Hindi sex मैं हूँ हसीना गजब की
06-25-2017, 12:54 PM,
#13
RE: Hindi sex मैं हूँ हसीना गजब की
मैं हूँ हसीना गजब की--पार्ट--5

गतान्क से आगे........................

जब बार बार परेशानी हुई तो उन्हों ने मुझे बिस्तर से नीचे उतार
कर पहले बिस्तर के कोने मे मसनद रखा फिर मुझे घुटनो के बल
झुका दिया. अब मेरे पैर ज़मीन पर घुटनो के बल टीके हुए थे और
कमर के उपर का बदन मसनद के उपर से होता हुआ बिस्तर पर पसरा
हुआ था. मसनद होने के कारण मेरे नितंब उपर की उर उठ गये थे.
येअवस्था मेरे लिए ज़्यादा सही थी. मेरे किसी भी अंग पर अब ज़्यादा ज़ोर
नही पड़ रहा था. इस अवस्था मे उन्हों ने बिस्तर के उपर अपने हाथ
रख कर अपने लिंग को वापस मेरी योनि मे ठोक. कुच्छ देर तक इस
तरहठोकने के बाद उनके लिंग से रस झड़ने लगा. उन्हों ने मेरी योनि मे
सेअपना लिंग निकाल कर मुझे सीधा किया और अपने वीर्य की धार मेरे
चेहरे पर और मेरे बालों पर कर दिया. इससे पहले कि मैं अपना मुँह
खोलती, मैं उनके वीर्य से भीग चुकी थी. इस बार झड़ने मे उन्हे
बहुत टाइम लग गया.

मैं थकान से एकद्ूम निढाल हो चुकी थी. मुझमे उठकर बाथरूम मे
जाकर अपने को सॉफ करने की भी हिम्मत नही थी. मैं उसी अवस्था मे
आँखें बंद किए पड़ी रही. मेरा आधा बदन बिस्तर पर था और आधा
नीचे. ऐसे अजीबोगरीब अवस्था मे भी मैं गहरी नींद मे डूब
गयी. पता ही नही चला कब कमल्जी ने मुझस सीधा कर के बिस्तर
पर लिटा दिया और मेरे नग्न बदन से लिपट कर खुद भी सो गये.


बीच मे एक बार ज़ोर की पेशाब आने की वजह से नींद खुली तो मैने
पाया कि कमल्जी मेरे एक स्तन पर सिर रखे सो रहे थे. मैने उठने
की कोशिश की लेकिन पूरा बदन दर्द से टूट रहा था इस लिए मैं
दर्द से कराह उठी. मुझसे उठा नही गया तो मैने कमल्जी को उठाया.

"मुझे सहारा देकर बाथरूम तक ले चलो प्लीईएसए" मैने उनसे
कहा. उन्हों ने उठ कर मुझे सहारा दिया मैं लड़खड़ते कदमों से उनके
कंधे पर सारा बोझ डालते हुए बाथरूम मे गयी. उन्हों ने मुझे
अंदर छ्चोड़ कर खड़े हो गये.

" आप बाहर इंतेज़ार कीजिए. मैं बुला लूँगी." मैने कहा.

" अरे कोई बात नही मैं यहीं खड़ा रहता हूँ अगर तुम गिर गयी
तो?"

" छि इस तरह आपके सामने इस हालत मे मैं कैसे पेशाब कर सकती
हूँ?"

"तो इसमे शरमाने की क्या बात है? हम दोनो मे तो सब कुच्छ हो गया
है अब शरम किस बात की?" उन्हों ने बाथरूम का दरवाजा भीतर से
बंद करते हुए कहा.

"मैने शर्म के मारे अपनी आँखें बंद कर ली. मेरा चेहरा शर्म से
लाल हो रहा था. लेकिन मैं इस हालत मे अपने पेशाब को रोकने मे
असमर्थ थी सो मैं कॉमोड की सीट पर इसी हालत मे बैठ गयी.

जब मैं फ्री हुई तो उन्हों ने वापस मुझे सहारा देकर बिस्तर तक
छ्चोड़ा. मैं वापस उनकी बाहों मे दुबक कर गहरी नींद मे सो गयी.

अगले दिन सुबह मुझे कल्पना दीदी ने उठाया तब सुबह के दस बज

रहे
थे. मैं उस पर भी उठने के मूड मे नही थी और "उन्ह उन्ह" कर रही
थी. अचानक मुझे रात की सारी घटना याद आई. मैने चौंक कर
आँखें खोली तो मैने देखा कि मेरा नग्न बदन गले तक चादर से
ढका हुआ है. मुझ पर किसने चादर ढक दिया था पता नही चल
पाया. वैसे ये तो लग गया था कि ये कमल के अलावा कोई नही हो
सकताहै.

"क्यों बन्नो? रात भर कुटाई हुई क्या?" कल्पना दीदी ने मुझे छेड़ते
हुए पूचछा.

"दीदी आअप भी ना बस……"मैने उठते हुए कहा.

" कितनी बार डाला तेरे अंदर अपना रस. रात भर मे तूने तो उसकी
गेंदों का सारा माल खाली कर दिया होगा."

मैं उठ कर बाथरूम की ओर भागने लगी तो उन्हों ने मेरी बाँह पकड़
कर रोक लिया, "बताया नही तूने?"

मैं अपना हाथ छुड़ा कर बाथरूम मे भाग गयी. कल्पना दीदी
दरवाजा
खटखटती रह गयी लेकिन मैने दरवाजा नही खोला. काफ़ी देर तक
मैं शवर के नीचे नहाती रही और अपने बदन पर बने अनगिनत
दाँतों के दागों को सहलाती हुई रात के मिलन की एक एक बात को याद
करने लगी. मैं बावरइयों की तरह खुद ही मुस्कुरा रही थी कमल्जी
की
हरकतें याद करके. उनका प्यार करना, उनकी हरकतें, उनका गठा हुआ
बदन. उनके बाजुओं से उठती पसीने की खुश्बू, उनकी हर चीज़ मुझ
पर एक नशा मे डुबती जा रही थी. मेरे बदन का रोया रोया किसी
बिन ब्याही युवती की तरह अपने प्रेमी को पुकार रही थी. शवर से
गिरती ठंडे पानी की फुहार भी मेरे बदन की गर्मी को ठंडा नही
कर पा रही थी बकली खुद गर्म भाप बन कर उड़ जा रही थी.

काफ़ी देर तक नहाने के बाद मैं बाहर निकली. कपड़े पहन कर मैं
बेडरूम से निकली तो मैने पाया की जेठ जेठानी दोनो निकलने की
तैयारीमे लगे हुए हैं. ये देख कर मेरा वजूद जो रात के मिलन के बाद
सेबादलों मे उड़ रहा था एक दम से कठोर ज़मीन पर आ गिरा. मेरा
चहकता हुआ चेहरा एकद्ूम से कुम्हला गया.

मुझे देखते ही पंकज ने कहा, "स्मृति खाना तैयार करलो. भाभी
ने काफ़ी कुच्छ तैयारी कर ली है अब फिनिशिंग टच तुम देदो.
भैया भाभी जल्दी ही निकल जाएँगे."
मैं कुच्छ देर तक चुपचाप खड़ी रही और तीनो को समान पॅक करते
देखती रही. कमल्जी कनखियों से मुझे देख रहे थे. मेरी आँखें
भारी हो गयी और मैं तुरंत वापस मूड कर किचन मे चली गयी.

मैं किचन मे जाकर रोने लगी. अभी तो एक प्यारे से रिश्ते की
शुरुआत ही हुई थी और वो पत्थर दिल बस अभी छ्चोड़ कर जा रहा है. मैं
अपने होंठों पर अपने हाथ को रख कर सुबकने लगी. तभी पीछे
सेकोई मेरे बदन से लिपट गया. मैं उनको पहचानते ही घूम कर उनके
सीने से लग कर फफक कर रो पड़ी. मेरे आँसुओं का बाँध टूट गया
था.

"प्लीज़ कुच्छ दिन और रुक जाओ." मैने सुबक्ते हुए कहा.

"नही आज मेरा ऑफीस मे पहुँचना बहुत ज़रूरी है वरना एक
इंपॉर्टेंट मीटिंग कॅन्सल करनी पड़ेगी."

"कितने बेदर्द हो. आपको मीटिंग की पड़ी है और मेरा क्या होगा?"

"क्यों पंकज है ना. और हम हमेशा के लिए थोड़ी जा रहे हैं
कुच्छ
दिन बाद बाद मिलते रहेंगे. ज़्यादा साथ रहने से रिश्तों मे बसीपान
आ जाता है." वो मुझे सांत्वना देते हुए मेरे बालों को सहला रहे
थे. मेरे आँसू रुक चुके थे लेकिन अभी भी उनके सीने से लग कर
सूबक रही थी. मैने आँसुओं से भरा चेहरा उपर किया. कमल ने
अपनी
उंगलियों से मेरे पलकों पर टीके आँसुओं को सॉफ किया फिर मेरे गीले
गालों पर अपने होंठ फिराते हुए मेरे होंठों पर अपने होंठ रख
दिए. मैं तड़प कर उनसे किसी बेल की तरह लिपट गयी. हमारा
वजूद
एक हो गया था. मैने अपने बदन का सारा बोझ उनपर डाल दिया और
उनके मुँह मे अपनी जीभ डाल कर उनके रस को चूसने लगी. मैने
अपने
हाथों से उनके लिंग को टटोला

"तेरी बहुत याद आएगी." मैने ऐसे कहा मानो मैं उनके लिंग से बातें
कर रही हूँ," तुझे नही आएगी मेरी याद?"

" इसे भी हमेशा तेरी याद आती रहे गी." उन्हों ने मुझसे कहा.

"आप चल कर तैयारी कीजिए मैं अभी आती हूँ." मैने उनसे कहा.
वोमुझे एक बार और चूम कर वापस चले गये.

उनके निकलने की तयारि हो चुकी थी. उनके निकलने से पहले मैने
सबकी आँख बचा कर उनको एक गुलाब भेंट किया जिसे उन्हों ने तुरंत
अपने होंठों से छुआ कर अपनी जेब मे रख लिया.

काफ़ी दीनो तक मैं उदास रही. पंकज मुझे बहुत टीज़ करता था
उनका नाम ले लेकर. मैं भी उनके बातों के जवाब मे कल्पना दीदी को ले
आतीथी. धीरे धीरे हुमारा रिश्ता वापस नॉर्मल हो गया. कमल का
अक्सरमेरे पास फोन आता था. हम नेट पर कॅम की हेल्प से एक दूसरे को
देखते हुए बातें करते थे.

लेकिन जो सबसे बुरा हुआ वो ये कि मेरी प्रेग्नेन्सी नही ठहरी. कमल्जी
को एक यादगार गिफ्ट देने की तमन्ना दिल मे ही रह गयी.

उसके बाद काफ़ी दीनो तक ज़्ब कुच्छ अच्च्छा चलता रहा सबसे बुरा तो
येहुआ कि कमल्जी से उन मुलाकात के बाद उस महीने मेरे पीरियड्स आ गये.
उनके स्पर्म से मैं प्रज्नेन्ट नही हुई. ये उनको और ज़्यादा उदास कर
गया.
लेकिन मैने उन्हे दिलासा दिया. उनको मैने कहा कि मैने जब ठान
लियाहै तो मैं तुम्हे ये गिफ्ट तो देकर ही रहूंगी.

वहाँ सब ठीक ठाक चलता रहा लेकिन कुच्छ महीने बाद पंकज
काम से देर रात तक घर आने लगा. मैने उनके ऑफीस मे भी पता
किया तो पता लगा कि वो बिज़्नेस मे घाटे के दौर से गुजर रहा है.
और जो फर्म उनका सारा प्रोडक्षन खरीद कर अब्रोड भेजता था उस
फर्मने उनसे रिस्ता तोड़ देने का ऐलान किया है.

एक दिन जब उदास हो कर घर आए तो मैने उनसे इस बारे मे डिसकस
करने का सोचा. मैने उनसे पूछा कि वो परेशान क्यों रहने लगे
हैं. तो उन्होने कहा,


"एलीट एक्शप्रोटिंग फर्म हुमारी कंपनी से नाता तोड़ रहा है. जहाँ तक
मैने सुना है उनका मुंबई की किसी फर के साथ पॅक्ट हुआ है."

"लेकिन हुमारी कंपनी से इतना पुराना रिश्ता कैसे तोड़ सकते हैं."

"क्या बताउ उस फर्म का मालिक रस्तोगी और छिन्नास्वामी पैसे के अलावा
भी कुच्छ फेवर माँगते हैं जो कि मैं पूरा नही कर सकता." पंकज
ने कहा

"ऐसा क्या डिमॅंड करते हैं?" मैने उनसे पूचछा

"दोनो एक नंबर के रांदबाज हैं. उन्हे लड़की चाहिए."

"तो इसमे क्या परेशान होने की बात हुई. इस तरह की फरमाइश तो कई
लोग करते हैं और करते रहेंगे." मैने उनके सिर पर हाथ फेर कर
सांत्वना दी " आप तो कुच्छ इस तरह की लड़कियाँ रख लो अपनी कंपनी
मे या फिर किसी प्रोस को एक दो दिन का पेमेंट देकर मंगवा लो उनके
लिए."

" अरे बात इतनी सी होती तो परेशानी क्या थी. वो बाजारू औरतों को
नही पसंद करते. उन्हे तो कोई सॉफ सुथरी औरत चाहिए कोई
घरेलू महिला." पंकज ने कहा, "दोनो अगले हफ्ते यहाँ आ रहे हैं
और अपना ऑर्डर कॅन्सल करके इनवेस्टमेंट वापस ले जाएँगे. हुमारी
कंपनी बंद हो जाएगी."

" तो पापा से बात कर लो वो आपको पैसे दे देंगे." मैने कहा

" नही मैं उनसे कुच्छ नही माँगूंगा. मुझे अपनी परेशानी खुद ही
हलकरना पड़ेगा. अगर पैसे दे भी दिए तो भी जब खरीदने वाला कोई
नही रहेगा तो कंपनी को तो बंद करना ही पड़ेगा." पंकज ने
कहा, "
वो यूएसए मे जो फर्म हमारा माल खरीदता है उसका पता देने को
तैयारनही हैं. नही तो मैं डाइरेक्ट डीलिंग ही कर लेता."

"फिर?" मैं कुच्छ समझ नही पा रही थी कि इसका क्या उपाय सोचा जाय.

"फिर क्या....? जो होना है होकर रहेगा." उन्हों ने एक गहरी साँस ली.
मैने उन्हे इतना परेशान कभी नही देखा था.

"कल आप उनको कह दो कि लड़कियों का इंतेज़ाम हो जाएगा." मैने
कहा "देखते है उनके यहाँ पहुँचने से पहले क्या किया जा सकता

अगले दिन जब वो आए तो उन्हे रिलॅक्स्ड पाने की जगह और ज़्यादा टूटा
हुआपाया. मैने कारण पूचछा तो वो टाल गये.

" अपने बात की थी उनसे? "

"हां"

"फिर क्या कहा अपने? वो तैयार हो गये? अरे परेशान क्यों होते हो
हम लोग इस तरह किकिसी औरत को ढूँढ लेंगे. जो दिखने मे सीधी
साधी घरेलू महिला लगे."

" अब कुच्छ नही हो सकता"

"क्यों?" मैने पूचछा.

" तुम्हे याद है वो हुमारी शादी मे आए थे."

" हाँ तो?"

" उन्हों ने शादी मे तुम्हे देखा था."

"तो..?" मुझे अपनी साँस रुकती सी लगी एक अजीब तरह का भय पुर
बदन मे छाने लगा.

" उन्हे सिर्फ़ तुम चाहिए."

" क्या?" मैं लगभग चोंक उठी," उन हरमजदों ने स्मझा क्या है
मुझे? कोई रंडी?"
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