RE: DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
कुमार की और देख कर सुनीता ने कहा, "देखो, नीतू की इज्जत सम्हालना तुम्हारा काम है। मर्द को चाहिए की जिस औरत को वह प्यार करता है उसकी इज्जत का ख़याल रखे।"
कुमार ने अपनी नजरें निचे झुका लीं और कहा, "सॉरी मैडम। आगे से ऐसा नहीं होगा।"
सुनीता ने कुमार का हाथ थाम कर कहा, "कोई बात नहीं। अभी तुम जवान हो। जोश के साथ होश से भी काम लो।"
कप्तान कुमार अपना सर झुका कर अपनी बर्थ पर वापस लौट गए। साथ में नीतू भी खिस्यानी सी लौट आयी और अपनी ऊपर वाली बर्थ पर चली गयी। कप्तान कुमार को अपने वर्तन पर भारी शर्मिंदगी हुई। उसे समझ में नहीं उन्होंने ऐसी घटिया हरकत कैसे की। जो हुआ था उससे कप्तान कुमार काफी दुखी थे।
सुनीता अपनी सीट पर वापस आ कर बैठी और जस्सूजी क पाँव उसने फिर अपनी गोद में रखा। सुनीलजी और ज्योतिजी गहरी नींद में थे। सुनीता के आने से जस्सूजी की नींद खुल गयी थी।
और एक बार फिर उन्हें द्लार से सहलाने लगी, दबाने लगी और हल्का सा मसाज करने लगी। सुनीता को कप्तान कुमार और नीतू की जोड़ी अच्छी लगी। उसे अफ़सोस हो रहा था की उसने उनकी प्रेम क्रीड़ा में बाधा पैदा की। सुनीता ने अपने मन में सोचा की कहीं उसे उन पर इर्षा तो नहीं हो रही थी? नीतू को उसका प्यार मिल रहा था और उसकी तन की सालों की भूख आज पूरी हो सकती थी अगर वह बिच में नहीं आती तो।
सुनीता को मन में बड़ा दुःख हुआ। वह चाहती थी की कप्तान कुमार नीतू की प्यार और शरीर की भूख मिटाये। नीतू उसकी हकदार थी। सुनीता को क्या हक़ था उन्हें रोकने का? सुनीता अपने आप को कोसने लगी। कुछ सोच कर सुनीता उठ खड़ी हुई और नीतू की ऊपर वाली बर्थ के पास जाकर उसने नीतू का हाथ पकड़ कर धीमे से हिलाया। नीतू ने आँखें खोलीं। सुनीता को देख कर वह बोली, क्या बात है दीदी?"
सुनीता ने नीतू के कान में कहा, "नीतू, मुझे माफ़ करना। मैं आप दोनों के प्यार के बिच में अड़ंगा अड़ाया। मैं बहुत शर्मिन्दा हूँ।"
नीतू आश्चर्य से सुनीता को देखती रही। सुनीता ने कहा, "देखो नीतू, मुझे तुम दोनों की प्रेम लीला से कोई शिकायत नहीं है। देखो, बंद परदे में सब कुछ अच्छा लगता है। इसलिए मैंने तुम्हें सबके सामने यह सब करने के लिए रोका था। कहते हैं ना की "परदे में रहने दो पर्दा ना उठाओ। पर्दा जो उठ गया तो भेद खुल जाएगा।" तो मेरे कहने का बुरा मत मानना। ओके?"
सुनीता यह कह कर चुपचाप अपनी बर्थ पर वापसआगई।
सुनीता ने अपनी टाँगें सामने की बर्थ पर रखीं थीं। सुनीलजी सामने की बर्थ पर बैठे हुए ही गहरी नींद में थे। जैसे ही सुनीता ने अपने बदन को थोड़ा सा फैला दिया और आमने सामने की बर्थ पर थोड़ी लम्बी हुई की उसे जस्सूजी के पॉंव का अपनी जाँघों के पास एहसास हुआ। जस्सूजी अपने लम्बे कद के कारण थोड़ा सा पॉंव लंबा करने में कष्ट महसूस कर रहे थे। सुनीता ने जब यह देखा तो जस्सूजी के दोनों पाँव उठाकर अपनी गोद में ले लिए।
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