बाली उमर का चस्का
06-17-2017, 12:11 PM,
#2
RE: बाली उमर का चस्का
मैं डॉली दीदी की हरकतों को देख के हैरान भी थी और उनकी हिम्मत की दाद भी दे रही थी। तभी वह दोनों लडको पे मेरी नजर पड़ी तो देखा की यह वही दोनों हैं जो मुझे घूरते थे। मैने ध्यान से उनकी बातों को सुना तो पता चला की वह मेरे ही बारे में बातें कर रहे थे। डॉली दीदी ने उनको मेरा नाम बताया और कहा की वह दोनों सबर रखें तो मेरी उनसे दोस्ती करवा देंगी। यह बात सुन के मेरा दिल मस्ती से कूदने लगा और मैं वहां से चली आई। 15 मिनट बाद वह तीनो भी आ गये और डॉली दीदी ने मुझे बुला के अपने दोनों दोस्तों से परिचय करवाया। उनके नाम राज और जय था। 
राज ऊँचा लम्बा हट्टा कट्टा लड़का था। रंग सांवला और चेहरे पे शेव बनाई हुई थी जिस से अंदाजा हो गया की वह व्यस्क हो चूका था। मोहल्ले के सभी लड़ों पे उसका दबदबा था क्युकी वह बॉडी बिल्डिंग करता था जिम में और अमीर माँ बाप का इकलोता बेटा था। उसके पापा पंजाबी ब्राह्मण और माँ कश्मीरी पंडित थी। जय कश्मीरी पंडित लड़का था। एकदम गोरा चिट्टा और चिकना पर बातों का उतना ही तेज़ और चिकनी चुपड़ी बातें करने वाला। राज ने दोस्ती का हाथ मेरी और बढाया और मैंने भी बिना देरी के अपना हाथ उसके हाथ में दे दिया। जय भी मेरे पास आया और हाथ आगे बढाया पर राज मेरा हाथ छोड़ने को तयार ही नही था। डॉली दीदी हँसते हुए बोली अनु कौर राज का हाथ छोड़ेगी या बेचारा जय खड़ा रहे। मैं शर्म से लाल हो गयी पर राज ने बेशर्मो की तरह मेरा हाथ पकडे रखा। मुझे मजबूरी में अपने बायें हाथ से जय का हाथ थामना पड़ा। यह देख के डॉली दीदी बोली की तुम दोनों नई सरदारनी के चक्कर में पुरानी को भूल तो नही जाओगे। इस्पे राज ने हस के कहा की चिकनी सिखनियो का साथ नसीब वालों को मिलता है। इस बात पे हम सब खूब खिलखिला के हस दिए और हमारी दोस्ती का सफ़र शुरू हो गयानये माहोल में आ के एज नये खुल्लेपन का एहसास होने लगा था। 
राज और जय से दोस्ती कर के नई उमंगे परवान चड़ने लगी थी। डॉली दीदी भी खूब बढ़ावा देती थी मुझे। एक दिन शाम को हम सारे छुप्पा छुपी खेल रहे थे। मैं राज के साथ एक दीवार के पीछे छुप गये। जय डॉली दीदी के साथ उनके घर के टॉयलेट में छुप गये जो बाहर बना हुआ था लॉन में। राज ने मुझे अपने सामने कर लिया और चुप रहने को कहा। तभी राजू जो हम सबको ढूंड रहा था वहां आया पर हम राज ने मोका देखते मेरा हाथ पकड़ा और जय के टॉयलेट की और दौड़ पड़ा। मैं भी राज का साथ देती हुई वहां पोहंच गयी। राज ने जय से दरवाजा खोलने को कहा और फिर हम दोनों भी अंदर घुस गये। अब जो हुआ उसके लिए मैं बिलकुल तयार नही थी।राज मेरे पीछे खड़ा हो गया और जय डॉली दीदी के। फिर जय ने अपने कूल्हे को डॉली के नितम्बों पे रगड़ना शुरू कर दिया। मैं आंखें खोल के डॉली को देख रही थी पर उसने मुझसे कहा ऐसा करने में बहुत मज्जा आता हे। मैं कुछ समझ पाती उससे पहले राज ने अपने कूल्हे को मेरे नितंबो से लगा दिया। मेरी सिस्कारियां निकल गयी पर डॉली ने मेरा हाथ थाम के मुझे चुप रहने का इशारा किया। 
बाहिर राजू हमें ढूंड रहाथा और अंदर हम रासलीला कर रहे थे। राज ने अपना मोटा लम्बा लिंग मेरे नितंबो के बिच की दरार में फस्सा दिया था और अब हलके हलके धक्के दे के वोह मुझे चंदन की याद दिला रहा था। मेने घुटनों जितनी फ्रॉक पहनी थी और वोह भी अब राज ने हाथ से उठानी शुरू कर दी। मेरी गरम सांसें तेज़ी से चलने लगी और राज भी अब अपनी साँसों को मेरी गर्दन गले और पीठ पे छोड़ने लगा जिस से मेरी मस्ती दोगुनी होती गयी। सामने जय ने डॉली की स्कर्ट कमर तक उठा ली हुई थी और अपने कूल्हों को बड़ी तेज़ी से उसके नितंबो पे रगड़ रहा था। हम चारों की तेज़ सांसें उस छोटी सी जगह पे कोहराम मचा रही थी।
जय ने डॉली की पेंटी घुटनों तक खिसका दी थी। डॉली की हालत बदहवासी से भरी हुई थी और वह जय को उकसा रही थी । इधर राज बड़े ध्यान से मेरी हालत पतली करने मैं लगा हुआ था। मेरी फ्रॉक अब कमर तक उठ चुकी थी। मेरी पेंटी भी घुटनों तक खिस्सक गयी हुई थी और राज का लिंग भी बाहिर आ गया था। मेने अपने नग्न नितम्बों पर उसका गरम नंगा लिंग महसूस किया और बिजली के झटके से महसूस करते हुए राज के अगले कदम का इंतजार करने लगी। राज ने भी देर नहीं की और सीधे अपने लिंग को मेरी जाँघो के बीच फस्सा दिया। मेरी उमंगें तरोताजा हो गयी और मैं हवस के खेल का खुल के मज्जा लेने लगी। 
अब मेरी नज़र डॉली पेपड़ी जो की घोड़ी की तरह झुकी हुई थी और तक़रीबन नंगी हो चुकी थी पूरी तरह। जय ने अपने लिंग पे थूक लगा के डॉली के नितंबो के बीच गान्ड द्वार पर रख के तेज़ धक्का मारा । डॉली की हलकी चीख निकली और फिर उसने अपने होंठो को दांतों तल्ले दबा दिया। उफ्फ्फ क्या नज़ारा था .... जय का लिंग डॉली के अंदर बाहर हो रहा था और डॉली झुक्की हुई मज्जे ले ले के मरवा रही थी। मेरा मन किया की काश डॉली की जगह मैं होती। तभी राज ने अपने लिंग पे थूक लगा दी और फिर मुझे झुकने को कहा। मैं भी बिना सोचे समझे झुक गयी और आने वाले तूफ़ान की तयारी करने लगी। फिर राज ने भी मेरी गान्ड पर थूक लगा के ऊँगली अन्दर घुसा दी। मेरी सांस उपर की उपर और नीचे की निचे रुक गयी। पर कुछ ही पलों बाद सब सामान्य हो गया और अब राज की ऊँगली पूरी तेज़ी से मेरी गांड में अंदर बाहिर होने लगी। इसके बाद राज ने मेरी गांड में और थूक लगा के अपने लंड को लगा दिया। फिर मेरी पतली कमर को थाम के एक करारा शॉट मारा। मेरी जोर से चीख निकल गयी और मैंने राज को धक्केल के पीछे हटा दिया। राज ने मुझसे पुछा क्या हुआ तो मैं बोली की बहुत दर्द हुआ। इस्पे राज ने डॉली की और इशारा करके कहा की यह भी तो पूरा लंड ले रही हे। 
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RE: बाली उमर का चस्का - by sexstories - 06-17-2017, 12:11 PM

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