RE: नए पड़ोसी
खाना खाने के बाद मैं अपने कमरे में आ गया और मम्मी पापा ऊपर अपने कमरे में चले गए. दोपहर को सोने की वजह से मुझे नींद तो आ नहीं रही थी तो मैंने मयंक की दी हुई किताब निकाली और पढने लगा. किताब में 4 कहानियां थी और सबमे सगा भाई अपनी छोटी या बड़ी बहन को चोदता है या दोस्तों से चुद्वाता है. देखा जाए तो एक तरीके से मैंने खुद आज अपनी बहन को अपने दोस्त से चुदवा दिया था तो मैं सारी कहानियों को झूठी नहीं मान पाया. कहानियां ख़तम करते करते बहुत रात हो गयी और मैं सो गया. सपने में मैंने देखा की मैं भी रश्मि दीदी को चोद रहा हूँ और इसी सपने की वजह से नींद में ही मैं झड गया. गीला गीला लगने से मेरी नींद खुल गयी और मैंने उठ कर अपने कपडे बदले और टाइम देखा तो रात के ३ बज रहे थे. मैं पता नहीं क्या सोच कर रश्मि दीदी के रूम में चला गया. दीदी आराम से उलटी होकर सो रही थी पर उसने कपडे बदल लिए थे. अपना सलवार कुरता बदल कर उसने गाउन पहन लिया था और गाउन नीचे से थोडा ऊपर उठ गया था तो दीदी की एक टांग थोड़ी से नंगी दिखाई दे रही थी. नाईट बल्ब की नीली रौशनी में दीदी की सफ़ेद टांग एकदम चमक रही थी. मैंने आगे बढ़ कर दीदी का गाउन थोडा सा और ऊपर कर दिया दीदी ने कोई हरकत नहीं की. फिर मैंने गाउन खीच कर दीदी जांघ को भी नंगा कर दिया. दीदी की केले के तने जैसी मोती और चिकनी जांघ देख कर मेरा लंड फिर से तन गया. वैसे कपड़ो के ऊपर से दीदी की जांघ देख कर कोई नहीं कह सकता था की दीदी की जांघे इतनी मोटी है. गाउन काफी ढीला था तो मैंने दूसरी टांग की तरफ से भी उसको ऊपर उठाया और धीरे धीरे दीदी की गांड तक ले आया. मेरी किस्मत काफी अच्छी थी क्योंकि दीदी ने पैंटी नहीं पहनी थी. अब दीदी की नंगी गांड मेरे सामने थी. सुबह जब मैंने दीदी को नंगा देखा था तो काफी दूर से देखा था पर अब इतने करीब से दीदी को देखने का ये मेरा पहला मौका था. मैंने हौले से अपना हाथ दीदी की गांड की तरफ बढ़ाया. मेरा हाथ डर से कॉप रहा था पर वासना से भी तो हमको हिम्मत मिलती है. और मैंने हिम्मत करके हाथ दीदी की गांड पर रख ही दिया. उफ्फ दीदी की गांड बहुत नर्म और गद्देदार थी. मैंने ध्यान से देखा तो दीदी की गांड एकदम बेदाग़ थी पर छेद के आस पास काफी लाल हो गयी थी. क्या हाल किया साले मयंक ने मेरी प्यारी दीदी की गांड का. रुची से पूरा बदला लूँगा. मैंने मन में सोचा फिर १ मिनट दीदी की गांड सहलाने के बाद वापस उनका गाउन नीचे करके मैं अपने कमरे में आ गया और दीदी के नाम का मुठ मारने लगा. मैं अभी थोड़ी देर पहले ही नींद में झडा था तो इतनी जल्दी झड़ने का सवाल ही नही था. जब मैं झडा तब तक मेरा लंड लाल हो चूका था और हल्का हल्का दर्द भी करने लगा था. मैंने फर्श से अपना वीर्य साफ़ किया और कपडे पहन कर वापस सो गया.
सुबह रश्मि दीदी की आवाज से मेरी नींद खुली "अरे उठ भी मनीष. बहुत देर हो गयी है". मैंने कहा "बस थोड़ी देर और सोने दो न दीदी." "अरे ११ बज रहे है. मम्मी पापा कब के चले गए. अब उठ भी जाओ. मैं नहाने जा रही हूँ. तुम्हारी चाय और नाश्ता किचन में रखा है. तुम ऊपर वाले बाथरूम में फ्रेश होकर खा पी लेना." दीदी ये बोल कर चली गयी. मैं थोड़ी देर बिस्तर पर ही पड़ा रहा. ११ बज गए और मुझे पता ही नहीं चला. अचानक कल का पूरा घटनाक्रम मेरे दिमाग में घूम गया और मेरा लंड फिर से खड़ा होने लगा. मैं उठा और कमरे से बाहर आया. रश्मि दीदी नहाने चली गयी थी. बाथरूम से शावर की आवाज आ रही थी. मैं ऊपर मम्मी पापा के बाथरूम में फ्रेश होने जाने लगा तभी अचानक दिमाग में ख्याल आया की दीदी शायद पूरी नंगी होकर नहा रही होगी. मैं वापस एक स्टूल लेकर बाथरूम की तरफ आया और स्टूल धीरे से बाथरूम के दरवाजे के सामने रख कर उसके ऊपर खड़ा हो गया. दरवाजे के ऊपर के रोशनदान से मैंने बाथरूम के अन्दर झाँका तो रश्मि दीदी का संगेमरमर सा सफ़ेद बदन पीछे से पूरा नंगा नजर आया. शावर से निकल कर दीदी के जिस्म पर पड़ती पानी की बूंदे दीदी की खूबसूरती में चार चाँद लगा रही थी. अचानक दीदी घूमी और मेरी तो लाटरी ही निकल पड़ी. उफ्फ क्या हुस्न था. कल थो मैं ठीक से देख नहीं पाया था क्योंकि ज्यादातर तो मयंक दीदी के ऊपर लदा हुआ था पर इस वक्त दीदी के बदन और मेरी आँखों के बीच एक सूत का धागा भी नहीं था. दीदी ने आंखे बंद कर रखी थी तो मैंने बेफिक्र होकर दीदी के बदन पर अपनी नज़रे गडा दी. दीदी की सुडौल आम जैसी कड़क चुचिया, पतली कमर, चौडी नाभि, क्लीन शेव चूत की लकीर उफ्फ दीदी स्वर्ग से उतरी कोई अप्सरा लग रही थी.
थोड़ी देर पीठ पर पानी डाल कर दीदी वापस घूम गयी और दीदी के बदन को कुछ देर पीछे से देखने के बाद मैं धीरे से स्टूल लेकर वहां से खिसक गया और ऊपर के बाथरूम में पहुच गया. मन तो बहुत हो रहा था की दीदी के नाम की मुठ मारू लेकिन मैंने सोचा की अगर सारा दिन तो दीदी को देख कर मेरा लंड खड़ा रहेगा तो मैं कितनी बार मुठ मारूंगा और मैंने फ़ैसला किया की अब मैं दीदी के नाम की मुठ नहीं मारूंगा बल्कि कुछ जुगाड़ करके दीदी की चूत ही मारूंगा. मैं फ्रेश हुआ और ये सोच कर की रुची की चूत कभी भी मिल सकती है नहाने से पहले अपनी झांटे भी साफ़ कर ली. मैं नहा धोकर जब नीचे आया तब तक दीदी भी तैयार हो चुकी थी और टीवी देख रही थी. मैंने अपना नाश्ता लिया और उनके साथ बैठ कर खाने लगा. मैंने देखा की दीदी ने जीन्स टीशर्ट पहन रखी थी जिसमे वो काफी सेक्सी लग रही थी. वैसे दीदी ज्यादातर सलवार कुरता ही पहनती थी और स्कर्ट जीन्स काफी कम पहनती थी पर जब से उनका मयंक से चक्कर चला है दीदी का ड्रेसिंग स्टाइल काफी बदल गया है. हम दोनों के बीच कुछ बात नहीं हुई. मैं दीदी के ताड़ते हुए नाश्ता करता रहा और दीदी टीवी देखती रही. मैं उठा ही था की फ़ोन बजा. मैंने दीदी से कहा की मैं देखता हूँ. मैंने फ़ोन उठाया तो दूसरी तरफ से मयंक की आवाज आई, "हाँ मनीष. क्या हो रहा है." "कुछ नहीं नाश्ता कर रहा था. क्या हुआ रुची वापस आ गयी क्या?" मैंने पुछा. "इसीलिए तो मैंने तुम्हे फ़ोन किया है. ये सब लोग कल देर रात ही वापस आ गए थे. मेरी रुची से बात हो गयी है. अगर घर पर कोई न हो तो हम दोनो अभी एक घंटे में तुम्हारे घर आ जाते है." मयंक ने पुछा. "नेकी और पूछ पूछ. आ जाओ भाई. घर पर केवल मैं और रश्मि है. मम्मी पापा शाम तक वापस आएंगे." मैंने ख़ुशी से उछलते हुए कहा. "ठीक है. हम तैयार हो कर आते है. तुम दोनों भी तैयार हो जाओ." ये कह कर मयंक ने फ़ोन काट दिया.
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