RE: rajsharmastories धोबन और उसका बेटा
कुच्छ सोच
भी नही पा रहा था. फिर मैने सोचा की जब उस वाक़ूत मा ने खुद
मेरा हाथ अपनी चुचियों पर रखा दिया था तो फिर अगर मैं खुद
अपने मन से रखू तो शायद दाँटेगी नही, और फिर अगर दाँटेगी तो बोल
दूँगा तुम्ही ने तो मेरा हाथ उस व्क़ुत पाकर कर रखा था, तो अब मैं
अपने आप से रख दिया. सोचा शायद तुम बुरा नही मनोगी. यही सब
सोच कर मैने अपने हाथो को धीरे से उसकी चुचियों पर ले जा के
रख दिया, और हल्के हल्के सहलाने लगा. मुझे ग़ज़ब का मज़ा आ रहा
था मैने हल्के से उसकी सारी को पूरी तरह से उसके ब्लाउस पर से
हटा दिया और फिर उसकी चुचियों को दबाया. ऊवू इतना ग़ज़ब का मज़ा
आया की बता नही सकता, एकद्ूम गुदाज़ और सख़्त चुचियाँ थी मा की
इस उमर में भी मेरा तो लंड खरा हो गया, और मैने अपने एक हाथ
को चुचियों पर रखे हुए दूसरे हाथ से अपने लंड को मसल्ने लगा.
जैसे जैसे मेरी बेताबी बढ़ रही थी वैसे वैसी मेरे हाथ दोनो
जगहो पर तेज़ी के साथ चल रहे थे. मुझे लगता है की मैने मा
की चुचियों को कुच्छ ज़्यादा ही ज़ोर से दबा दिया था, शायद इसीलिए
मा की आँख खुल गई. और वो एकदम से हर्बराते उठ गई और अपने
अचल को संभालते हुए अपनी चुचियों को ढक लिया और फिर, मेरी
तरफ देखती हुई बोली, "हाय, क्या कर रहा था तू, हाय मेरी तो आँख लग
गई थी" मेरा एक हाथ अभी भी मेरे लंड पर था, और मेरे चेहरे
का रंग उर गया था. मा ने मुझे गौर से एक पल के लिए देखा और
सारा माजरा समझ गई और फिर अपने चेहरे पर हल्की सी मुस्कुरहत
बिखेरते हुए बोली "हाय, देखो तो सही क्या सही काम कर रहा था ये
लरका, मेरा भी मसल रहा था और उधर अपना भी मसल रहा था".
फिर मा उठ कर सीधा खरी हो गई और बोली "अभी आती हू" कह कर
मुस्कुराते हुए झारियों की तरफ बढ़ गई. झारियों के पिच्चे जा के
फिर अपने चूटरो को ज़मीन परा सताए हुए ही थोरा आगे सरकते हुए
मेरे पास आई, उसके सरक कर आगे आने से उसके सारी थोई सी उपर हो
गई और उसका आँचल उसकी गोद में गिर गया. पर उसको इसकी फिकर नही
थी. वो अब एक दम से मेरे नज़दीक आ गई थी और उसकी गरम साँसे
मेरे चेहरे पर महसूस हो रही थी. वो एक पल के लिए ऐसे ही मुझे
देखती रही फिर मेरे थोड़ी पाकर कर मुझे उपर उठाते हुए हल्के से
मुस्कुराते हुए धीरे से बोली "क्यों रे बदमाश क्या कर रहा था, बोल
ना क्या बदमसी कर रहा था अपनी मा के साथ" फिर मेरे फूले फूले
गाल पाकर कर हल्के से मसल दिया. मेरे मुँह से तो आवाज़ नही निकाल
रही थी, फिर उसने हल्के से अपना एक हाथ मेरे जाँघो पर रखा और
सहलाते हुए बोली "है, कैसे खरा कर रखा है मुए ने" फिर सीधा
पाजामा के उपर से मेरे खरे लंड जो की मा के जागने से थोरा ढीला
हो गया था पर अब उसके हाथो स्पर्श पा के फिर से खरा होने लगा
था पर उसने अपने हाथ रख दिया, "उई मा, कैसे खरा कर रखा
है, क्या कर रहा था रे, हाथ से मसल रहा था क्या, है, बेटा और
मेरी इसको भी मसल रहा था, तू तो अब लगता है जवान हो गया है,
तभी मैं काहु की जैसे ही मेरा पेटिकोट नीचे गिरा ये लरका मुझे
घूर घूर के क्यों देख रहा था, ही, इस लरके की तो अपनी मा के उपर
ही बुरी नज़र है"
"ओहो अब बोल रहा है ग़लती हो गई, पर अगर मैं नही जागती तो, तू
तो अपना पानी निकाल के ही मानता ना, मेरे छातियों को दबा दबा के,
उम्म्म... बोल, निकालता की ऩही पानी"
"है, मा ग़लती हो गई,
"वाह रे तेरी ग़लती, कमाल की ग़लती है, किसी का मसल दो दबा दो फिर
बोलो की ग़लती हो गई, अपना मज़ा कर लो दूसरे चाहे कैसे भी रहे",
कह कर मा ने मेरे लंड को कस के दबाया, उसके कोमल हाथो का स्पार्स
पा के मेरा लंड तो लोहा हो गया था, और गरम भी काफ़ी हो गया था.
"हाई मा, छ्होरो, क्या कर रही हो"
मा उसी तरह से मुस्कुराती हुई बोली "क्यों प्यारे तूने मेरा दबाया तब
तो मैने नही बोला की छ्होरो, अब क्यों बोल रहा है तू," मैने
कहा "ही, मा तू दबाएगी तो सच में मेरा पानी निकाल जाएगा, ही
छ्होरो ना मा,".
"क्यों पानी निकालने के लिए ही तो तू दबा रहा था ना मेरी छातिया,
मैं अपने हाथ से निकाल देती हू, तेरे गन्ने से तेरा रूस, चल, ज़रा
अपना गन्ना तो दिखा,"
"है मा छ्होरो, मुझे शरम आती है"
"अक्चा, अभी तो बरा शरम आ रही है, और हर रोज जो लूँगी और
पाजामा हटा हटा के, सफाई जब करता है तब, तब क्या मुझे दिखाई
नही देता क्या, अभी बरी आक्टिंग कर रहा है,"
"है नही मा, तब की बात तो और है, फिर मुझे थोरे ही पाता होता
था की तुम देख रही हो",
"ओह ओह मेरे भोले राजा, बरा भोला बन रहा, चल दिखा ना, देखु
कितना बरा और मोटा है तेरा गन्ना"
मैं कुच्छ बोल नही पा रहा था, मेरे मुँह से साबद नही निकाल पा
रहे थे, और लग रहा था जैसे, मेरा पानी अब निकला की तब निकला.
इस बीच मा ने मेरे पाजामे का नारा खोल दिया और अंदर हाथ डाल के
मेरे लंड को सीधा पकर लिए, मेरा लंड जो की केवल उसके च्छुने के
कारण से फुफ्करने लगा था अब उसके पकरने पर अपनी पूरी औकात पर
आ गया और किसी मोटे लोहे के रोड की तरह एक दम टन कर उपर की
तरफ मुँह उठाए खरा था. मा ने मेरे लंड को अपने हाथो में
पकरने पूर कोशिश कर रही थी पर, मेरे लंड की मोटाई के कारण से
वो उसे अपने मुट्ठी में अच्छी तरह से क़ैद नही कर पा रही थी.
उसने मेरे पाजामे को वही खुले में पेर के नीचे मेरे लंड पर से
हटा दिया,
"ही मा, छ्होरो, कोई देख लेगा, ऐसे कपरा मत हटाओ" मगर मा
शायद पूरे जोश में आ चुकी थी,
"चल कोई नही देखता, फिर सामने बैठी हू, किसी को नज़र नही
आएगा, देखु तो सही मेरे बेटे का गन्ना आख़िर है कितना बरा"
और मेरा लंड देखता ही, असचर्या से उसका मुँह खुला का खुला रह
गया, एक डम से चौक्ति हुई बोली, "है दैयया ये क्या इतना मोटा, और
इतना लूंबा, ये कैसे हो गया रे, तेरे बाप का तो बीतते भर का भी
नही है, और यहा तू बेलन के जैसा ले के घूम रहा"
"ओह, मा, मेरी इसमे क्या ग़लती है, ये तो सुरू में पहले छ्होटा सा
था पर अब अचानक इतना बरा हो गया है तो मैं क्या करू"
"ग़लती तो तेरी ही है जो तूने , इतना बरा जुगार होते हुए भी अभी
तक मुझे पाता नही चलने दिया, वैसे जब मैने देखा था नहाते
वाक़ूत तब तो इतना बरा नही दिख रहा था रे"
|