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RE: non veg kahani एक नया संसार
प्रतिमा हवेली में ऊपरी हिस्से पर बने उस कमरे में पहुॅची जिस कमरे के बेड पर इस वक्त नैना औंधी पड़ी सिसकियाॅ ले लेकर रोये जा रही थी। प्रतिमा उसे इस तरह रोते देख उसके पास पहुॅची और बेड के एक साइड बैठ कर उसे उसके कंधों से पकड़ अपनी तरफ खींच कर पलटाया। नैना ने पलटने के बाद जैसे ही अपनी भाभी को देखा तो झटके से उठ कर उससे लिपट कर रोने लगी। प्रतिमा ने किसी तरह उसे चुप कराया।
"शान्त हो जाओ नैना।" प्रतिमा ने गंभीरता से कहा__"और मुझे बताओ कि आख़िर ऐसा क्या हुआ है जिसकी वजह से तुमने दामाद जी को तलाक दे दिया है? देखो पति पत्नी के बीच थोड़ी बहुत अनबन तो होती ही रहती है। इस लिए इसमें तलाक दे देना कोई समझदारी नहीं है। बल्कि हर बात को तसल्ली से और समझदारी से सुलझाना चाहिए।"
"भाभी इसमे मेरी कहीं भी कोई ग़लती नहीं है।" नैना ने दुखी भाव से कहा__"मैं तो हमेशा ही आदित्य को दिलो जान से प्यार करती रही थी। सब कुछ ठीक ठाक ही था लेकिन पिछले छः महीने से हमारे बीच संबंध ठीक नहीं थे। इसकी वजह ये थी आदित्य किसी दूसरी लड़की से संबंध रखने लगे थे। जब मुझे इस बात का पता चला और मैंने उनसे इस बारे में बात की तो वो मुझ पर भड़क गए। कहने लगे कि मैं बाॅझ हूँ इस लिए अब वो मुझसे कोई मतलब नहीं रखना चाहते हैं। मैने उनसे हज़ारो बार कहा कि अगर मैं बाॅझ हूँ तो मुझे एक बार डाक्टर को दिखा दीजिए। पर वो मेरी सुनने को तैयार ही नहीं थे। तब मैने खुद एक दिन डाक्टर से चेक अप करवाया। बाद में डाक्टर ने कहा कि मैं बिलकुल ठीक हूँ यानी बाॅझ नहीं हूँ। मैंने डाक्टर की वो रिपोर्ट लाकर उन्हें दिखाया और कहा कि मैं बाॅझ नहीं हूँ। बल्कि बच्चे पैदा कर सकती हूँ। इस लिए एक बार आप भी अपना चेक अप करवा लीजिए। मेरी इस बात से वो गुस्सा हो गए और मुझे गालियाॅ देने लगे। कहने लगे कि तू क्या कहना चाहती है कि मैं ही नामर्द हूँ? बस भाभी इसके बाद तो पिछले छः महीने से यही झगड़ा चलता रहा हमारे बीच। इस सबका पता जब मेरे सास ससुर को चला तो वो भी अपने बेटे के पक्ष में ही बोलने लगे और मुझे उल्टा सीधा बोलने लगे। अब आप ही बताइए भाभी मैं क्या करती? ऐसे पति और ससुराल वालों के पास मैं कैसे रह सकती थी? इस लिए जब मुझमें ज़ुल्म सहने की सहन शक्ति न रही तो तंग आकर एक दिन मैने उन्हें तलाक दे दिया।"
नैना की सारी बातें सुनने के बाद प्रतिमा भौचक्की सी उसे देखती रह गई। काफी देर तक कोई कुछ न बोला।
"ये तो सच में बहुत ही गंभीर बात हो गई नैना।" फिर प्रतिमा ने गहरी साॅस लेकर कहा__"तो क्या आदित्य ने तलाक के पेपर्स पर अपने साइन कर दिये?"
"पहले तो नहीं कर रहा था।" नैना ने अधीरता से कहा__"फिर जब मैंने ये कहा कि मेरे भइया भाभी खुद भी एक वकील हैं और वो जब आपको कोर्ट में घसीट कर ले जाएॅगे तब पता चलेगा उन्हें। कोर्ट में सबके सामने मैं चीख चीख कर बताऊॅगी कि आदित्य सिंह नामर्द है और बच्चा पैदा नहीं कर सकता तब तुम्हारी इज्जत दो कौड़ी की भी नहीं रह जाएगी। बस मेरे इस तरह धमकाने से उसने फिर तलाक के पेपर्स पर अपने साइन किये थे।"
"लेकिन मुझे ये समझ में नहीं आ रहा कि तुम्हें इस बात का पता पहले क्यों नहीं चला कि आदित्य नामर्द है?" प्रतिमा ने उलझन में कहा__"बल्कि ये सब अब क्यों हुआ? क्या आदित्य का पेनिस बहुत छोटा है या फिर उसके पेनिस में इरेक्शन नहीं होता? आख़िर प्राब्लेम क्या है उसमें?"
"और सबकुछ ठीक है भाभी।" नैना ने सिर झुकाते हुए कहा__"लेकिन मुझे लगता है कि उसके स्पर्म में कमी है। जिसकी वजह से बच्चा नहीं हो पा रहा है। मैंने बहुत कहा कि एक बार वो डाक्टर से चेक अप करवा लें लेकिन वो इस बात को मानने के लिए तैयार ही नहीं हैं।"
"ओह, चलो कोई बात नहीं।" प्रतिमा ने उसके चेहरे को सहलाते हुए कहा__"अब तुम फ्रेश हो जाओ तब तक मैं तुम्हारे लिए गरमा गरम खाना तैयार कर देती हूँ।"
नैना ने सिर को हिला कर हामी भरी। जबकि प्रतिमा उठ कर कमरे से बाहर निकल गई। बाहर आते ही वह चौंकी क्योंकि अजय सिंह दरवाजे की बाहरी साइड दीवार से चिपका हुआ खड़ा था। प्रतिमा को देख कर वह अजीब ढंग से मुस्कुराया और फिर प्रतिमा के साथ ही नीचे चला गया।
गौरी को एक दम से चुप और कुछ सोचते हुए देख अभय सिंह से रहा न गया। उसके चेहरे पर बेचैनी और उत्सुकता प्रतिपल बढ़ती ही चली जा रही।
"आप चुप क्यों हो गईं भाभी?" अभय ने अधीरता से कहा__"बताइये न, मेरे मन में वो सब कुछ जानने की तीब्र उत्सुकता जाग उठी है। मैं जल्द से जल्द सब कुछ आपसे जानना चाहता हूँ।"
अभय की उत्सुकता और बेचैनी देख गौरी के चेहरे पर अजीब से भाव उभरे तथा गुलाब की कोमल कोमल पंखुड़ियों जैसे होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई। उसने अभय की तरफ देखने के बाद अपने सामने कहीं शून्य में देखने लगी।
"तुम मेरे बच्चों की तरह ही हो।" गौरी शून्य में घूरते हुए ही बोली__"और कोई भी माॅ अपने बच्चों के सामने या फिर खुद बच्चों से ऐसी बातें नहीं कर सकती जिन्हें कहने के लिए रिश्ते और मर्यादा इसकी इज़ाज़त ही न दे। लेकिन फिर भी कहूँगी अभय। वक्त और हालात हमारे सामने कभी कभी ऐसा रूप लेकर आ जाते हैं कि हम फक़त बेबस से हो जाते हैं। हमें वो सब कुछ करना पड़ जाता है जिसे करने के बारे में हम कभी कल्पना भी नहीं करते। ख़ैर, अब जो कुछ भी मैं कहने जा रही हूँ उसमें कई सारी बातें ऐसी भी हैं जिन्हें मैं स्पष्ट रूप से तुम लोगों के सामने नहीं कह सकती, किन्तु हाँ तुम लोग उन बातों का अर्थ ज़रूर समझ सकते हो।"
इतना कह कर गौरी ने एक गहरी साॅस ली और फिर से उसी तरह शून्य में घूरते हुए कहने लगी__"ये सब तब से शुरू हुआ था जब मैं ब्याह कर अपने पति यानी विजय सिंह जी के घर आई थी। उस समय हमारा घर घर जैसा ही था आज की तरह हवेली में तब्दील नहीं था। मैं एक ग़रीब घर की लड़की थी। मेरे माॅ बाप ग़रीब थे, खेती किसानी करते थे। अपने माता पिता की मैं अकेली ही संतान थी। मेरा ना तो कोई भाई था और ना ही कोई बहन। ईश्वर ने मेरे सिवा मेरे माॅ बाप को दूसरी कोई औलाद दी ही नहीं थी। इसके बाद भी मेरे माॅ बाप को भगवान से कोई शिकायत नहीं थी। वो मुझे दिलो जान से प्यार व स्नेह करते थे। जब मैं बड़ी हुई तो सभी बच्चों की तरह मुझे भी मेरे माॅ बाप ने गाॅव के स्कूल में पढ़ने के लिए मेरा दाखिला करा दिया। मैं खुशी खुशी स्कूल जाने लगी थी। किन्तु एक हप्ते बाद ही मेरा स्कूल में पढ़ना लिखना बंद हो गया। दरअसल मैं छोटी सी बच्ची ही तो थी। एक दिन मास्टर जी ने मुझसे क ख ग घ सुनाने को कहा तो मैं सुनाने लगी। लेकिन मुझे आता नहीं था इस लिए जैसे आता वैसे ही सुनाने लगी तो मास्टर जी मुझे ज़ोर से डाॅट दिया। उनकी डाॅट से मैं डर कर रोने लगी। मैं अपने माॅ बाप इकलौती लाडली बेटी थी। मेरे माॅ बाप ने कभी मुझे डाॅटा नहीं था शायद यही वजह थी कि जब मास्टर जी ने मुझे ज़ोर से डाॅटा तो मुझे बेहद दुख व अपमान सा महसूस हुआ और मैं रोने लगी थी। मुझे रोते देख मास्टर जी ने मुझे चुप कराने के लिए फिर से ज़ोर से डाॅटा। उनके द्वारा फिर से डाॅटे जाने से मैं और भी तेज़ तेज़ रोने लगी थी। मास्टर जी ने देखा कि मैं चुप नहीं हो रही हूँ तो उन्होंने मुझ पर छड़ी उठा दी। दो तीन छड़ी लगते ही मेरा रोना जैसे चीखों में बदल गया। पूरे स्कूल में मेरा रोना चिल्लाना गूॅजने लगा। मेरे इस तरह रोने और चिल्लाने से मास्टर जी बहुत ज्यादा गुस्से में आ गए। उसी वक्त एक दूसरे मास्टर जी मेरा रोना और चिल्लाना सुन कर आ गए। दूसरे मास्टर जी को देख कर पहले वाले मास्टर जी रुक गए और इस बीच मैं रोते हुए ही स्कूल से भाग कर अपने घर आ गई। घर में उस वक्त मेरे पिता जी भोजन कर रहे थे। मुझे इस तरह रोता बिलखता देख वो चौंके। मैं रोते हुए आई और अपने पिता जी से लिपट गई। मेरे पिता मुझसे पूछने लगे कि किसने मुझे रुलाया है तो मैंने रोते रोते सब कुछ बता दिया। सारी बात सुन कर मेरे पिता जी बड़ा गुस्सा हुए लेकिन माॅ के समझाने पर शान्त हो गए। लेकिन इस सबसे हुआ ये कि मेरे पिता जी ने दूसरे दिन से मुझे स्कूल नहीं भेजा। उन्होंने साफ कह दिया था कि जिस स्कूल में मेरी बेटी मार कर रुलाया गया है उस स्कूल में मेरी बेटी अब कभी नहीं पढ़ेगी। बस इसके बाद मैं घर में ही पलती बढ़ती रही। उस समय मेरी उमर पन्द्रह साल थी जब एक दिन बाबू जी(गजेन्द्र सिंह बघेल) हमारे घर आए। बाबू जी को आस पास के सभी गाॅव वाले जानते थे। उन्हें कहीं से पता चला था कि इस गाॅव में हेमराज सिंह(पिता जी) की बेटी है जो बहुत ही सुंदर व सुशील है। बाबू जी अपने मॅझले बेटे विजय सिंह जी के लिए लड़की देखने आए थे। मेरे पिता जी ने बाबू जी को बड़े आदर व सम्मान के साथ बैठाया। घर में जो भी रुखे सूखे जल पान की ब्यवस्था उन्होंने वो सब बाबू जी के लिए किया। बाबू जी ने मेरे पिता जी का मान रखने के लिए थोड़ा बहुत जल पान किया उसके बाद उन्होने अपनी बात रखी। मेरे पिता ये जान कर बड़ा खुश हुए कि ठाकुर साहब अपने बेटे के लिए उनकी लड़की का हाँथ खुद ही माॅगने आए हैं। भला कौन बाप नहीं चाहेगा कि उसकी बेटी इतने बड़े घर में न ब्याही जाए? और फिर रिश्ता जब खुद ही चलकर उनके द्वार पर आया था तो इंकार का सवाल ही नहीं था। किन्तु पिता जी की आर्थिक स्थित अच्छी नहीं थी इस लिए लेने देने वाली बात से घबरा रहे थे। बाबू जी जानते थे इस बात को इस लिए उन्होंने साफ कह दिया था कि हेमराज हमें सिर्फ तुम्हारी लड़की चाहिए जिसे हम अपनी बेटी और बहू बना सकें। बस फिर क्या था। सब कुछ तय हो गया और एक अच्छे व शुभ मुहूर्त को मेरी शादी हो गई। मुझे नहीं पता था कि मैं किस तरह के घर में और किस तरह के लोगों के बीच आ गई हूँ? माॅ बाप ने बस यही सीख दी थी कि अपने पति को परमेश्वर मानना। अपने सास ससुर की मन से सेवा करना। बड़ों का आदर व सम्मान करना तथा छोटों को प्यार व स्नेह देना।
एक लड़की का नसीब कितना अजीब होता है कि बचपन से जवानी तक अपने माॅ बाप के पास हॅसी खुशी से रहती है और फिर शादी हो जाने के बाद वह एक नये घर में अपने पति के साथ एक नया संसार बनाने के लिए चली जाती है। अपने माॅ बाप के घर में उनका निश्छल प्यार और स्नेह पा कर पली बढ़ी वो लड़की एक दिन उन सबसे दूर चली जाती है।
शादी के बाद जब मैं इस घर में आई तो मेरे मन में डर व भय के सिवा कुछ न था। अपने माॅ बाप से यूॅ अचानक ही दूर हो जाने से हर पल बस रोना ही आ रहा था। पर ये सब तो हर लड़की की नियति होती है। हर लड़की के साथ एक दिन यही होता है। ख़ैर, रात हुई तो एक ऐसे इंसान से मिलना हुआ जो किसी फरिश्ते से कम न था। उन्होंने मुझे प्यार दिया इज्जत दी और इस क़ाबिल बनाया कि जब सुबह हुई तो मुझे लगा जैसे ये घर शदियों से मेरा ही था। मुझे लग ही नहीं रहा था कि मैं किसी दूसरे के घर में किसी अजनबी के पास आ गई हूँ। राज के पिता ऐसे थे कि उन्होने मुझे इतना बदल दिया था। मुझे उनसे प्रेम हो गया और मैं जानती थी कि उन्हें भी मुझसे उतना ही प्रेम हो गया था।
मेरी दोनो ननदें यानी सौम्या और नैना दिन भर मेरे पास ही जमी रहती थी। उन्होने ये एहसास ही नहीं होने दिया कि वो दोनो मेरे लिए अजनबी हैं। माॅ बाबू बड़ा खुश थे। आख़िर उनकी पसंद की लड़की उनकी बहू बन कर उस घर में आई थी। ऐसे ही एक हप्ता गुज़र गया। इन एक हप्तों में मेरे मन से पूरी तरह डर व झिझक जा चुकी थी। मुझे घर के सभी लोग अच्छे लगने लगे थे। विजय जी से इतना प्रेम हो गया था कि उनके बिना एक पल भी नहीं रहा जाता था। वो दिन भर खेतों पर काम में ब्यस्त रहते और शाम को ही घर आते। जब वो कमरे में मेरे पास आते तो मुझे रूठी हुई पाते। फिर वो मुझे मनाते। हर दिन मेरे लिए छुपा कर फूलों का गजरा खुद बना कर लाते और मेरे बालों में खुद ही लगाते। आईने के सामने ले जाकर मुझे खड़ा कर देते और मेरे पीछे खड़े होकर तथा आईने में देखते हुए मुझसे कहते "मैं सारे संसार के सामने चीख चीख कर ये कह सकता हूँ कि इस संसार में तुमसे खूबसूरत दूसरा कोई नहीं। मैं तो बेकार व निकम्मा था जाने किन पुन्य प्रतापों का ये फल था जो तुम मुझे मिली हो" उनकी इन बातों से मैं गदगद हो जाती। मुझे ध्यान ही न रहता कि मैं उनसे रूठी हुई थी। सब कुछ जैसे भूल जाती मैं।
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RE: non veg kahani एक नया संसार
इस बीच मैंने महसूस किया था कि बड़े भइया और बड़ी दीदी इन दोनो का ब्यौहार सबसे अलग था। बड़े भइया विजय जी से ज्यादा बात नहीं करते थे। उसी तरह प्रतिमा दीदी मुझसे ज्यादा बात नहीं करती थी। हलाॅकि वो उस समय शहर में ही रहते थे। पर जब भी वो दोनो आते तो उनका ब्यौहार ऐसा ही होता हम दोनो से।
ऐसे ही चलता रहा। हम सब खुश थे किन्तु ये सच था कि बड़े भइया और दीदी विजय जी और मुझसे हमेशा से ही उखड़े से रहते। मैने अक्सर देखा था कि बड़े भइया किसी न किसी बात पर विजय जी को उल्टा सीधा बोलते रहते थे। ये अलग बात थी कि विजय जी उनकी किसी भी बात का बुरा नहीं मानते थे और ना ही पलट कर कोई जवाब देते थे।
एक दिन की बात है मैं अपने कमरे में नहाने के बाद कपड़े पहन रही थी, मुझे ऐसा लगा जैसे छिप कर कोई मुझे कपड़े पहनते हुए देख रहा है। मैंने पलट कर देखा तो कहीं कोई नहीं था। मैंने इसे अपना वहम समझ कर फिर से कपड़े पहनने लगी। तभी कमरे के बाहर से मेरी बड़ी ननद सौम्या की आवाज़ आई। वो कह रही थी "बड़े भइया आप यहाँ, भाभी के कमरे के दरवाजे के पास छिप कर क्यों खड़े हैं?" सौम्या की इस बात को सुन कर मैं सन्न रह गई। ये जान कर मेरे पैरों तले से ज़मीन निकल गई कि जेठ जी छिप कर मुझे कपड़े पहनते हुए देख रहे थे। मुझे ध्यान ही नहीं था कि मेरे कमरे का दरवाजा खुला हुआ है। मेरी हालत ऐसी हो गई जैसे काटो तो एक बूद भी खून न निकले। फिर जब मुझे होश आया तो अनायास ही जाने किस भावना के तहत मुझे रोना आ गया। सौम्या जब मेरे कमरे में आई तो उसने मुझे रोता पाया। वह मुझे रोते देख हैरान रह गई। उसे किसी अनिष्ट की आशंका हुई। उसने तो देखा ही था कि उसका बड़ा भाई मेरे कमरे के बाहर दरवाजे के पास छिप कर खड़ा था। उसे समझते देर न लगी कि कुछ तो हुआ है। उसने तुरंत ही मुझे शान्त करने की कोशिश की और पूछने लगी क्या हुआ है? मैंने रोते हुए यही कहा कि मुझे तो कुछ पता ही नहीं था कि कौन दरवाजे के पास छिपकर मुझे कपड़े पहनते देख रहा है, वो तो तब पता चला जब तुमने बाहर जेठ जी से वो सब कहा था। मेरी बातें सुन कर सौम्या भी स्तब्ध रह गई। फिर उसने कहा कि ये बात मैं किसी से न कहूँ क्यों कि घर में हंगामा हो जाएगा। इस लिए इस बात को भूल जाऊॅ लेकिन आइंदा से ये ख़याल ज़रूर रखूॅ कि दरवाजा खुला न रहे।
उस दिन के बाद जेठ जी का मुझे देखने का नज़रिया बदल चुका था। वो किसी न किसी बहाने मुझे देख ही लेते। मैं पन्द्रह साल की नासमझ ही थी। मुझे सिर पर साड़ी द्वारा घूॅघट करने का भूल जाता था। जेठ जी मुझे देखते और जब मेरी नज़र उन पर पड़ती तो वो बस मुस्कुरा देते। मुझे ये सब बड़ा अजीब लगता और मैं इस सबसे डर भी जाती।
उधर विजय जी खेतों में दिन रात मेहनत करते और ज्यादा से ज्यादा मात्रा में फसल उगाते। शहर में बेंच कर जो भी मुनाफा होता वो उस सारे पैसों को बाबू जी के हाँथ में पकड़ा देते। उन पर तो जैसे पागलपन सवार था खेतों में दिन रात मेहनत करने का। उनकी मेहनत व लगन से अच्छा खासा मुनाफा भी होता। मैं अक्सर उनके पास खेतों में उन्हें खाना देने के बहाने चली जाती। मुझे उनके साथ रहना अच्छा लगता था फिर चाहे वो किसी भी जगह हों। हम दोनो खेतों में नये नये पौधे लगाते और खूब सारी बातें करते।
समय गुज़रता रहा। समय के साथ साथ उनका स्वभाव जो पहले से ही बदला हुआ था वो और ज्यादा बदल गया था। जेठ जी जब भी बड़ी दीदी के साथ शहर से आते तो उनका बस एक ही काम होता था...मुझे ज्यादा से ज्यादा देखना। घर में अगर कोई न होता तो वो मुझसे बातें करने की कोशिश भी करते। किन्तु मैं उनकी किसी बात को कोई जवाब न देती बल्कि अपने कमरे में आकर दरवाजा अंदर से लगा लेती। जैसा की गाॅवों में होता है कि जेठ व ससुर के सामने घूॅघट करके ही जाना है और उनके सामने कोई आवाज़ नहीं निकालना है, बात करने की तो बात दूर। इस लिए जेठ जी जब खुद ही मुझसे बातें करने और करवाने की कोशिश करते तो मैं डर जाती और भाग कर अपने कमरे में जाकर अंदर से दरवाजा बंद कर लेती। इतना तो मैं समझ गई थी कि जेठ जी की नीयत मेरे प्रति सही नहीं है। मगर किसी से कह भी नहीं सकती थी। मैं नहीं चाहती थी कि मेरी वजह से घर में कोई कलह शुरू हो जाए।
उधर विजय जी की मेहनत से घर में ढेर सारा पैसा आने लगा था। बाबू जी अपने इस बेटे से बड़ा खुश थे। मुझसे भी खुश थे क्योंकि मैं उनकी नज़र में एक आदर्श बहू थी। एक बार जेठ जी फिर आए शहर से। किन्तु इस बार वो पैसों के लिए आए थे क्योंकि उन्हें शहर में खुद का कारोबार करना था। उन्होने बाबू जी से इस बारे में बात की और उनसे पैसे मागे। इस बाबूजी नाराज़ भी हुए। पैसों के बारे में उन्होने यही कहा कि ये सब पैसे विजय की मेहनत का नतीजा है इस लिए उससे पूछना पड़ेगा। बाबू जी की इस बात ने जेठ जी के मन में विजय जी के लिए और भी ज़हर भर गया। मुझे आज भी नहीं पता कि ऐसी क्या वजह थी जिसकी वजह से जेठ जी के मन में अपने इस भाई के लिए इतना ज़हर भरा हुआ था? जबकि सब जानते थे कि विजय जी हमेशा उनका आदर व सम्मान करते थे। उनकी किसी भी बात का बुरा नहीं मानते थे। ख़ैर, पैसा लेकर जेठ जी शहर चले गए। इस बार जब वो आए थे तो किसी भी दिन उन्होंने वो हरकतें नहीं की जो इसके पहले करते थे मुझे देखने की। शहर में जेठ जी ने खुद का कारोबार शुरू कर लिया। इधर विजय जी के ज़ेहन में ये भूत सवार हो गया था कि घर को तुड़वा कर इसे नये सिरे से बनवा कर हवेली का रूप दिया जाए। उन्होने बाबू की सहमति से हवेली की बुनियाद रखी। हवेली को तैयार करने में भारी पैसा खर्च हुआ। यहाँ तक की बाद में हवेली का बाॅकी काम कर्ज लेकर करना पड़ा। जेठ जी ने पैसा देने से इंकार कर दिया।
इस बीच बड़ी दीदी को एक बेटी हुई। इसका पता भी हम सबको बाद में चला था। ख़ैर, जब वो शहर से आए तो बाबू जी इस खबर से नाराज़ तो हुए किन्तु फिर हमेशा की तरह ही चुप रह गए।
मैं इस बात से खुश थी कि जेठ जी अब चोरी छिपे मुझे देखने वाली हरकतें करना बंद कर दिये थे। इस बीच अभय ने भी अपनी पसंद की लड़की से शादी कर ली। बाबू जी इस बात से नाराज़ हुए लेकिन कर भी क्या सकते थे? लेकिन करुणा का आचरण बहुत अच्छा था, वो पढ़ी लिखी थी लेकिन उसमें संस्कार भी थे। मैं उसे अपनी छोटी बहन बना कर खुश थी। हम दोनों का आपस में बड़ा प्रेम था। कोई कह ही नहीं सकता था कि वो मेरी देवरानी है। अभय गुस्सैल स्वाभाव के ज़रूर थे किन्तु उनके अंदर अपने से बड़ों का आदर सम्मान करने की भावना थी। प्रेम के चक्कर में छोटी ऊम्र ही उन्होने शादी कर ली थी। लेकिन बाबू जी शायद इस लिए चुप रह गए थे क्योंकि वो अपने पैरों पर खड़े थे। गाॅव के ही सरकारी स्कूल में अध्यापक थे वो।
इधर हवेली बन कर तैयार हो चुकी थी। कर्ज़ भी काफी हो गया था लेकिन विजय जी के लिए तो जैसे ये कर्ज़ कोई मायने ही नहीं रखता था। बाबू जी ने हवेली के तैयार होने पर बड़े धूमधाम से गृह प्रवेश का उत्सव मनाया। शहर से बड़े भइया और दीदी भी आईं। हवेली देख कर वो दोनो ही हैरान थे किन्तु प्रत्यक्ष में हमेशा की तरह ही ग़लतियाॅ बता रहे थे। बाबू जी सब जानते भी थे और समझते भी थे किन्तु हमेशा चुप रहते।
ऐसे ही चार साल गुज़र गए और मुझे एक बेटा हुआ। मेरे बेटे के जन्म के चार दिन बाद बड़े भइया और दीदी को फिर से एक बेटी हुई। बाबू जी ने अपने पोते के जन्म पर बड़े धूमधाम से उत्सव मनाया। बड़े भइया और दीदी इससे नाराज़ हुए। उनका कहना था कि उनकी बेटियों के जन्म उत्सव नहीं मनाया जबकि विजय के बेटे के जन्म पर बड़ा उत्सव मना रहे हैं आप। उनकी इन बातों से बाबू जी का गुस्सा उस दिन जैसे फट पड़ा था। उन्होंने गुस्से में बहुत कुछ सुना दिया उन दोनो को। बात भी सही थी। दरअसल वो दोनो खुद को हम सबसे अलग कर लिए थे। शहर में खुद का कारोबार और बड़ा सा एक घर था उनके पास। शायद इसी का घमंड होने लगा था उन्हें। वो सोचते थे कि कहीं हम लोग उनके कारोबार और शहर के मकान में हिस्सा न मागने लगें इस लिए वो हमेशा हम सबसे कटे कटे से रहते। जबकि यहा हवेली और ज़मीन जायदाद में अपना हक़ समझते थे।
गौरी कुछ पल के लिए रुकी और गहरी साॅसें लेने लगी। सब लोग साॅस बाधे उसकी बातें सुन रहे थे।
"मैं जानती हूँ अभय कि मैने अभी जो कुछ कहा उस सबको तुम जानते हो।" गौरी ने कहा__"तुम सोच रहे होगे कि मैं ये सब तुम्हें क्यों बता रही हूँ जबकि मुझे तो सिर्फ वो सब बताना चाहिए जो इन लोगों ने मेरे और मेरे पति के साथ किया था। ख़ैर, ये सब बताने का मतलब यही था कि जो कुछ हुआ उसकी बुनियाद उसकी शुरूआत यहीं से हुई थी। ज़हर के बीज यहीं से बोना शुरू हुए थे।
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RE: non veg kahani एक नया संसार
राज जब दो साल का हुआ तो मेरी बड़ी ननद सौम्या की शादी की बात चली। बाबू जी ने बड़े भइया को संदेश भेजवाया और कहा कि वो अपनी बहन की शादी के लिए अपनी तरफ से क्या खर्चा कर सकते हैं? बाबू जी बात से बड़े भइया ने पैसा देने से साफ इंकार कर दिया था। उनका कहना था कि उनका कारोबार आजकल बहुत घाटे में चल रहा है इस लिए वो पैसे नहीं पाएॅगे। बाबू जी उनकी इस बात से बेहद दुख हुआ। बाबू जी के दुख का जब विजय जी को पता चला तो वो खेतों से आकर हवेली में बाबू जी से मिले। उन्होने बाबू जी से कहा कि आप किसी बात की फिक्र न करें, सौम्या की शादी बड़े धूमधाम से ही होगी। बाबू जी जानते थे कि हवेली बनाने में जो कर्जा हुआ था उसे विजय जी ने कितनी मेहनत करके चुकाया था। इसके बाद कहीं फिर से न कर्ज़ा हो जाए। खैर, सौम्या की शादी हुई और वैसे ही धूमधाम से हुई जैसा कि विजय जी ने बाबू जी से कहा था। शहर से बड़े भइया और दीदी भी थे, वो दोनो हैरान थे किन्तु सामने पर यही कहते फिलते बाबू जी से कि इतना खर्च करने की क्या ज़रूरत थी? इससे जो कर्ज़ हुआ है उसे मेरे सिर पर मत मढ़ दीजिएगा। बाबू जी इस बात से बेहद गुस्सा हुए। कहने लगे कि तुम तो वैसे ही खुद को सबसे अलग समझते हो, तुम्हें किसी बात की चिन्ता करने की कोई ज़रूरत नहीं है। मेरे दो दो सपूत अभी बाॅकी हैं जो मेरा हर तरह से साथ देंगे और दे भी रहे हैं। सौम्या की शादी के तीसरे दिन बड़े भइया ने बाबू जी से कहा कि अगर आप ये समझते हैं कि मैं आप सबसे खुद को अलग समझता हूँ तो आप मुझे सचमुच ही अलग कर दीजिए। ये रोज रोज की बेज्जती मुझसे नहीं सुनी जाती। बाबू जी ने कहा कि तुम तो अलग ही हो अब किस तरह अलग करें तुम्हें? तो बड़े भइया ने कहा कि मेरे हिस्से में जो भी आता हो उसे मुझे दे दीजिए। हवेली में और ज़मीनों में जो भी मेरा हिस्सा हो। बाबू जी उनकी इस बात पर गुस्सा हो गए। कहने लगे कि तुम्हारा हवेली में तभी हिस्सा हो सकता है जब तुम अपने हिस्से की कीमत दोगे। क्योंकि हवेली में तुमने अपनी तरफ से एक रुपया भी नहीं लगाया। हवेली में जो भी रुपया पैसा लगा और जो भी कर्ज़ा हुआ उस सबको अकेले विजय ने चुकता किया है। हाँ अगर विजय चाहे तो अपनी मर्ज़ी से तुम्हें बिना कीमत चुकाए हवेली में हिस्सा दे सकता है।
बाबू जी की बात से बड़े भइया नाराज़ हो गए। कहने लगे कि विजय होता कौन है मुझे हिस्सा देने वाला। उस मजदूर के सामने मैं हाँथ फैलाने नहीं जाऊॅगा। मुझे आपसे हिस्सा चाहिए। उनकी इन बातों से बाबू जी भी गुस्सा हो गए। कहने लगे कि अगर ऐसी बात है तो तुम्हें भी अपने कारोबार और शहर के मकान में दोनो भाइयों को हिस्सा देना होगा। तुम्हारा कारोबार तो वैसे भी विजय के ही पैसों की बुनियाद पर खड़ा हुआ है। बाबू जी इस बात से बड़े भइया ने साफ कह दिया कि मेरे कारोबार और शहर के मकान में किसी का कोई हिस्सा नहीं है। तो बाबू जी ने भी कह दिया कि फिर तुम भी ये भूल जाओ कि तुम्हारा इस हवेली में और ज़मीनों में कोई हिस्सा है।
बाबू जी की इस बात से बड़े भइया गुस्सा हो गए। कहने लगे कि ये आप ठीक नहीं कर रहे हैं। आप बाप होकर भी अपने बेटों के बीच पक्षपात कर रहे हैं। बाबू जी ने कहा कि तुम अपने आपको होशियार समझते हो कि तुम सबके हिस्सा ले लो और तुमसे कोई न ले। ये कहाँ का न्याय कर रहे हो तुम? अरे तुम तो बड़े भाई हो, तुम्हें तो खुद सोचना चाहिए कि तुम अपने छोटे भाइयों का भला करो और भला ही सोचो।
बाबू जी की इन बातों से बड़े भइया कुछ न बोले और पैर पटकते हुए वापस शहर चले गए। उधर ये सारी बातें जब विजय जी को पता चलीं तो वो बाबू जी से बोले कि आपको बड़े भइया से ऐसा नहीं कहना चाहिए था। भला क्या ज़रूरत थी उनसे ये कहने की कि हवेली में हिस्सा तभी मिलेगा जब वो अपने हिस्से की कीमत चुकाएॅगे? मैने ये सोच कर ये सब नहीं किया था कि बाद में मैं अपने ही भाइयों से हवेली की कीमत वसूल करूॅ। बाबू जी बोले इतना महान मत बनो बेटे। ये दुनिया बहुत बुरी है, यहाँ बड़े खुदगर्ज़ लोग रहते हैं। समय के साथ खुद को भी बदलो बेटा। वरना ये दुनिया तुम जैसे नेक और सच्चे ब्यकित को जीने नहीं देगी। बाबू जी की इस बात पर विजय जी बोले जैसे सूरज अपना रोशनी फैलाने वाला स्वभाव नहीं बदल सकता वैसे ही मेरा स्वभाव भी नहीं बदल सकता। आप और माॅ की सेवा करूॅ छोटे भाई के लिए खुद की सारी खुशियाॅ निसार कर दूॅ। भला क्या लेकर जाऊॅगा इस दुनियाॅ से? सब यहीं तो रह जाएगा न बाबू जी। इंसान की सबसे बड़ी दौलत व पूॅजी तो वो है जिसे पुन्य कहते हैं। एक यही तो लेकर जाता है वह भगवान के पास।
विजय जी की इन बातों से बाबू जी अवाक् रह गए। कुछ देर बाद बोले तू तो कोई फरिश्ता है बेटे। मन से बैरागी है तू। तुझे किसी धन दौलत का मोह नहीं है। जब तू पढ़ता लिखता नहीं था न तो दिन रात कोसता था तुझे। सोचता था कि कैसा निकम्मा बेटा दिया था मुझे भगवान ने लेकिन भला मुझे क्या पता था कि वही निकम्मा बेटा एक दिन इतना महान निकलेगा। मुझे तुझपे गर्व है बेटे। लेकिन मेरी एक बात हमेशा याद रखना कि दूसरों खुश रखने के लिए खुद का बने रहना भी ज़रूरी होता है।
बाबू जी की इस बात को सुन कर विजय जी मुस्कुराए और फिर से अपनी कर्मभूमि यानी खेतों पर चले गए। बाबू जी की बातों में छुपे किसी अर्थ को शायद विजय जी समझ नहीं पाए थे। लेकिन बाबू जी को शायद भविष्य दिख गया था।
उधर शहर में बड़े भइया और दीदी इस बार कुछ और ही खिचड़ी पका रहे थे। सौम्या की शादी को एक महीना हो गया था जब बड़े भइया और दीदी को तीसरी औलाद के रूप में एक बेटा हुआ था। वो दोनो शहर से आए थे घर। इस बार बाबू जी ने उनके बेटे के जन्म पर राज के जन्मोत्सव से भी ज्यादा उत्सव मनाया कारण यही था कि बड़े भइया और दीदी को ये न लगे कि हमें कोई खुशी नही हुई है उनके बेटे के जन्म पर। बड़े भइया खुद भी उत्सव में खूब पैसा बहा रहे थे। वो दिखाना चाहते थे कि वो किसी से कम नहीं हैं। ख़ैर, इस बार एक नई चीज़ देखने को मिली। वो ये थी कि बड़े भइया और दीदी हम सब से बड़े अच्छे तरीके से मिल जुल रहे थे। विजय जी से भी उन्होने अच्छे तरीके से बातें की। एक दिन बड़े भइया खेतों पर घूमने गए। वहाँ पर उन्होने देखा कि ज़मीनों पर काफी अच्छी फसल उगी हुई थी। बगल से जो बंज़र सा पहले बड़ा सा मैदान हुआ करता था अब वहाँ पर अच्छे खासे पेढ़ लगाए जा चुके थे। खेतों पर एक तरफ बड़ा सा मकान भी बन रहा था। खेतों पर बहुत से मजदूर काम कर रहे थे। विजय जी ने बड़े भइया को वहाँ पर देखा तो वो भाग कर उनके पास आए और बड़े आदर व सम्मान से उन्हें खेतों के बारें में तथा फसलों से होने वाली आमदनी के के बारे में बताने लगे। उन्होंने ये भी बताया कि दूसरी तरफ जो बीस एकड़ की खाली ज़मीन पड़ी थी उसमें मौसमी फलों के बाग़ लगाने की तैयारी हो रही है। उससे काफी ज्यादा आमदनी होगी।
ऐसे ही बातें चलती रही फिर बातों ही बातों में जब हवेली का ज़िक्र आया तो विजय जी ने खुद कहा कि हवेली में सबका बराबर का हिस्सा है वो जब चाहें ले सकते हैं। उन्हें कोई कीमत नहीं चाहिए। ये सब अपनो के लिए ही तो बनाया गया है। विजय जी की इन बातों से बड़े भइया खुश हो गए। किन्तु उनके मन में शायद कुछ और ही था जो उस वक्त समझ नहीं आया था।
ऐसे ही वक्त गुज़रता रहा। इसी बीच मुझे एक बेटी हुई और दस दिन बाद करुणा ने भी एक सुंदर सी बच्ची को जन्म दिया। राज उस वक्त चार साल का हो गया था। वो दिन भर अपनी उन दोनो बहनों के साथ ही रहता, और उनके साथ ही हॅसता खेलता। शहर से बड़े भइया और दीदी भी आए थे। सबके लिए कपड़े भी लाए थे। हम सब बेहद खुश थे इस सबसे।
इस बीच एक परिवर्तन ये हुआ कि बड़े भइया शहर से हप्ते में एक दो दिन के लिए हवेली आने लगे थे। माॅ बाबू जी से वो बड़े सम्मान से बातें करते और खेतों पर भी जाते। वहाँ देखते सुनते सब। मैं और करुणा घर के सारे काम करती। उसके बाद मैं खेत चली जाती विजय जी के पास। खेतों में जो मकान बन रहा था वो बन गया था।
इस बीच बच्चे भी बड़े हो रहे थे। राज पाॅच साल का हुआ तो उसका स्कूल में दाखिला करा दिया अभय ने। गर्मियों में जब स्कूल की छुट्टियाॅ होती तो बड़े भइया और दीदी के बच्चे भी शहर से गाॅव हवेली में आ जाते। सब बच्चे एक साथ खेलते और खेतों में जाते। बड़े भइया की बड़ी बेटी रितू अपनी माॅ पर गई थी। वो ज्यादा हम लोगों से घुलती मिलती नहीं थी। शिवा अपने बाप पर ही गया था। वह अपनी चीज़ें किसी को नहीं देता था और दूसरों की चीज़ें लड़ झगड़ कर ले लेता था। राज से अक्सर उसकी लड़ाई हो जाती थी। बच्चे तो नासमझ होते हैं उन्हें अच्छे बुरे का ज्ञान कहाँ होता है। इस लिए अगर इनकी आपस में कभी लड़ाई होती तो जेठानी जी अक्सर नाराज़ हो जाती थीं। बड़ी मुश्किल से गर्मियों की छुट्टियाॅ कटती और जेठानी जी अपने बच्चों को लेकर शहर चली जातीं।
प्रतिमा अपने पति के साथ जब अपने कमरे में पहुॅची तो अचानक ही पीछे से अजय ने उसे अपनी गिरफ्त में ले लिया साथ ही अपने होठों को उसकी गर्दन पर लगा कर करते हुए अपने दोनो हाथों से प्रतिमा के बड़े बड़े चूॅचों को बुरी तरह मसलने लगा।
"आऽऽऽह धीरे से प्लीज़।" प्रतिमा की दर्द और मज़े में डूबी आह निकल गई थी, बोली___"ज़रा धीरे से आहहहहह मसलो न अजय। मुझे दर्द हो रहा है।"
"ये धीरे से मसलने वाली चीज़ नहीं है मेरी जान।" अजय सिंह ने उसी तरह प्रतिमा के चूॅचों को मसलते हुए कहा__"इन्हें तो आटे की तरह गूॅथा और मसला जाता है। देख लो मैं वही कर रहा हूँ।"
"वो तो मैं देख ही रही हूँ।" प्रतिमा ने आहें भरते हुए कहा___"पर मुझे ये नहीं समझ आ रहा कि इस समय तुम ये सब इतने उतावलेपन से क्यों कर रहे हो? आख़िर किस बात का जोश चढ़ गया है तुम्हें?"
"मत पूछो डियर।" अजय सिंह ने खुद आह सी भरते हुए कहा___"इस हवेली में आज एक और चूॅत आ गई है। मेरी छोटी बहन की प्यारी प्यारी सी चूॅत। हाय काश! उसकी उस चूॅत को पेलने का मौका मिल जाए तो कसम से मज़ा आ जाए प्रतिमा।"
"हे भगवान।" प्रतिमा उछल पड़ी__"तो इस वजह से जोश चढ़ा हुआ है तुम्हें? कसम से अजय तुम न कभी नहीं सुधर सकते। तुम्हारे ही नक्शे कदम पर हमारा बेटा भी चल रहा है। मैने हज़ार बार देखा है उसे, उसकी नज़रें अपनी बहनों पर ही नहीं खुद मुझ पर भी गड़ जाती हैं। उसे ये भी ख़याल नहीं कि मैं उसकी माॅ हूँ। ये सब तुम्हारी वजह से है अजय। तुम खुद उसकी ग़लतियों को नज़रअंदाज़ करते रहते हो।"
"अरे तो क्या हो गया मेरी जान?" अजय ने प्रतिमा को उठाकर बेड पर लेटा दिया और फिर उसके ऊपर आकर बोला___"नज़रें तो होती ही हैं नज़ारा करने के लिए। तुम तीनो माॅ बेटियाॅ हो ही इतनी हाँट एण्ड सेक्सी कि हमारे बेटे का भी इमानडोल गया।"
"तुम्हारे बेटे का बस चले तो अपनी माॅ बहनों को भी अपने नीचे लेटा कर पेल दे।" प्रतिमा ने हॅस कर कहा था।
"तो इसमें दिक्कत क्या है डियर?" अजय ने बेशर्मी से हॅसते हुए कहा__"उसे भी अपनी कुण्ड का अमृत पिला दो। शायद उसकी प्यास और तड़प मिट ही जाए।"
"ओह अजय कुछ तो शर्म करो।" प्रतिमा ने हैरानी से देखा__"भला ऐसा मैं कैसे कर सकती हूँ? वो मेरा बेटा है, मैने उसे पैदा किया है।"
"तो क्या हुआ मेरी जान?" अजय ने अपना एक हाँथ सरका कर प्रतिमा की साड़ी को ऊपर कर उसकी नंगी चूॅत को मसलते हुए कहा___"इसी रास्ते से ही पैदा किया ना अपने बेटे को? अब इसी रास्ते का स्वाद भी चखा दो उसे। यकीन मानो मेरी जान उसके बाद तुम्हारा बेटा तुम्हारा गुलाम ना हो जाए तो कहना।"
"उफफफफ अजय तम्हें ज़रा भी एहसास नहीं है कि तुम क्या बकवास किये जा रहे हो?" प्रतिमा ने नाराज़गी भरे लहजे से कहा__"तुम मुझे ऐसा करने के लिए कैसे कह सकते हो? क्या तुम्हें ज़रा सी भी इस बात से तक़लीफ़ नहीं होगी कि हमारा बेटा तुम्हारी चीज़ों का भोग करे? किस मिट्टी के बने हो तुम यार?"
"यार तो कौन सा घिस जाएगी तुम्हारी ये रस से भरी हुई चूत?" अजय ने अपने हाँथ की दो उॅगलियाॅ प्रतिमा की रिस रही चूत में अंदर तक डाल कर कहा___"एक बार अपने बेटे का हथियार भी तो डलवा कर मज़ा लो। सक्सेना के साथ तो बड़ा मज़ा करती थी तुम। दो दो हथियारों से आगे पीछे से पेलवाती थी तुम। कसम से डियर, अगर ऐसा हो जाए तो मज़ा ही आ जाए। हम दोनो बाप बेटे एक साथ मिल कर तुम्हारी आगे पीछे से ठुकाई करेंगे।"
"आआआहहहहह अजय।" प्रतिमा ने मदहोशी में कहा___"मत करो ऐसी बातें। मुझे कुछ हो रहा है।"
"हाहाहाहा जब ऐसी बातों से ही तुम्हें कुछ होने लगा है तो ज़रा सोचो डार्लिंग।" अजय ने हॅसते हुए कहा___"सोचो डियर तब क्या होगा जब हम दोनो बाप बेटों के हथियार तुम्हारी पेलाई करेंगे?"
"शशशशशशश कुछ करो अजय।" प्रतिमा की हालत ख़राब___"जल्दी से कुछ करो। मेरी चूत में आग जलने लगी है। इसे बुझाओ जल्दी। वरना मैं इस आग में जल जाऊॅगी।"
"क्या करूॅ डियर?" अजय मुस्कुराया था।
"कुछ भी करो।" प्रतिमा ने बेड सीट को दोनो हाथों की मुट्ठियों में भींचते हुए कहा___"पर मेरी इस आग को शान्त करो जल्दी। उफफफ ये आज क्या हो रहा है मुझे??"
"आज बेटे के हथियार की बात चली है ना इस लिए शायद ऐसा हो रहा है तुम्हें।" अजय ने कहा__"पर बेटे का हथियार तो इस वक्त यहाँ नहीं है मेरी जान। कहो तो फोन करके शहर से बुला लूॅ उसे?"
"उसे तो आने में समय लगेगा अजय।" प्रतिमा ने आहें भरते हुए कहा___"तुम्हें ही इस आग को शान्त करना पड़ेगा। शशश जल्दी मुझे पेलो ना अजय।"
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RE: non veg kahani एक नया संसार
वर्तमान_______
हल्दीपुर पुलिस स्टेशन !
"तो क्या जानकारी मिली तुम्हें?" अपनी कुर्सी पर बैठी रितू ने सामने खड़े हवलदार से पूछा था।
"मैडम जिन लड़के लड़कियों की लिस्ट आपने दी थी।" वह हवलदार कह रहा था जिसकी वर्दी की नेम प्लेट पर उसका नाम राम सिंह लिखा हुआ था, बोला___"उनमें से कुछ तो उसी काॅलेज के हैं जिस काॅलेज में वो पीड़िता यानी विधी चौहान पढ़ती है जबकि बाॅकी के सब बाहरी हैं। मेरा मतलब कि उस काॅलेज के नहीं हैं।"
"बाहर से कौन से लड़के लड़कियाॅ हैं?" रितू ने पूछा था।
"बाहर के तो सब लड़के ही हैं मैडम।" हवलदार रामसिंह ने कहा___"वो भी दो ही हैं। एक तो वही संपत है जो इसी इलाके का एक छोटा मोटा ग़ुडा मवाली है जबकि दूसरा संदीप अग्निहोत्री है, ये दूसरे काॅलेज में बीए लास्ट इयर का छात्र है।"
"ओके बाकी के सब लोगों के बारे में क्या पता चला?" रितू ने पूछा।
"विधी के साथ काॅलेज में पढ़ने वाली जिस लड़की की बर्थडे पार्टी थी उस रात, उसका नाम खुशी जिन्दल है। बड़े बाप की औलाद है। माॅ बाप पूणे में रहते हैं। यहाँ पर वह अपनी एक आया के साथ रहती है और वो मकान भी उसके बाप ने ही उसे खरीद कर दिया था। ताकि वह अपनी आया के साथ रह कर काॅलेज में पढ़ाई कर सके। पार्टी में दोस्तों के रूप में चार लड़के थे और पाॅच लड़कियाॅ, जिनमे से एक लड़की खुशी जिन्दल की आया की थी। दो लड़के बाहरी थे। सभी लड़कों की डिटेल इस प्रकार है____
1, सूरज चौधरी, 22 साल का विधी के ही कालेज में एम ए का छात्र है। इसके बाप का नाम दिवाकर चौधरी है। ये शहर का पोलिटीसियन है। इसके बारे में सारा शहर जानता है कि ये कैसा आदमी है। इसके कई गैर कानूनी धंधे भी कानून के नाक के नीचे से चलते हैं। सूरज चौधरी अपने बाप की बिगड़ी हुई औलाद है। पता चला है कि इसने कई लड़कियों की ज़िंदिगियाॅ बरबाद की हैं। अपनी सुंदर पर्शनालिटी और पैसों की वजह से कोई भी लड़की इसकी तरफ आकर्षित हो जाती है। ये लड़कियों को प्यार के जाल में फॅसा कर उनकी अश्लील वीडियो बना कर उन्हें हर तरह के काम करने के लिए ब्लैकमेल करता है। विधी चौहान इससे प्यार करती है।
2, अलोक वर्मा, ये भी सूरज के साथ ही पढ़ता है। सूरज का पक्का यार है ये। बाप बहुत साल पहले गंभीर बीमारी से चल बसा था तब से यह अपनी विधवा माॅ के साथ ही रहता है। इसकी माॅ किसी प्राइवेट कंपनी में काम करती है।
3, किशन श्रीवास्तव, ये भी सूरज के साथ ही कालेज में पढ़ता है। इसके बाप का नाम अवधेश श्रीवास्तव है। ये इसी शहर का एक क्रिमिनल लायर है। इसके दिवाकर चौधरी से बड़े गहरे संबंध हैं। दिवाकर चौधरी के हर ग़ैरकानूनी काम में ये उसकी हर तरह से मदद करता है।
4, रोहित मेहरा, ये भी सूरज के साथ ही उस कालेज में पढ़ता है। इसके बाप ईआ नाम अशोक मेहरा है। ये शहर का बिल्डर है। पैसों की कोई कमी नहीं है इसके पास। सुना है कई ज़मीनों पर इसने अवैध कब्जा किया हुआ है। इसके भी दिवाकर चौधरी और वकील अवधेश श्रीवास्तव से बड़े गहरे संबंध हैं।
5, नीता ब्यास, ये 20 साल की है और विधी के साथ ही उस कालेज में पढ़ती है। ये इन्दौर की रहने वाली है। यहाँ पर ये अपने मामा जी के यहाँ रह कर ही पढ़ाई कर रही है।
6, अनीता ब्यास, ये नीता की जुड़वा बहन है तथा ये भी अपनी बहन के साथ ही मामा जी के यहाँ रहकर पढ़ाई कर रही है।
7, स्नेहा शर्मा, ये 20 साल की है, ये भी विधी के साथ ही कालेज में पढ़ती है। इसका बाप सरकारी बैंक में मैनेजर है।
8, संजना सिंह, ये 20 साल की है, और विधी के साथ ही कालेज में पढ़ती है। इसके बाप का इसी शहर में एक बड़ा सा माॅल है। ये दो भाई बहन है। इसका भाई संजय सिंह इससे छोटा है और अभी इस साल हाई स्कूल में है।
"मैडम ये थे उस कालेज में विधी के साथ एक ग्रुप में रहने वाले लड़के लड़कियाॅ।" रामदीन ने कहा___"मैने अपने तरीके से पता किया है कि विधी के साथ जो घटना घटित हुई उसमें सूरज चौधरी मुख्य आरोपी है। सूरज के साथ ही इस हादसे को अंजाम देने में उसके ये चारों दोस्त और उस बर्थडे गर्ल यानी खुशी जिन्दल का भी बराबर का हाँथ है। बात दरअसल ये थी कि विधी एक अच्छे घर की और अच्छे संस्कारों वाली लड़की थी। वह खूबसूरत थी। कभी किसी लड़के को भाव नहीं देती थी। आज से दो तीन साल पहले वह किसी विराज सिंह नाम के लड़के से प्यार करती थी जो उसके साथ ही स्कूल में पढ़ता था। वो स्कूल और ये कालेज लगभग पास में ही थे इस लिए सूरज की नज़र इस पर बहुत पहले से ही थी। उसने बड़ी मुश्किल से किसी तरह इससे दोस्ती कर ली थी। उसके बाद ऐसे ही एक दिन इसने अपने जन्मदिन पर अपने सभी दोस्तों को फार्महाउस पर इन्वाइट किया था। विधी को भी उसने खासतौर पर इन्वाइट किया था। विधी जब इसके फार्महाउस पर उस शाम गई तो पार्टी में सब काफी एंज्वाय कर रहे थे। इस बीच सूरज ने विधी को अपनी दोस्ती का वास्ता देकर इसे कोल्ड ड्रिंक पिला दिया। उस कोल्ड ड्रिंक में हल्का ड्रग्स भी मिला हुआ था। विधी ने जब उस कोल्ड ड्रिंक को पिया तो उसे कुछ देर बाद चक्कर से आने लगे। सूरज अपनी चाल में कामयाब हो चुका था, उसने अपनी एक दोस्त जिसका नाम रिया सचदेवा था उससे कह कर विधी को कमरे में ले गई और उसे बेड पर लिटा दिया। विधी को कुछ होश नहीं था। इधर सूरज कमरे में आया और विधी के जिस्म से सारे कपड़े उतार कर और खुद भी पूरी तरह निर्वस्त्र होकर विधी के साथ गंदा काम किया। इस सबकी वीडियो सूरज का ही एक दोस्त अलोक वर्मा बना रहा था। ख़ैर जब विधी को होश आया तो वह अपने घर में अपने ही बेडरूम थी। उसे पिछली शाम का सब कुछ याद आया। उसे इस बात की हैरानी हुई कि वह अपने घर कैसे आई? तब उसकी माॅ ने बताया कि उसकी एक दोस्त जिसका नाम रिया था वह उसे छोंड़ कर गई थी। विधी की माॅ ने उसे इस बात के लिए डाॅटा भी था कि उसने शराब क्यों पी थी? विधी ने कहा वो शराब नहीं बस कोल्ड ड्रिंक ही था शायद किसी ने ग़लती से उसमें कुछशराब मिला दी होगी। ख़ैर ये बात तो चली गई। लेकिन माॅ के जाने के बाद जब विधी बेड से उठकर बाथरूम की तरफ जाने के लिए बेड से नीचे उतरी तो उसकी चीख़ निकलते निकलते रह गई। अपने पैरों पर उससे खड़े ही ना हुआ गया। उसे समझते देर न लगी कि उसके साथ क्या हुआ है। किन्तु अब समझने से भला क्या हो सकता था? वह तो लुट चुकी थी। बरबाद हो चुकी थी। वह इस बात को अपने माॅ बाप से बता भी नहीं सकती थी। अकेले में वह खूब रोती। इस बात कई दिन गुज़र गए। वह स्कूल नहीं गई थी कई दिन से। माॅ से उसने बता दिया था कि उसकी तबियत ठीक नहीं है। फिर एक दिन उसके मोबाइल पर एक अंजान नंबर से एम एम एस आया। जिसे देख कर उसके पैरों तले से ज़मीन निकल गई। उसे सारा संसार अंधकारमय दिखने लगा था। तभी उसी नंबर से काल भी आया। उसने जब उस काल को रिसीव किया तो सामने से सूरज की आवाज़ को सुन कर चौंक गई। वह उसे बड़ी बेशर्मी से कह रहा था कि कैसी लगी हम दोनो की फिल्म? विधी रोती गिड़गिड़ाती रही और पूछती रही कि उसने उसके साथ उसकी दोस्ती के साथ इतना बड़ा छल क्यों किया? आख़िर क्यों उसने उसे इस तरह बरबाद कर दिया? मगर वो तो शिकारी था। खूबसूरत लड़कियों का शिकारी। सूरज ने धमकी देते हुए कहा कि अगले दिन स्कूल आए और उसके साथ उसके फार्महाउस पर चले वरना वह ये एम एम एस उसके बाप के मोबाइल पर भेज देगा। विधी मरती क्या न करती वाली स्थित में आ चुकी थी। बस यहीं से उसकी बरबादी की दास्तां शुरू हो गई। वह हर बार सूरज के द्वारा ब्लैकमेल होती रही। विधी जिस विराज नाम के लड़के से प्यार करती थी उससे उसने संबंध तोड़ लिया था। ऐसे ही दिन महीने साल गुजर गए। विधी पढ़ने में होशियार थी। कालेज में हमेशा वह अपनी ग्रुप की लड़कियों से टाप करती थी। खुशी जिन्दल इस बात से उससे बेहद जलती थी। इस लिए उसने सूरज के साथ मिलकर पिछली रात इस गंभीर हादसे को अंजाम दिया था।"
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RE: non veg kahani एक नया संसार
थोड़ी ही देर में विजय सिंह हाँथ मुह धोकर आया और जैसे ही वह अंदर एक बड़े हाल से होते हुए एक कमरे में दाखिल हुआ तो बुरी तरह चौंका। कारण कमरे के अंदर प्रतिमा लकड़ी की एक बेन्च पर झुक कर टिफिन से खाना निकाल निकाल कर उसे अलग अलग करके रख रही थी। किन्तु झुकने की वजह से उसकी साड़ी का आँचल कंधे से खिसक कर ज़मीन पर गिरा हुआ था। उसने आँचल को आलपिन के सहारे ब्लाउज पर फसाया हुआ नहीं था। ऐसा उसने जानबूझ कर ही किया था। ताकि वह जब चाहे बड़ी आसानी से झुक कर अपना आँचल गिरा कर विजय को अपनी खरबूजे जैसी बड़ी बड़ी किन्तु ठोस चूचियाॅ दिखा सके। उसने जो ब्लाउज पहना था वह बड़े गले का था, पीठ पर भी काफी ज्यादा खुला हुआ था। अंदर ब्रा ना होने के कारण उसकी आधे से ज्यादा चूचियाॅ दिख रही थी। वह जानती थी कि विजय हाथ मुह धोकर आ चुका है और अब वह कमरे के दरवाजे के पास उसके द्वारा दिखाए जाने वाले हाहाकारी नज़ारे को देख एकदम से बुत बन गया है।
प्रतिमा बिलकुल भी ज़हिर नहीं कर रही थी कि वो ये सब जानबूझ कर रही है। बल्कि वह यही दर्शा रही थी कि उसे अपनी हालत का पता ही नहीं है। उसने एक बार भी सिर उठा कर दरवाजे पर खड़े विजय की तरफ नहीं देखा था। बल्कि वह उसी तरह झुकी हुई टिफिन से खाना निकाल कर अलग अलग रख रही थी।
विजय सिंह मुकम्मल मर्द था किन्तु उसमें शिष्टाचार और संस्कार कूट कूट कर भरे हुए थे। उसे अपने से बड़ों का आदर सम्मान करना ही आता था। अपनी पत्नी के अलावा वह किसी भी औरत पर ऐसी नज़र नहीं डालता था। खेतों पर काम करने वाली हर ऊम्र की औरतें भी थी मगर मजाल है जो विजय सिंह ने कभी उन पर गंदी नज़र डाली हो। ये तो फिर भी उसकी सगी भाभी थी। कहते हैं बड़ी भाभी माॅ समान होती है, उस पर गंदी दृष्टि डालना पाप है।
विजय सिंह को तुरंत ही होश आया। वह एकदम से हड़बड़ा गया और साथ ही उसके अंदर अपराध बोझ सा बैठता चला गया। उसका मन भारी हो गया। अपने ज़हन से इस दृष्य को तुरंत ही झटक दिया उसने। मन ही मन भगवान से हज़ारों बार तौबा की उसने। उसके बाद वह बेवजह ही खाॅसते हुए कमरे के अंदर दाखिल हुआ। उसका खाॅसने का तात्पर्य यही था कि उसकी भाभी उसके खाॅसने की आवाज़ से अपनी स्थिति को सम्हाल ले। मगर विजय की हालत उस वक्त ख़राब हो गई जब उसके खाॅसने का प्रतिमा पर कोई असर ही न हुआ। बल्कि वह तो अभी भी यही ज़ाहिर कर रही थी कि उसे अपनी हालत का पता ही नहीं है। उसने तो जब विजय को देखा तो बस यही कहा___"लो विजय मैने तुम्हारा स्वादिष्ट भोजन अलग अलग करके लगा दिया है। चलो शुरू हो जाओ, देख लो अभी गरमा गरम है।"
विजय को सिर झुका चुपचाप बेन्च के इस तरफ ही रखी कुर्सी पर बैठ गया और चुपचाप खाना खाने लगा।
"उफ्फ विजय यहाँ खेतों में इस गर्मी में भी कितनी मेहनत करते हो तुम।" प्रतिमा ने आह सी भरते हुए कहा___"पर शायद तुम्हारी इस सबकी आदत हो गई है। इस लिए तुम पर जैसे कुछ फर्क ही नहीं पड़ता। मेरा तो गर्मी के मारे बुरा हाल हुआ जा रहा है। ऐसा लगता है जैसे सारे कपड़े उतार कर फेंक दूॅ अभी।"
प्रतिमा की इस बात से विजय सिंह को ठसका लग गया। वह ज़ोर ज़ोर से खाॅसने लगा।
"अरे क्या हुआ आराम से खाओ विजय।" प्रतिमा मन ही मन मुस्कुराई थी।
उसे खाॅसता देख प्रतिमा तुरंत ही एक तरफ मटके में रखे पानी को ग्लास में भर कर ग्लास विजय के मुह से लगा दिया। विजय की नज़र एक बार फिर से प्रतिमा के खरबूजों पर पड़ गई। इस बार तो वह उसके बहुत ही पास थी। उसके खरबूजे विजय की आँखों से बस एक फुट ही दूर थे। इतने पास से वह उन्हें स्पष्ट देख रहा था। गोरे गोरे खरबूजों पर एक एक किन्तु छोटा सा तिल जो उन्हें और भी ज्यादा रसदार व हालत को खराब करने वाला बना रहा था। प्रतिमा इस सारी क्रिया में यही दर्शा रही थी कि उसे अभी भी अपनी हालत का कुछ पता नहीं है। और इस बार तो जैसे वह फिक्रवश ऐसा कर रही थी।
बड़ी मुश्किल से विजय के गले से पानी नीचे उतरा। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? आज पहली बार वह ऐसी सेचुएशन के बीच फॅसा था। विजय जब पानी पी चुका तो प्रतिमा ने भी उसके मुख से ग्लास हटा लिया, हलाॅकि ये उसकी मजबूरी ही थी। क्योकि अगर वो ऐसा न करती तो विजय को शक भी हो सकता था कि वह इस तरह उसके इतने पास झुकी क्यों है?
किन्तु विजय सिंह पर रहम तो उसने अभी भी नहीं किया। वह अभी भी अपना आँचल गिराए हुए ही थी। अंदाज़ वहीं था जैसे उसे इसका पता ही न हो। वह जानती थी कि विजय उसे इस तरह देख कर बहुत ज्यादा असहज महसूस कर रहा है।
उसके मन में आया कि कहीं विजय ये न सोच बैठे कि मुझे अपनी हालत का इतने देर से पता क्यों नहीं हो रहा? या फिर ऐसा मैं जानबूझ कर उसे दिखा रही हूँ। अगर विजय को ये शक हो गया या उसने ऐसा महसूस कर लिया तो काम पहले ही ख़राब हो जाएगा। जबकि मुझे ये सब बहुत आगे तक करना है। शुरुआत में इतना ज्यादा दिखावा ठीक नहीं होगा। ये सोच कर ही वह सम्हल गई।
"हाय दैया।" उसने चौंकने और सकपकाने की बड़ी शानदार ऐक्टिंग की___"मेरा आँचल कैसे गिर गया।"
इतना कह कर उसने जल्दी से अपने आँचल को पकड़ कर उसे अपने खरबूजों ढॅकते हुए कंधे पर डाल लिया। फिर जैसे उसने माहौल को बदलने की गरज से विजय से कहा___"कल से मैं तुम्हारे लिए दूध भी ले आया करूॅगी विजय।"
"ज जी,,,,।" विजय बुरी तरह चौंका था___"दू दूध...मगर किस लिए भाभी?"
"तुम भी हद करते हो विजय।" प्रतिमा ने कहा___"खेतों में रात दिन इतनी मेहनत करते हो और रूका सूखा खाओगे तो कमज़ोर नहीं पड़ जाओगे? इस लिए मेहनत के हिसाब से उस तरह का आहार भी लेना चाहिए।"
"भाभी, इसकी कोई ज़रूरत नहीं है।" विजय ने झिझकते हुए कहा___"और वैसे भी मुझे दू दूध पसंद नहीं है।"
"क्याऽऽ????" प्रतिमा ने चौंकने का नाटक किया___"हे भगवान! कैसे आदमी हो तुम विजय? तुम्हें दूध नहीं पसंद?? अरे दूध के लिए सारी दुनियाॅ पागल है।"
"क्या मतलब???" विजय गड़बड़ा गया, बोला___"भला इसके लिए सारी दुनियाॅ कैसे पागल हो सकती है???"
"तुम भी ना बुद्धू के बुद्धू ही रहोगे।" प्रतिमा ने बुरा सा मुह बनाया___"ये बताओ कि आज कल दूध के बिना किसी का गुज़ारा है क्या? नहीं ना? सुबह उठते ही सबसे पहले दूध की ही बनी चाय चाहिए होती है। और इतना ही नहीं बल्कि एक दिन में कम से कम चार बार आदमी चाय पीता है। बाॅकी बहुत सी चीज़ें जो दूध से ही बनती हैं उनका तो हिसाब ही अलग है। अब जब यही दूध किसी को न मिलो तो सोचो दुनिया पागल हो जाएगी कि नहीं?"
"हाँ ये तो है।" विजय ने कहा।
"इसी लिए कहती हूँ।" प्रतिमा ने कहा__"कल से तुम्हारे लिए दूध लाया करूॅगी और फिर मैं खुद ही तुम्हें दूध पिलाऊॅगी। देखूॅगी कैसे नहीं पियोगे तुम?"
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