RE: Kamukta Story कांटों का उपहार
प्रताप सिंग बल खाकर रह गया.परंतु राजा सूरजभान सिंग के होठों पर एक आह उभर आई. घोड़े से उतर कर राधा के समीप आए. फिर दर्द भरे स्वर में बोले - "ठीक है राधा. तुम यहाँ नही रहना चाहती ना सही. लेकिन जहाँ कहीं भी रहना इतना ज़रूर याद रखना अगर मुझे क्षमा करने की कोई कीमत हो तो उसे वसूल करने से मत हिचकिचाना. मैं किसी भी कीमत पर अपने पापों का प्रायशचित करने को तैयार हूँ." फिर सूरजभान सिंग पलट कर घोड़े पर सवार हुए, मंत्री प्रताप सिंग की तरफ देखा और घोड़े को महल की दिशा में दौड़ा दिए.
उनके ओझल होते ही राधा ने अपने बाबा को उठाया और एक अंजान मंज़िल की यात्रा पर आगे बढ़ गयी.
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सुबह के 5 बज रहे थे. सूरजभान बिस्तर पर लेटे इस उधेड़-बुन में थे कि उन्हे राधा से मिलना चाहिए या नही. राधा के गाओं छोड़ कर जाने के लगभग एक महीना बाद उसकी खबर उन्हे मिली थी. वह कृष्णा नगर में अपने बाबा के साथ रह रही थी. उन्होने अपने मन को समझाने की बहुत कोशिश की पर नाकाम रहे. सुबह पौ फटने से पहले ही बहाल से होकर बाहर निकल आए. कुच्छ देर महल के लॉन में टहलते रहे फिर अचानक ही एक विचार से उनके शरीर में तेज़ी आ गयी. अंदर जाकर उन्होने जल्दी से कपड़े बदले. कुर्ता पायज़ामा ही पहन लिया. फिर अस्तबल से घोड़ा लेकर कृष्णा नगर के लिए चल पड़े.
कृष्णा नगर समीप आया तो दिन चढ़ आया था. कृष्णा नगर के समीप एक टीले पर घोड़े को चढ़ा कर उन्होने दूर तक दृष्टि डाली. कृष्णा नगर छोटा सा गाओं था. कुच्छ बच्चे धूप में खेल रहे थे. उन्होने चाहा कि उनमे से किसी के समीप जाकर राधा के बारे में पुच्छ-ताच्छ करे कि तभी उनकी नज़र टीले की जड़ से लगी पगडंडी पर जाती एक लड़की पर पड़ी. सेर पर लकड़ी का गठ्ठर होने की वजह से उसका मुखड़ा दिखाई नही पड़ रहा था. लेकिन शरीर की बनावट से अनुमान होता था वह यौवन की अंगड़ाई में है. उन्होने घोड़े को लड़की के पिछे दौड़ा दिया.
घोड़े की टाप सुनकर लड़की ठिठक गयी. उसने सिर उठा कर देखा तो पग डगमगा गये. शरीर काँप गया. सिर पर रखा गठ्ठर नीचे गिर पड़ा. उसने चाहा कि तुरंत भाग जाए परंतु तब तक सूरजभान सिंग उसके समीप आ चुके थे.
"राधा...!" उन्होने घोड़े से उतर कर दर्द भरे स्वर में कहा. - "क्या तुम अब भी मुझे क्षमा नही करोगी? तुम्हे ढूँढने ही निकला था. आओ चलो मेरे साथ."
और राधा उन्हे आश्चर्य से देखने लगी. कुर्ता-पायज़ामा बहुत लापरवाही से पहन रखा था. पसीने से भीग कर उनके बदन से चिपक गया था. बाल उलझे हुए थे, आँखों में गहरी उदासी, होठों पर वास्तविक क्षमा की माँग. उसके दिल को एक सच्ची शांति मिली. उसके मन ने एक सच्ची खुशी का आभाष किया. राम गढ इलाक़े का राजा अपना राजमहल छोड़ कर एक गोरी की कुटिया में भीख माँगने आया है. उससे क्षमा माँगने आया है. भिखारी...! राजा सूरजभान सिंग भिखारी...! उसका जी चाहा वह ज़ोर ज़ोर से हासे. शोर मचा कर लोगों को बताए कि देखो एक ग़रीब अबला की 'आह' ने क्या रंग दिखाया. एक राजा तड़प रहा है. उसके प्रेम में जल रहा है. और जलता रहेगा तब तक जब तक कि यह आग उसे जला कर भस्म ना कर दे. हा...हा...हा...! परंतु वह ऐसा नही कर सकी. दिल के अंदर जाने ऐसी कौन सी ताक़त थी जिसने उसके मूह पर ताला लगा दिया. वरन उसकी आँखें उदास हो गयी. चाह कर भी वा मूह से एक शब्द नही कह पाई.
"मेरा विश्वास करो राधा." सूरजभान सिंग आगे बोले. - "मैं अपने बाप-दादो की तरह नही हूँ जो रोज़ नयी लड़कियों से आनंद उठाना अपनी शान समझू. तुम चाहोगी तो मैं अपना राज्य, राजमहल सब कुच्छ त्याग दूँगा. जहाँ चाहोगी वहाँ चला चलूँगा. केवल मुझे क्षमा कर दो. क्षमा करके मुझे अपना बना लो." उनकी आवाज़ भर्रा गयी. क्षमा के लिए उन्होने वास्तव में उनके आगे अपने हाथ जोड़ दिए थे.
राधा ने देखा, उनके बढ़े हुए हाथ की उंगलियों में बहुमुल्य हीरों की अंगूठी है. परंतु एक अंगूठी चाँदी की भी है, जिस पर उसका नाम अंकित है...'राधा'. जो भोला की दी हुई थी. उसे सख़्त आश्चर्य हुआ.
"यह अंगूठी अब तभी मेरी अंगुली से उतरेगी जब तुम मुझे क्षमा कर दोगि. क्षमा करके इसे अपनी उंगली में पहन लोगि." उन्होने राधा के मन का भाव समझ कर अपने आप कहा. - "तुम्हारे बाकी गहने भी मेरे पास सुरक्षित हैं. मेरे लिए वे देवी की मूर्ति से भी पवित्र हैं."
राधा के होठ काँप गये. जाने ऐसी कौन सी बात थी कि सूरजभान सिंग से सख़्त घृणा के पश्चात भी उसके दिल पर बरच्छियाँ चल गयी. उसकी पलकों पर ठहरी मोटी मोटी बूंदे गालों पर लुढ़क आईं.वह सोचने लगी. क्या ऐसा संभव है. एक राजा जिसके लिए लड़कियाँ खेल तमाशे भर रही हो. वह गाओं की एक साधारण लड़की से प्रेम करेगा. क्या वह उसे अपनी बना सकता है?
राधा के होठों पर एक सिसकी उभरने को तड़प उठी तो वह सामने की ओर देखने लगी. फिर अचानक ही उसे क्या हुआ कि वह वहाँ से भाग गयी. चुप-चाप बिना किसी बात का उत्तर दिए.
सूरजभान सिंग उसे जाते हुए देखते रह गये. उसके इस तरह चले जाने से उनके दिल को ठेस लगी. पर उन्हे ये संतोष था कि आज राधा ने उसे बुरा भला नही कहा. उसे कोसा नही. उन्होने एक गहरी साँस ली फिर घोड़े पर बैठ कर अपने इलाक़े की ओर चल पड़े. छोटे छोटे बच्चे बहुत आश्चर्य से उन्हे देख रहे थे. वह हल्के से होठ दबा कर मुस्कुरा दिए.
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