Thriller मोड़... जिंदगी के ( completed )
[color=rgb(184,]#13 The device......[/color]
अमर ने उस तार से मोनिका का गला घोटना चालू कर दिया, वो कोई 1 मिनट छटपटा कर शांत पड़ गई, तभी पेड़ की ओट से रघु निकल कर आया, और मोनिका के शरीर को अमर से छुड़ा कर खुद के हाथो में ले लिया। मोनिका लाश के मानिंद उसकी बाहों में झूल रही थी।
रघु ने आस पास देखा तो उसे एक बहुत बड़ी खाली बोरी दिखी, रघु ने अमर को इशारा करके उसे उठवाया और मोनिका की लाश को उसके अंदर डाल कर बोरी का मुंह बंद कर दिया।
रघु: ये क्या किया तूने??
अमर: मुझे खुद कुछ नही पता कि ये सब कैसे हुआ? मैं तो बस उसे डराना चाहता था।
रघु: अरे यार! चलो कोई बात नही, ये बात बस तेरे और मेरे बीच में रहेगी, मैं इसको ठिकाने लगा देता हूं, तू चिंता न कर। और अच्छा ही हुआ, क्योंकि एक यही थी जिससे तुझे खतरा था।
अमर: मगर तू यहां क्या कर रहा है?
रघु: मैं तो वापस जा रहा था, लेकिन कल इसको मैने इसी टाउन में आते देखा तो पीछा करने लगा इसका, क्योंकि मुझे तेरी चिंता थी।
अमर: अब क्या करूं मैं?
रघु: बोला तो भूल जा इसको अब, वैसे भी ये पहाड़ी इलाका है, ठिकाने लगाने में कोई रिस्क नहीं है। वैसे एक बात बोलूं?
अमर: क्या?
रघु: ये आज तक का सबसे खराब हत्या है तेरी, एकदम नौसिखिए की तरह, not the Kumar's style.
अमर: भाई मैं वो सब भूल चुका हूं, ये कैसे किया मुझे वो भी नही पता।
रघु: चल मैं निकलता हूं अब, ये तेरी अच्छी जिंदगी में एकमात्र कांटा बची थी, तूने निकल फेका इसे, अब आराम से रह, सिंडिकेट वालों को तो मैं सम्हाल ही लूंगा।
ये बोल कर रघु उस बोरी को उठा कर दीवाल तक ले जाता है, और उछला कर दीवार के उस तरफ फेक देता है, फिर खुद कूद कर चला जाता है।
अमर भी अपने कमरे में वापस आ जाता है, और किसी तरह नींद के आगोश में चला जाता है।
अगली सुबह उसकी नींद जल्दी ही खुल जाती है, तो वो बाहर आ कर देखता है कि रमाकांत जी बाहर मॉर्निंग वॉक पर निकलने वाले होते हैं, अमर उनसे अनामिका के बारे में पूछता है।
रमाकांत जी: बेटा वो उस दिन के बाद कुछ ज्यादा ही सोती है, शायद दवाइयों के कारण, मैं भी ज्यादा जोर नही देता।
अमर: मैं उसको उठाऊं क्या?
रमाकांत जी: जरूर, ये भी कोई पूछने की बात है?
अमर अनामिका के कमरे में जाता है तो अनामिका और पवन दोनो सो रहे होते हैं, अमर पहले पवन को उठता है और उसे कहता है कि अनामिका को उठा दे।
पवन: भैया मुझे जोर की सुसु आई है, दीदी को आप ही उठाइए।
ये बोल कर पवन बाथरूम में भाग जाता है, और अमर कुछ असमंजस में अनामिका को कंधे से हल्के से हिला कर जगाने की कोशिश करता है, और उसका नाम धीरे से बुलाता है। अनामिका नींद में उसकी ओर करवट लेते हुए उसका हाथ पकड़ लेती है और, "अरे अमर, कितना परेशान करते हो तुम, ना रात को जल्दी सोने देते हो और सुबह जल्दी उठा कर जोगिंग करवाने लगते हो।"
अमर असमंजस में थोड़ा जोर से कहता है, "अनामिका प्लीज उठ जाओ।"
थोड़ी तेज आवाज सुन कर अनामिका आंखे खोल कर देखती है, और अमर को सामने पा कर थोड़ा झेप जाते है, और शर्मसे नजरे नीची करते हुए उसका हाथ छोड़ देती है, और जल्दी से बाथरूम की ओर जाती है, तभी पवन भी बाहर आ जाता है। अमर और पवन बाहर लिविंग रूम में आ कर उसका इंतजार करने लगते हैं। कुछ देर बाद तीनों वॉक के लिए निकल जाते हैं, अनामिका कहती है कि वो अपने पति की मौत के बाद पहली बार वॉक पर आई है, और अमर का हाथ पकड़ लेती है।
ऐसे ही हसीं खुशी दोपहर बीत जाती है। दोपहर में होटल का मैनेजर आनंद आ जाता है, आनंद एक ऊंचे कद का स्मार्ट सा युवक था जो लगभग अमर की ही उम्र का था। उसके आने से सब लोग निश्चनित हो जाते है होटल के कामों से। अनामिका अमर को कार में बैठा कर वहीं उस मोड़ के पास ले जाती है।
अनामिका: यहीं पर तुम्हारी कार का एक्सीडेंट हुआ था।
अमर: वैसे एक बात पूछूं?
अनामिका: हां जरूर।
अमर: आप उस शाम यहां क्या कर रही थीं?
अनामिका कुछ उदास होते हुए: में अक्सर शाम यहीं बिताती हूं, उस दिन सबका एक्सीडेंट भी यहीं पर हुआ था ना।
अमर: उसका हाथ पकड़ कर कहता है: अनु एक वादा करो मुझे।
अनामिका: क्या?
अमर: अब से कभी तुम अपनी बुरी यादों को याद नही करेगी।
अनामिका: अच्छा, और बदले में मुझे क्या मिलेगा?
अमर: जिंदगी भर की खुशी देने की कोशिश करूंगा।
और अनामिका को गले से लगा लेता है।
अनामिका उसे एक छोटे से टीले पर ले कर जाती है, और दोनो वहां बैठ जाते हैं।
अनामिका: "जानते हैं आप, अमर और मैं शादी होने के पहले कई बार इसी जगह पर मिलते थे। और इसी टीले पर बैठ कर हमने कई कसमें और वादे किए थे एक दूसरे से। लेकिन..."
अमर: मैं आ गया हूं ना। अब कोई चिंता नहीं करो अनु।
इसी तरह की बातें करते करते शाम।घिर आई और दोनो वापस विला में आ जाते हैं।
रात को जब अमर सोने आता है तो उसे पास वाला टेलीफोन पर फिर से ध्यान जाता है, तो वो सोचता है कि क्यों न इसी से अनामिका से बात की जाय। वो जैसे ही फोन उठता है तो उसमे कोई डायल टोन नही होता, तो वो उसके तार को पकड़ कर देखने लगता है, वो तार कटा हुआ था, और देख कर लग रहा था की किसी ने जान बूझ कर काटा हो, मगर इन 4-5 दिनो में तो कोई आया भी नही, फिर कैसे, और उस दिन तो उसने इस पर दादाजी और चंदन की बात सुनी थी।
अमर फोन के नीचे वाली ड्रॉवर खोलता है तो उसके हाथ में एक पेचकस आता है, और उसके हाथ खुद ब खुद इस फोन को खोलने लगते हैं, जैसे वो इन चीजों को पहले भी कर चुका है। फोन के अंदर उसे एक काले रंग की डिब्बी जैसी कोई डिवाइस दिखती है.....
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