Thriller मोड़... जिंदगी के ( completed )
[color=rgb(184,]#17 The Con Man....[/color]
प्रेजेंट टाइम.....
पृथ्वी की आंख हॉस्पिटल के बेड पर खुलती है, सामने अनामिका बैठी होती है, उसको देखते ही पृथ्वी ग्लानि से भर उठता है और अनामिका से हाथ जोड़ कर क्षमा मांगने लगता है।
अनामिका: पृथ्वी, ये काम तुमको शादी तय होते ही कर लेना चाहिए था, अगर जो कर लेते तो आज इस तरह तुम अपराधी बने न बैठे होते।
तभी आनंद कमरे में आता है और कहता है, "गलती जब समझ में आ जाए प्रायश्चित कर लेना चाहिए, उससे जो गया है वो तो वापिस नही आयेगा पर कम से कम कुछ लोगों के दुख कम तो होते। और अपना आचरण ऐसा रखना चाहिए की ऐसी नौबत ही न आए की किसी के सामने आई हाथ जोड़ कर क्षमा मांगनी पड़े।
पृथ्वी सोचते हुए: एक बात बताइए, एक्सीडेंट में तो मैं मौत के मुंह में था, मुझ मर जाने देना था न आप लोग को, मुझ बचाया क्यों?
आनंद कुछ बोलता उसके पहले ही अनामिका बोली: मर जाने देते तो तुमको ये सब सबक कैसे मिलता?
आनंद: एक्सीडेंट जब हुआ तब मैं और अनु वहीं थे, हम अक्सर वहां पर जाते हैं, पूर्वी और मां पापा का एवीडेंट वहीं हुआ था। हम दोनो तुम्हे बचाने गए वहां, हमको देखने से पहले ही तुम बेहोश हो चुके थे। मुझे जैसे ही पता चला की तुम ही पृथ्वी राजदान हो, मैं तुमको बचाने सीना करने लगा, मगर अनामिका ने तुमको बचाने के लिए मनाया मुझे। पहले तो हम कुछ करना ही नही चाहते थे, मगर जैसे ही पता चला कि तुम्हारी यादाश्त चली गई है, हम सब ने ये ड्रामा रचा। तुमको हम कोई शारीरिक नुकसान नही पहुंचाना चाहते थे, बस ये अहसास दिलवाना था की जब किसी पर गुजरती है तो कैसा लगता है। जब कोई किसी अपने को को सेट है तो क्या महसूस हॉट है। और ऐसा ना इसीलिए हुआ की तुम एक बुजदिल इंसान हो, जो अपने स्वार्थ के कारण किसी की जिंदगी से खेलने से भी नही चुकता।
पृथ्वी: सही बात है भैया लेकिन मैं कभी भी दिल से नही चाहता था अनामिका की जिंदगी बरबाद करना, मुझे तो बस वो मोनिका भड़का रही थी।
आनंद: क्यों तुम्हारी खुद की कोई अकल नही है क्या, जब मोनिका की बात गलत लगी तुमको तो कैसे मान ली उसकी बात, और अगर जो वो गलत लगी तो प्रतिकार क्यों नही किया? हां किया ना, जब सब बातें हाथ से निकल चुकी थी तुम्हारे। अरे जी दौलत के चक्कर में तुम दोनो ने मेरे पूरे परिवार के जिंदगी खत्म कर दी आज उसी दौलत के बिना हो न?
पृथ्वी: आप सही कह रहे हैं भैया, मेरी बुजदिली के कारण तीन जाने चली गई हैं, अगर जो मेरा मुंह समय पर खुल जाता तो ये सब कुछ नही होता।
आनंद: 2 ही जाने गई हैं पृथ्वी, मोनिका जिंदा है। पर वो अब शायद ही तुमसे मिलना चाहेगी।
पृथ्वी: आश्चर्य से, पर उसे तो मैंने मार दिया था न, और वैसे वो रघु कौन था?
आनंद: मुझे ठीक से देखो पृथ्वी, मैं ही रघु हूं। और तुम्हारे वार से वो मरी नहीं बस बेहोश ही हुई थी। उसके होश में आने पर मैंने उसे सब सच्चाई बता दी, पर उसने कहा की वो तुमसे मिलने नही आई थी, बल्कि मुंबई में जिस कंपनी में काम करती है, उन्हें ही यहां के उसी होटल का ऑडिट मिला था जिसमे तुम ज्वाइन करने वाले थे, इसीलिए वो आई थी, और जब आई थी तो बस तुम्हारी खोज खबर लेना चाहती थी। बस हमारे होटल में आते ही उसने तुमको और अनामिका को साथ देख लिया, तो उसे लगा कि तुम दोनो वापस से साथ हो गए हो, और उसके दादाजी का मतलब रमाकांत जी नही बल्कि किशन जी, यानी की तुम्हारे दादाजी थे।
पृथ्वी: मगर वो मुझे ढूंढने क्यों नही आई, एक्सीडेंट के समय तो। मैं उससे ही बात कर रहा था।
आनंद: तुम बात उससे कर रहे थे, लेकिन उसी समय वो अपनी उस कंपनी के सीईओ के लड़के के साथ अफेयर में आ चुकी थी, अपनी आदत से वो बाज नहीं आ सकती, इसीलिए वो अब तुमसे मिलना भी नही चाहती।
[color=rgb(255,]यहां से कहानी पृथ्वी के दृष्टिकोण से चलेगी।[/color]
[color=rgb(65,]ये सुन कर मुझे कोई खास अहसास नही हुआ, मोनिका के प्रति मेरे दिल में जो भी था, शायद उस मोड़ के बाद खतम ही हो चुका था, लेकिन उसका ऐसे मुंह फेर लेने से कुछ तो दुख हुआ मुझे,[/color]
[color=rgb(65,]जिसके भरोसे मैने अपनी पूरी जिंदगी खराब कर ली वो अब मुझसे कोई वास्ता नहीं रखना चाहती थी। ये कैसा मोड़ आया जिंदगी में मेरे, एक समय मैं इस देश क्या इस जहां का सबसे खुशनसीब आदमी था, जिसके पास बेशुमार दौलत थी, भरा पूरा परिवार था, सब का प्यार था मेरे नसीब में, लेकिन मेरी पल की बुजदिली ने सब छीन लिया। आज के समय मेरे पास कुछ भी नही था। ना घर, ना परिवार ना पैसे न नौकरी...
इन्ही विचारों के झंझावात में मैं खो सा गया था, तभी कमरे में रमाकांत जी आए।
पृथ्वी बेटा, ले लो अपने डॉक्युमेंट्स जो पर्स में थे, और तुम्हारा फोन। और हां फिलहाल डॉक्टर ने तुमको डिस्चार्ज कर दिया है, तो अब तुम कहां जाना चाहते हो, हम इंतजाम कर देते हैं।
मैने कतर दृष्टि से उनकी ओर देखा, मेरी आंखों में देखते ही उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, "आनंद, फिलहाल इनको अपने होटल में ही एक कमरा दो।"
आनंद: पर दादाजी?
रमाकांत जी: बोला ना मैने।
आनंद: जी बेहतर दादाजी।
आनंद और अनामिका बाहर चले गए, रामकनत जी मेरे पास आ कर बैठे, और मेरे सर पर हाथ फेरते हुए,"फिलहाल तुम मेरे साथ चलो, कुछ बात भी करनी है, और तुमसे कुछ काम भी है।"
फिर हम दोनो भी विला आ गए, मेरे रुकने का इंतजाम आनंद ने उसी रूम में करवाया था जिसमे मैं पहली बार रुका था। बाकी दिन ऐसे ही बीता, सुबह हों पर मैं जैसे ही बालकनी में आए तो वहां मुझे अनामिका और पवन खेलते हुए दिखे, पता नही क्यों अनामिका को देख दिल में एक हलचल सी हुई।
नाश्ते के लिए दादाजी ने मुझे फिर से अपनी स्टडी में बुलाया।
रमाकांत जी: आओ पृथ्वी हैव सम।
मैं बैठते हुए: जी दादाजी, बताइए क्या बात करनी थी आपको।
रमाकांत जी: बेटा मैं तुम्हारी दुविधा समझता हूं, तुम यही सोच रहे हो ना कि अब आगे कैसे क्या करना है?
"जी दादाजी, समझ नही आ रहा कहां से शुरू करें अब, ऐसे मोड़ पर आ चुका हूं की सब तरफ अंधेरा ही दिख रहा है।"
रमाकांत जी: इस अंधेरे से तुम्हे बस तुम्हारा परिवार ही निकल सकता है पृथ्वी। अपना फोन उठाओ और अपने दादाजी से बात करके पहले तो क्षमा मांगो, और पूरी बात बताओ। मैं हूं साथ तुम्हारे।
उन्होंने मेरे हाथ पर हाथ रख कर मुझे आश्वाशन दिया। मैने भी कुछ साहस बटोरते हुए मैंने दादाजी को फोन लगाया।
"हेलो दादाजी।"
.....
"दादाजी मैं आपका पृथ्वी, दादाजी, में बहुत पछता रहा हूं आज दादाजी, आपका कहना ना मान कर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी है दादाजी, मैं बहुत शर्मिंदा हूं अपनी उस हरकत पर दादाजी। ही सके तो मुझे माफ कर दीजिए। मैं आप सब का गुनहगार हूं।"
ये कहते ही मैं फफक कर रो पड़ा।
"बेटा, रो नही, मुझे सब पता है, रमाकांत जी ने मुझे सब बता दिया है, बेटा अगर जो आप अपनी हरकत को गलत मानते हैं तो हम सब आपको माफ कर देंगे, लेकिन पहली माफी आपको अनामिका और आनंद से मांगनी है।"
"मैने सबसे पहले उनसे ही माफी मांगी है दादाजी, और उन्होंने मुझे माफ कर दिया है दादाजी। बहुत बड़ा दिल है दोनो भाई बहन का।"
"फिर तो हम सब भी आपको माफ करते हैं बेटा, आप घर आइए जितनी जल्दी हो सके। और जरा रमाकांत जी से बात करवाओ।"
"जी दादाजी" मैने फोन रमाकांत जी की ओर बढ़ा दिया। दोनो में कुछ बात हुई उसके बाद रमाकांत जी ने मेरा फोन मुझे वापस किया।
रमाकांत जी: लो बेटा अपना फोन। और कल आप घर को निकल जाना, मैं होटल की कोई गाड़ी से दूंगा आपको।
"जी धन्यवाद दादाजी, आप लोग का मुझ पर बहुत आभार है, पता नही मैं कैसे चुकाऊंगा उसको।"
"बेटा आप सही राह पर चलो, बाकी किसी बात की चिंता न करो।"
"जी दादाजी, एक बात पूछूं?"
"बिलकुल"
"क्या अनामिका मुझसे शादी कर सकती है?"
"आप लेट हो बेटा, हमने उसकी शादी चंदन से पहले ही तय कर दी है। बड़ा प्यारा लड़का है वो, बहुत प्यार करता है वो अनामिका को। दोनो साथ मे खुश हैं।"
ये सुन कर दिल मे एक ठेस सी लगी, मगर ऊपर से मैं उनकी बात सुन कर मुस्कुरा दिया।
"अच्छा लगा सुन कर, चंदन वाकई में एक अच्छा लड़का है।"
फिर कुछ इधर उधर की बातें हुई और मैं कुछ देर बाद बहन निकल गया। थोड़ी देर बाद मेरे कदम हॉस्पिटल की ओर चल दिए, और वहां मैं चंदन के रूम की को चल पड़ा।
तभी मुझे दूर से उसके कमरे से एक नर्स बाहर निकलती दिखी, जो अपने कपड़े सही कर रही थी, मुझे कुछ अजीब सा लगा, फिर भी मैं उसके रूम के बाहर पहुंचा, और वहां वो किसी से फोन पर बात कर रहा था.......[/color]
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