RE: rajsharmastories धोबन और उसका बेटा
मैं हल्के से शरमाते हुए मुस्कुरा दिया तो बोली "क्यों अब
भी शर्मा रहा है क्या". मैने इस पर कुच्छ ऩही कहा और चुप चाप
उठ कर खरा हो गया. वो आगे चल दी और मैं उसके पिच्चे-पिच्चे
चल दिया. झारियों तक की डूस कदम की ये दूरी मैने मा के पिच्चे
पिच्चे चलते हुए उसके गोल मटोल गदराए हुए चूटरो पर नज़रे
गढ़ाए हुए तै की. उसके चलने का अंदाज़ इतना मदहोश कर देने वाला
था. आज मेरे देखने का अंदाज़ भी बदला हुआ था शायद इसलिए मुझे
उसके चलने का अंदाज़ गजब का लग रहा था. चलते वाक़ूत उसके दोनो
चूतर बरे नशीले अंदाज़ में हिल रहे थे और उसके सारी उसके दोनो
चूटरो के बीच में फस गई थी, जिसको उसने अपने हाथ पिच्चे ले जा
कर निकाला. जब हम झारियों के पास पहुच गये तो मा ने एक बार
पिच्चे मूर कर मेरी ओर देखा और मुस्कुरई फिर झारियों के पिच्चे
पहुच कर बिना कुच्छ बोले अपने सारी उठा के पेशाब करने बैठ गई.
उसकी दोनो गोरी गोरी जंघे उपर तक नंगी हो चुकी थी और उसने
शायद अपने सारी को थोरा जान भुज कर पिच्चे से उपर उठा दिया था
जिस के कारण उसके दोनो चूतर भी नुमाया हो रहे थे. ये सीन देख
कर मेरा लंड फिर से फुफ्करने लगा. उसका गोरे गोरे चूतर बरे कमाल
के लग रहे थे. मा ने अपने चूटरो को थोरा सा उचकाया हुआ था जिस
के कारण उसके गांद की खाई भी धीख रही थी. हल्के भूरे रंग की
गांद की खाई देख कर दिल तो यही कर रहा था की पास जा उस गांद
की खाई में धीरे धीरे उंगली चलौ और गांद की भूरे रंग की
च्छेद को अपनी उंगली से च्चेरू और देखु की कैसे पाक-पकती है.
तभी मा पेशाब कर के उठ खरी हुई और मेरी तरफ घूम गई. उसेन
अभी तक सारी को अपने जेंघो तक उठा रखा था. मेरी ओर देख कर
मुस्कुराते हुए उसने अपने सारी को छ्होर दिया और नीचे गिरने दिया, फिर
एक हाथ को अपनी चूत पर सारी के उपर से ले जा के रगार्ने लगी
जैसे की पेशाब पोच्च रही हो और बोली "चल तू भी पेशाब कर ले
खरा खरा मुँह क्या तक रहा है". मैं जो की अभी तक इस शानदार
नज़ारे में खोया हुआ था थोरा सा चौंक गया पर फिर और हकलाते
हुए बोला "हा हा अभी करता हू,,,,,, मैने सोचा पहले तुम कर लो
इसलिए रुका था". फिर मैने अपने पाजामा के नारे को खोला और सीधा
खरे खरे ही मूतने की कोशिश करने लगा. मेरा लंड तो फिर से
खरा हो चुक्का था और खरे लंड से पेशाब ही ऩही निकाल रहा था.
मैने अपनी गांद तक का ज़ोर लगा दिया पेशाब करने के चक्कर में.
मा वही बगल में खरी हो कर मुझे देखे जा रही थी. मेरे खरे
लंड को देख कर वो हसते हुए बोली "चल जल्दी से कर ले पेशाब, देर
हो रही है घर भी जाना है" मैं क्या बोलता पेशाब तो निकाल ऩही
रहा था. तभी मा ने आगे बढ़ कर मेरे लंड को अपने हाथो में
पकर लिया और बोली "फिर से खरा कर लिया, अब पेशाब कैसे उतरेगा'
कह कर लंड को हल्के हल्के सहलाने लगी, अब तो लंड और टाइट हो
गया पर मेरे ज़ोर लगाने पर पेशाब की एक आध बूंदे नीचे गिर गई,
मैने मा से कहा "अर्रे तुम छ्होरो ना इसको, तुमहरे पकरने से तो ये
और खरा हो जाएगा, ही छ्होरो" और मा का हाथ अपने लंड पर से
झतकने की कोशिश करने लगा, इस पर मा ने हसते हुए कहा "मैं तो
छ्होर देती हू पर पहले ये तो बता की खरा क्यों किया था, अभी दो
मिनिट पहले ही तो तेरा पानी निकाला था मैने, और तूने फिर से खरा
कर लिया, कमाल का लरका है तू तो". मैं खुच्छ ऩही बोला, अब लंड
थोरा ढीला पर गया था और मैने पेशाब कर लिया. मूतने के बाद
जल्दी से पाजामा के नारे को बाँध कर मैं मा के साथ झारियों के
पिच्चे से निकाल आया, मा के चेहरे पर अब भी मंद मंद मुस्कान आ
रही थी. मैं जल्दी जल्दी चलते हुए आगे बढ़ा और कापरे के गत्थर
को उठा कर अपने माथे पर रख लिया, मा ने भी एक गथर को उठा
लिया और अब हम दोनो मा बेटे जल्दी जल्दी गाँव के पगडंडी वाले
रास्ते पर चलने लगे. गर्मी के दिन थे अभी भी सूरज चमक रहा
था थोरी दूर चलने के बाद ही मेरे माथे से पसीना च्चालकने लगा.
मैं जान भुज कर मा के पिच्चे पिच्चे चल रहा था ताकि मा के
मटकते हुए चूटरो कॅया आनंद लूट साकु और...
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