07-03-2020, 01:17 PM,
|
|
desiaks
Administrator
|
Posts: 23,268
Threads: 1,141
Joined: Aug 2015
|
|
अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
मोल की एक औरत
भाग-1
सुबह का समय था. पूरब दिशा से सूरज की उगाई होती दिखाई पड रही थी. पीले रंग का सूरज सोने का गोला प्रतीत होता था और वैसे ही उसकी पीतवर्ण रौशनी भारतबर्ष को स्वर्णिम किये जा रही थी. मानो आज जमकर सोना बरसेगा और सारा भारत मालामाल हो जायेगा. अब कोई इस देश में गरीब नही रहेगा.
लेकिन ऐसा नही था. लोगों के दुःख, उनकी गरीबी, उनका भूखा नंगापन वैसे का वैसा ही था. जबकि ये सोने का गोला सदियों से इस भारतभूमि को स्वर्णिम किये आ रहा था. लगता था ये सोने का गोला एक छलावा मात्र था.
राजगढ़ी गाँव छोटा सा गाँव था. गाँव का नाम नाम वेशक राजगढ़ी था लेकिन यहाँ कभी कोई राजा नही रहा था और न ही किसी राजा ने आजतक इस गाँव की धरती पर अपना कदम रखा था. हाँगाँव में एक ठाकुर साहब जरुर रहते थे. जिनके दादा परदादा अमीर हुआ करते थे. अमीर तो ये ठाकुर साहब आज भी थे लेकिन पहले से ठाट बाट नही थे. पहले नौकर रहता था लेकिन अब सारा काम खुद ही होता था.
ठाकुर साहब का नाम तो कुछ और था लेकिन इन्हें लोग राणाजी कहकर पुकारते थे. इस वक्त गाँव में सबसे अच्छी हालत इन्ही की थी. जब ये नवयुवक थे तब आपसी रंजिस के चलते इन्होने किसी की हत्या कर दी थी. उस हत्या के जुर्म में इन्हें सजा हुई और जब जेल से बाहर निकले तो उम्र आधी गुजर चुकी थी.
घर के इकलौते होने के कारण इनकी शादी होनी जरूरी थी. नही तो वंश मिट ही जाना था. लेकिन इनकी जाति का कोई भी आदमी इनके घर अपनी लडकी देने को तैयार न था. उसमे एक तो इनकी उम्र का कारण था दूसरा वो कुछ दिन पहले ही जेल से निकल कर आये थे.
राणाजी के एक खास दोस्त भी थे. जिनका नाम था गुल्लन. जो उनके जेल जाने से लेकर अब तक साथ रहे थे. राणाजी के पिता तो रहे नही थे. घर में बस एक माँ थीं. सावित्रीदेवी. अब माँ को अपने बेटे की शादी की फ़िक्र थी.
बेटे के जन्म से ले आजतक उसके सिर पर सहरा देखने का अरमान दिल में पाले हुई थी. सारे रिश्तेदारों से अनुनयपूर्वक कहा कि उनके बेटे की शादी किसी भी तरह करा दें लेकिन शादी का दूर दूर तक कोई सुराग नही था. और फिर सावित्रीदेवी ने गुल्लन से भी ये बात कह दी.
गुल्लन रसियों के रसिये थे और जुगाडुओं के जुगाड़े. झटपट बोले, “माताजी आपने मुझसे कह दिया तो समझो राणाजी की शादी हो गयी लेकिन शादी में हर बात मेरी मानी जाएगी और मेरे ही तरीके से ये शादी होगी."
सावित्रीदेवी का चेहरा ख़ुशी से खिल उठा. बोली, "बेटा तुम राणाजी के लिए भाई जैसे हो और मेरे लिए बेटे जैसे. तुम जैसे चाहो वैसे करो. मैं कुछ भी बोलने वाली नहीं लेकिन तुमने कोई लडकी देख रखी है क्या?"
गुल्लन आसमान की तरफ देख बोले, “माता जी मेरी क्या मजाल. ये सब तो वो ऊपर वाला तय करता है. बस आज से आप राणाजी की शादी की फिकर छोड़ दो और अपने भजन पूजा में लग जाओ. आज से मैं हूँ ये सब चिंता करने के लिए." सावित्रीदेवी ख़ुशी से गुल्लन को आशीषे देती रहीं. गुल्लन वहां से उठ सीधे राणाजी के कमरे में जा पहुंचे.
राणाजी पलंग पर लेटे हुए किसी गहरी चिंता में खोये हुए थे. गुल्लन के आने की खबर तक न लगी. गुल्लन ने राणा जी को हिलाते हुए कहा, “अरे कहाँ खो गये राणाजी? आज तो दोस्त की भी कोई खबर न ली.”
राणाजी हडबडा कर उठ बैठे और गुल्लन को देख प्यार से बोले, "आओ गुल्लन मियां. आओ बैठो. अरे तुम्हारा ही तो इन्तजार हो रहा था. और बताओ क्या चल रहा है आज कल?"
गुल्लन उनकी बात को एक तरफ करते हुए बोले, "चलना वलना छोडिये राणाजी और माता जी और इस घर के बारे में सोचिये. मुझे बताइए आप शादी को कब तैयार हैं? उसी हिसाब से मैं अपना हिसाब किताब बनाऊँ.”
|
|
07-03-2020, 01:18 PM,
|
|
desiaks
Administrator
|
Posts: 23,268
Threads: 1,141
Joined: Aug 2015
|
|
RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
राणाजी ने मुस्कुरा कर गुल्लन को देखा और बोले, "क्या गुल्लन मियां आज सुबह सुबह लगा आये क्या जो इतनी बहकी बहकी बातें किये जा रहे हो? भला मुझसे कौन अपनी लडकी की शादी कर अपना नाम खराब करेगा?"
गुल्लन अपने दुखी दोस्त का हाथ अपने हाथों में ले बोले, “तुम हाँ तो कर दो मेरे यार. तुम्हारे आगे दस लडकियाँ लाकर खड़ा कर दूँ. बस तुम्हारी मंजूरी की जरूरत है. माँ जी से तो बात हो गयी. अगर तुम कह दो तो आज ही सारा मामला फिट कर दूँ.”
राणाजी ने दुःख भरी जोरदार हंसी हँस कर कहा, “क्यों मजाक बना रहे हो गुल्लन मियां? तुम दोस्त हो और काम दुश्मनों वाले करते हो."
गुल्लन थोडा खींझे लेकिन उन्हें अपने यार की नाउम्मीदी का भी खयाल था. सेकड़ों लोगों ने शादी की मना कर कर के राणाजी जी को इस हाल तक पहुंचा दिया था. गुल्लन फिर से बड़े प्यार से बोले, "राणाजी आपकी कसम खाकर कहता हूँ. अगर आप कहो तो दो दिन में आपकी शादी तय करा कर दुल्हन घर में ला दूं. बस एक बार अपनी रजामंदी दे दो. उसके बाद सारा काम मैं देख लूँगा."
गुल्लन की कसम राणाजी के लिए बहुत बड़ी थी. उन्हें पता था गुल्लन कभी भी उनकी झूठी कसम नही खायेगा. बोले, "गुल्लन अगर तुम सच कह रहे हो तो मैं जिन्दगी भर तुम्हारा एहसान न भूलूंगा. मैं अपने लिए नही बल्कि इस खानदान और अपनी माँ के लिए ये शादी करना चाहता हूँ. अगर ऐसी कोई लडकी है जो मुझसे शादी कर सकती है तो तुम मेरी तरफ से हां समझो. मैं सब तुम पर छोड़ता हूँ."
गुल्लन की आँखें खुशी से चमक उठीं. बोले, “यार तुम ने हाँ कह दी अब तुम्हारा काम खत्म. बाकी मैं सब देख लँगा. लेकिन इस शादी में दहेज नही मिल पायेगा. और हो सकता है कि तुम्हें अपनी जेब से भी काफी खर्चा करना पड़े. तुम्हें इस बात में कोई आपत्ति तो नही है न?"
राणाजी को अपनी शादी करनी थी. उन्हें पैसे को लेकर तो कोई गम था ही नही. बोले, “अरे गुल्लन दोस्त. तुम्हें कुछ भी पूंछने की जरूरत नही. जो भी जरूरत पड़े बता देना. रुपया पैसा की कोई परेशानी नही. जितना भी खर्चा हो बता देना. लेकिन ये लोग हैं कौन जो मुझसे अपनी लडकी व्याहने को राजी हो गये?"
गुल्लन रसिक तो थे ही. सौ तरह के काम हरवक्त उनकी जुगाड़ में रहते थे. उन्होंने राणा जी को बताया, “देखो राणाजी, मैं आपको पहले ही सब बता देना चाहता हूँ. जिस लडकी से आपकी शादी होगी वो मुश्किल से सत्रह अठारह साल की होगी लेकिन माँ बाप बहुत गरीब हैं. उनकी जाति भी वो नही है जो आपकी है. हमें उनको कुछ रुपया भी देना पड़ेगा. बदले में वो अपनी लडकी के साथ आपकी शादी कर देंगे."
राणाजी की उम्र चालीस के पड़ाव को पार कर रही थी और उनकी होने वाली दुल्हन सत्रह अठारह साल की. दूसरा उसकी जाति का कोई अता पता नही. पैसे भी उलटे देने पड़ रहे थे लेकिन राणाजी जिस हालात से गुजर रहे थे उसमें ये भी कम नहीं था.
कोई और दिन होता तो राणाजी अपने यार गुल्लन को फटकार देते लेकिन आज बड़े प्यार से बोले, “यार गुल्लन अगर ये बात गाँव में फैल गयी तो बड़ी बदनामी होगी. मुंह भी दिखाने के काबिल न रहेंगे. वैसे ही इतनी कम इज्जत रह गयी है और इसके बाद तो.."
गुल्लन ने राणाजी की बात को लपकते हुए कहा, “गाँव को बतायेगा कौन? मैं तो मरते मर जाऊंगा लेकिन किसी से कुछ नही कहूँगा. गाँव में तो हम लोग कुछ भी बता सकते हैं. कह देंगे अनाथ लडकी है और अपनी ही जाति की है. बस फिर कोई कुछ भी कहता रहे उससे हमें क्या मतलब? सौ मुंह तो सौ तरह की बातें. ऐसे सुनकर चलोगे तो जी नही पाओगे."
राणाजी ने हां में सर हिलाया और बोले, "लेकिन माताजी? उनको क्या बतायेंगे? वो तो सबसे पहले उस लडकी के खानदान के बारे में ही पूंछेगी. तब क्या बतायेंगे? उनसे तो झूट भी नहीं बोल सकते."
|
|
07-03-2020, 01:18 PM,
|
|
desiaks
Administrator
|
Posts: 23,268
Threads: 1,141
Joined: Aug 2015
|
|
RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
गुल्लन सावित्री देवी से पहले ही सब बातें कर चुके थे. बोले, "उसकी चिंता तुम मत करो राणाजी. मैं जब माता जी से बात कर रहा था तो मैने उनसे ये वादा लिया था कि शादी मेरे तरीके से होगी और हर बात मेरी ही चलेगी. तो अब तुम माताजी की चिंता भूल जाओ."
राणाजी अपने यार की चतुराई के मुरीद हो बोले, “यार गुल्लन मियां मैं जितना समझता था तुम उससे बहुत आगे हो. तुम सच में मेरे पक्के दोस्त हो. अब तुम जो भी करो अपने मन से करो मुझे तुम पर पूरा भरोसा है लेकिन हमें ये सब करना कब है?"
गुल्लन ने थोडा सोचा फिर बोले, "कल सब तैयारी कर लो. परसों चलकर दुल्हन ले आते हैं लेकिन किसी को कानों कान खबर न होने पाए."
राणाजी हैरत में पड़ बोले, "इतनी जल्दी? अरे यार कोई क्या सोचेगा?"
गुल्लन अपने यार को समझाते हुए बोले, “राणाजी ये काम जितनी जल्दी हो सके उतना बढिया है. देर सबेर से नुकसान ही होगा.”
राणाजी ने हाँ में सर हिला दिया लेकिन माता जी की चिंता भी उन्हें थी. बोले, "तो फिर माता जी को भी तुम ही ये सब बताना."
गुल्लन मुस्कुराते हुए बोले, "ठीक है यार तुम वेफिक्र हो रहो."
दूसरे दिन गुल्लन ने सावित्रीदेवी से सारी बात कह डाली लेकिन उन्हें लडकी के बारे में कुछ न बताया. सावित्रीदेवी इतनी जल्दी दुल्हन आने पर सकुचा रहीं थी
गुल्लन सावित्री देवी से पहले ही सब बातें कर चुके थे. बोले, "उसकी चिंता तुम मत करो राणाजी. मैं जब माता जी से बात कर रहा था तो मैने उनसे ये वादा लिया था कि शादी मेरे तरीके से होगी और हर बात मेरी ही चलेगी. तो अब तुम माताजी की चिंता भूल जाओ."
राणाजी अपने यार की चतुराई के मुरीद हो बोले, “यार गुल्लन मियां मैं जितना समझता था तुम उससे बहुत आगे हो. तुम सच में मेरे पक्के दोस्त हो. अब तुम जो भी करो अपने मन से करो मुझे तुम पर पूरा भरोसा है लेकिन हमें ये सब करना कब है?"
|
|
07-03-2020, 01:18 PM,
|
|
desiaks
Administrator
|
Posts: 23,268
Threads: 1,141
Joined: Aug 2015
|
|
RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
गुल्लन ने थोडा सोचा फिर बोले, "कल सब तैयारी कर लो. परसों चलकर दुल्हन ले आते हैं लेकिन किसी को कानों कान खबर न होने पाए."
राणाजी हैरत में पड़ बोले, "इतनी जल्दी? अरे यार कोई क्या सोचेगा?"
गुल्लन अपने यार को समझाते हुए बोले, “राणाजी ये काम जितनी जल्दी हो सके उतना बढिया है. देर सबेर से नुकसान ही होगा.”
राणाजी ने हाँ में सर हिला दिया लेकिन माता जी की चिंता भी उन्हें थी. बोले, "तो फिर माता जी को भी तुम ही ये सब बताना."
गुल्लन मुस्कुराते हुए बोले, "ठीक है यार तुम वेफिक्र हो रहो."
दूसरे दिन गुल्लन ने सावित्रीदेवी से सारी बात कह डाली लेकिन उन्हें लडकी के बारे में कुछ न बताया. सावित्रीदेवी इतनी जल्दी दुल्हन आने पर सकुचा रहीं थी लेकिन गुल्लन ने उन्हें दिए गये वादे का ध्यान दिला दिया.
सावित्रीदेवी भी बेटे की शादी चाहती थीं. फिर वो चाहे जिस भी प्रकार हो. गुल्लन ने राणाजी को पन्द्रह बीस हजार रुपयों का प्रबंध कर लेने के लिए कह दिया. जो राणाजी ने कर भी लिया था.
तीसरे दिन सुबह सुबह गुल्लन अपने बिलायती से देखने वाले कपड़ों को पहन राणाजी के घर आ पहुंचे.
राणाजी भी तैयारियां ही कर रहे थे. गुल्लन को देखते ही खुश हो गये. बोले, “अरे गुल्लन मियां. तुम्हें देखकर तो लग रहा है कि आज मेरी नही तुम्हारी दुल्हन आने वाली है."
गुल्लन थोडा मुस्कुराये लेकिन कुछ कहते उससे पहले ही सावित्री देवी इन लोगों के पास आ पहुंची. बोलीं, "बेटा तुम लोग कब तक लौट आओगे?"
गुल्लन ने अपने दिमाग पर थोडा जोर डाला और बोले, "माता जी कल सुबह या शाम तक आपकी बहू आपके पैर छू रही होगी. बस घर में तैयारियां करके रखना.”
गुल्लन की बात पर सब लोग हंस पड़े. सावित्री देवी अपने साथ गहनों का पिटारा लेकर आयीं थीं. उस पिटारे में इनके पुश्तैनी गहने थे. गहने के पिटारे को गुल्लन की तरफ बढ़ाती हुई बोलीं, "लो बेटा. ये सम्हाल कर रख लो. बहू को ये सारे गहने पहना कर ही गाँव में लाना. ये तुम्हारी जिम्मेदारी है."
गुल्लन ने साथ में ले जाए जा रहे बैग में गहनों का पिटारा रख लिया. जिसमें सावित्री देवी ने बहू के लिए कई साड़ियाँ पहले से ही रख दी थीं. उसके बाद दोनों दोस्त घर से चल दिए. गाँव से सीधा रेल्वे स्टेशन. वहां से गुल्लन ने दो टिकिट लीं और ट्रेन में जा बैठे. ट्रे
न में बैठे राणाजी ने गुल्लन से पूंछा, "हम लोग जा कहाँ रहे हैं ये बात तो मुझे पूंछने का अधिकार है न?” ___
|
|
07-03-2020, 01:18 PM,
|
|
desiaks
Administrator
|
Posts: 23,268
Threads: 1,141
Joined: Aug 2015
|
|
RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
राणाजी झोपड़ी में बैठे इधर उधर देखते रहे. तभी एक लडकी पानी का बड़ा सा गिलास ले उनके सामने आ पहुंची. राणाजी ने हडबडा कर उस लडकी को देखा. लडकी की उम्र सत्रह अठारह साल के आसपास थी. पतला सा शरीर, रंग सांवला लेकिन चेहरा दिखने में बहुत आकर्षक लग रहा था.
मैले फटे कपड़े पहने होने के बावजूद भी लडकी सुंदर लग रही थी. जो गिलास उसके हाथ में लग रहा था वो पुराना और पिचका हुआ सा था लेकिन देखकर यह भी लग रहा था कि उसे बहुत अच्छे तरीके से मांजा(साफ़ किया) गया है.
राणाजी ने उस लडकी के हाथ से पानी का गिलास ले लिया. लडकी गिलास दे अंदर चली गयी. राणाजी को गिलास की पिचकाहट देख उन लोगों की गरीबी का अंदाज़ा हो गया था लेकिन साफ सफाई के भी कायल हो गये.
राणाजी पानी पी ही रहे थे कि गुल्लन उनके पास आये और बोले, “राणाजी. दोस्त वो रुपया लाये जो मैने तुमसे कहा था.
राणाजी जल्दी से बोल पड़े, "हाँ लाया तो हूँ,
आज बहुत दिनों बाद रुपयों के दर्शन हुए थे. ये रूपये इन लोगों के लिए भगवान के वरदान से कम न थे. बदलू की लडकी रुपयों को देख कर तो खुश थी लेकिन अपनी शादी की बात सुन उसे बहुत दुःख हो रहा था. वो तो अपने माँ बाप को छोड़ जाना ही नही चाहती थी.
बदलू ने बीबी से चाय बनाने के लिए बोला. चाय बनाने की बात सुन बदलू की बीबी आँखें तरेर कर बोली, “शक्कर और दूध है घर में जो चाय बना दूं? जरा देख कर तो बात करो. लडकियों की शादी कितनी बार की लेकिन किसी को अभी तक चाय पिलाई जो आज इन लोगों को पिलाओगे? फटाफट शादी का काम निपटा इन्हें विदा कर दो? बच्चो को हफ्तों चाय नही मिल पाती और तुम हो कि..?"
बदलू ने हाँ में सर हिला दिया. ये इनकी अथाह गरीबी थी जिसकी वजह से ये लोग किसी भी मेहमान को चाय का घुट तक नही दे पाते थे. धीरे धीरे ये इनकी आदत बन गयी. गुल्लन और राणाजी बाहर बदलू की प्रतीक्षा में बैठे थे.
बदलू अंदर से निकल इन दोनों के पास आ बैठे और गुल्लन से भोजपुरी में कहा, "अभी पंडित को बुला लेते हैं तो शादी का काम आज ही निपट जाएगा." गुल्लन ने मुस्कुरा कर हां में सर हिला दिया. राणाजी चुपचाप बैठे इन लोगों की बात सुन रहे थे. बदलू ने एक बच्चा भेज पंडित को बुलावा भेज दिया.
|
|
07-03-2020, 01:18 PM,
|
|
desiaks
Administrator
|
Posts: 23,268
Threads: 1,141
Joined: Aug 2015
|
|
RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
उसने सोच लिया कि दुल्हे से ज्यादा से ज्यादा रुपया एंठेगा. राणाजी के बगल में जैसे ही वो लडकी बैठी तो राणाजी की नजर बरबस उस पर पड गयी. ये लडकी तो वही थी जो थोड़ी देर पहले गंदे से कपड़ों में उन्हें पानी का गिलास दे गयी थी लेकिन इस वक्त वो किसी स्वप्नसुंदरी से कम प्रतीत नही होती थी.
राणाजी की नजर उस लडकी के मुख से हटने का नाम नही लेती थे. उन्हें नही पता था कि इस कोयले की खान में ऐसा हीरा भी हो सकता है. उन्हें यकीन था कि जब उनकी माताजी इस लडकी को देखेंगी तो देखती ही रह जाएँगी.
सुंदर दुल्हन पा किसे ख़ुशी नही होती? राणाजी भी वैसे ही खुश थे. थोड़ी ही देर में शादी सम्पन्न हो गयी. पंडित ने राणाजी से पांच सौ रूपये मांगे. राणाजी ने विना हीलहुज्जत के पांच सौ रूपये उस पंडित को दे दिए. पंडित की बांछे खिल गयी. आज से पहले कभी उसे मुंह मांगी दक्षिणा न मिली थी और आज भी राणाजी उसे तीन सौ भी देते तो पंडित चुपचाप रख लेता.
दरअसल ये वो पंडित नही था जो रीतिरिवाज से शादी करवाते हैं. ये तो सिर्फ पोंगा पंडित था जो लोगों के दिमाग में सिर्फ शादी का भूत बिठाने का काम करता था. शादी सम्पन होते ही लडकी माला को उसकी माँ अंदर झोपडी में ले चली गयी.
शाम होने को आ रही थी. बदलू ने गुल्लन से धीरे से पूंछा, “आज जावोगे कि सुबह को? आज जावो तो थोडा जल्दी निकलो और कल जावो तो आराम से सोवो?"
गुल्लन ने अपने यार राणाजी की तरफ देख इशारा किया कि चलें या आज ठहरोगे.
राणाजी को दुल्हन मिल गयी थी. अब उनका यहाँ और रुकने का मन नही था. बोले, “चलो आज ही चलते हैं."
गुल्लन ने बदलू से कहा, "ठीक है चचा तुम लडकी को तैयार करो, हम लोग आज ही चले जायेंगे."
बदलू ख़ुशी ख़ुशी अंदर चले गये. गुल्लन अपने जिगरी यार राणाजी के पास सरक कर बैठ गये और मुस्कुरा कर बोले, “कहो राणाजी कैसी लगी अपनी दुल्हन? बुरी लगी हो तो अभी बता देना?"
राणाजी ने एकदम से गुल्लन की तरफ देखा और मुस्कुरा कर बोले, “यार कमी निकालने की कोई गंजायस ही नही है और फिर तुम कोई काम करवाओ वो गलत हो ऐसा तो हो ही नही सकता. ये तो मुझपर तुम्हारा एहसान हो गया. कसम से गुल्लन मियां.”
|
|
|