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RE: Hindi Sex Stories तीन बेटियाँ
निशा तेज़ी से सास लेने लगी। पापा के गरम लंड की गरमी, गाण्ड से लगकर सीधे चूत पर बिजली की तरह गिर रही थी। चूत पूरी तरह गीली हो चुकी थी।
जगदीश राय बस अपने आंखें बंद कर , अपनी सासों को सम्भालते हुये खड़ा था। बस में किसी को भी ज़रा सा भी भनक नहीं हुआ की यह बाप-बेटी क्या कर रहे है।
जगदीश राय को लगा की ऐसे ही चलते गये तो वह पानी छोड देगा। वह इस परिस्थिती से बचना चाहता था।
बस थोड़ा और हिलना-डुलना शुरू हुआ। जगदीश राय मौके का फायदा उठाकर लंड निशा की गांड की दरार से बाहर निकलना ठीक समझा।
निशा को लगा की पापा का लंड दरार से फिसल रहा है, वह तुरंत अपने मन से जागी और अपनी बड़ी गांड को पीछे की तरफ सरका दिया। वह किसी भी हालत में अपने पापा के लंड को खोना नहीं चाहती थी। उसने ठान जो लिया था की वह अपने पापा को कभी उदास नहीं होने देगी।
जगदीश राय यह देख कर चौक गया। वह समझ गया जो भी हो रहा है निशा के सहमती से हो रहा है।
निशा की गाण्ड पीछे करने से अब जगदीश राय का बचना असम्भव हो गया था।
अब बस , रास्तो के खड्डो के कारण, बुरी तरह ऊपर नीचे हिल रही थी । और उसके साथ ही, पापा का लंड निशा की गाण्ड की दारार को रगड रहा था।
निशा पागल हुई जा रही थी। उसकी पैर का थर्र थर्र कापना शुरू हुआ। उसे खड़ा होना मुश्किल हो चला था। पर वह डटी रही। निशा की तेज़ सासे जगदीश राय को सुनाई दे रही थी।
निशा(मन में): चाहे कुछ भी हो, मैं अपने प्यारे पापा को ख़ुशी देकर ही रहूँगी।
और उसने अपनी गाण्ड और पीछे धकलते हुयी, पापा के लंड से दबा दिया।
वही जगदीश राय को लगा की उसका लंड अभी पानी छोड देगा। उसे पसीना छुटने लगा।
वह निशा से सीधे मुह बोलना नहीं चाहता था की उसका पानी छुटने वाला है।
तभी कंडक्टर ने आवाज़ दिया।
कंडक्टर: युनिवर्सिटि।। यूनिवर्सिटी… यूनिवर्सिटी… निकलो सब लोग। है और कोई यूनिवर्सिटी…।
निशा और जगदीश राय अपने चिंतन से जाग गये। निशा फिर भी हिल नहीं रही थी।
पर जगदीश राइ निशा को थोड़ा धक्का दिया और कहा।
जगदीश राय: चलो बेटी…स्टॉप आ गया।
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RE: Hindi Sex Stories तीन बेटियाँ
फिर निशा और जगदीश राय धीरे धीरे बस से उतरने लगे।
कडक्टर: अरे क्या अंकल।। कब से चिल्ला रहा हूँ यूनिवर्सिटी यूनिवर्सिटी…
जगदीश राय और निशा बस से उतर कर एक दूसरे को 5 सेकण्ड तक घूरते रहे। उन 5 सेकड़ो में वह एक दूसरे के विचार, खुशी, निराशा, शर्म सभी जानने का प्रयास कर रहे थे।
निशा की गाल, गोरी होने के कारण, गरम होने से , लाल हो गयी थी।
निशा (सर झुका कर शरमाती हुए): मैं रेस्टरूम जाना चाहती हूँ पहले।
जगदीश राय: हाँ हाँ… हम्म…यही होगा…।।बल्की मुझे भी जाना है।
निशा अपने पापा के इस बात पर हँस दी और पापा की तरफ देखा। जगदीश राय ने भी मुस्कुरा दिया।
रेस्टरूम के अंदर जाने से पहले, जगदीश राय ने निशा से कहा।
जगदीश राय: बाहर आकर यही वेट करना, कहीं जाना मत।
निशा: जी अच्छा बाहर आकर यहि वेट करूंग़ी। आप भी यही रहिये…।मुझे थोड़ा वक़्त लग सकता है।
और निशा शरारत भरी मुस्कान के साथ अंदर चलि जाती है।
जगदीश राय बिना रुके मेंस रेस्टरूम में घूस गया। आज उसे भी वक़्त लगने वाला था…।
रेस्टरूम से निशा बाहर आ गयी। उसके चेहरे पर एक सुकून था। टॉयलेट गन्दा होने के बावजूद उसने अपना पैर उठाकर , ऊँगली करके अपना सारी गर्मी निकाल दी थी।
वह बाहर आकर अपने पापा का इंतज़ार कर रही थी।
जगदीश राय कुछ देर बाद मेंस रेस्टरूम से बाहर आ गए।
निशा (शरारती अन्दाज़ में): क्यों पापा इतनी देर लगा दी?
जगदीश राय शर्माके मुस्कुरा दिया। निशा भी मुस्कुरायी।
तभी निशा की एक सहेली केतकी का आवाज़ सुनाई दिया।
केतकी: निशा तू यहाँ। फीस भरने आयी है?
निशा: हा।
केतकी: तो चल, हम सब साथ है। यहाँ से बाद में कॉलेज चलेंगे।
निशा: ओके ठीक है। पापा , मैं अपनी सहेली के साथ जा रही हूँ। आप यहाँ से ऑफिस जा सकेंगे ?
जगदीश राय: हाँ बेटी कोई बात नही। तुम लोग चलो। मैं यहाँ से घर जाऊंगा और फिर ऑफ्फिस।
निशा अपने सहेलीयों के साथ बातें कर चल दी।
जगदीश राय घर की बस की राह देखने लगा।
निशा,ने अपनी एग्जाम की फीस भरके, घर जाने का फैसला किया। अब इतनी देर लगने के बाद उसे कॉलेज जाने का मन नहीं था।
उसे अपने पापा को बीच रास्ते दग़ा देना अच्छा नहीं लग रहा था, पर वह करती भी क्या, सहेलीयों से क्या कहती?
निशा , जब घर पहुंची तो चौक गयी।पापा, सोफे पर पड़े थे। उन्होंने एक लुंगी पहनी थी, जो घुटनो तक चढा हुआ था। पापा ने शर्ट नहीं पहना था।
निशा: अरे पापा, आप यहा, ऑफिस नहीं गये।
जगदीश राय: अरे बेटी, तुम? अरे हाँ… वह एक एक्सीडेंट हो गया…। मैं बस से गिर पड़ा…।
निशा: क्या…ओ गॉड…। यह आपके घुटने पर चोट लगी है…।मुझे फ़ोन क्यों नहीं किया…?
जगदीश राय: अरे कुछ नहीं हुआ… थोड़ी सी चोट लगी है…पास के गुप्ता जी मुझे क्लिनिक ले गये। अब मैं ठीक हु…।
निशा: क्या पापा आप भी।
फिर निशा जगदीश राय के पास आयी और उन्हें पकड़कर सोफ़े पर ठीक से बिठाया। घुटने पर बहुत चोट लगी थी।
निशा: क्या कहाँ डॉक्टर ने।
जगदीश राय: बस यही की एक वीक तक ऑफिस नहीं जाना। और सहारे के साथ चलना। एक छड़ी भी दी है। और यह ओइंमेंट दिया है। और एन्टिबायटिक। और कहाँ की हाथ और पैर की गरम तेल से मालिश करना। ज्यादातर लेटे रहने को कहा है।
निशा: ठीक। यह अच्छा हुआ। अब आप ज्यादा काम तो नहीं करेंगे।
जगदीश राय: अरे कुछ नही, मैं 2 दिन में ठीक हो जाऊँगा। डॉक्टर सब ऐसे ही बोलते है…
निशा: चुपचाप लेटे रहिये। अब आप अगले मंडे ही ऑफिस जाएंगे।
उस दिन जगदीश राय का देखभाल निशा ने किया, शाम को आशा सशा ने भी उसका थोड़ा हेल्प किया।
कल दिन जगदीश राय के घुटनो का दर्द काफी कम हो गया था।
जगदीश राय: अरे बेटी, तू एक काम कर, खाना टेबल पर रख दे। मैं खा लूंगा। किचन तक मुझसे चला नहीं जाएगा।
निशा: खाना किचन में ही रहेगा। और मैं आपको खिलाऊँगी।
जगदीश राय: अरे तुझे तो कॉलेज जाना है न?
निशा: नही। आप जब तक ठीक नहीं हो जाते मैं कॉलेज नहीं जाने वाली। न आप मेरे साथ यूनिवर्सिटी आते न आप बस से गिरते…।
जगदीश राय: अरे…बेटी…छोड़ यह सब।। कॉलेज जा तू…।
निशा: पापा…। चुपचाप सोईये…कहाँ न मैंने…।
और निशा ने अपने पापा को जोर से पकड़ लिया और सोफे पर ढकेल दिया। निशा की बूब्स पापा के पेट से दब गयी। जगदीश राय को बेहत आनन्द मिला निशा को भी।
थोड़ी देर में आशा और सशा दोनों स्कूल चले गए…
दोपहर हो चली थी। जगदीश राय अब काफी आराम महसूस कर रहा था।
निशा: उफ़…।कितनी गर्मी हो गयी है। मार्च का महीना शुरू हुआ नहीं… की गर्मी इतनी…देखो मेरा पूरा टीशर्ट भीग गया …
जगदीश राय निशा की टी शर्ट देखता रह गया। वाइट टाइट टीशर्ट शरीर से चिपका हुआ था। निशा की ब्लैक ब्रा टीशर्ट से साफ़ दिख रही थी। और ब्लैक ब्रा में कैद निशा के बड़े बड़े चूचो का आकर निखर रहा था।
जगदीश राय: हाँ…।बेटी…। बहुत गर्मी तो है…।
निशा: मैं चेंज करके आती हूँ।
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RE: Hindi Sex Stories तीन बेटियाँ
निशा को सिर्फ शर्ट में देखकर और वह भी बंद कमरे में , जगदीश राय के मन में एक अजीब सी घबड़ाहट फ़ैल गयी। वह दरअसल अपने आप से घबरा रहा था। वह दिन ब दिन निशा के सामने कमज़ोर हो चला था।
जगदीश राय: बेटी डॉक्टर ने मसाज पर कोई ज़ोर नहीं दिया। कहाँ की "हो सके तो"। फिर भी अगर तुम कहती हो तो मैं खुद अपने पैरो में लगा दूँगा।
निशा: अगर आप को सब काम करना है तो फिर मैं किस दिन काम आऊँगी। और आपने खुद ही कहा कि, बस से गिरने के बाद आप की कमर और जोड़ों पर भी दर्द हो रहा है। तो फिर? नही। कोई बहाना नहीं चलेगा…।
निशा समझ गयी थी उसके पापा क्यों बहाना बना रहे है। उसे अब अपने पापा की कमज़ोरी पर हसी आ रही थी।
निशा (मन में) : सच कहते है लोग , मरद कमज़ोर होते है…
निशा: चलिये, अपना बुक साइड में रखिये। और सीधे लेट जाईये…हा, ऐसे… पैर सीधे…मैं पहले पैर से शुरू करती हूँ। और फिर कमर और फिर कंधा… ठीक है…
जगदीश राय: अरे बेटी… इसमें बहुत टाइम लग जायेगा…तुम जाके सो जाओ… यह सब मैं कर दूंगा…
निशा: पापा… अगर आप ऐसे जिद करते रहे तो मैं सारी दोपहर और रात यहीं गुज़ार दूँगी… इस कमरे में… इस बेड पर… आपके साथ…क्या आपको यह मंज़ूर होगा…
जगदीश राय (हड़बड़ाकर)…नही…।तुम शुरू कर दो…
निशा: यह हुई न बात…
निशा ने पापा की लूँगी को ऊपर की तरफ फेक दिया जिससे जगदीश राय की लूँगी शॉर्ट्स की तरह जांघो तक चढ़ गयी थी।
फिर निशा , बेड के साइड पर बैठ गयी। निशा की बायीं निर्वस्त्र जांघ जगदीश राय की जाँघ से चिपक गयी थी। दोनों जाँघे बहुत गरम थी।
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RE: Hindi Sex Stories तीन बेटियाँ
निशा बाए पैर की मसाज करते करते अपने पापा के खडे लंड को देखा और मुस्कुरा दि। वह जानती थी की उसकी गांड के सामने हर मरद हथियार डाल देगा। वह खुद अपने गाण्ड को कई बार मिरर में निहार चुकी थी।
निशा अपने दोनों जाँघे सिमटकर खड़ी थी। वह जानती थी पापा कुछ देर गांड को निहारने के बाद चुत देखने का प्रयास ज़रूर करेंगे।
कुछ देर मसाज करने के बाद, निशा ने पीछे चोरी से देखा। जगदीश राय अब सर को मोड़कर निशा की चूत देखने का प्रयास कर रहा था। वह समझ रहा था की निशा उसे यह करते हुआ देख नहीं पायेगी। पर निशा समझदार थी, उसने अपने पापा की चोरी पकड़ ली थी।
वह अब जानबूजकर मसाज करते हुए अपनी गाण्ड को हिला रही थी, ताकि जगदीश राय को चूत देखने में और दिक्कत हो। वह अपने पापा को छेड रही थी।
जगदीश राय, इतना गरम हो चूका था, की बेडशीट भी गरमा गया था। उसका लंड अब लोहे की तरह खड़ा हो चूका था और उससे छूपने का कोई कोशिश नहीं कर रहा था।
जगदीश राय, निशा की चूत की एक झलक के लिए अब तरस रहा था, पर वह उसे मिल नहीं रहा था। जगदीश राय अब हार मान चूका था।
निशा अपने पापा को इस हालत में देखकर तरस आ गयी। उसने एक झटके में अपने दोनों पैर को खोला।
जगदीश राय ने वह देखा जो वह पिछले 20 मिनट से देखने को तरस रहा था। गोरी मुलायम गांड के बीच में छिपी लाल पेंटी का छोटा सा हिस्सा जगदीश राय को दिखाई दिया। निशा ने अपने पापा को चूत का नज़ारा देखते हुए देख लिया।
निशा: पापा, मसाज अच्छी लग रही है।
जगदीश राय (चूत पर से नज़र नहीं हटाते हुए): हाँ आ बेटी…।बहुत मजा आ रहा है।
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अब निशा ने वह किया जिसका जगदीश राय को उम्मीद नहीं थी।
निशा जगदीश राय के जांघो पर झुक गयी। और अपने गाण्ड और पैरों को पूरी तरह खोल दिया और अपनी बड़ी गांड को पीछे ढकेल दिया। अब थोंग का चूत वाला पूरा हिस्सा जगदीश राय के नज़रों के सामने 1 फिट की दूरि पर था। और निशा उसे पूरा खोलकर दिखा रही थी। चूत का हिस्सा पूरा गिला हो चूका था और उसे देख जगदीश राय के मुह में पानी आ गया।
उसी वक़्त साथ ही निशा ने अपने बाए हाथ को सहारे के लिए मोड़ दिया और सीधे उसे पापा के खड़े लंड के ऊपर रख दिया। निशा के बाँहों(एआरएम) का हिस्सा पापा के गरम कठोर लंड की गर्मी जांच रहा था।
जगदीश राय निशा की पेंटी में-छिपी-चूत और लंड पर गरम बाहों का स्पर्श सहना असंभव था।
जगदीश राय निशा के बाँहों के स्पर्श से आँखें बंद कर लिया। निशा पहली बार एक गरम लंड को हाथ लगाये थी, उसकी चूत पूरी गिली हो गयी थी और पानी छोडने के कगार पर थी। निशा के मम्मे अब पापा की पैरो पर भी रगड रहे थे और उसके निप्पल्स अँगूर की तरह खडे हो गए थे।
निशा: अब…मसाज… कैसा लग रहा है…। पापा।। एह…
जगदीश राय (तेज़ सासों से और आंखें बंद कर): बहूत…बढ़िया…बेटी…।
निशा अब दाए हाथ से दोनों पैरो में हाथ घूमाने लगी। और साथ साथ अपनी गांड हिलाने लगी और अपनी बाहों से पापा के लंड को हल्के हल्के हिलाने लगी।
निशा: अब पापा…
जगदीश राय (आंखे आधी खोले, चूत को घूरते हुए): और बढ़िया…बेटी…आह।।आह
निशा ने अब अपनी बाहों का ज़ोर बढाते हुए उसे तेज़ी से गोल-गोल घुमाने लगी। अब उसके बाहों के नीचे पापा का लंड एक खूंखार जानवर की तरह मचल रहा था।
जगदीश राय अब पागलो की तरह सर घुमा रहा था। उसका अब पानी छुटने वाला था, जो वह रोकने की कोशिश कर रहा था।
निशा: अब अछा लग रहा है पापा…
निशा की बाँहों की घुमान, चूत का नज़ारा और सवाल पुछने के अन्दाज़ से, जगदीश राय का लंड अब एप्पल की तरह फूल गया। और फिर वही हुआ जिसका उसे डर था, लंड ने पानी छोड़ना शुरू कर दिया ।
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03-06-2019, 10:19 PM,
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RE: Hindi Sex Stories तीन बेटियाँ
जगदीश राय।: हाँ बेटीईई…।आहह अह्ह्ह अह्ह्ह्ह…ओह…गूड…।।आह मत रुको आआह आआआअह।
निशा जो पहली बार लंड से पानी निकला हुआ महसूस कर रही थी, लंड से निकले पानी की गर्मी को जानकर चीख पडी।
निशा: आआह पापा… ओह्ह्ह्ह।
निशा ने अपने हाथ को पापा के लंड से नहीं उठाया। वह अपने पापा के लंड के हर उड़ान को महसूस करना चाहती थी।
जगदीश राय कम-से-कम 1 मिनट तक झड़ता रहा। झडते वक़्त , सहारा देते हुये, निशा ने बाहों से लंड को दबाये रखा।
लंड से निकली वीर्य से पापा की लुंगी पूरी गिली और चीप-चिपी हो गयी थी और लूँगी निशा के हाथ से चिपकी हुई थी।
निशा अपने पापा हो न देखते हुये पैरों की तरफ मुड़कर लेटी रही और जगदीश राय के साँसों को सम्भालने का इंतज़ार करने लगी। और साथ ही खुद भी संभल रही थी।
करीब पुरे 5 मिनट के बाद जब निशा ने महसूस किया की लंड अब छोटा हो गया है।
वह धीरे से उठी। जगदीश राय निशा की तरफ देखे जा रहा था। जगदीश राय शॉक में था। निशा ने पापा की तरफ नहीं देखा। उसने धीरे से बाहों से पापा की चिपकी हुई लूँगी निकाल दी। अपने शर्ट को सीधा किया और खड़ी हो गई।
निशा: आज के लिए मेरे ख्याल से इतना मसाज ठीक है… क्यों … ठीक है पापा
जगदीश राय।: हाँ …।। बेटी।
पुरे रूम में एक अजीब सी ख़ामोशी थी। निशा तेल की डिब्बी उठाई और दरवाज़े पर मुडी ।
निशा: अब आप आराम करिये। और लूँगी जो ख़राब हो गयी है उसे वहां फेक दिजीए। धोने की ज़रुरत नही। मैं धो दूंगी, समझे पापा।
जगदीश राय ने शरमिंदा नज़रों से निशा की तरफ देखा। निशा प्यार से उसके तरफ देख रही थी।
जगदीश राय ने सर झुका कर सर हामी में हिला दिया।
निशा कमरे से बाहर आ गयी। कमरे से बाहर आकर वह खड़ी होकर मुस्कुरा दी।
निशा को अब अपने पापा अब अच्छे लग रहे थे। पापा जो थोड़े घबराये हुये, थोड़े शरमाये हुए और थोड़ा हिम्मत जुटाते हुये। निशा को अब अपने पापा से प्यार हो गया था। एक अनोखा प्यार जो सिर्फ वह ही समझ सकती थी…।
निशा अपने कमरे में घूस गयी। पापा के साथ हुए हर पल तेज़ी से मन में दौड रहा था।
सोचने से, वह और गरम हुए जा रही थी। निशा ने देरी नहीं दीखाते हुए , शर्ट उतार फेकी। और फिर पैंटी। और पूरी नंगी हो गयी।
चुत में आग लगी हुई थी चूत से पानी बहकर जाँघो तक पहुच गया था।
चुत पर ऊँगली लगाते ही वह अकड गयी और एक ही पल में कमर उछालकर झड़ने लगी।
झडते वक़्त एक ही सोच दिमाग में कायम था उसके पापा का झड़ता हुआ लंड़।
वह इतने जोर से झडी थी , की थकावट से कब आँख लग गयी पता ही नहीं चला।
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दरवाज़े पे बजे बेल के आवाज़ ने उसे जगा दिया। जल्द से उसने टीशर्ट और शॉर्ट्स पहन लिया और दरवाज़ा खोला।
आशा: कहाँ थी दीदी, कब से बेल बजा रही हूँ।
निशा: दो ही बार बजाए, सशा कहाँ है।
आशा: आ रही है, किसी दोस्त से बात कर रही है। ये देखो मैं क्या लायी हूँ। रैबिट का टेल। इसे मैं भी पहन सकती हूँ, देखो।
निशा: क्या… क्या है यह्। और तू क्यों पहनेगी। भला कोई जानवर का टेल पहनता है क्या।
आशा: अरे दीदी यह रियल रैबिट का टेल नहीं है। यह तो आर्टिफीसियल है। और इसे पहनकर मैं बनी रैबिट जैसे लगूँगी।
निशा: क्या बकवास…स्पाइडरमैन को जैसे स्पाइडर ने काटा था वैसे तुझे रैबिट ने काटा है लगता है। चल जा मुझे खाना बनाना है। तेरे बचपना के लिए टाइम नहीं है
आशा: यह बचपना नहीं है…।आप को पसंद नहीं तो आप की मर्ज़ी…
और वह चल दी। थोड़ी देर में सशा आ गयी।
बाकी का दिन ऐसे ही निकल गया। जगदीश राय खाना खाने नीचे आए। खाना खाते वक़्त जगदीश राय निशा से नज़रे चुराते रहे। उन्हे ताजुब हो रहा था की इतना सब होने के बावजूद निशा के चेहरे पर कोई शर्म या अपराध बोध (गिल्ट) नहीं था।
खाना परोसते वक़्त निशा पापा के बहूत क़रीब आकर खाना परोस रही थी, पर जगदीश राय उससे बच रहा था।
खाना खाते वक़्त आशा और सशा के बड़बड़ के बीच निशा पापा को घूरे जा रही थी।
निशा आज रात पापा को न दूध देने गयी न मसाज करने गयी।
रात को निशा दिन में हुए घटने पर विचार कर रही थी। एक बात वह जान चुकी थी की पापा को वह पसंद है पर भोले होने के कारण डर रहे है। इतना आगे बढ़ने के बाद वह अब पीछे नहीं जा सकती ।
उसके माँ के बाद इस घर की औरत वही है , और वह यह कर्त्तव्य पूरा करेगी। वह अपने पापा को माँ की याद में उदास नहीं होने देगी। चाहे इसके लिए उसे कुछ भी करना पडे।
अगले दिन जगदीश राय की नींद प्लेट के गिरने की आवाज़ से खुल गयी। क्लॉक पर 9 बज चुके थे। वह आज बहूत लेट उठा था।
जगदीश राय(मन में): "मैं रोज़ 7 बजे से पहले उठता हूँ, और आज इतने सालो बाद लेट उठा हूँ। आजकल सब बदल रहा है। मैं बदल रहा हूँ। निशा बदल रही है। और घर का माहौल बदल रहा है। क्यों?
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कल निशा की गांड के सामने मैंने अपने हथ्यार कैसे डाल दिए। क्या हुआ मेरे कण्ट्रोल को।
मुझे निशा से बात करनी पडेगी। जो हो रहा है उसे रोकना होगा।
पर क्यों रोकू मैं? क्या मैं खुश नहीं हूँ। निशा की मुलायम गांड से सुन्दर गांड देखी है किसी की। सीमा शादी के वक़्त भी इतनी सुन्दर और सेक्सी नहीं थी।
निशा का क्या क़सूर है। वह सिर्फ मुझे खुश देखना चाहती है। और सारे घर का सारा काम करती है। और उसकी उम्र ही क्या है। और बदले में वह मुझसे शायद थोड़ा दोस्ती मांगती है तो यह क्या गुनाह है।
फिर भी मैं उससे बात करूंगा। पर कैसे? मुझे उससे डरकर या शर्मा कर रहना नहीं चाहिये। मैं उसका बाप हूँ कोई बॉयफ्रेंड नही। मैं ज़रूर उससे बात करुँगा।"
जगदीश राय यह सब सोचकर उठा, फ्रेश होकर, निचे ड्राइंग रूम में आकर बैठ गया।
निशा मैक्सी पहने, हाथ में चाय लेके आई।
निशा: उठ गए पापा। क्या बात है। बड़ी गहरी नींद थी। लगता है कल आप बहुत थक गए थे।।
यह कहकर निशा हंस दी।
जगदीश राय न चाहते हुआ भी शर्मा गये।
जगदीश राय: नहीं…।। बस…। युही…। लेटा रहा…।
तभी आशा और सशा दौड़ते हुए आयी, और टेबल पर पड़ी टोस्ट लेकर भाग गयी।
सशा: पापा , स्कूल बस आने ही वाली है…। लेट हो गये हम लोग…। शाम को मिलते है।
जगदीश राय: हाँ हाँ…। ठीक से पढ़ाई करना…।
निशा सशा के पीछे दरवाज़ा बंद करने ही वाली थी, तभी गुप्ताजी दिख गये। वह निशा की सेक्सी बॉडी को घूरे जा रहा था। निशा ने अपने मैक्सी को ठीक किया।
निशा: अरे अंकल आप यहा।
गुप्ताजी: निशा बेटी… कैसी हो… कॉलेज वैगरा ठीक है न…
निशा: हाँ अंकल सब ठीक है।
गुप्ताजी: कहाँ है अपने स्टंट मैन…। बस में स्टंट करते हुए गिर पड़े…।राय साहब, कहाँ हो?
जगदीश राय: अरे गुप्ता जी आप। आईये आइए, बेठिये।।।
गुप्ताजी: अब आपकी हालत कैसी है…। दर्द कम है या नहीं…।
जगदीश राय: अरे अब तो मैं एक दम ठीक हु…। ज़ख्म से भी दर्द नहीं है… और बॉडी पेन भी ग़ायब है।। बस पूरा नौजवान बन गया हु… ह। ह
गुप्ताजी: अरे वह…। मैंने तो सोचा था राय साहब तो गए एक महीने के लिये। यहाँ तो आप दो ही दिनों में ठीक हो गये।
निशा: वह तो होगा ही…। उनकी नर्स भी तो मैं ही हु…हे हे।
गुप्ताजी: हाँ… बेटी के प्यार ने ही जादू दिखाया होगा…।क्यों राय साहब…।बहुत सेवा करवा रहे हो क्या बेटी से…
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