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RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
माला द्वार पर झाडू लगा रही थी. तभी एक लड़का उसके पास आ पहुंचा. माला ने नजर उठाकर देखा तो दिल धडक उठा. ये तो वही लड़का था जिसे माला ने छत पर सुबह के समय एकटक देखा था. माला का मन ख़ुशी से झूम उठा. मानो वो कोई छोटी बच्ची हो और वो लड़का उसके साथ खेलने वाला उसका साथी. नादान लडकी भूल गयी कि वो राणाजी की पत्नी है. उस लडके को देख मन में प्यार के जाम टकराने लगे. माला उसकी हिम्मत की भी दाद दे रही थी जो उसके लिए दिन दहाड़े घर तक आ पहुंचा. और वो सामने खड़ा लड़का मानिक, उसे तो पता तक नही था कि वो राणाजी के घर जायेगा तो उस स्त्री से उसकी भेंट हो जाएगी जो एक नजर में ही उसका दिल लूट चुकी है. जिसका उसे न तो नाम मालूम है और न ही उसके बारे में ही कुछ जानता है.
पागल मानिक भूल गया कि वो उसकी हमउम्न लडकी किसी की अर्धांगिनी है. उसके पेट में किसी का बच्चा पल रहा है. दोनों बाबलों की तरह विना कुछ बोले एक दूसरे को देखे जा रहे थे लेकिन मानिक को माला की नजर थोड़ी असहनीय लगी. वो हडबडा कर बोला, “वों.. मैं...राणाजी चाचा से मिलने आया हूँ."
माला का ध्यान उचट गया. मानिक की बात सुन उसके मन ने किया कि को अपना सर पीट ले. वो तो सोच रही थी कि मानिक उसके लिए आया है और वो खुद अपने मुंह से बोल रहा है कि वो राणाजी से मिलने आया है. किन्तु फिर माला ने सोचा कि ये भी तो हो सकता है कि वो शर्म से झूट बोल रहा हो. बोली, “वो तो घर पर नहीं है. मुझे बता दो कोई काम हो तो?"
मानिक थोडा शरमाकर बोला, "लेकिन आपको बताने की बात नही है इसलिए उनसे ही बात करनी थी." __
माला उस लडके से बात करना चाहती थी. जल्दी से बोली, “तो तुम ऐसा करो थोड़ी देर यहीं बैठ जाओ. वो आये तो बात कर लेना.” इतना कह माला ने द्वार पर पड़ी कुर्सी आगे की तरफ बढ़ा दी.
मानिक वैसे जल्दी के काम से आया था लेकिन माला का मनमोहक रूप उसे रोक रहा था. वो न चाहते हुए भी कुर्सी पर बैठ गया.
माला बगल में खड़े पेड़ से टिक कर खड़ी हो गयी और मानिक को देखते हुए बोली, “तुम्हारा नाम क्या है? तुम तो वही हो जो सामने की छत पर सोते हो?"
मानिक ने झेंपते हुए कहा, "मेरा नाम मानिक है. मैं उसी छत वाले घर में रहता हूँ.” इतना कह मानिक माला की तरफ देखने लगा. मानो वो माला का नाम पूछना चाहता हो.
माला वेशक नादान लडकी थी लेकिन इस वक्त वो इश्क से भरे मन की चाशनी में लिपटी जलेबी हुई जा रही थी बोली, “तुम्हें मेरा नाम पता है? माला ने मानिक के मुंह की बात छीन ली थी. बोला, "नही. मैंने तो आपको इस घर में छत पर पहली बार देखा था."
माला छत पर देखने के नाम से थोडा झेंपी फिर बोली, "मेरा नाम माला है. ये घर वाले हैं न जिन्हें तुम चाचा कह रहे हो. ये मेरे पति हैं."
मानिक को ये बात सुन बड़ा अचरज हुआ. उसने राणाजी की शादी की खबर तो सुनी थी लेकिन इतनी सुंदर और कम उम्र की लडकी उनकी दुल्हन होगी ये बात उसको पहले से पता न थी. उसे माला को देख लगता ही नही था कि माला राणाजी की बीबी हो भी सकती है. दिमाग में सवाल तो बहुत थे लेकिन पहली मुलाकात और मन का ववंडर ये सब पूंछने की इजाजत नहीं देता था. माला सामने कुर्सी पर बैठे शर्मीले मानिक से मन भर कर बात करना चाहती थी. बोली, “मानिक तुम अभी क्या करते हो?”
मानिक ने माला को नजर भर देखा और बोला, “मैं अभी पढता हूँ."
माला हैरत से बोली, "अभी तक पढ़ते हो? भला इतनी उम्र तक भी कोई पढ़ता है? क्या शादी नही हुई तुम्हारी?"
मानिक को माला की बात पर हंसी आ गयी. बोला, “अभी मेरी उम्र ही क्या है? ये तो पढाई की उम्र ही होती है और शादी तो अभी एकाध दो साल नहीं होगी. जब में उन्नीस बीस साल का हो जाऊंगा तब शादी होगी."
माला ने बड़ी हैरत से मानिक को देखा. वो बेचारी क्या जानती कि पढाई क्या होती है. वो तो स्कूल का मुंह भी कभी नहीं देख पायी थी. पढाई के मायने क्या होते हैं या पढाई की जरूरत क्या है इसका मतलब तो उससे कोसों दूर था. और स्कूल तो उसके आसपास के गाँव तक नही था. लडकियों की तो बात दूर थी उसके गाँव बस्ती में तो लडके भी स्कूल नही जाते थे. जितना बड़ा मानिक था उससे कम उम्र में तो लोग फक्ट्रियों और मीलों में जा मजदूरी का काम करने लगते हैं. पढने की तो कोई सोचता ही नही था.उसकी बस्ती में निन्यानवे फीसदी लोग ऐसे थे जिनपर खुद का नाम लिखना ही नही आता था.
माला मानिक से बात करने के लिए बात को और आगे बढ़ाना चाहती थी. मन करता था उससे पूंछ ले कि वो उसे कैसी लगती है लेकिन मन ऐसे पूंछने में शर्माता भी था. बोली, "तुम कौन सा खेल खेलते हो?"
मानिक को माला की बात बड़ी अजीब लगी. भला शादी के बाद लडकी को खेल की बात से क्या मतलब लेकिन वो उसके मन को भा गयी थी. उसकी हर बात का जबाब देना उसे अच्छा लग रहा था. बोला, "मैं तो क्रिकेट बगैरह खेलता हूँ. क्यों तुम भी खेलती हो क्या?"
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RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
माला की समझ में न आया कि ये क्रिकेट क्या होता है. वो तो अपनी बस्ती के पास बने तालाब में मछली ढूढने का खेल खेलती थी. गोटियाँ फेंकने का खेल खेलती थी. उसे क्या पता ये क्रिकेट क्या बला है? बोली, “तुम वो नही खेलते जो गोटियों से खेला जाता है. पिचगोटी कहते हैं न उसे? ___मैं तो बचपन में उसी को खेलती थी और बड़े होने तक खेला लेकिन यहाँ तो कोई खेलने वाला है ही नही जिसके साथ में खेलूं?"
माला के खेलने की बात सुन मानिक की हंसी छूट गयी. वो खिलखिला कर हँसने लगा. माला उसे देखती ही रह गयी.
मानिक की हंसी रुकी तो बोला, “अरे अब खेलने की उम्र है आपकी? भला शादी के बाद कोई औरत खेलती भी है क्या? मेरी माँ तो आज तक कभी कोई खेल नही खेली."
माला को मानिक की बात थोड़ी अजीब सी लगी लेकिन वो सच कह रहा था. उसकी माँ ने भी राणाजी के साथ विदा करते वक्त कहा था कि वहां पर जाकर काम किया करना. कभी भी खेलने ये कूदने में अपना मन न लगाना. और वही बात आज मानिक कह रहा था.
मानिक ने माला को चुप हो सोचते हुए देख तो बोल पड़ा, "आपने पढाई की है क्या?"
माला का ध्यान मानिक की बातों से उचट गया. बोली, "नही. मेरी बस्ती और गाँव के आसपास भी स्कूल नही है लेकिन मुझे किताबें रखना बहुत अच्छा लगता है. क्या तुम्हारे पास बहुत सी किताबें है?"
मानिक से यह बात कहते हुए माला का चेहरे उसके जबाब को सुनने के लिए बेताब लग रहा था. शायद ये उसका किताबों के प्रति प्रेम था. मानिक बोला, "हाँ मेरे पास बहुत किताबें हैं. क्या तुम्हे चाहिए वो किताबें?"
माला ने थोडा सोचा फिर बोली, “अगर फालतू हो तो दे देना."
मानिक सोचते हुए बोला, "लेकिन तुम तो अभी स्कूल गयीं ही नहीं फिर किताबें कैसे पढ़ोगी?"
माला चुटकी बजाते हुए बोली, "किताब में फोटो होता है न. उसे देख देख कर सारी बात समझ जाती हूँ. यहाँ भी कई किताबें रखी थीं जिनको मैंने फोटो देख देख कर ही पढ़ डाला."
मानिक को माला की बात पर हंसी आई और पढने की इस अजीब लत पर हैरत भी हुई. लेकिन सबसे बड़ी हैरत इस बात पर थी कि उसकी राणाजी से शादी कैसे हो गयी? जबकि वो उनकी बेटी के बराबर सी लगती थी.
मानिक ने माला की और देखते हुए पूंछा, "क्या मैं आपसे एक बात पूंछ लूँ. बुरा तो नहीं लगेगा आपको?"
माला मुस्कुराती हुई बोली, “अरे नही नही. मैं किसी की भी बात का बुरा नही मानती तुम पूंछ लो.”
मानिक ने सिटपिटाते हुए पूंछा, “ये राणाजी चाचा से आपकी शादी कैसे हो गयी? आप तो इनसे उम्र में बहुत छोटी हो. क्या आपके माँ बाप ने इन्हें देखकर शादी के लिए मना नही किया?"
माला तिरिस्कार जैसी हल्की हंसी से हँस बोली, “अब क्या बताउं तुम्हें. बहुत लम्बी कहानी है. सुनते सुनते बहुत देर हो जाएगी तुमको.”
मानिक उसकी कहानी जानना चाहता था. वो माला के बारे में हर बात जानना चाहता था. बोला, “आप तो कहती थी मुझे कुछ भी बुरा नही लगता. फिर अब क्या हुआ?”
माला हंसते हुए बोली, “अरे मुझे बुरा कब लगा? मैं तो ऐसे ही नही सुनाना चाहती थी. अगर तुम फिर भी सुनना चाहो तो बता देती हूँ."
मानिक ने हाँ में सर हिला दिया. माला पेड़ की जड में बैठ गयी और बोली, "हम लोग छह भाई बहिन हैं. चार बहनें और दो भाई. मुझसे बड़ी तीन बहिनें हैं और मुझसे छोटे दो भाई. हमारी बस्ती बहुत गरीब है. खाने में सिर्फ चावल और मछली होती है और उसमे भी बहत दिन तक चावल से काट दिए जाते हैं. खेती के नाम पर कुछ भी नही. काम करने भी बाहर जाना पड़ता है. पहले मेरे बापू बाहर काम करते थे. वहां जो तनख्वाह मिलती थी उसमें से जो बचाकर भेजते थेथे उसमें एक महीने का राशन भी बड़ी मुशिकल से आता था. ऊपर से चार लडकियों का बोझ भी उनके सर पर था. कुछ दिन बाद मेरे बापू मजदूरी की नौकरी छोड़ घर आ गये और वही रहकर अपना गुजरा करने लगे. लेकिन हमारे यहाँ तो खेती के अलावा कोई काम ही नही है ओर हमारे पास खेती थी ही नही. मेरी बहनें बड़ी हो रही थीं और उन्हीं दिनों बस्ती में कुछ बाहर के लोग आने लगे.
वो लोग लड़कियों को शादी के लिए ले जाते थे और बदले में लोगों को पैसा दे जाते. मेरी बड़ी बहनों के साथ भी ऐसा ही हुआ. तीनों बड़ी बहनों को बापू ने पैसा ले ले कर लोगों के साथ शादी कर दी. उनमें से एक बहिन की तो तुम्हारे गाँव के गुल्लन ने ही शादी करवाई थी और मेरी भी शादी इन्होने ही करवाई है."
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RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
मानिक के चेहरे पर बहुत हैरत भरी हुई थी. बोला, "क्या आपके लिए भी आपके माँ बाप ने पैसा लिया था?"
माला की आँखें थोड़ी नम थी और गला रुंधा हुआ. बोली, "हाँ. विना पैसे के मेरी बस्ती का कोई भी आदमी अपनी लडकी की शादी नही करता और कर भी कैसे दे? यही तो पेट भरने का एक जरिया है उनके पास. बेटी की शादी के लिए लोग इन्तजार करते हैं और उससे जो पैसा मिलता है उससे एकाध दो साल का खाना पीना हो जाता है. नही तो फिर वही सूखे चावल और तलाबों से मछली बीनना. कुछ लोग तो पैसों की जरूरत पड़ने पर दस बारह साल की लडकी की भी शादी कर देते हैं."
मानिक फिर बड़ी हैरत से बोला, “तो आपके लिए राणाजी चाचा ने कितने रूपये दिए थे?"
माला मानिक की आँखों में देखती हुई बोली, “इन्होंने तो पन्द्रह हजार दिए थे लेकिन मेरे बापू को सिर्फ़ दस हजार मिले."
मानिक ताज्जुब करता हुआ बोला, “तो बाकी के पांच हजार किसने ले लिए?"
माला बताना तो नही चाहती थी लेकिन इस वक्त उसके दिल का दर्द फूट फूट कर निकल रहा था. बोली, "जो भी आदमी किसी को लेकर वहां लडकी लेने जाता है वो भी रुपया लेता है. इनको लेकर इनके दोस्त गुल्लन गये थे. तो उनके पांच हजार रूपये तय हुए लेकिन गुल्लन ने मेरे बापू से इस बात को किसी को भी बताने के लिए मना कर दिया था. तुम भी किसी से कहना मत. मैं सिर्फ तुम्हें बता रही हूँ. ये बात अभी तक मैने अपने पति को भी नही बताई. मुझसे बड़ी बहन की शादी के वक्त भी गुल्लन ने इतने ही रूपये लिए थे. जिसकी शादी मुझसे छह महीने पहले हुई थी. सब ऐसा ही करते हैं. अगर ऐसे लोगों को वहां के लोग पैसे न दे तो ये लोग इधर के लोगों को लेकर ही क्यों जांय?"
मानिक को गुल्लन से थोड़ी घृणा लग रही थी. सोचता था दोस्ती का भी लिहाज न रखा. लालच में गरीब आदमी के हक का पैसा भी खुद डकार गया. मानिक माला से बोला, "तो अब आप अपने घर जाती हो तो आपके माँ बाप ऐसे ही प्यार करते है जैसे पहले करते थे. या कुछ कम करते हैं. क्या उन्हें आपकी याद नही आती? और याद तो आपको भी आती होगी?"
माला की आँखों से आंसू टपक पड़े. बोली, "माँ बाप के पास जाता कौन है लौटकर? वो लोग तो लडकी को यही कहकर विदा करते हैं कि अब लौटकर मत आना. याद तो सबको आती है. कौन माँ बाप अपनी बेटी को देखना नही चाहता? ___मैं भी दिन रात अपनी माँ को याद करती हूँ. अपने बाप को याद करती हूँ. मेरे दो छोटे छोटे भाई हैं उनको याद करती हूँ. बड़ी बहिन जिनकी शादी हो गयी वो भी मुझे अब तक याद आती हैं लेकिन याद करने से कुछ बदल थोड़े ही न जाता है. याद करने से मैं उनके पास तो नही जा सकती न?"
मानिक का दिल माला की दुःख भरी कहानी से कुम्हला गया था लेकिन मन में बार बार हर बात पर प्रश्न उठ रहे थे. बोला, “तो आपके माँ बाप ने आपको दोबारा आने के लिए मना क्यों कर दिया?"
माला दुःख भरी हँसी हँस बोली, “जब लडकी को अच्छा घर मिल जाए तो वो लोग मना कर देते हैं कि दोबारा यहाँ मत आना या यहाँ आने की जिद मत करना. क्योंकि कई बार ऐसा हुआ कि लडकी अपनी ससुराल से लौटकर आई तो दोबारा उसे कोई लेकर ही नही गया और माँ बाप को फिर से उस लड़की को किसी के हाथों... लेकिन अगर कोई लडकी उनके कहने के बावजूद भी घर पहुंच जाए या उसे ठीक ठाक घर न मिले तो माँ बाप फिर से उसे पैसा ले किसी और के साथ भेज देते हैं. अच्छे या अमीर आदमी के साथ गयी लडकी को फिर से घर न लौटने की सख्त हिदायत होती है. अब देखो मेरी सबसे बड़ी बहन की शादी तब हुई जब मैं बहुत छोटी थी लेकिन आज तक वो न तो लौटकर आई और न ही उसकी कोई खोज खबर ही आई.और बाकी की दो बहिनों की भी यही हालत हुई. वो भी कभी लौटकर नही आयीं."
मानिक की आँखें माला की व्यथा से भीग गयी थी. माला तो पहले से ही अपनी आखों का झरना बहाए जा रही थी. माला ने मानिक को रोते हुए देखा तो पूंछ उठी, “अरे तुम क्यों रोने लगे? इसमें रोने वाली क्या बात है?"
मानिक रुंधे हुए गले से बोला, “बड़ी दुःख भरी कहानी है आपकी. समझ नही आता कि इसमें किसकी गलती है. लेकिन जिस लडकी के साथ ये सब होता है वो किस स्थिति से गुजरती होगी. मैं अगर लडकी होता तो ये सब झेल ही नही पता. पता नही आप कैसे ये सब सह गयीं?" ___
माला इस वक्त इस तरह बातें कर रही थी मानो वो बहुत बड़ी विद्वान् हो. बोली, “ये सब सहना तो लडकी का धर्म होता है. और फिर कब तक माँ बाप पर बोझ बने रह सकते हैं. माँ बाप अगर हमारी शादी करना भी चाहें तो भी किसी अच्छे घर में शादी नहीं कर सकते. अच्छे रिश्ते के लिए दहेज चाहिए और जिस जगह खाने के लाले पड़े हों वहां दहेज तो संजीवनी बूटी की तरह होता है. जो न तो हमारे लोगों के पास होता है और न ही हमारे यहाँ की लडकियों की शादी उनके मन के घर में हो पाती है. ये हमारे लिए एक सपना बनकर रह जाता है. जिस घर में जाएँ उसमें पैसा तो होता है लेकिन या तो अपने हक का सम्मान नही मिल पाता या दिल को भाने वाला साथी नही मिलता.”
मानिक को माला की बातें मन में और ज्यादा जानने की जिज्ञासा बढाती जा रही थीं. बोला, “क्या तुम्हारी बस्ती की लडकियों के मन नही करता कि अब सब कुछ ठीक हुआ तो एकाध दिन के लिए अपने घर घूम आयें? ठीक ठाक घर में आने के बाद तो आराम से तुम लोग घूमने जा ही सकती हो न?"
माला को फिर से हल्की हंसी आई. मन में थोडा सोचने लगी फिर बोली, "मैं जब घर से यहाँ आई थी तो यहाँ का खाना मुझे अमृत के समान लगता था. जबकि यहाँ के लोगों को ये सब आम खाना लगता था. यहाँ की चाय का तो प्याला भी चाट जाती थी लेकिन यहाँ के लोग तो उस चाय को दिन में दस बार पीते हैं. हमारी बस्ती में शायद ही कोई लडकी ऐसी हो जिसे महीने में दो चार बार चाय मिल जाती खाने में रोटी तो कभी कभार ही मिलती है नही तो सालों साल वही चावल और अक्सर मिलने वाली मछलियाँ. अब तुम खुद सोचो जिस लडकी को इतना बढिया खाना मिले. बढिया रहना मिले तो वो क्योंकर फिर से उस जगह जाए जहाँ न तो ठीक से तन ढकने को कपड़ा है और न खाने को ठीक से भोजन.
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RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
मैं यहाँ आई थी तो पहली बार पलंग पर सोयी थी. पलंग के गुदगुदे गद्दे पर सोने में डर सा लगता था. शुरुआत के दिनों में मैंने पेट में जगह होने से भी ज्यादा खाना खाया. अपने घर में मुझपर दो शूट थे और उनमे से एक फटा पुराना सा था. सिर्फ एक शूट ऐसा था जिसे मैं पहन कर बाहर निकल सकती थी और ये दोनों ही शूट मेरी बड़ी बहनें जाते वक्त घर पर छोड़ गयीं थी. जब यहाँ आई तो चारों तरफ साड़ियों से अलमारी भरी पड़ी थी. ऐसी साड़ियाँ तो मैने अपनी आँखों से भी नही देखीं थीं जिन्हें आज में अपनी मर्जी से पहन और उतार सकती हूँ. मेरे मन में जब भी आता है मैं खाना खाती हूँ. मन में आता है तब चाय पीती हूँ. जब में गर्भवती हुई तो मेरी सास ने मुझे अपने जिन्दा होने के वक्त मेवा लाकर दिए.
इससे पहले मैंने मेवा की शक्ल तक नही देखी थी. खाने में बहुत मीठे और अच्छे भी लगे. अब तुम अपने को मेरी जगह रख कर देखो और सोचो. तुम होते तो फिर उस जगह लौटकर जाते. मैं तो चाहकर भी फिर से उस जगह नही जाना चाहती. मैं फिर से उस भुखमरी में अपने कदम रखने को तैयार नही हूँ. और हर मेरी जैसी लडकी की यही हालत होती है.
__ कोई भी लडकी अच्छी जगह पहुंच वापस नही आना चाहती. वो फिर से उसी तरह की जिन्दगी जीना नही चाहती जो उसने मर मर के जी थी. अपने घर लौटने का कोई एक ऐसा कारण नही मिलता जिससे फिर से वहां जाने का मन करे. माँ बाप भी नहीं चाहते कि उनकी बेटी फिर से उनके पास आये और उनके खाने में अपना हिस्सा मांग उनके पेटों को भूखा रख दे. जिस दिन मेरी शादी होकर आई थी उस दिन घर में चीनी और चाय का डब्बा पूरी तरह खाली था. इन दोनों लोगों को पानी के अलावा कुछ न मिल पाया. मैं भी दोपहर की भूखी थी और शादी हो रात तक यहाँ आ पहुंची. अब तुम सोचो क्या शादियाँ इसी तरह होती हैं? क्या जो लड़का अपनी ससुराल जाता है उसे चाय तक की नही पूंछी जाती?
मेरे आने के बाद वहां की स्थिति थोड़ी सुधर गयी होगी. एक तो मेरे बाँट का खाना बच जाता होगा. दूसरा जो पैसा मेरे बदले मेरे घरवालों को मिला है उससे उन्हें अपने कर्जे और घर खर्च में मदद मिली होगी. शायद इस तरह मैं अपने माँ बाप के लिए कुछ कर सकी. और मेरे माँ बाप को भी मुझे पालने के बदले कुछ मिल गया. उन्हें लगा होगा कि उनकी बेटी भी उनके लिए कुछ करके गयी है. बस यही सब सोच के मन बहल जाता है. न तो लडकी लौट कर जाती है और न माँ बाप कभी उन्हें बुलाते हैं."
मानिक की आँखों में माला की दुःख भरी औरत गाथा सुन आंसू आ रहे थे. माला भी भीगी आँखों से उसे देखे जा रही थी. उसे आज पहली बार कोई ऐसा आदमी मिला था जिसने उसकी जिन्दगी को जानना चाहा था. वरना लोगों को क्या पड़ी जो जानें और मानिक तो इन बातों को सुन रो भी रहा था. शायद वो माला के मन का दर्द समझता जा रहा था. माला इस बात से उसकी एहसानमंद सी हो गयी. लगा कि मानिक उसका अपना सा है. उसका दुःख सुख का साथी है जो उसकी बातों को सुन दुखी भी हो रहा है.
माला ने आंसू पोंछे और बोली, “अच्छा मानिक तुम अब हमारे पास आया करोगे या नही? कभी कभार आ जाया करो तो हमारा भी मन लग जायेगा. यहाँ तो वैसे भी कोई बात करने तक को नही मिलता है ऊपर से इतना बड़ा घर जो ठहरा." ___
मानिक ने आंसू पोंछे और थोडा मुस्कुराता हुआ बोला, "मन तो करता है आऊँ लेकिन फिर कोई कुछ कहने न लगे इसलिए सोचता हूँ कि न आने में ही भलाई है. बेकार में आपके लिए भी कोई नई परेशानी खड़ी हो जाएगी?"
माला सोचते हुए बोली, “बात तो सही कह रहे हो लेकिन तुम दोपहर में आ जाया करो. तब हमारे यहाँ कोई नही होता. न ये ही घर पर होते हैं और महरी भी काम कर चली जाती है. अब देखों तुम इस वक्त आये हो तो घर पर कोई नही है.
इसी समय पर तुम आ जाया करो. सच कहती हूँ तुम ही अभी तक ऐसे आये हो जो हमारी बात को सुन कर समझते हो. वरना न तो कोई हमारे पास आता है और आ भी जाए तो हमारी बात को सुनने में उसे कोई आनंद नहीं आता."
मानिक ने माला की बात को समझ कर हाँ में सर हिलाते हुए कहा, “तो फिर मैं पढने के बाद आ जाया करूँगा. क्योंकि में दोपहर में स्कूल से लौटता हूँ, लेकिन रोजाना में सिर्फ एकाध घंटे के लिए ही आ सकता हूँ, क्योंकि घरवाले भी मुझे सारा दिन घर से बाहर नही रहने दे सकते."
माला खुश होती हुई बोली, “अरे तो ये क्या कम है कि तुम एकाध घंटे के लिए आ जाओगे. बस इतना ही मेरे लिए काफी है लेकिन आना जरुर. भूल गये तो मैं रूठ जाया करूँगी और फिर तुमसे बोलूंगी भी नही."
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07-03-2020, 01:21 PM,
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RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
संतराम को अब पूरा भरोसा हो गया कि बल्ली किसी से नही कहेगा. बोला, “एक आदमी है. उसने मेरे बड़े भाई को इस सब के बारे में बताया था. बिहार के एक गाँव में बहुत सी लडकियाँ होती हैं और सब की सब एक से एक जवान और सुंदर. तुम्हारे पास जितना रुपया हो उतनी ही सुंदर लडकी को छांट कर ले आओ. कोई भी लडकी पैसों के आगे न नही कहती. खुद उनके माँ बाप उन्हें तुम्हारे हवाले कर देते हैं. और फिर निश्चिन्त हो उन्हें अपने घर ले आओ. ये समझ लो ये सारा काम कुछ घंटों में ही हो जाता है. सुबह जाओ और शाम तक दुल्हन ले घर आ जाओ."
बल्ली को उसकी बात पर यकीन नही हुआ. सोचता था भला ऐसे भी कोई अपनी लडकी को किसी के हवाले कर देता है लेकिन उसने ये बातें पहले भी एक दो जगहें सुन रखी थीं. राजगढ़ी के राणाजी की चर्चा भी बल्ली ने सुन रखी थी.
बल्ली संतराम को भरोसे में लेते हुए बोला, “यार तुम उस आदमी से मुझे भी मिलवा दो. सोचता हूँ मैं भी अब शादी कर ही डालूं तुम जितनी जल्दी हो मुझे उस आदमी से मिलवा दो. पैसों का इंतजाम मैं कर ही लूँगा." __
संतराम को पता था कि बल्ली ने अपनी उम्र में शुरू से माँगा ही है. पैसा तो खूब जुड़ ही गया होगा. हर हफ्तें सात गाँव से आटा इकट्ठा कर सारा बेचकर पैसा ही तो कमाता था बल्ली. अब उस सीधे के आटे वाले पैसे से दुल्हन लेकर आने की सोच ली. लोगों के पुन्य का आटा दुल्हन के लिए खर्च होने वाला था. लेकिन पता किसे चलेगा? ये गैरकानूनी काम तो चुपचाप कानूनी तरीके से होना था.
संतराम बल्ली से बोला, "ठीक है कल तुम आ जाओ मेरे पास. मैं तुम्हें उस आदमी के पास ले चलूँगा लेकिन आना पूरी तैयारी से. हो सकता है वो तुम्हें कल ही ले कर जाए और कल ही तुम दुल्हे बन जाओ."
बल्ली का मन दूल्हा बनने के नाम से धुकधुका रहा था. बोला, “अच्छा खर्चा कितना हो जाएगा बता दो तो उसी हिसाब से इंतजाम कर लाऊं."
संतराम इस काम का अनुभवी हो चुका था. बोला, "देखो भाई पैसा का खर्चा तुम्हारे ऊपर है. जैसा माल लोगे वैसी कीमत देनी पड़ेगी. वहां एक लड़की की कीमत दो हजार से लेकर बीस हजार तक की है. अब तुम ठहरे सीधा मांगने वाले. तो तुम तो दो चार हजार की दुल्हन ही ला पाओगे. पैसा अपने हिसाब से ले जाना. अगर ज्यादा बढिया दुल्हन लानी है तो किसी से कर्जा ले लो फिर घरों से आटा मांग मांग कर चुका देना. कौन सा तुम्हारी जेब से जायेगा?"
बल्ली को संतराम की बात ठीक लगी. बोला, “कहते तो ठीक हो भाई. ऐसा ही करता हूँ. अच्छा कल सुबह ही तुम्हारे पास आता हूँ.” इतना कह बल्ली वहां से चला गया. अब उसे किसी भी तरह अपने लिए दुल्हन लाने की पड़ी थी. पैसा तो उसने बहुत जोड़ रखा था. दस साल की उम्र से सीधा मांग रहा था और आज चालीस की उम्र हो चली थी. एक रूपये का फ़ालतू खर्चा नही करता था. तम्बाकू भी दुकानों से सीधे के तौर पर मांग खा लेता था.
फिर दूसरे दिन बल्ली आया और संतराम को साथ ले उस आदमी के पास जा पहुंचा. उस आदमी के साथ जा बल्ली अपनी लिए दुल्हन ले आया. बल्ली को संतराम की बात सही लगी क्योंकि उसके कहने की हिसाब से ही दुल्हन बड़ी आसानी से मिल गयी. जिसकी कीमत बल्ली को पांच हजार रूपये अदा करनी पड़ी और साथ ले गये आदमी को एक हजार अलग से देने पड़े.
लोग कहते थे बल्ली की दुल्हन बहुत सुंदर है. बल्ली की अब तक की घर घर से मागी गयी सारी कमाई उस दुल्हन में चली गयी थी लेकिन इस वक्त वो खुश बहुत दिखाई पड़ता था. देह में फुर्ती भी बहुत रहती थी. लगता था बल्ली फिर से जवान हो उठा है.
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