करने लायक..?

मे भी थोड़ा स्माइल देते हुए - ऐसा वैसा कुछ नही, विजेता को कुछ खिला-पिलाके लाता हूँ जो इसको पसंद आजाए बस और क्या..?

वो- वैसे मे चाइ बनाने वाली थी, अगर आप पीना चाहे तो…!

मे- आपको तो पता ही है मे चाइ कम ही पीता हूँ, 

वो बात को थोड़ा बढ़ाने के साथ-2 टीज़ करने के मूड में थी सो बोली- तो दूध पी लीजिए और मुँह थोड़ा दूसरी साइड करके मुस्करा दी..

मे - अरे भाभी छोड़िए मे किसी और के हिस्से का दूध नही पीता हूँ, आपको कम पड़ जाएगा.

वो- अगर किसी के पास एक्सट्रा दूध हो तो.. ? अब मे समझ गया कि इसके आगे अगर मे बढ़ा तो ये खुलने लगेगी और यही मे नही चाहता था, 

तो मैने कहा कि नही भाभी अभी मेरी कुछ भी पीने की इच्छा नही है और बिना उसका कोई जबाब सुने मे वहाँ से निकल गया.. 

जाते समय मैने नोटीस किया कि वो थोड़ा अपसेट सी हो गयी थी.

बाज़ार में भटकने के बाद, भतीजी को कुछ चाँट पड़ाके खिलाए जिसकी वो शौकीन थी, और एक-डेढ़ घंटा बर्बाद करके मे घर लौटा तब तक भैया और भाभी दोनो ही आ चुके थे. मेरा भी थोड़ा मूड चेंज हुआ.

अब तो जब भी मेरा आमना-सामना कोमल भाभी से हो मुझे उनकी आँखों में कुछ अलग से ही भाव दिखें, जैसे मानो उनकी वो आँखें कुछ कहना चाहती हो मुझसे, कुछ अनुनय विनय हो उनमें, कुछ चाहत हो, 

अब पिछले कुछ वर्षों में मे औरतों की आँखों की भाषा अच्छे से समझने लगा था.

अब क्या करूँ क्या ना करूँ जितना उन नज़रों से भागना चाहता था वो और उतनी ही मेरी ओर आकर्षित होती लगी मुझे.

एक दिन शाम का समय था लाइट चली गयी थी, थोड़ा गर्मी सी महसूस हो रही थी तो मे बच्चियों को लेके छत पर चला गया और उनके साथ खेलने लगा. 

थोड़ी देर बाद वो भी उपर आ गई और हमारे पास आकर बैठ गयी और बच्चों के साथ खेलने लगी.

बच्चियों से खेलने के बहाने वो मुझसे टच करने लगी, एक बार तो विजेता मेरे सामने थी और वो मेरे दोनो बगल से हाथ निकाल कर उसको पकड़ने लगी जिससे उनके दोनो अमृत कलश मेरी पीठ में गढ़ गये.

मैने विजेता का हाथ पकड़ कर उसे उनकी तरफ कर दिया और फिर एक तरफ जाके खड़ा हो गया.

एक दो बार और जब ऐसा ही कुछ करने की उन्होने कोशिश की तो मे नीचे जाने के लिए जीने की ओर बढ़ा, उन्होने झट से मेरी कलाई पकड़ ली, और मेरी आँखों में झाँकते हुए बोली- 

क्या मुझ में काँटे हैं अरुण जो मुझसे दूर-2 भाग रहे हो..?

मे - भाभी ! ये आप क्या बोल रहीं हैं..? मे तो बस ऐसे ही नीचे जा ही रहा था..!

वो- लेकिन मे तो आपकी वजह से उपर आई थी… और आप मेरी वजह से नीचे जा रहे हो.. ! ऐसा क्यों..?

मे- सॉरी भाभी ! अगर आपको लगा कि मे आपकी वजह से नीचे जा रहा था तो उसके लिए एक्सट्रीम्ली सॉरी, पर मेरा ऐसा कोई इरादा नही था जिससे आपको कोई ठेस पहुँचे.

वो- मे कई दिनो से देख रही हूँ, आप मुझसे बचने की कोशिश करते रहते हैं, मे आपसे कुछ बातें करना चाहती हूँ और आप इग्नोर करदेटे हैं मुझे, बताओ ऐसा है या नही ?

मे- वैसे तो ऐसा कुछ नही ! अच्छा बोलिए क्या बातें करना चाहती हैं आप मेरे साथ ?

वो- बस ऐसे ही, मन करता है, आपके साथ बैठ कर बातें करूँ कुछ अपनी कहूँ कुछ आपकी सुनू और क्या..? 

और ये कहते-2 मेरे दोनो हाथ अपने हाथों में ले लिए.
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