RE: Kamukta Story कांटों का उपहार
सुबह के 10 बजे थे. राधा और कमल आँगन में बैठे बातें कर रहे थे. सरोज रसोई की कामो में उलझी थी. तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई. कमल ने उठकर दरवाज़ा खोला. सामने पोस्टमॅन खड़ा था, उसके नाम एक रेजिस्ट्री लिए. कमाल ने रेजिस्ट्री लेकर उलट पुलट कर देखा. रेजिस्ट्री ठेकेदार बर्मन & कंपनी से आई थी. बर्मन & कंपनी सरकारी ठेकेदार थे जिन्होने देश की अच्छी-अच्छी कॉलोनी तथा बड़े - बड़े कारखानों का निर्माण किया था. कमल का दिल ज़ोर - ज़ोर से धड़कने लगा. उसने झट हस्ताक्षर किए और रेजिस्ट्री खोलते हुए मा की तरफ बढ़ा. पत्र पढ़ा तो खुशी से चीख उठा, - "मा मुझे कांट्रॅक्ट मिल गया."
"कैसा कांट्रॅक्ट? राधा ने पुछा, - "वोही जिसके लिए तूने लिखा पढ़ी की थी?"
"हां मा वोही." कमल उसके समीप ही बैठता हुआ बोला और काग़ज़ों को खोल कर घुटनो पर फैला लिया. काफ़ी देर तक बड़ी गंभीरता के साथ काग़ज़ों को देखता रहा. काग़ज़ों का निरीक्षण करते हुए उसके माथे पर बाल पड़ गये थे. चिंता की लकीरे माथे पर खींच गयी थी.
"क्या बात है बेटा?" राधा ने उसे परेशान देखा तो पुच्छे बिना ना रह सकी.
"कुच्छ नही मा बस एक शहर बसाने का काम मिला है. पर कम्बख़्त कांट्रॅक्ट भी मिला तो ऐसा कठिन कि कुच्छ समझ में नही आ रहा है."
"क्यों? क्या हो गया?" राधा चींतीत हुई.
"रामगढ़ इलाक़े के बीच यह हवेली जाने कहाँ से टपक आई." कमाल ने लापरवाही से खिसियाकर कहा.
"रामगढ़...?" राधा का दिल बहुत ज़ोर से धड़का.
"हां मा..." कमल उसी प्रकार काग़ज़ों को देखता हुआ बोला, - "लखनऊ शहर से लगभग 25 मील दूर रामगढ़ नामक एक बहुत बड़ा इलाक़ा था जो कभी किसी राजा की जागीर थी. यह इलाक़ा पिच्छले 10 वर्षो से उजड़ा पड़ा है . सर्वेयर की रेप्पोर्ट के अनुसार लगभग दस वर्ष पहले तीन साल तक लगातार बाढ़ आने की वजह से यह इलाक़ा तबाह हो गया था. यहाँ के निवासी गाओं छोड़ कर सदा के लिए चले गये थे. केवल एक हवेली ही बची थी. जिसका अंतिम वारिस राजा सूरजभान का कहीं कोई पता नही. फिर भी सरकार एक माह का नोटीस देकर इस हवेली के वारिस का पता चलाने का प्रयत्न करेगी. अन्यथा इसे नीलाम करने, तोड़ने या किसी दूसरे काम में लाने का अधिकार सरकार के पास सुरक्षित होगा. कंपनी चाहती है कि नयी कोल्लोनी के नक़्शे में इस हवेली का प्रभाव ज़रा भी नही पड़ना चाहिए. क्योंकि नक़्शा पास होने के बाद यदि इस हवेली का कोई वारिस निकल आया तो कॉलनी के निर्माण के समय बाधा पड़ सकती है."
राधा ने उसे आश्चर्य से देखा. आवाज़ हलक से निकलते निकलते रह गयी. रामगढ़ की वर्तमान स्थिति के बारे में जान कर उसके दिल को एक अज़ीब से धक्के का एहसास हुआ जिसे वह खुद नही समझ सकी. उसके अंदर की एक नारी जाग उठी. वह नारी जिसका उसने पहले कभी अनुभव नही किया था. नारी क्या चाहती है वह खुद नही जानती. नारी कभी - कभी उसके लिए भी तड़प उठती है जिससे वह सख़्त घृणा करती है. इस समय राधा के जीवन में भी यह मोड़ अचानक ही आ गया था. सूरजभान की वास्तविकता जान कर उसके मंन में सख़्त पीड़ा उठी. सहानुभूति से उसका दिल भर गया. उदासी की चादर उसके मुखड़े पर फैल गयी. उसने मन ही मन खुद को धिक्कारा. ज़रूर यह उसकी 'आह' का ही फल है जिस-से सूरजभान का सब कुच्छ लूट गया. कुच्छ भी तो नही बचा...ना यश, ना धन, ना मान-मर्यादा और ना जीवन.
"क्या बात है मा?" कमाल ने अपनी मा को उदास देखा तो घबराकर पुछा.
"कोई खाश बात नही बेटा. बस कुच्छ याद आ गया था." राधा ने अपनी स्थिति संभाली.
"मुझे जानने का अधिकार है?"
"बेटा, रामगढ़ तुम्हारा ननिहाल था. मेरा बचपन उसी गाओं में गुज़रा है. तुम्हारे पिता की कयि यादें जुड़ी है उस जगह से. आज तुम्हारे मूह से उस इलाक़े की सचाई जान कर दिल भर आया था." राधा ने वास्तविकता छिपा ली.
कमल को मा की बातों पर आश्चर्य हुआ. साथ ही दुख भी. उसने मा के हाथों को अपने हाथ में लेकर उसे दिलाषा दिया.
"क्या मैं तुम्हारे साथ चल सकती हूँ?" राधा ने विनती भरे लहजे में पुछा.
कमल ने मा की दशा का अनुमान कर हामी भर दिया.
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