Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
10-16-2019, 02:53 PM,
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
तभी पीछे से एक हाथ ने उसे कस कर पकड़ लिया और एक झटका देकर मुंडेर से नीचे खींच लिया..,


तेज झटके के कारण वो सीधी उस खींचने वाले के उपर आ गिरी…!

नीचे होने के कारण रंगीली के मुँह से कराह निकल गयी, वो दोनो उठकर खड़ी हो गयी.., लाजो उससे अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करते हुए बोली – छोड़िए काकी, मुझे मर जाने दीजिए…!

रंगीली ने एक जोरदार चाँटा उसके गाल पर रशीद कर दिया और उसका हाथ पकड़कर उसे बस अड्डे की तरफ ले चली, रास्ते से संदूक उठाया…!

शाम तक वो अपने मायके जा पहुँची.., अपने बूढ़े माँ-बापू को देखकर उसकी रुलाई फुट पड़ी.., अपनी माँ के गले लगकर खूब रोई..,

वो अभी मिल-मिला ही रहे थे कि लाजो गश खाकर धडाम से ज़मीन पर गिर पड़ी.., रंगीली ने उसे फ़ौरन एक चारपाई पर लिटाया.., उसके मुँह पर पानी के छींटे मारकर उसे होश में लाई…!

रंगीली – क्या हुआ लाजो.., ऐसे बेहोश क्यों हो गयी..,?

लाजो – पता नही काकी, शायद गर्मी के कारण हुआ होगा, अचानक से चक्कर सा आया…, आँखों के सामने अंधेरा सा छा गया और मे गिर पड़ी…!

रंगीली की माँ की अनुभवी आँखों ने उसके चेहरे को पढ़ा.., उसे वहीं चारपाई पर लिटाकर वो रंगीली को लेकर बाहर आ गई…!

रंगीली की दोनो छोटी बहनों की शादी हो चुकी थी, उनके अपने भरे पूरे परिवार थे, यहाँ बूढ़े माँ-बाप के साथ उसका सबसे छोटा भाई ही था जो अभी तक कुँवारा ही था..!

बाहर आकर उसकी माँ ने कहा – ये माँ बन’ने वाली है बेटी.., पर ये है कॉन..?

रंगीली विस्मय के साथ बोली – क्या..? ये माँ बन’ने वाली है..? हे राम…!

फिर धीमे स्वर में बोली – माँ-बापू.., मेरी बात ध्यान से सुनो.., ये हमारे सेठ की छोटी बहू है.., ग़लत आचरण की वजह से सेठानी ने इसे घर से निकाल दिया है…!

अब ये आप लोगों की ज़िम्मेदारी है.., ये लो रकम..ये कहकर उसने धन की थैली उन्हें पकड़ा दी.., और ध्यान रहे..,


इसे किसी तरह का कोई कष्ट ना हो.., समय समय पर और पहुँचा दिया करूँगी…!

किसी और को इस बात की भनक भी ना लगे कि ये कॉन है.., इसकी वास्तविकता क्या है.., कोई पुच्छे तो कोई भी बहाना बना देना..!

फिर वो लाजो के पास पहुँची और बोली – बधाई हो छोटी बहू तुम माँ बन’ने वाली हो.., अब ये तो तुम्हें पता होगा कि ये किसका अंश है.., लेकिन

विश्वास रखो, यहाँ तुम्हें किसी बात की कोई तकलीफ़ नही होगी..!

वक़्त आने पर तुम्हें और तुम्हारे इस बच्चे को पूरा हक़ मिलेगा ये मेरा वादा है तुमसे.., अपना ख्याल रखना.., अब मे चलती हूँ वरना वहाँ सेठानी जी बखेड़ा खड़ा कर देंगी…!

इतना कहकर और अपने माँ-बापू से विदा लेकर रंगीली वहाँ से चल पड़ी उसी हवेली की तरफ जहाँ उसकी कर्म-भूमि थी…!
लाजो के घर से निकलते ही सेठानी गुस्से से उफनती हुई अपने कमरे में घुस गयी.., उन्हें अभी भी लाजो की बातों पर विश्वास नही हो पा रहा था..,

क्या कोई ससुर अपनी ही बहू को चोदेगा भला..? झूठ बोलती है हरामजादी छिनाल., जैसी खुद है वैसा ही दूसरों को समझती है.., लेकिन दिमाग़ के किसी कोने में ये बात ज़रूर कचोट रही थी..,

दूसरे ही पल उसके दिमाग़ में उसके अपने बेटे के लिए कहे गये वो शब्द किसी तीर की तरह चुभ रहे थे.., क्योंकि कहीं ना कहीं वो और सेठ दोनो ही ये बात जानते थे कि कल्लू की काम शक्ति कमजोर तो है…,

तो क्या हरम्जादि कुटिया सही कह रही थी…? नही…नही.., छिनाल की चूत में ही ज़्यादा आग लगी रहती है, जो मेरे बेटे से पूरी नही होती.., ऐसा होता तो सुषमा बहू उम्मीद से कैसे हो गयी…?

ये सोचते सोचते सेठानी की आँख लग गयी.., और कुछ देर के लिए हवेली में शांति छा गयी..,

लेकिन दोपहर ढलते ही सेठानी की आँख खुल गयी.., नौकर अपने-अपने कामों में लगे थे, लेकिन रंगीली उसे कहीं भी नज़र नही आई…!

सेठानी मन ही मन उसे गालियाँ देते हुए बड़बड़ाई – ये मेरी सौत कुतिया रंगीली कहाँ मर गयी..? महारानी अभी भी सोई पड़ी होगी…!

मुन्नी…ओ.. मुनिया.. जा जाकर देख तो ये रंगीली कहाँ मर गयी…?

मुन्नी जी मालकिन कहकर रंगीली के घर की तरफ चल दी…!

लाजो और सेठानी के बीच क्या-क्या हुआ.., ये जान’ने की इच्छा से लाला जी के कान हवेली की तरफ ही लगे थे, सेठानी द्वारा रंगीली को बुलाने की बात सुनते ही वो चोन्कन्ने हो गये…!

मुन्नी के बाहर निकलते ही वो उसके सामने आ गये और बोले – अरी तू कहाँ चली..?

मुन्नी – मालिक वो मालकिन ने कहा है कि रंगीली काकी अभी तक काम पर क्यों नही आई..? उन्हें ही बुलाने जा रही थी…!

लाला जी – वो यहाँ नही है, उसे हमने खेतों की तरफ भेजा है..,


शंकर यहाँ नही है तो वो कुछ देखभाल कर लेगी.., तू जा अंदर और अपना काम कर…!

यही शब्द मुन्नी ने सेठानी के सामने दोहरा दिए.., जिन्हें सुनकर वो और ज़्यादा जल-भुन गयी और सीधी गद्दी में जा पहुँची…!

जाते ही सेठानी भाननाए स्वर में बोली – ये आजकल इस घर में हो क्या रहा है..?

लाला जी – क्या कहना चाहती हो.., साफ-साफ कहो…!

सेठानी – मे पूछती हूँ, एक ही घर में नौकर है जो अच्छे से काम संभालती है, उसी को तुमने खेतों पर भेज दिया…!

लाला जी – अरे तो और क्या करूँ.., वहाँ भी तो देखबाल ज़रूरी है..., अब शंकर भी यहाँ नही है.., तुम्हारे कपूत का कोई अता-पता नही रहता.., अब भाई हमसे तो इस गर्मी में खेतों पर जाया नही जाता…!

सेठानी – तुम सबको मेरे ही बेटे में खोट नज़र आते हैं.., जाते-जाते वो छिनाल भी बोल रही थी कि मेरा बेटा नपुंसक है..,

और हां.., क्या तुम्हारे उस कुतिया लाजो के साथ ग़लत संबंध थे…?
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10-16-2019, 02:54 PM,
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
लाला जी ने चोन्कने की जबरदस्त आक्टिंग करते हुए कहा – ये तुम क्या कह रही हो..? होश भी है कि तुम क्या बोल रही हो..?

सेठानी – ये मे नही.. वो हरम्जादि लाजो ही बोल रही थी.., क्या सच में तुमने उससे संबंध बना रखे थे…?

लाला जी – और तुमने उसकी बात सच मान ली.., हां..हां..क्यों नही, वैसे भी तुमने तो हमें हमेशा ग़लत ही समझा है..,

सेठानी – नही जी.., ऐसी बात नही है.., मुझे तो उसकी बात पर ज़रा भी विश्वास नही है.., अच्छा हुआ वो बिना ज़्यादा हील-हुज्जत के घर से चली गयी…!

लाला जी – हां..! शायद तुम ठीक कहती हो.., अब बताओ उसने हमारे बारे में ही तुम्हें ग़लत-सलत बोल दिया.., और खुद उस पागल भोला के साथ मज़े कर रही थी…!

अब मे उस हराम्जादे भोला की ऐसी खबर लेता हूँ.., उसकी हिम्मत कैसे हुई हमारे घर की बहू के साथ ऐसा करने की, ये कहते हुए लाला जी ने तिर्छि नज़र से सेठानी की तरफ देखा..!

सेठानी – इसमें उस बेचारे भोला की क्या ग़लती है, वो तो यहाँ कभी आया तक नही, वो ही कुतिया उसके पास जा पहुँची अपना भोसड़ा खोल कर…,

और तुम अगर जाकर उसको कुछ कहोगे तो खम्खा अपने ही खानदान की बदनामी होगी लोगों के सामने, अब बेकार में जग हसाई करने से क्या फ़ायदा…!

लाला जी – ये तुम एकदम सही बोल रही हो भागवान, ये बात हमारे दिमाग़ में आई ही नही.., तुम सचमुच बहुत समझदार हो शांति…, तुमने बहुत पते की बात कही है…!

ये कहकर लाला जी ने आगे बढ़कर सेठानी को अपनी बाहों में भर लिया.., उनके मोटे-मोटे थुल-थुले चुतड़ों को सहलाते हुए बोले – तुमने हमें बदनामी से बचा लिया…!

सेठानी को मुद्दतो के बाद अपने सेठ की बाहें नसीब हुई थी, वो भी उनके सीने पर हाथ फेरते हुए बोली – चलो.. तुमने माना तो सही की मे समझदार हूँ….!

लाला जी ने एक हाथ से उनके एक खरबूजे जैसे चुचे को मसलते हुए कहा – अरे तुम तो हमेशा से ही समझदार हो मेरी जान..,

लाला जी का प्यार देखकर कुछ घंटों पहले हुई गीली चूत में फिर से खुजली होने लगी, वो उसे लाला के लंड पर दबाते हुए उनसे चिपक गयी..!

अपनी धर्मपत्नी के शक को मिटाने की गरज से ही सही वो सेठानी को बाहों में कसते हुए गद्दी पर ले आए..,


उनकी सारी को उपर उठाकर उनकी चूत को सहलाया जो धीरे-धीरे गीली होती जा रही थी…!

सेठानी की चूत का गीलापन देख कर लाला का सोया हुआ लंड भी जागने लगा जिसे महसूस करके सेठानी ने उसे अपने मुँह में भर लिया…!

मजबूरी में ही सही, आज लाला जी ने भी सेठानी की मल्लपुआ जैसी चूत में अपनी उंगलियाँ पेलते हुए कहा – शांति तुम कह रही थी कि तुमने उसे अपनी आँखों से भोला से चुदते देखा था…!

मुँह से लंड निकाल कर उसे हाथ से मुत्ठियाते हुए सेठानी बोली – हां.., मुझे तो रंगीली ने ही बताया था कि कल रात को भी लाजो कहीं बाहर गयी थी.., क्या मेने उसे कहीं भेजा था…?

मुझे तभी से उसपर शक हो गया, और देखो तो सही छिनाल को रात तक का सबर नही हुआ और ऐसी भरी दोपहरी में चुदने फिर से पहुँच गयी उसके पास…!

लाला जी ने अपना लंड सेठानी के हाथ से छुड़ाया, उनकी टाँगें चौड़ी करके लंड को उनकी चूत की गीली फांकों पर रगड़ते हुए बोले –

तो तुमने उन दोनो की पूरी चुदाई देखी..?

सस्सिईई..आअहह…छोड़ो उनकी बातें.., अब भीतर करो इसे…या ऐसी ही धार लगाते रहोगे इसको.., हाई…कितना अरसा हो गया इसे लिए हुए.., जल्दी डालो कल्लू के बापू…!

ललझी ने मुस्कराते हुए अपना लंड सेठानी की गीली चूत में पेल दिया.., इतने वर्सों के अंतराल के सेठानी ने लंड लिया था.., सो पहली बार में उनके मुँह से कराह निकल पड़ी..,

लेकिन जल्दी ही सामान्य होते हुए बोली – आअहह…हाई…अब तुमने मुझे चोदना बंद क्यों कर दिया जी.., मेरी भी तो इच्छा होती है..!

लाला धक्के मारते हुए बोले – अरी शांति.., अब ये ज़्यादा काम लायक नही रहा है.., वो तो आज तुम इतने नज़दीक आ गयी इसलिए…,

ज़रा बताओ ना कैसे चोद रहा था भोला लाजो को…?

उऊयईी..म्माआ.. बड़ा मज़ा आरहा है जी…और ज़ोर्से करो.., उउफ़फ्फ़..क्या मूसल जैसा लंड है साले उस पागल का.., कितने जोरदार धक्के मार रहा था…!

साली कुतिया की रेल बना रखी थी उसने.., तभी उसकी चूत की गर्मी शांत होती होगी

उउन्न्ह..हहुऊन्ण…अच्छा..क्या हमारे लंड से भी बड़ा है उसका..?

हाईए…, जाने दो उसे.., तुम मेरी चूत पे ध्यान दो.., उऊहह…, बड़ी गरम औरत है लाजो.., तुम्हारे लंड से तो उसका डेढ़ गुना होगा..,


यी..खूँटे जैसा.., आई राम..मेरे जैसी तो ले भी नही पाएगी उसे..आहह .म्म्म्माआ..ग्ाआईइ…!

सेठानी भोला के लंड की कल्पना करते हुए ना जाने कितने वर्सों बाद भल-भला कर झड़ने लगी..,

उनकी बातें सुनकर लाला जी भी तैश में आकर धमा-धम धक्के मारकर अपने लंड का कुलाबा खोल बैठे…!

इस तरह से लाला जी ने सेठानी को जमकर चोदा.., वर्सों बाद हुई चुदाई से सेठानी की चूत फिर से हरी-भरी हो उठी.., वो अब तक के सारे गीले-शिकवे भूलकर अपने पति के लंड का स्वाद लेती रही..!

सेठानी को चोद कर लाला जी ने उनके दिमाग़ में पनपे शक के कीड़े को चूत के रास्ते बाहर निकाल फेंका था.., अब उन्हें अपनी पत्नी की तरफ से कोई टेन्षन नही थी…!

गाओं में हुए घटनाक्रम से दूर, आओ चलते हैं शहर की तरफ.., देखें तो सही यहाँ हमारी कहानी के किरदार क्या-क्या मस्तियाँ कर रहे हैं…?????

सुप्रिया ने सुषमा और सलौनी को ग्राउंड फ्लोर पर ठहराया था, लेकिन शंकर को उसी अपने पास वाले रूम में फर्स्ट फ्लोर पर ही रखा..,

गोद भराई की रसम के बाद प्रिया उसे अपने साथ ले गयी थी.., जहाँ दोनो ने होटेल के उसी आलीशान सूयीट में जबरदस्त रंगरलियाँ की..,

जब प्रिया शंकर को सुप्रिया के घर छोड़ कर गयी थी तब तक रात का तीसरा प्रहर शुरू हो चुका था, सब लोग सो चुके थे, सो वो भी चुप-चाप अपने रूम में जाकर सो गया..,

चुदाई की थकान के बाद उसे इतनी जबरदस्त नींद आई कि लगभग बेहोशी जैसी हालत में चला गया था..,
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10-16-2019, 02:55 PM,
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
सुबह जब सब लोग नाश्ते की टेबल पर बैठे, तो शंकर को नदारद पाया, तब सुषमा ने सलौनी को बोला – देखना सलौनी शंकर रात घर आया है या नही.., हो तो उसे नाश्ते के लिए बोलना…!

सलौनी मुन्डी हिलाकर उसे देखने उसके रूम की तरफ चल पड़ी, यहाँ आकर उसके रंग ढंग ही बदल गये थे, अब कोई उसे नही कह सकता था कि ये वही गाओं की भोली-भाली, चंचल, चुलबुली सलौनी है..!

कसे हुए टाइट फिट सूट में वो साँवली सलौनी बाला, बॉलीवुड की हेरोयिन मुमताज़ को भी मात दे रही थी.., सच में कपड़ों के बदलने से ही आदमी हो या लड़की/ औरत.., उसका व्यक्तित्व ही बदल जाता है…!

कसे हुए सूट में वो अपनी सुडौल लकिन अविकसित गान्ड की गोलाईयों को मटकाती हुई अपने भैया को देखने चल दी…,

दरवाजे को धकेलते हुए सलौनी आँधी तूफान की तरह शंकर के कमरे में घुसी.., सामने एक बड़े से पलंग के बीचो-बीच, एकदम चित्त अवस्था में शंकर बेसूध पड़ा सो रहा था…!

शायद इस समय वो कोई हसीन ख्वाब में था.., तभी तो उसका पप्पू पाजामे को उठाकर एक बड़ा सा तंबू बनाए झूम रहा था…!

उस पर नज़र पड़ते ही उस नव-यौवना सलौनी के होश गुम हो गये.., वो अपने आने का मक़सद भूलकर बस उसके रह-रहकर ठुमके लगा रहे पलामे में बने तंबू में ही खो गयी..!

आहिस्ता आहिस्ता चलकर सलौनी शंकर के बेड तक जा पहुँची, फिर धीरे से उसके बगल में जाकर बैठ गयी..,

पहले उसने अपने भाई के सुंदर से मासूम चेहरे पर नज़र डाली जहाँ उसे जमानेभर की मासूमियत के अलावा बस एक मुस्कान नज़र आई जो शायद किसी हसीन ख्वाब के कारण थी…!

फिर उसकी नज़र उसके कसरती बदन से फिसलती हुई सीधी उसके तंबू पर जा अटकी जो अभी भी उसी पोज़िशन खड़ा कभी-कभी हल्के हल्के झटके दे रहा था..,

उसकी इन हरकतों ने सलौनी पर जादू सा कर डाला, वो एकटक उसी में खो गयी, उन्माद उसके तन बदन में भरने लगा, किसी कठपुतली की तरह उसका कांपता हुआ हाथ उसके तंबू की तरफ जाने लगा…!

दर्र और उत्तेजना के मिले जुले भाव उसके चेहरे पर साफ-साफ नज़र आ रहे थे, ना चाहते हुए भी उसने अपने हाथ की उंगलियाँ पाजामे के उपर से ही उसके लंड से छुआ दी..,

इतने भर से ही सलौनी के सारे बदन में कामुकता की एक लहर सी दौड़ गयी.., जिसका सीधा असर उसकी अनछुई मुनिया पर पड़ा.., उसके अनछुए होंठ फड़-फडा उठे…!

गोलाईयों के दानो में सुर-सुराहट होने लगी.., उसका मन किया कि उसे और छुये, अपनी मुट्ठी में लेकर फील करे.., लेकिन भाई के जागने के डर से वो ऐसा नही कर पा रही थी..!

फिर भी मन नही माना और उसने डरते हुए अपने हाथ से उसकी मोटाई नाप ही ली.., लेकिन भय के कारण उसने फ़ौरन अपना हाथ वापस खींच लिया..,

अपनी कोमल भावनाओं पर अंकुश लगाकर उसने धीरे से अपने भाई के कंधे से पकड़ कर हिलाया…, भाई..भाई…उठ…कब तक सोएगा…!

लेकिन वो तो दीन दुनिया स बेख़बर अपने ही हसीन ख्वाबों की दुनिया में था.., सपने में ही उसने सलौनी को पकड़कर अपने उपर खींच लिया.., उसे बाहों में भरते हुए नींद में ही बड़बड़ाया…, आ ना माँ.., अब क्यों सता रही है..उउन्न्ं..

अंजाने में ही सही, उसके भाई ने उसे अपने सीने में भींच लिया था जिससे उसके अनछुए कुंवारे अनार शंकर की कठोर छाती से दबकर रह गये…!

रगड़ से उसके अंनारदाने कड़क हो उठे, अंजाने में ही उसकी एक जाँघ भाई के लंड से रगड़ गयी.., सलौनी का रोम-रोम इस मादक एहसास से झन-झना उठा…!

लेकिन फिर जैसे ही उसने उसके शब्दों पर गौर किया.., वो उसकी बाहों से निकलने के लिए कसमासाई.., अपने मन में बुदबुदाते हुए बोली – इसने माँ का नाम क्यों लिया..?

क्या सपने में भी ये माँ के साथ…, ये सोचते ही सलौनी के चेहरे की मुस्कान गहरी हो उठी..,


उसमें एक अजीब सी हिम्मत पैदा होने लगी और उसने अपनी जाँघ को उसके लंड पर रगड़ दिया.., जो उसकी असली मंज़िल से कुछ ही फ़ासले पर था…!

भाई के कड़क लंड को जाँघ से रगड़ने मात्र से ही सलौनी की मुनिया पसीज उठी.., उसकी पतली-पतली अनछुई फांकों के बीच चिप-चिपाहट होने लगी…!

तभी उसे ख्याल आया, कि वो तो उसे बुलाने आई थी.., कहीं ज़्यादा देर हो गयी तो सुप्रिया दीदी उपर ही ना आ जाए ये सोचकर ना चाहते हुए भी उसने एक बार अपनी कमर को झटका देकर उपर उठाया…!

अब उसकी मुनिया की दरार ठीक शंकर के लंड के टोपे पर थी, एक बार उसे दबाकर अपनी कोरी चूत को उसकी खुश्बू का एहसास कराया जो बड़ा ही अनूठा था.., जिसे अब वो अपने अंदर तक लेना चाह रही थी…!

लेकिन वक़्त की नज़ाकत को देखते हुए उसने अपना मन मसोसकर अपने आप को शंकर की गिरफ़्त से आज़ाद किया और उसे झकझोर कर जागने पर मजबूर कर दिया…!

शंकर अपनी आँखें मलते हुए बिस्तर पर बैठ गया, सामने सलौनी को देखकर बोला – क्या है गुड़िया.., क्यों परेशान कर रही है.., सोने दे ना.

सलौनी – कब तक सोता रहेगा..? 10 बज गये.. सब लोग नाश्ते पर तेरा इंतेजार कर रहे हैं.., जल्दी से तैयार होकर नीचे आ…!

शंकर – क्या..? 10 बज गये..? बाप रे.., तू चल मे 15 मिनिट में नीचे आता हूँ.., इतना कहकर उसने पलंग से नीचे जंप लगा दी..,

उसका 8” लंड फुल फॉर्म में खड़ा ही थी.., सो जंप के साथ साथ उसने भी पाजामे उपर नीचे जंप लगा दी.., ये देख कर सलौनी ने अपनी हसी रोकने की कोशिश में अपने मुँह को दबा लिया…!

लेकिन फिर भी उसकी हसी निकल ही गयी.., और खिल-खिलाती हुई कमरे से बाहर भाग गयी..,
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10-16-2019, 06:30 PM,
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
सलौनी को इस तरह से हस्ते हुए देख कर शंकर ने अपने लौडे पर ध्यान दिया तब जाकर उसे उसके हस्ने का कारण समझ में आया..,

वो बुरी तरह से अपने आप में ही शर्मा गया.., ये सोच कर कि ये सब उसकी छोटी बेहन ने देखा होगा, उसे मन ही मन बहुत ग्लानि सी फील हुई..,!

फ्रेश होकर करीब आधे घंटा बाद जब वो नीचे आया, तब तक श्याम और उसके पिताजी दोनो अपने शो रूम पर जा चुके थे.

नाश्ते के दौरान कुछ इधर उधर की बातें होती रही.., फिर उन सबने कोई फिल्म देखने का प्लान बनाया और तय हुआ कि शाम का शो वो किसी अच्छी सी मूवी देखने जाएँगे…!

नाश्ते के बाद कुछ देर और आपस में गॅप शॅप होती रही फिर कुछ देर बाद सुप्रिया की सासू-माँ अपने कमरे में चली गयी..,

सलौनी गौरी को लेकर लाउन्ज में चली गयी और वो दोनो टीवी देखने में मशगूल हो गयी..,

बच्चियों के जाते ही सुप्रिया ने अपनी भाभी को छेड़ते हुए कहा – और भाभी कैसी चल रही है आप दोनो की खाट कबड्डी..?

सुषमा ने उसकी जाँघ दबाते हुए कहा – अरे ननद रानी, अब कहाँ हो पता है कुछ, ये निगोडा पेट इतना बाहर आ आगया है, तो बस ऐसे ही थोड़ा बहुत मन बहला लेते हैं.., कभी-कभार…!

सुप्रिया उसका हाथ पकड़कर बोली – चलो मेरे कमरे में बैठ कर बात करते हैं, क्यों शंकर चलें या तुम्हें प्रिया दीदी ने तलब किया है आज भी…!

शंकर अपनी नज़रें नीची करके झेन्प्ते हुए बोला – नही आज तो नही बुलाया है क्यों.., आपको कोई खबर भिजवानी हो तो चला जाता हूँ..,

सुप्रिया सुषमा को आँख मारते हुए बोली – देखा भाभी.., ये प्रिया दीदी के पास जाने के लिए कैसे-कैसे बहाने ढूंढता है..,

हां भाई क्यों नही.., आख़िर में इसके लिए तो वो एक तरह से माल पुआ की दावत जैसी हैं.., है ना शंकर, इतना बोलते-बोलते वो हस्ते हुए अपनी चेयर से उठकर शंकर के पीछे जा पहुँची और पीछे से उसकी गर्दन में अपनी मरमरी बाहें डाल दी…!

सुप्रिया की टीज़िंग भारी बातें सुनकर सुषमा कहाँ पीछे रहने वाली थी.., सो वो भी उसे छेड़ते हुए बोली - शंकर भैया की तो आज कल पाँचों उंगलियाँ घी में और सिर कढ़ाई में है..,

और फिर जब राबड़ी सामने हो तो सुखी भाजी किसे अच्छी लगेगी.., मे तो वैसे भी बेडौल हो गयी हूँ, हां तुम्हारे मामले में राबड़ी नही तो रस मलाई तो कह ही सकते हैं..!

शंकर भली भाँति इन दोनो के मज़ाक को समझ रहा था., सो उसने सुप्रिया का बाजू पकड़कर उसे अपनी गोद में बिठाकर उसकी सुडौल तनी हुई चुचियों को ज़ोर्से मसल दिया…!

आआईयईई…म्माआ…क्या करते हो, इतने ज़ोर्से भी कोई करता है भला.., चलो मेरे कमरे में चलते हैं…, क्यों भाभी.., आप भी चलो.., तीनों मिलकर मज़े करते हैं.!

सुषमा – नही तुम लोग जाओ, मे यहीं बच्चों के पास ही रहती हूँ, कहीं हमें ढूँढते हुए वो दोनो उपर ना जा पहुँचें…!

शंकर ने सुप्रिया को किसी बच्ची की तरह अपनी गोद में उठा लिया और उसे लेकर उपर की ओर बढ़ गया.., पीछे से सुषमा अपना मन मसोसकर रह गयी…!

शंकर ने उसको ले जाकर उसके लंबे चौड़े पलंग पर पटक दिया.., और खुद उसके उपर आते हुए कुहनी टिका कर उसके बगल में लेट गया..!

एक हाथ से उसकी मिडी को सरकाते हुए उसकी मखमली जांघों को सहला कर बोला – और मेरी जान, खुश तो हो यहाँ…!

सुप्रिया ने उसके होंठ चूम लिए.., फिर उसके सिर उठा रहे लंड को सहलाते हुए बोली – यहाँ वैसे तो किसी बात की कोई कमी नही है मेरे लिए..,

लेकिन तुम्हारे इसकी बहुत याद आती रहती है…!

शंकर ने उसके गाउन को खिसका कर कमर तक चढ़ा दिया, अपनी एक उंगली उसकी गान्ड की दरार में फेरते हुए बोला – तो कुछ ऐसा करो ना जिससे ये दूरियाँ हमेशा के लिए ख़तम हो जायें…!

सुप्रिया ने अपनी नंगी टाँग शंकर के उपर चढ़ा दी.., एक हाथ उसकी टीशर्ट के अंदर डालकर उसकी चौड़ी छाती को जिसपर अब थोड़े थोड़े बाल उगना शुरू हो रहे थे उन्हें सहलाते हुए अपनी जाँघ का दबाब उसके लंड पर बढ़ाकर बोली –

ये तुम सही कह रहे हो.., डेलिवरी हो जाने के बाद ऐसा कुछ करती हूँ जिससे हमारे बीच की दूरियाँ हमेशा के लिए मिट जायें…!

शंकर ने उसके वन पीस गाउन को उतार दिया.., बिना ब्रा के उसके कसे हुए अनार जिनके शिखर पर दो अंगूर के दाने चिपके थे उन्हें अपनी हथेली से मसल दिया…!

सस्सिईइ…आआहह…रजाअ..इन्हें थोड़ा चूसो ना.., इतना कहकर उसने खुद ही अपने हाथ में लेकर अपनी एक चुचि को उसके मुँह में ठेल दिया..,


शंकर ने उसके अनारदाने को अपने होंठों में दबाकर दूसरे अनार को हाथ में पकड़कर मसल्ने लगा…!

सुप्रिया मज़े के मारे बिस्तेर पर किसी मछलि की तरह तड़पने लगी.., अपनी एडियों को बिस्तेर पर रगड़ते हुए उसने शंकर के बालों को अपनी मुट्ठी में कस लिया और उसके मुँह को अपनी चुचि पर दबाकर सिसकने लगी…..!

इस दौरान सुप्रिया ने शंकर की टीशर्ट भी निकाल दी, शंकर चुचियों को छोड़कर उसके पतले से पेट को चूमते हुए नीचे की तरफ बढ़ने लगा, जहाँ दो मखमली जांघों के बीच एक छोटी सी पैंटी के अंदर कसी हुई उसकी मंज़िल उसका इंतजार कर रही थी…!

सुप्रिया की पैंटी आगे से गीली होने लगी थी.., दो मोटे-मोटे उभारों के बीच पतली सी दरार देख कर उसने अपनी एक उंगली दरार में उपर से नीचे तक घुमाई…!

सस्सिईइ…आअहह…शंकर…, पैंटी निकाल कर करो प्लीज़…, अब रहा नही जा रहा मुझसे.., उउफ़फ्फ़..म्माआ…., सुप्रिया मादक सिसकी लेकर बोली…!

शंकर ने मुस्करा कर उसकी पैंटी भी निकाल बाहर कर दी.., फिर और नीचे खिसक कर अपनी जीभ से उसकी चूत की फांकों को चाट लिया…!

सस्सिईइ…हाईए…ममायीयी…, अब देर ना करो मेरे बलम.., जल्दी से अपना मूसल इसमें डालकर कुटाई करो.., चिंतियाँ सी काट रही हैं इसमें…!

शंकर ने अपनी एक उंगली उसके सुराख में डालकर गीलापन चेक किया.., सुप्रिया ने अपनी जांघों को कस कर उसके हाथ को दबा लिया…!

उसने दूसरे हाथ से उसकी जांघों को एक दूसरे से जुदा किया.., अपना लोवर उतारकर वो उसकी टाँगों के बीच आ गया..,
गीली चूत पर हाथ से सहला कर अपने दहक्ते सुपाडे को उसकी चूत के छेद पर सेट करके एक तगड़ा सा धक्का अपनी कमर में लगा दिया…!

लंड गीली चूत में सर-सरा कर आधे से ज़्यादा उसकी चूत में सरक गया.., सुप्रिया के मुँह से एक दर्द युक्त मादक कराह निकल गयी…!

आअहह…राज्ज्जाअ…धीरी…, मेरे पेट में धमक लगती है.., उउउफफफ्फ़..कितना कस गया है..,

शंकर ने उसकी मादक कराह सुनकर अपने लौडे को सुपाडे तक बाहर निकाला और एक बार फिरसे एक जबरदस्त धक्का लगा कर पूरा लंड उसकी संकरी गली में डाल दिया…!

सुप्रिया मज़े और दर्द के कारण दोहरी हो गयी.., होंठों को भींचकर उसने शंकर के सिर के बालों को जकड लिया…!

शंकर उसकी चुचियों के साथ खेलने लगा.., थोड़ी देर ठहर कर उसने उसे चोदना शुरू किया…, कई महीनों के बाद लंड का स्वाद ले रही उसकी मुनिया खुशी के मारे लार छोड़ने लगी…!

उसकी फांकों ने शंकर के लौडे को एक तरह से जप्त कर लिया था.., कमरे में फुच्च..फुच्च..ठप..ठप की आवाज़ें गूंजने लगी…!

नीचे से अपनी कमर उचका-उचका कर ज़्यादा से ज़्यादा अंदर तक लंड लेने की कोशिश करती सुप्रिया के मुँह से जबरदस्त कामुकता से भरी सिसकियाँ निकल रही थी..

सस्सिईइ…आअहह…उउउफ़फ्फ़…चोदो मेरे राजा.., फाड़ डालो मेरी चूत को…हाए रामम..मायारीयैयी…कितना मज़ा देते हो तुमुउन्न्न…उऊयईी…मे तो गाइइ री…कहकर…सुप्रिया ने अपना काम रस छोड़ दिया..,

वो उसके सीने में जोंक की तरह चिपक कर झड़ने लगी.., शंकर के धक्कों में कमी आ गयी… लेकिन बंद नही किए…!

आअहह…शंकर.., रूको थोड़ा.., मे तुम्हारे उपर आ जाउ..?

मुस्करा कर शंकर ने उसकी पीठ के नीचे हाथ लगाकर अपने से चिपकाया और लंड अंदर डाले डाले ही उसे अपने उपर ले लिया…!

थोड़ा रुक कर सुप्रिया उपर से उसके लंड पर कूदने लगी.., नीचे से शंकर भी ताबड-तोड़ धक्के मारने लगा..,

सुप्रिया लगातार झड रही थी.., शंकर ने उलट-पलट कर उसको आधे घंटा तक जमकर चोदा.., आख़िर में कुतिया की तरह चोदते हुए उसने अपने लंड का अमृत उसकी चूत को पिला दिया…!

थक कर वो दोनो एक दूसरे की बाहों में सीमटे सो गये..!

शाम को उन्हें मूवी देखने जाना था.., सो कुछ देर बाद शंकर अपने रूम में चला गया..,

शाम को 6-9 बजे वाला शो देखना था, शंकर 5 बजे फ्रेश होकर पहले उसने सुप्रिया को तैयार होकर नीचे आने को कहा..,

फिर नीचे आकर वो सीधा सुषमा के रूम में जा घुसा…!
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10-16-2019, 06:30 PM,
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
घुसते ही अंदर का सीन देख कर उसको झटका सा लगा.., सकते जैसी हालत में उसके पैर गेट पर जम गये..,


फिर वो झटके से पलटकर वो वापस लौटने लगा…!
अंदर सलौनी ड्रेसिंग टेबल के सामने मात्र ब्रा और पैंटी में खड़ी थी…! बाहर जाने के लिए वो कपड़े चेंज कर रही थी..,

अभी-अभी वो बाथ रूम से ही निकली थी.., और अब शायद सुषमा अंदर थी…!

सुबह ही उसने अपने भाई के खड़े तंबू को देखा था, बात रूम में वो उस पल को याद करके उतेज़ित होने लगी थी.., नहाते समय उसका हाथ अनायास ही अपनी प्यारी सी कुँवारी मुनिया पर चला गया था…!

पिक्की पर हाथ लगते ही उसका पूरा बदन झंझणा उठा था.., बड़े हल्के हाथ से वो बहुत देर तक अपनी नाज़ुक उंगलियों से अपनी पतली पतली फांकों को सहला उठी थी..,

उन्हें सहलाते हुए ही उसने खुद ये फील किया कि उसकी मुनिया की पतली पतली फाँकें फूलने पिचकने लगी हैं.., अपनी कुँवारी चूत में उसे कंपन सा महसूस होने लगा…!

सलौनी का पूरा शरीर जुड़ी के मरीज की तरह काँपने लगा था, उसने अपनी उंगलियों का दबाब अपनी फांकों पर बढ़ा दिया.., अब वो उसे बजाय हल्के हल्के से छूने के, हाथ पर ज़ोर देकर मसलने लगी थी…!

तभी उसे अपनी उंगलियों पर कुछ नोकदार चीज़ का एहसास हुआ.., उसने नीचे झुक कर अपनी मुनिया को देखा, उसके उपरी सिरे पर दोनो फांकों के बीच एक चोंच जैसी तोड़ी सी बाहर निकली दिखाई दी…!

उसके दोनो तरफ फांकों पर दबाब डालते ही वो और ज़्यादा बाहर को उभर आई…!

अपना दूसरा हाथ ले जाकर उसने जैसे ही अपनी क्लिट (भज्नासे) को छुआ…, कामुकता से उसका पूरा शरीर झन-झना उठा, उसे ऐसा लगा जैसे कोई बिजली का नंगा तार उसने पकड़ लिया हो…!

वो अब अपनी एक उंगली से उसे मसलने लगी.., अप्रत्याशित रूप से उसकी फांकों के बीच गीलापन महसूस होने लगा.., उसे लगा जैसे उसका पेशाब छूटने वाला हो..,

गीलेपन वाली जगह पर हाथ ले जाते ही उसकी उंगलियाँ चिप-चिपाने लगी.., वो विश्मय के साथ उस चिप-चिपाहट को अपनी उंगलियों पर लेकर सूंघने लगी…!

उसमें से एक अजीब सी गंध लगी उसे.., एक-दो बार सूंघने से उसे वो गंध अच्छी लगने लगी.., जिसे सूंघ कर वो मदहोश होने लगी.., और स्वतः ही उसकी उंगली उस जगह पहुँच गयी जहाँ से वो चिप-चिपा रस निकल रहा था…!

सलौनी को अपनी उंगली किसी पुल-पुले गड्ढे में जाती हुई लगी.., उंगली का दबाब डालते ही उसके मुँह से एक बहुत ही मादक सिसकी निकल पड़ी.., उसे इतना मज़ा पहले कभी नही आया था…!

अभी वो अपनी उंगली पर दबाब बढ़कर उसे और अंदर करने की सोच ही रही थी कि तभी कमरे से सुषमा की आवाज़ सुनकर चोंक पड़ी.., उसकी वासना का उफान धडाम से गिरने लगा…!

अरे सलौनी…, क्या कर रही है..? अभी तक नहा नही पाई.., जल्दी आजा.., वरना देर होगी…!

सुषमा की आवाज़ सुनकर उसने जैसे-तैसे अपनी बेकाबू साँसों पर काबू करने की कोशिश करते हुए कहा – बस भाभी दो मिनिट में आई…!

उसने अपना ध्यान उन बातों से हटाकर जल्दी जल्दी से नहाना किया और 5 मिनिट में ही अपनी ब्रा और पैंटी पहन कर उपर से तौलिया लपेट कर बाहर आ गई…!

सुषमा के बाथरूम में घुसते ही उसने अपनी तौलिया अपने बदन से निकाल कर बेड पर फेंकी और आदमकद आईने के सामने खड़ी होकर अपने बदन को निहारने लगी..!

आज पहली बार उसे अपने बदन की एहमियत का एहसास हुआ था.., अपनी माँ को भाई के साथ चुदाई करते हुए वो देख ही चुकी थी.., लेकिन इन कामों में इतना मज़ा मिलता है.., उसे आज कुछ-कुछ एहसास होने लगा था…!

वो अपनी इन्ही सोचों में डूबी, आईने में अपने आप को निहार ही रही थी कि तभी वहाँ शंकर ने प्रवेश किया.., अपनी बेहन को इस हालत में देख कर वो ठगा सा खड़ा रह गया…!

कुछ देर तक वो उसके कमसिन बदन को अपनी मीठी नज़रों से देखता रहा.., छोटी सी ब्रा में क़ैद उसके कच्चे अमरूद उसे मंत्रमुग्ध कर रहे थे..,

सलौनी अपने भाई को दरवाजे पर खड़ा मिरर में देख चुकी थी.., उसे देखकर वो अपनी ब्रा के लाश ठीक करने के बहाने अपने अमरुदो की झलक उसे दिखाने की कोशिश करने लगी…!

अब वो शायद शंकर को दिखे या नही.., लेकिन पीछे से उसकी पतली सी पीठ, उसके बाद उसकी निहायत पतली कमर, जो शायद अभी 20 या 22 की हुई थी.., जिसके नीचे छोटी सी पनटी में क़ैद उसके गोल-गोल नितंब…!

मानो बच्चों के खेलने वाली दो बड़ी वाली गेंदें वहाँ रख दी हों…, सलौनी के इस कमसिन बदन को देख कर शंकर के बदन में भी उत्तेजना बढ़ने लगी…!

तभी उसके दिमाग़ में एक झटका सा लगा.., ये क्या देख रहा है कमीने, ये तेरी छोटी बेहन है.., और तू उसे देखकर उत्तेजित हो रहा है.., साले कुछ तो लिहाज कर.., इतनी ठरक अच्छी नही…!

ये विचार आते ही वापस जाने के लिए वो फ़ौरन पलट गया.., लेकिन इससे पहले की वो अपना कदम बाहर जाने के लिए बढ़ाता.., पीछे से उसे सलौनी की आवाज़ सुनाई दी…!

अरे भैया… कहाँ जा रहा है.., आना.. अंदर, बस अभी तैयार होती हूँ…!

शंकर ने बिना मुड़े ही कहा – तू तैयार होकर आजा बाहर.., में हॉल में ही हूँ.., और भाभी कहाँ हैं उनको भी बोल जल्दी तैयार हो जायें वरना देर हो जाएगी…!

सलौनी मिरर के सामने खड़े अपने बाल सही करते हुए बोली – भाभी बाथ रूम में हैं, तू बैठ यहाँ, और बता मुझे क्या पहन’ना चाहिए…!

शंकर ने बिना मुड़े ही कहा – तुझे जो पहन’ना हो वो पहन ले, मे हॉल में जा रहा हूँ, मे यहाँ नही रुक सकता..!

सलौनी – क्यों.., क्यों नही रुक सकता..?

शंकर – तू समझकर छुटकी.., तू कपड़े बदल रही है.., मे भला यहाँ बैठ कर क्या करूँगा..!

सलौनी – तो क्या आज से पहले मेने तेरे सामने कपड़े नही बदले.., जो आज नही बदल सकती…?

शंकर – पहले की बात अलग थी..,तब तू छोटी सी थी..,

शंकर की बात सुनकर सलौनी मुस्करा उठी.., दबे पाँव उसके पीचे जाकर उसके कंधे पर हाथ रख कर उसे अपनी तरफ पलटाने का प्रयास करते हुए बोली –

तो अब कोन्से मेरे अंदर सुरखाब के पर निकल आए हैं, जो तू मुझे कपड़े बदलते हुए नही देख सकता…?

शंकर, सलौनी की ज़िद पर झल्लाते हुए बिना पलटे ही बोला – तू ज़्यादा ज़िद मत किया कर..समझी.., अब जल्दी से तैयार होकर भाभी को लेकर बाहर आ., वरना देर हो जाएगी…!

सलौनी ने अपना हाथ बढ़ाकर उसके आगे से उसकी बाजू को मजबूती से थामा और जबरन अपनी ओर घुमाया…, उसके दोनो हाथों को थामकर अपनी बलखाती कमर पर टिकाते हुए बोली-

अब ज़रा हाथ लगाकर बता तो.. किधर से बड़ी हो गयी हूँ मे…!

ना चाहते हुए भी शंकर को उसपर नज़र डालनी ही पड़ी.., छोटी सी ब्रा में क़ैद उसके कच्चे अमरूद जिनके बीच अभी काफ़ी चौड़ी और हल्की सी गहरी खाई थी..,

सलौनी अपना पासा सही पड़ते देख मंद-मंद मुस्कुरा रही थी…!

अब बता ना भाई.., मे किधर से बड़ी हो गयी हूँ, जिसे तू अब देखना नही चाहता था…?

शंकर ने हल्के से उसके गाल पर एक चपत लगाई और मुस्कुराते हुए बोला – मे जानता हूँ तू बहुत जिद्दी है, अपनी बात मनवा कर ही रहेगी…!

फिर उसने अपने दोनो हाथ उसके कंधे पर टिकाए, सहलाकर उसकी पीठ पर ले गया.., जो धीरे-धीरे नीचे की तरफ बढ़ते जा रहे थे..,

शंकर के हाथों का स्पर्श अपने अनछुए नंगे बदन पर पाकर सालौनी की कोमल भावनाओं को हवा मिलने लगी थी.., आनद में उसकी आँखें नशीली होने लगी…!

फिर जैसे ही शंकर की उंगलियों ने उसकी ब्रा की स्ट्रीप को टच किया..,

सलौनी का बदन उत्तेजना से काँपने लगा…!

नीचे की तरफ जाते हुए शंकर के हाथ उसकी पतली सी कमर की वॅली से होते हुए जैसे ही उसके गोल-गोल नितंबों पर पहुँचे..,

सलौनी और आगे सरक कर शंकर के बदन से सॅट गयी.., शंकर का अधखड़ा लंड पॅंट के अंदर से ही उसे अपने पेट पर महसूस होने लगा…!

शंकर ने उसके गोल-मटोल नितंबों को सहलाते हुए कहा – देख एक तो यहाँ से बड़ी हो गयी है तू…,

सलौनी के मुँह से दबी दबी सी सिसकी निकली, फिर कांपति सी आवाज़ में बोली – और…..

शंकर उसके कोमल वक्षों पर निगाह डालते हुए बोला.., वाकी बाद में बताउन्गा, अब जा जाकर अपने कपड़े पहन…

इतना काकर वो झटके से बाहर निकल गया.., पीछे सलौनी मन ही मन मुस्कुरा कर बुदबुदाई…,


कब तक भागेगा भाई..., देखना एक दिन मे भी तेरा प्यार पाकर ही रहूंगी…!

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भोला को कुछ पता नही था कि लाजो के साथ क्या घंटा घटित हुई है.., छल कपट से रहित हर हाल में मस्त रहने वाला प्राणी…!

वैसे समाज के दृष्टिकोण से ऐसे लोग पागल लगते हैं.., लेकिन मेरी नज़र में वो सबसे सुखी इंसान हैं, जिन्हें ना तो समाज के नियमों की चिंता.., ना घर के हालातों से वास्ता..,

बिना चिंता फिकर के बस दो वक़्त की रोटी जैसी भी हो मिल जाए बस, हमेशा वर्तमान में जीते हैं ऐसे लोग जिन्हें संतोष-असंतोष जैसे शब्दों का कोई अर्थ ग्यात नही होता…!

वैसे तो भोले को चोदने के लिए और भी चूतें थी, लेकिन जब से उसने लाजो को भोगा था तबसे उसे सुंदर और गैर सुंदर शरीर का ज़ायक़ा पता चल गया था…!

कहाँ दिन भर जी तोड़ मेहनत करने वाली औरत का शरीर जो एक दम सख़्त.. और कहाँ हमेशा पर्दे में रहने वाली लाला जी की बहू का वो मखमली गोरा चिटा बदन…!

उपर से जब से लाजो ने राबड़ी के साथ साथ अपना पूरा बदन उससे चटवाया था तबसे तो उसकी जीभ और लंड का टेस्ट ही बदल गया था…!

पुरानी सेट्टिंग खडूस औरतों की तरफ अब वो देखना भी पसंद नही करता था.., कोई आगे से उससे बात करने की कोशिश भी करती तो वो उसे झिड़क देता था…!

उसे तो अब लाजो की वो मखमली संगेमरमर जैसी चिकनी मांसल जांघें भा गयी थी.., उपर से वो उसके लिए कुछ ना कुछ अच्छी अच्छी खाने की चीज़ें लाती रहती थी..,

लेकिन जब दो दिन तक भी लाजो उसके पास नही आई तो वो बैचैन होने लगा.., हमेशा बिंदास रहने वाले भोला के मन में लाजो अपनी जगह बना चुकी थी…!

उस घंटा के तीसरे दिन रंगीली दिन ढले खेतों की तरफ गयी.., कुछ देर अपने पति रामू के पास बैठी बात-चीत करती रही…!

बात कितनी भी छुपाई जाए.., कभी ना कभी वो खुलने ही लगती है.., उस दिन भी किसी ने रंगीली के साथ लाजो को गाओं से बाहर जाते देखा था..,

बस फिर क्या था.. लोगों में ख़ुसर-पुशर शुरू हो गयी.., औरतों ने अपनी तरफ से ये नतीजा भी निकाल लिया कि लाजो घर छोड़कर कहीं चली गयी है…!

उड़ती-उड़ती बात बेचारे रामू को भी पता चली.., उसने रंगीली के सामने इस बात का जिकर छेड़ दिया…!

रामू – अरे रंगीली.. सुना है लाला जी की छोटी बहू हवेली छोड़कर कहीं चली गयी है.., क्या ये बात सच है..?

रंगीली – हमें किसी के आँगन में झाँकने की क्या ज़रूरत.., हमें बस अपने काम से काम रखना चाहिए.., हो गयी होगी कोई बात आपस में…, चली गयी होगी अपने मायके.., आ जाएगी.

रामू – हां तू सही कहती है.., वैसे तुम्हें तो पता ही होगा क्या हुआ था..?

रंगीली – क्या करोगे जानकर..? बस सेठानी को झगड़ते देखा था उसके साथ, उसके बाद चली गयी वो.., मे उस वखत सो रही थी.., असल मुझे भी पता नही है…!

रामू – पर मेने तो सुना है गाओं से वो तेरे साथ ही गयी थी…,

रंगीली ने एक भरपूर नज़र से रामू को देखा.., रामू उसकी नज़र का सामना नही कर पाया और इधर उधर देखने लगा…!

अपने पति की मनोदशा देख कर रंगीली के चेहरे पर मुस्कान आ गई.., उसे पता था की वो उससे कितना डरता है.., उसका डर दूर करने की गर्ज से उसने उसका हाथ अपने हाथ में लिया..,

उसे प्यार से सहला कर बोली – कुछ बातें ऐसी होती हैं जो दूसरे कान तक ना पहुँचें उसी में सबकी भलाई होती है.., समय आने पर तुम्हें सब बता दूँगी.., अभी तुम बस अपना काम करते रहो…!

रामू को प्यार से समझा बुझाकर वो उसके पास से हवेली की तरफ चल पड़ी…!
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10-16-2019, 06:30 PM,
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
रास्ते में चक्रॉड से हटकर एक मैदान सा था जहाँ भोला अपने जानवरों को चरा रहा था.., रास्ते पर रंगीली को आते देख उसने उसे आवाज़ देकर रोका…!

भोला – अरी रामुआ की बहू…तनिक सुनियो तो…!

अपने जेठ की आवाज़ सुनकर उसके पैर ठिठक गये.., भोला अपने कंधों पर गर्दन के पीछे से दोनो ओर को लाठी निकालकर.., उसके पीछे से अपने दोनो हाथ उसपर टिका कर लूँगी और एक कपड़े की बनियान पहने उसकी तरफ आने लगा…!

रंगीली ने एक तरफ का घूँघट खींचकर अपने दाँतों तले दबा लिया, ये एक तरह का परदा था अपने जेठ के सम्मान में…!

टिर्छि नज़र डालकर घूँघट की आड़ से ही उसने अपनी तरफ आ रहे भोला को देखा.., बिना अंडरवेर के लूँगी के अंदर उसका फिलहाल सोया हुआ अजगर इधर से उधर डोलता दिखाई दे रहा था…!

रंगीली ने मन ही मन कहा – हाए दैयाअ…अभी तो इनका सोया हुआ ही है.. तब झूले सा झूल रहा है…लाजो भी बेचारी क्या करे.., इस मूसल को लेने के लिए उसने ये कदम उठा लिया तो कोई बुराई भी नही थी…!

पास आकर वो उसके चार कदम दूर खड़ा हो गया.., एक भरपूर नज़र उसने उपर से नीचे तक रंगीली पर डाली.., जिसे उसने लगभग अपनी ओढनी से ढक रखा था..!

लेकिन सुंदरता कपड़ों के अंदर से भी दिखाई दे ही जाती है…!

भोला अपने छोटे भाई की पत्नी पर एक भरपूर नज़र डालते हुए बोला – अरी बहू.. तुझे तो पता ही होगा.., वो लाला की बहू लाजो कहाँ गयी.., कई दिनो से दिखाई नही दे रही…!

रंगीली ने ओढनी की आड़ में मुस्कुराते हुए बोली – मे क्या जानू.., वैसे आप उसके बेरी में क्यों पूच्छ रहे हैं..? क्या काम पड़ गया उससे..?

भोला – बस ऐसे ही.., एक दो बार उसे मुनिया के साथ देखा था.., बड़ी भली औरत लगी मुझे वो.., अब कई दिनो से नही दिखी सो पूछ लिया…, वैसे तू कुछ ग़लत मत समझना…!

रंगीली – मे भला क्यों ग़लत समझने लगी.., उससे कुछ बात-चीत भी हुई क्या आपकी..?

भोला – हां.., तभी तो मुझे भली सी लगी वो.., वरना मे कैसे जानता कि वो कॉन है…, मुझे लगता है उसके साथ कुछ अनहोनी तो ना भयि….?

रंगीली भोला के भोलेपन का फ़ाया लेकर उसके मुँह से ही बात खुलवाना चाह रही थी.., सीधे सीधे वो पूच्छ नही सकती थी.., और कहीं ना कहीं भोला भी अपने छोटे भाई की पत्नी से खुलकर बोल नही सकता था..,

भले ही वो आधा पागल ही सही लेकिन रिश्तों की मर्यादा जानता था…!

रंगीली – वो खुद आपके पास आती थी या….?

भोला – हां, वो बाद में अक्सर मेरे पास आती थी.., बड़ी भली लुगाई थी.., कई बार मेरे लिए जलेबी, हलवा, राबड़ी तक लाती थी…!

रंगीली – अच्छा..! क्यों वो आपके लिए ये सब चीज़ें लाती थी..? लेकिन क्यों..? कुछ काम करवाती थी आपसे…?

भोला का अर्ध विकसित दिमाग़ रंगीली की लच्छेदार बातों में उलझता जा रहा था.., वो अपने अंदर की बातें एक के बाद एक बताता जा रहा था..!

अब तुझे कैसे बताउ बहू.. वो बड़ी प्यासी लुगाई थी.., मेरे सामने आकर रोने गिडगिडाने लगी.., मे भी तो आख़िर में मर्द हूँ.., नही देख सका उसका दर्द और मेने उसे चो……!

आगे के शब्द बोलने से पहले ही उसके दिमाग़ में ये बात आ गयी कि वो किसके सामने बात कर रहा है सो उसने अपना वाक्य अधूरा छोड़ दिया…!

रंगीली – जानते हैं.., दो दिन पहले सेठानी ने आप दोनो को रंगे हाथों पकड़ लिया.., आपको तो कुछ नही कहा.., लेकिन उस बेचारी को घर से निकाल दिया…!

भोला – क्या..? घर से निकाल दिया..? अब कहाँ गयी वो..?

रंगीली – मुझे क्या खबर कहाँ गयी..,? गयी होगी अपने मायके, और कहाँ जा सकती है…!

ये सुनकर भोला को गुस्सा चढ़ गया…मे उस साली सेठानी की गान्ड फाड़ डालूँगा.., भेन की लौडी ने इतनी अच्छी लुगाई को घर से निकाल दिया…!

फिर वो रंगीली से चापलूसी भरे स्वर में बोला – तू जानती है रंगीली बहू उसका मायका कहाँ है..?

रंगीली – क्यों.. आप क्या करेंगे उसके मायके के बारे में जानकर…?

भोला – अरे एक बार उससे मिल तो लेता.., मेरी वजह से उस बेचारी के साथ ये अनर्थ हो गया..,

रंगीली – आप तो नही गये थे उसके पास, वोही तो आती थी.., फिर आपकी इसमें क्या ग़लती है.., हां कुछ और बजह हो तो अलग बात है…!

भोला – अब तुझे क्या बताऊ बहू.., तू मेरे छोटे भाई की जोरू है..फिर भी बता रहा हूँ.., मुझे भी वो बहुत अच्छी लगने लगी थी.., अब देखना.. दो ही दिन हुए हैं और मुझे उसकी याद सताने लगी…!

रंगीली – आप उससे मिलने गये और फिर पकड़े गये तो.., उस बेचारी के लिए वहाँ से भी निकाल दिया तो…? कहाँ जाएगी वो…? ये भी तो सोचो…!

भोला – तू जो भी कह रही है.., अपनी जगह सब सही है.., पर अब अपने इस जी का क्या करूँ.., रह-रह कर उससे मिलने के लिए तड़पने लगता है…!

रंगीली – हाईए रामम्म….जेठ जी.. आप तो उसके लिए मजनूं हो रहे हो.., अच्छा ठीक है.., मे कुछ सोचती हूँ इस बारे में..,


तब तक ध्यान रखना.., जो बातें हम दोनो के बीच हुई हैं.., वो किसी से ना कहना.., अपने घर पे भी नही…!

भोला लपक कर बोला – नही कहूँगा बहू.., किसी से भी नही कहूँगा..बता कब बताएगी तू उसके बारे में..?

रंगीली – धीरज रखो.., जल्दी ही कुछ करती हूँ.., अब मे चलती हूँ.., बहुत देर हो गयी खड़े-खड़े.., कोई कुछ ग़लत ना सोचे हमारे बारे में…!

इतना कह कर रंगीली ने अपने कदम हवेली की ओर बढ़ा दिए.., खुशी में झूमता हुआ भोला अपने जानवरों की तरफ चल दिया….!
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10-16-2019, 06:30 PM,
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
भोला बड़ी बेसब्री से रंगीली के जबाब का इंतजार कर रहा था, हर रोज़ वो यही सोचता कि शायद आज वो आए और लाजो के बारे में कुछ बताए…!

इस तरह से रोज़ का इंतेजार करते करते एक हफ़्ता गुजर गया, इस बीच में शंकर भी शहर से लौट आया और आते ही उसने अपनी पढ़ाई पर फोकस कर दिया…!

उधर सेठानी को फिरसे लंड का चस्का लगने लगा था.., उस दिन की लाला जी की चुदाई ने उसकी सुखी खेती की सिंचाई करके, बंजर ज़मीन में फिरसे खाद बीज डालकर आशान्वित कर दिया था…!

अब वो भी गाहे बगाहे अपनी गान्ड मटकाते हुए उनके पास पहुँच जाती थी.., लेकिन अब लाला जी की उमर बढ़ती जा रही थी..,

एक दिन काफ़ी कोशिशों के बाद भी उनका घोड़ा सवारी करने की स्थिति में नही पहुँच पाया.., तक हारकर उन्हें मानना ही पड़ा की अब वो इस काम के लायक नही रहे..,

बेचारी सेठानी को अपना मन मसोस कर अपनी गीली चूत लेकर बैरंग ही लौटना पड़ा.., लेकिन औरत की चूत को जब इस उमर में लंड का पानी मिलने लग जाए तो उसकी खुजली और बढ़ने लगती है…!

बोला के पास दोपहर का ही समय ऐसा होता था, जिस समय में उसको घर के काम नही होते थे.., जब काफ़ी दिनो तक रंगीली की तरफ से कोई जबाब नही आया तो वो एक दिन दोपहर को हवेली जा पहुँचा…!

इस वखत में सभी अपने अपने कमरों में आराम कर रहे होते हैं.., वो बेचारा पहले कभी यहाँ तो आया नही था, उसे पता ही नही था कि रंगीली कहाँ रहती है…?

सो चौक में पहुँचकर जब उसे कोई दिखाई नही दिया तो उसने रंगीली को आवाज़ देना शुरू कर दिया…!

सेठानी का कमरा आँगन के ठीक बाजू में था, उनकी एक खिड़की आँगन में ही खुलती थी., जिससे वो नौकरों पर भी नज़र रखती थी…!

भोला की आवाज़ सुनकर उन्होने आँगन में झाँका.., उसे देख कर उन्होने मन ही मन कुछ सोचा, और खिड़की से झाँक कर उसे आवाज़ दी, और अपने पास आने का इशारा किया…!

खिड़की के पास आकर उसने बाहर से ही सेठानी को राम-राम कहा.., उन्होने भी उसका जवाब देकर कहा – राम राम भोला.., ज़रा अंदर तो आ, मुझे कुछ काम है तुझसे..!

चूँकि रंगीली ये उसे बता चुकी थी कि सेठानी को उसके और लाजो के संबंधों के बारे में पता चल गया है.., इसलिए उसने उसे घर से निकाल दिया है..,

जब सेठानी ने उसे अंदर आने को कहा तो वो मन ही मन डरने लगा.., कहीं ये सेठानी मुझे उस बात के लिए सज़ा ना दे.., सो च्छूटते ही बहाने बनाते हुए बोला..

अम्मा को रामू की बहू से कुछ काम था सो उसे बुलाने आया था.., अब चलता हूँ वरना काम के लिए देर होगी…!

सेठानी – अरे तो मे कोन्सि तुझे बाँध के डाल रही हूँ, थोड़ा सा मेरा काम कर्दे फिर चले जाना.., ज़्यादा वखत नही लगेगा.., आजा.. देख थोड़ा सा इस अलमारी को खिसक़वाना है बस…!

सेठानी की बातों से उसे लगा कि वो उससे नाराज़ नही है सो बेधड़क उसके कमरे में चला गया.., सेठानी ने उसे पास पड़ी कुर्सी पर बैठने का इशारा किया…!

उसके बैठ’ते ही सेठानी ने उठकर कमरे का दरवाजा बंद कर दिया.., और उसके सामने जाकर बोली – मुझे पता है तू मेरी बहू लाजो को चोदता था.., तेरे उसके साथ ग़लत संबंध थे…बोल मे सही कह रही हूँ ना…!

भोला को जिस बात का डर था वही हुआ.., फिर भी वो हिम्मत से काम लेते हुए बोला – मेने तो आपकी बहू को देखा तक नही.., किसी ने ग़लत कहा है आपको…!

सेठानी उसे घुड़कते हुए बोली – ज़्यादा चालू बनने की कोशिश मत कर.. मेने खुद अपनी आँखों से तुम दोनो को चुदाई करते हुए देखा है तेरे घेर में…, इसलिए तो मेने उस छिनाल को घर से बाहर निकाल दिया…!

अब तू बता.., तुझे क्या सज़ा दी जाए.., मे चाहू तो पोलीस में रिपोर्ट देकर तुझे जैल भिजवा सकती हूँ.., बोल जाना है जैल…!

सेठानी की धमकी सुनकर भोला लगभग रो ही पड़ा.., उनके पैरों में गिरकर गिड-गिडाते हुए बोला – नही सेठानी जी.., मे ग़रीब आदमी उपर से कम दिमाग़..,

मे सच कहता हूँ, इसमें मेरी कोई ग़लती नही थी.., वोही मेरे पास आती थी.., मेने तो उसे मना भी किया था…!

भगवान के लिए मेरे उपर तरस खाओ.., मुझे जैल नही जाना है…!

ज़्यादा भोला मत बन.., तू नही चाहता तो वो ज़बरदस्ती तेरे लंड को पकड़ कर अपनी चूत में नही ले सकती थी…, कहीं ना कहीं तूने ही उसे पटाया होगा अपना अजगर जैसा लंड दिखाकर…!

बोला – नही मे सच कह रहा हूँ.., मेने कुछ नही किया मुझे जाने दो…!

सेठानी उसके पास जाकर ज़मीन पर ही बैठ गयी.., उन्होने उसकी लूँगी में अपना हाथ डालकर उसके लंड को हाथ में पकड़ कर बोली – एक शर्त पर तुझे चोद सकती हूँ..!

एक बार अपने अजगर जैसे लंड को मेरी भी चूत में डाल…, बोल चोदेगा मुझे..? जबसे मेने तुझे लाजो को चोदते हुए देखा है, तभी से ही मेरी चूत भी तेरा लंड लेने को तड़प रही है…!

भोला ने उनकी मोटी-मोटी खरबूजे जैसी चुचियों को पकड़ते हुए कहा – उसके बाद छोड़ दोगि मुझे…?

सेठानी उसके लंड को हाथ से मुत्ठियाते हुए बोली – हां.., और आज ही नही.., जब मेरा मन करेगा तुझे बुलवा लिया करूँगी…!

भोला ने खड़े होकर सेठानी को भी खड़ा कर लिया.., और उनकी साड़ी खींचते हुए बोला –


मंजूर है, पर तुम्हें भी लाजो की तरह मेरी सेवा करनी होगी.., वो मुझे अच्छी-अच्छी चीज़ें खाने को दिया करती थी…!
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10-16-2019, 06:30 PM,
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
सेठानी ने अपनी बाहें उसकी पीठ पर कस दी.., पंजों पर उचक कर पेटिकोट के उपर से ही अपनी चूत को भोला के खड़े लंड पर रगड़ते हुए बोली – अरे खाने की क्यों चिंता करता है भोला राजा.., जो कहेगा वो खिलाउन्गी तुझे.., बस अब जल्दी से मुझे बिस्तर पर पटक कर जमकर चुदाई कर्दे मेरी…बहुत खुजली हो रही है मेरी चूत में…!

ये सुनते ही भोला ने सेठानी के ब्लाउस को फाड़कर उनके बदन से अलग कर दिया.., बहुत दिनो से उसे चूत के दर्शन भी नही हुए थे.., आनन फानन में उसने सेठानी को नितन्ग नंगा कर दिया..,

बिस्तर पर पटक कर, अपनी लूँगी उतार फेंकी.., अपने मूसल को हाथ से मसल्ते हुए वो सेठानी की ओर बढ़ने लगा..,

भोला के खड़े लंड को देख कर ही सेठानी की वासना उफान लेने लगी.., उनकी सुखी चूत गीली हो उठी..,

मोटी-मोटी जांघों के बीच आकर भोला ने अपना मूसल सेठानी की चूत की मोटी-मोटी पाव रोटी जैसी फांकों के बीच रखा.., दो चार तगड़े से घिस्से मारे…!

सस्सिईईई…आआहह….भोला…अब और ना तडपा रे…, घुसा दे इसे अंदर…, हाए रे कितना गरम लंड है तेरा…!

भोला ने मुस्कुरा कर उनकी बड़ी बड़ी चुचियों को लगाम की तरह कसकर जकड़ा..और एक करारा सा धक्का उनकी चूत में लगा दिया…!

सेठानी की कम चुदि चूत को चीरता हुआ उसका मूसल जैसा लंड आधे रास्ते तक चला गया.., कसकर होठों को भीचने पर भी सेठानी की अंदर ही अंदर चीख निकल गयी…!

उसके सीने पर अपनी हथेली अड़ाते हुए बोली – थोड़ा धीरे डाल निोगोड़े…तूने तो दम ही निकाल दिया मेरा..,

भोला ने थोड़ा सा मूसल बाहर किया और धीरे से एक और धक्का लगा कर ¾ लंड सेठानी की चूत में डाल दिया…, सेठानी दर्द से कराह उठी…!

लेकिन भोला ने कोई तबज्जो नही दी.., वो धीरे-धीरे उतने ही लंड से उन्हें चोदने लगा.., कुछ देर में ही सेठानी की अधेड़ चूत भी रस छोड़ने लगी..

लंड को आने जाने में आसानी होने लगी.., चोदते चोदते उसने अपना पूरा लंड सेठानी की चूत की बच्चे दानी तक पहुँचा दिया…!

धक्कों के साथ सेठानी की बड़ी बड़ी चुचियाँ भी समंदर की लहरों की तरह हिलोरें ले रही थी.., उन्हें अब बहुत मज़ा आ रहा था..,

भोला की पीठ और गान्ड सहलाते हुए वो उसे अब और तेज चोदने के लिए उकसाने लगी.., हाई..रामम्म…कितना मस्त चोदता है रे तू…!

शाबास.., और पेल मुझे…, फाड़ दे मेरी चूत को उऊययईीी…मैया..मोरी… उउउन्न्नग्घ…मे तो गयीइ….कहते हुए उनकी चूत ने अपना रस छोड़ दिया..,


झड़ने के बाद वो भोला को रुकने का इशारा करते हुए बोली…

थोड़ी देर रुक जा भोला.., मेरी साँसें थमने दे.., तेरा मूसल बहुत बड़ा है.., मेरी हालत खराब कर दी रे…!

लेकिन भोला ने उन्हें ज़बरदस्ती बिस्तर पे औधा कर दिया.., उनके मोटे-मोटे चुतड़ों पर थप्पड़ मारकर पहले खूब लाल कर दिया…,

फिर उनकी चक्की के पाटों जैसी गान्ड में मूह घुसाकर उनकी गान्ड के छेद को जीभ से कुरेदते हुए वो उनकी चूत को हाथ से मसल्ने लगा…!

दो मिनिट में ही सेठानी फिर से गरम होने लगी.., भोला ने अपनी हथेली पर थूक लेकर लंड को गीला किया और पीछे से अपना लंड उनकी गीली चूत में पेल दिया.., और किसी कुत्ते की तरह सेठानी को कुतिया बना कर चोदने लगा…!

सेठानी अपनी जिंदगी का सबसे लंबा तगड़ा लंड लेकर मस्त हो गयी..,आधे घंटे की मस्त चुदाई करवाकर वो पूर्ण संतुष्ट हो गयी..,

फिर उन्होने खुद अपने हाथों से भोला को बढ़िया सा भरपेट नाश्ता करवाया.., और दोबारा आने का बोलकर उसे विदा किया…..!

समय अपनी निर्धारित गति से आगे बढ़ता रहा.., भोला को इस बीच एक-दो बार रंगीली मिली भी घर पर लेकिन सबके सामने उसकी हिम्मत नही हुई बात करने की…!

पर उसे तसल्ली इस बात की थी.., कि कुछ हद तक लाजो की कमी सेठानी से पूरी हो रही थी.., वो जब मन होता दोपहर में बुलवा लेती.., और अपने कमरे में जमकर चुदने के बाद खूब उसकी खातिर भी करती…!

देखते देखते सुषमा का समय भी आ गया और उसने एक सुन्देर से बेटे को जन्म दिया.., हवेली में चारों तरफ खुशियों का साम्राज्य फैल गया…!

शंकर मन लगाकर अपनी पढ़ाई कर रहा था.., उसके पहले साल के रिज़ल्ट के रूप में अच्छे मार्क्स के साथ साथ उसकी प्रेमिका सुप्रिया ने भी एक बच्चे को जन्म दिया.., वो भी बेटे के रूप में…!

कभी कभी ये सोचकर शंकर के मन में डर और उत्तेजना का मिला जुला भाव पैदा हो जाता कि वो इतनी सी उमर में दो दो बच्चों का बाप बन गया है…!

आगे चलकर अगर ये असलियत सबके सामने आई तब क्या होगा…?

लेकिन उसकी सोच से अलग… उसकी माँ रंगीली बेहद खुश थी..,

हर एक दो महीने में वो किसी भी बहाने से अपने मायके जाती रहती थी..,

जहाँ उसके घर का ही एक और अंश लाजो के पेट में पनप रहा था…,


लाला जी अपने वादे के मुतविक उसके द्वारा उसे धन पहुँचाते रहते थे…!

लाजो के साथ साथ रंगीली के घर का भी हुलिया बदल चुका था.., आज उनका पक्का मकान था.., जो उस गाओं में उस जमाने में बहुत बड़ी बात थी…!

रंगीली का छोटा भाई पढ़ लिख कर शहर में एक छोटी-मोटी नौकरी करने लगा था.., जिससे उसका व्याह अच्छे घर की लड़की से हो गया, और वो अपनी पत्नी के साथ शहर में ही रहने लगा…..,

सुप्रिया के बच्चे के जन्म के दूसरे महीने में ही लाजो ने भी एक बेटी को जन्म दिया.., इस बात की जानकारी गुप्त रूप से सिर्फ़ रंगीली को ही थी…!

लाजो सब कुछ भूलकर अपनी बेटी के लालन पालन में लग गयी.., बेटी को देख कर उसे भोला की याद भी आती.., लेकिन अंदर ही अंदर अपने आँसुओं को पी जाती…!
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10-16-2019, 06:30 PM,
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
इसी तरह कुछ महीने और गुजर गये.., एक दिन एक दिन रंगीली अपने सास-ससुर और रामू के साथ अपने घर में ही थी.., उसने बात चलाते हुए कहा –

मे क्या कहती हूँ.., मेरे बापू अब काफ़ी बृद्ध हो गये हैं.., आपको तो पता ही है भाई शहर में नौकरी करने चला गया.., अब उनकी खेती बाड़ी संभालने के लिए कोई नही है…!

रामू – हां, बात तो सही कह रही हो तुम, और उनके पास खेती बाड़ी भी खूब है.., अगर सही से देखभाल नही हुई तो बाहर के लोग ही उसका फ़ायदा उठाते रहेंगे..

पर रंगीली.., इसमें हम लोग भी क्या कर सकते हैं…?

रंगीली – मेरी मानो तो क्यों ना जेठ जी को वहाँ भेज दिया जाए..,

वैसे भी यहाँ वो गाय-भैंसॉं का ही तो करते हैं.., वहाँ रहेंगे तो बापू की मदद करते रहेंगे…!

रामू की माँ – अरी बहू कैसी बच्चों जैसी बात कर रही है.., वो वैसे भी आधा पागल है., वो भला उनकी क्या मदद करेगा..?

रंगीली – ऐसा मत कहिए माँ जी.., क्या आप में से किसी ने पशुओं को संभालने में उनकी मदद की है कभी..?

सब काम खुद के ही दिमाग़ से करते हैं ना.., तो फिर जो भी नया काम उन्हें करने का बोला जाए देखना वो उसे भी बखूबी कर ही लेंगे…!

रामू के पिता – कह तो तुम ठीक रही हो बहू.., पर क्या वो जाने को राज़ी होगा वहाँ.., और फिर अकेला जा पाएगा या नही…?

रंगीली – वो सब आप मुझ पर छोड़ दीजिए.., मे उन्हें शंकर के साथ अपनी जीप से छुड़वा दूँगी.., इसी बहाने मे भी अपने माँ-बापू से मिल आउन्गि…!

रामू – लेकिन फिर जानवरों को यहाँ कों संभालेगा..? मे तो सेठ के काम पे ही रहता हूँ, बापू के बस का कुछ है नही…!

रंगीली – अरे तो एक गाय रख लो, वाकी के बेच दो.., उनसे कोन्सि ज़्यादा आमदनी हो रही है.., घर दूध लायक एक गाय बहुत है..,

रामू की माँ – जैसा तू ठीक समझे कर हमें तो कोई एतराज नही है.., वो यहाँ रहे या वहाँ, उसे बस भर पेट खाना मिलता रहे…!

रंगीली – तो फिर ठीक है शंकरा के बापू.., तुम एक गाय छोड़कर वाकी सब को बेच दो.., मे जेठ जी से बात कर लेती हूँ, कल शंकर के कॉलेज की छुट्टी भी है.., हम लोग कल ही चले जाते हैं…!

रामू – अरे इतनी जल्दी कॉन खरीदेगा उन्हें..?

रंगीली – तो दाम बोलो.., मे लाला जी से कहकर उन्हें उनके बाडे में भिजवा देती हूँ.., आप लोगों को मूह माँगे दाम मिल जाएँगे ठीक है.., उन्हें बादे तक पहुँचवा तो सकते हो…? या ये भी मे करूँ…?

किसी काम के नहीं हो…!

चूँकि इनके घर पर रंगीली की धाक थी.., आज जो भी था उसी की बदौलत था.., सो उसके गुस्से में बोली गयी बात से सबके सब सकपका गये.., रामू तो घिघियाते हुए बोला –

हां..हां..मे पहुँचा दूँगा.., तुम गुस्सा मत करो.., उसकी बात पर रंगीली घूँघट के अंदर ही मुस्करा कर रह गयी..,

कुछ देर बाद वो अपने घेर पर थी.., जहाँ भोला जानवरों को चारा डाल रहा था..,


रंगीली को आते देख उसने अपना काम धंधा बंद किया और लपक कर उसके पास आया…!

आओ बहू.., कितने दिनो बाद सुध ली है तुमने.., कोई खबर है उसकी…?

रंगीली ने अपने आँचल से थोड़ा सा घूँघट किया हुआ था भोला की तरफ से.., वो मुस्कराते हुए बोली – अरे..अरे..जेठ जी आप तो बड़े बैचैन दिखाई दे रहे हैं..!

ऐसे काम कोई एक दिन में नही हो जाते.., उसकी खबर निकालते निकालते इतने दिन निकल गये.., अब एक काम करो.., कल अच्छे से नहा धोकर नये से कपड़े पहन कर तैयार रहना..,

भोला उत्तेजित होते हुए बोला – अच्छा रंगीली बहू.., तू सच में उससे मिलवाने ले जाएगी..?

रंगीली हँसते हुए बोली – आपको तो बस सोते जागते अपनी लाजो की ही फिकर है.., परिवार की कोई फिकर नही..?

रंगीली का उलाहना सुनकर भोला के उत्साह पर जैसे ठंडा पानी पड़ गया हो…, थोड़ा निराश होते हुए बोला – मे भला परिवार की क्या फिकर करूँ.., उसके लिए तो तुम और रामू है ही…!

रंगीली भोला की हालत पर मन ही मन मुस्कुरा रही थी.., मज़ा लेते हुए बोली – फिकर करना चाहोगे तभी तो होगी..,

कल बस जैसा मेने कहा है वैसे ही सबेरे तैयार मिलना.., आपको मेरे साथ मेरे मायके चलना है…!

भोला – तुम्हारे मायके.. और मे..? क्यों रामू नही जा रहा क्या..?

रंगीली थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए बोली – आप सवाल जबाब बहुत करते हो.., लाजो से मिलना है या नही..?

भोला – हां..हां..क्यों नही.., क्या वो वहाँ मिलेगी..?

रंगीली – जहाँ भी हो.., पहले बोलो मेरी बात मानोगे..? कल सबेरे 10 बजे तैयार रहना.., मे और शंकर आपको लेने आएँगे..,


इतना कहकर वो वहाँ से झटके से मूडी और घेर से बाहर निकल गयी…!

पीछे भोला बहुत देर तक उसी हालत में खड़ा सोचता रह गया की आख़िर ये उसे अपने मायके क्यों ले जाना चाहती है…!

उसी उधेड़-बुन में उसका काम करने में भी मन नही लगा.., कुछ देर बाद रामू आकर एक गाय को छोड़कर सारे जानवरों को हांक ले गया..,
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10-16-2019, 06:30 PM,
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
भोला बस उसे देखता ही रहा.., कुछ पूछना चाह कर भी पूछ नही पाया..!

सारी रात उसे करवट बदलते ही गुजारनी पड़ी.., लेकिन दूसरी सुबह वो उदास मन से ही नहा धोकर नये कपड़े पहनकर इस आस में तैयार हो गया कि चलो अपना काम निकलवाने के बाद ही सही रंगीली उसे लाजो से मिलवा तो देगी…!

सही सवा दस बजे शंकर और रंगीली जीप लेकर उसके पास पहुँचे.., उन्हें देखते ही भोला उत्सुकता के साथ बोला – हम लोग इस मोटर गाड़ी से जा रहे हैं..?

शंकर – ताऊ जी.. आप क्या ये सोच रहे थे कि हमें वहाँ तक पैदल जाना है..? आओ बैठो…

भोला को आज पहली बार किसी वहाँ में बैठने का मौका मिला था.., वो उच्छालकर पीछे की सीट पर जा बैठा..,


इस चक्कर में वो सीट पर लुढ़क भी गया...,

शंकर ने हँसते हुए कहा - ताऊ ज़रा संभलकर...

उसके बैठते ही शंकर ने अपनी गाड़ी दौड़ा दी अपनी ननिहाल की तरफ….!

बीती रात हुए माँ-बेटे के बीच रंगा-रंग संगम के दौरान ही आज उसके ननिहाल जाने के बारे रंगीली शंकर को सारी बातें बता चुकी थी…!

अब चूँकि वो भी तो बच्चा नही रहा था, भले ही उमर जो भी हो, एक नव-युवक को जब उसके जीवन की सबसे बड़ी सौगात वो भी उससे जो अपने जीवन की सारी उम्मीदें ही अपने जान से ज़्यादा प्यारे, जिगर के टुकड़े अपने बेटे के नाम कर चुकी थी.

तो स्वाभाविक है वो भी अब दुनियादारी समझने लगा था, माँ के मूह ये सुनकर की साथ में ताऊ जा रहे हैं, जिनके साथ उसका ही नही अपितु उसकी माँ का आमना सामना बीते 20-21 सालों में गिनती का हुआ होगा…….!

तपाक से अपनी माँ की चुनिरि के जान-मारु उभार को अपनी मुट्ठी में भरते हुए बोला – क.क.क्याअ…कह रही हो माँ, ताऊ और हमारे साथ…ननिहाल को…??

अपने दोनो कबूतर जो चोंच लड़ाने के लिए लालयत दिख रहे थे, उनकी चोंच को बुरी तरह से रौन्दते अपने बेटे के हाथों की छुवन से ही


रंगीली के पूरे बदन में रोमांच की एक मीठी लहर सी दौड़ गयी…..

शंकर के पाजामे में बने तंबू के उभार को अपने हाथ में भरते हुए दबाकर बोली … सस्सिईइ…आअहह…मेरे लाल…बेचारे जेठ जी का नाग भी तो तेरे इसकी तरह फड्फाडाता ही होगा ना…,

रंगीली की चोली के बटन पर खेलती शंकर की उंगलियाँ थम गयी.., बड़े उत्तेजना भरे स्वर में बोला – क्क़.क.कहना क्या चाहती है माँ…, क्या ताऊ का कोई जुगाड़ किया है आपने..?

रंगीली अब तक शंकर का पाजामा नीचे सरका चुकी थी, अपने चिर-परिचित मनपसंद खिलौने से खेलते हुए बोली – अरे मे क्या जुगाड़ करूँगी.., मे तो बस उनको उनकी जुगाड़ से मिलवा रही हूँ…!

अबतक शंकर उसकी चोली के सारे बटन्स खोल चुका था, अपनी माँ की सुडौल मखमली चुचियों को अपनी मुट्ठी में भरते हुए बोला –

क्याअ…कह रही हो…, ताऊ की जुगाड़…? वो भी आपके मायके में…?

रंगीली अपने अंगूठे के पोर साथ में हल्के से नाख़ून का सहारा लेकर उसके लंड के पी होल को कुरेदते हुए बोली –

अपने ताऊ को क्या समझता है..? वो इतने भी चोदु नही हैं…? तेरी पुरानी आशिक़ लाजो के एक बेटी भी पैदा कर चुके हैं…!

शंकर ने माँ का लहंगा भी खोल दिया था, नंगी फूली हुई चूत की फांकों पर अपना लॉडा दबाते हुए बोला – इसका मतलब लाजो आपके मायके में है..?

रंगीली ने भी उसके लौडे को अपनी चूत के मुलायम होठों पर रगड़ते हुए कहा – हां, सेठानी ने उन दोनो को रंगे हाथों पकड़ लिया था, और घर से धक्के मार कर निकाल दिया…!

लेकिन लाला जी ने मुझे किसी अच्छी जगह रखने को बोला और चुपके से मे उसे यहाँ ले आई.., उस समय वो पेट से थी.., जो आज एक बेटी की माँ बन चुकी है…!

अब तेरे ताऊ को अपनी बेटी से तो मिलने का हक़ है कि नही…?

शंकर ने रंगीली की एक मांसल गुदाज जाँघ को उपर उठा लिया.., वाकी का काम उसकी माँ ने खुद संभालते हुए उसके लंड को चूत के छेद पर अड़ा दिया…,

दोनो ने अपनी अपनी तरफ से एक साथ धक्का मारा.., लंड सरसराता हुआ गीली चूत में आधे रास्ते तक सरक गया…!

सस्सिईइ….आअहह…बोल मेने सही किया ना बेटा..?

उउउफ़फ्फ़…माआ…मज़ा आ गया…तुम सचमुच बहुत समझदार हो, लाला जी आपको इसलिए सम्मान देते हैं…, हल्के हल्के धक्के लगाता हुआ शंकर बोला…,

रंगीली भी अपनी कमर चलाकर, उसके लंड को अंदर और अंदर तक लेने की कोशिश करते हुए बोली – वो तो मुझ पर सेठानी से भी ज़्यादा भरोसा करते हैं…!

हाईए…मेरे लाल.., चल बिस्तर पर ले चल.., ऐसे ज़्यादा मज़ा नही आरहा..,

शंकर ने उसे किसी बच्ची की तरह गोद में उठा लिया.., वो अपने पैरों की केँची उसकी गान्ड पर कसते हुए पूरे लंड को अंदर निगल गयी…,

पूरा लंड अंदर पहुँचते ही आनंद के मारे उसकी आँखें बंद हो गयी.., सिसकते हुए बोली – आअहह…उउउफ़फ्फ़…, मे चाहती हूँ, इसी विश्वास का फ़ायदा उठाकर तू ज़्यादा से ज़्यादा ज़िम्मेदारी अपने सिर लेने लायक हो जा…!

शंकर ने उसे बिस्तर पर लाकर लिटा दिया.., बिना लंड बाहर निकाले वो बिस्तर पर लेट गये.., शंकर ने उसकी दोनो टाँगों को उपर उठा लिया और जैसा उसकी प्राणप्यारी माँ चाहती थी उस तरह से उसे चोदने लगा……!
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