Chudai Kahani दिल पर जोर नहीं
06-27-2017, 11:54 AM,
#5
RE: Chudai Kahani दिल पर जोर नहीं
मेरे पास बहुत समय था। मैंने पहले खुद ही अपना फेशियल किया। मेनिक्‍योर, पेडिक्‍योर करके मैंने खुद को संवारना शुरू किया। शाम को 4 बजे मुझे अरूण से पहली बार मिलना था… मैं बहुत उत्‍साहित थी… मैं चाहती थी कि मेरी पहली छाप ही उन पर जबरदस्‍त हो…. अपने मैकअप किट से वीट क्रीम निकालकर वैक्सिंग भी कर डाली…. नहा धोकर फ्रैश हुई, अपने लिये नई साड़ी निकाली, फिर सोचा कि अभी तैयार नहीं होती शाम को ही हो जाऊँगी… अगर अभी तैयार हुई तो शाम तक तो साड़ी खराब हो जायेगी। मैंने फिर से नाइट गाऊन ही पहन लिया।
अब मैं शाम होने का इंतजार करने लगी। समय काटे नहीं कट रहा था.. मैंने फिर से कम्‍प्‍यूटर चला कर वही पोर्न मूवी चला ली। पर आज मेरा मन उसमें भी नहीं लग रहा था। मेरे मन में अजीब सा उत्‍साह था।
शादी से पहले जब संजय मुझे देखने आये थे… तब तो मैं बिल्‍कुल अल्‍हड़ थी, इतना उत्‍साहित तो तब भी नहीं थी मैं….
मैं अपने बैड पर बैठकर विचार करने लगी, अरूण से मिलकर एक घंटे में क्‍या क्‍या बातें करूँगी? कैसे उनके साथ बैठूँगी, कैसे वो मुझसे बात करेंगे आदि आदि।
मुझे पता ही नहीं लगा ये सब सोचते सोचते कब मेरी आँख लग गई।
दरवाजे पर घंटी बजी… तो मेरी आँख खुली मैंने घड़ी में समय देखा। बच्‍चों के आने का टाइम हो चुका था। मैंने तुरन्‍त उठकर दरवाजा खोला। बच्‍चों को ड्रैस चेंज करवा कर खाना खिलाना, होमवर्क करवाना फिर ट्यूशन भेजना बस टाइम का पता ही नहीं चला कैसे तीन बज भी गये।
बच्‍चों को ट्यूशन भेजकर मैं तैयार होने लगी। अरूण के फोन का भी इंतजार था… अभी मैं पेटीकोट ही पहन रही थी कि दरवाजे पर घंटी बजी…
“इस समय कौन होगा?” मैं सोचने लगी।
घंटी दोबारा बजी तो मैंने फिर से नाइट गाउन पहना और दरवाजा खोलने गई।
दरवाजा खोला तो देखा बाहर संजय खड़े थे। मैं उनको 3 बजे दरवाजे पर देखकर चौंक गई।
वो अन्‍दर आये तो मैंने पूछा, “क्‍या हुआ? आप इस टाइम, सब ठीक-ठाक ना?”
संजय बोले, “हां, यार वो आज 9 बजे रात की ट्रेन से मुझे जयपुर जाना है कल वहाँ मेरी मीटिंग है एक कस्‍टमर से। तो तैयारी करनी थी इसीलिये जल्‍दी आ गया।”
मैंने पूछा, “तो किस टाइम जाओगे स्‍टेशन?”
संजय बोले, “टिकट करवा ली है, अब 7 बजे निकलूंगा सीधे स्‍टेशन के लिये।”
अब मैं तो फंस गई। अरूण मेरा इंतजार करेंगे। घर से कैसे निकलूँ, यही विचार कर रही थी कि मेरे मोबाइल की घंटी बजी।
मैं समझ गई कि अरूण का ही फोन होगा पर अब कैसे बात करूं अरूण से, और क्‍या जवाब दूं अरूण को….
सोचने का भी टाइम नहीं था। फोन बजकर खुद ही बंद हो गया। सबसे पहले मैंने फोन उठाकर उसको साइलेंट पर किया। तभी संजय ने पूछा, “किसका फोन था?”
मैंने जवाब दिया, “कुछ नहीं वो कम्‍पनी वालों के फोन आते रहते हैं, मैं तो दुखी हो जाती हूँ।” संजय ने कहा, “बाद में मुझे याद दिलाना, मैं डी एन डी एक्‍टीवेट कर दूँगा।”
“हम्‍म्‍म्‍म्‍म्‍म्‍म….” बोलती हुई मैं मोबाइल लेकर टायलेट में चली गई।तब तक देखा अरूण की 3 मिस कॉल आ चुकी थी। मैंने सबसे पहले अरूण को मैसेज किया कि मेरे पति घर आ गये हैं। मैं थोड़ी देर में निकल कर फोन करती हूँ। फिर सोचने लगी कि क्‍या तरकीब निकालूं। पर मैं उस समय खुद को बहुत बेचारा महसूस कर रही थी। संजय 7 बजे घर से जाने वाले थे। तो मैं 7 से पहले तो घर से निकल ही नहीं सकती थी और 7 बजे के बाद अंधेरा हो जाता तो बच्‍चों को घर में अकेला छोड़कर मैं 7 बजे के बाद भी घर से नहीं निकल सकती थी। मैं एक पारिवारिक महिला ही जिम्‍मेदारियों में फंस चुकी थी। मेरे पास अब अरूण से मिलने का कोई रास्‍ता नहीं था…
और वो इतनी दूर से आये थे सिर्फ मेरे लिये रात की ट्रेन से टिकट कराई मैं उनसे ना मिलूं ये भी ठीक नहीं था। समझ में नहीं आ रहा था मैं क्‍या करूं।
मैं बहुत देर से टाइलेट में थी तो बाहर जाना भी जरूरी था। मैं मोबाइल को छुपाकर धीरे से बाहर निकली।
“कुसुम, चाय पीने का मन है यार। तुम चाय बनाओ मैं ब्रैड लेकर आता हूँ।” बोलते हुए संजय घर से बाहर चले गये। मेरी तो जैसे सांस में सांस आई। उनके बाहर जाते ही मैंने दरवाजा अन्‍दर से बंद किया और अरूण को फोन किया। पहली ही घंटी पर अरूण का फोन उठा वो बोले, “कहाँ हो यार? मैं कब से तुम्‍हारा वेट कर रहा हूँ।”
मैंने पूछा, “कहाँ हो आप?”
मुझे उनको यह बताने में बहुत ही शर्म महसूस हो रही थी कि मैं नहीं आ पाऊंगी… पर बताना तो था ही। इसीलिये मैं बातें बना रही थी। उन्‍होंने बताया, “कश्‍मीरी गेट मैट्रो स्‍टेशन के नीचे काफी शॉप पर हूँ। यहीं तो मिलने को बोला था ना तुमने।”
अब मैं क्‍या करती, मैंने उनको सच-सच बताने का फैसला किया, “सुनो, मैं आज नहीं आ पाऊँगी।” “कोई बात नहीं, पर क्‍या कारण जान सकता हूँ? अगर तुम बताना चाहो तो।” उन्‍होंने बिल्‍कुल शान्‍त स्‍वभाव से पूछा।
मैंने उनको सारी बात बता दी।
तो अरूण बोले, “तुम्‍हारा पहला फर्ज पति का साथ देना है, तुम उनके जाने की तैयारी करो। जब वो चले जायेंगे 7 बजे तब मुझसे बात करना मेरी ट्रेन रात को 11 बजे की है।” मैंने कहा, “पर 7 बजे अंधेरा हो जाता है मैं घर से उस समय नहीं निकल पाऊँगी।”
“अरे यार, तुम टैंशन मत लो। मैं कब तुमको बाहर निकलने को बोल रहा हूँ। मैं तो सिर्फ फोन पर बात करने को बोल रहा हूँ। अभी तुम अपने पति पर ध्‍यान दो।” बोलकर अरूण ने ही फोन काट दिया।
सच में अरूण कितने अच्‍छे, मैच्‍योर और कोआपरेटिव इंसान, हैं ना। मैं सोचने लगी… और चाय बनाने चली गई।
तब तक बच्‍चे भी वापस आ गये और संजय भी। मैंने सभी को चाय ब्रैड खिलाकर जल्‍दी जल्‍दी खाना बनाने की तैयारी शुरू कर दी। और संजय अपनी पैकिंग करने लगे। समय कैसे बीत गया पता ही नहीं चला। मैंने संजय के लिये रात का खाना पैक कर दिया।
सात बजे संजय ने अपना बैग उठाया और चलने लगे। मैंने संजय को विदा किया और बच्‍चों की तरफ देखा दोनों ही टीवी में व्‍यस्‍त थे। मैंने दूसरे कमरे में जाकर तुरन्‍त अरूण को फोन किया।
उधर से अरूण की आवाज आई, “हैल्‍लो, हो गई क्‍या फ्री?”
“हाँ जी, फ्री सी ही हूँ… पर इस समय बच्‍चों को घर में अकेला छोड़कर नहीं निकल सकती।” मैंने कहा।
“अरे अरे, तुम टैंशन मत लो, कोई बात नहीं अगर किस्‍मत में इस बार तुमसे मिलना नहीं लिखा तो क्‍या हुआ? अगली बार देखते हैं।” अरूण बोले।
“पर मैं बहुत उदास हूँ, मेरा बहुत मन है आपसे मिलने का, आप एक काम कर सकते हो क्‍या?” मैंने कुछ सोचते हुए पूछा।
“हां, बताओ।” अरूण ने कहा।
“मैं बच्‍चों को जल्‍दी सुलाने की कोशिश करती हूँ।, आप 8 बजे तक मेरे घर ही आ जाओ। मैं आपको अपने हाथ का बना खाना भी खिलाऊंगी… और तसल्‍ली से बैठकर बातें भी होंगी। आपकी ट्रेन 11 बजे है ना आप 10.30 पर भी निकलकर आटो से जाओगे तो 11 बजे तक पुरानी दिल्‍ली स्‍टेशन पहुँच ही जाओगे।” मैंने कहा।
अरूण मेरी बात से सहमत हो गये। मैंने उनको अपने घर का पता समझाया और तुरन्‍त आटो करने को बोला।
उन्‍होंने ‘ओ के’ बोलकर फोन काटा। मैंने बच्‍चों को खाना खिलाकर तुरन्‍त सोने का आदेश दे दिया। थोड़ी सी कोशिश करने के बाद ही दोनों बच्‍चे सो गये। मैं तुरन्‍त बच्‍चों के कमरे से बाहर आई, अरूण को फोन किया तो वो बोले की आटो में हूँ। उतर कर फोन करता हूँ। मेरे पास अब ज्‍यादा समय नहीं था। मैं तेजी से तैयार होने लगी।
अभी मैं साड़ी बांधकर हल्‍का सा मेकअप कर ही रही थी कि अरूण का फोन आया।
मैंने फोन उठाया तो एकदम ही अरूण बोले, “अरे, देखो शायद मैं तुम्‍हारी बिल्‍डिंग के बाहर ही हूँ।”
मैंने खिड़की खोलकर देखा तो अरूण बिल्‍कुल मेरे फ्लैट के नीचे ही खड़े थे। मैंने उनको ऊपर देखने को कहा। वो मेरी तरफ देखते ही मुस्‍कुराये। मैं बहुत खुश थी मैंने उनको मेरे फ्लैट तक बिना शोर या आवाज किये आने को कहा। वो धीरे से सीधे मेरे फ्लैट के दरवाजे पर आये।
मैंने दरवाजा पहले से ही खोल रखा था… उनको अन्‍दर लेकर मैंने दरवाजा बन्‍द कर दिया। अब सब ठीक था कोई परेशानी नहीं थी। उन्‍होंने अन्‍दर आते ही मुझे गले लगाया।
मैं बहुत खुश थी।
उन्‍होंने कहा, “बहुत सुन्‍दर लग रही हो।”
मैंने मुस्‍कुराते हुए कहा, “अच्‍छा मिलते ही चालू हो गये। आप बैठो सब्‍जी तैयार है मैं पहले आपके लिये गर्म गर्म रोटी बनाती हूँ।” अरूण मना करने लगे। पर मैं जबरदस्‍ती करती हुई रसोई में चली गई। वो भी मेरे पीछे पीछे वहीं आ गये।
मैंने कहा, “आप बाहर बैठो मैं आती हूँ।”
अरूण बोले, “समय कम है हमारे पास मैं यहीं तुम्‍हारे साथ बात भी करता रहूँगा और तुम खाना भी बना लेना। वैसे भी इस साड़ी में मस्‍त लग रही हो। तुम्‍हारा तो किडनैप करना पड़ेगा।”
मैंने जवाब दिया, “ऐसे तो कभी कभी मिल भी सकते हैं किडनैप करोगे तो एक बार में ही काम खत्‍म।”
वो हंसते हुए बोले, “लगता है आज ही वैक्‍स भी किया है बाजू बहुत चिकनी चिकनी लग रही है।”
और मेरे पीछे से खड़े होकर मेरी दोनों बाजुओं पर अपने हाथ फिराने लगे…
“सीईईई ईईय…” मैं सीत्‍कार उठी। मैंने वहीं खड़े-खड़े अपने नितम्‍बों को पीछे करके उनको पीछ की तरफ धकेला।
अरूण बोले, “ये क्‍या कर रही हो? बीच में तुम्‍हारी साड़ी आ गई नहीं तो पता है तुम्‍हारे कूल्हे कहाँ जा टकराएँ हैं? अगर कुछ गड़बड़ हो जाती तो…?”
“हा… हा… हा… हा… हो जाने दो…!” मैंने हंसते हुए अरूण को छेड़ा।
अरूण बोले, “नहीं, वक्त नहीं है… 9 बजने वाले हैं… और मुझे अपनी ट्रेन भी पकड़नी है। मैं तो बस तुमसे मिलने आया हूँ और कुछ नहीं।”
अरूण मेरे सबसे अच्‍छा दोस्‍त बन गये थे… पता नहीं क्‍यों पर मैं अरूण के साथ बिल्‍कुल भी झिझक महसूस नहीं कर रही थी बल्कि मैं तो बहुत ज्‍यादा सहज महसूस कर रही थी अरूण के साथ।
इतना तो मैंने कभी संजय के साथ भी महसूस नहीं किया था। पर मैं पता नहीं आज किस मूड में थी। पर अरूण को कुछ कहूँ भी तो कैसे कहीं वो मुझे गलत ना समझ लें। रो‍टी बनाकर मैं डायनिंग पर दोनों के लिये खाना लगाने लगी, अरूण भी मेरी मदद कर रहे थे जबकि संजय ने तो आज तक मेरे साथ घर के काम में हाथ भी नहीं लगाया।
मैं तो अरूण के व्‍यवहार की कायल होने लगी थी।
खाना खाते-खाते ही 9.30 हो गये। अरूण 10 बजे तक वापस जाना चाहते थे। मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि उसको कैसे रोकूं। मैंने अरूण को बोला कि आप 10.30 तक भी निकलोगे तब भी आपको ट्रेन मिल जायेगी। अभी तो आपसे बहुत सारी बातें करनी हैं। अभी आप जल्‍दी मत करो।
वो मेरी बात मान गये और रिलैक्‍स होकर बैठ गये।
10 मिनट बैठने के बाद ही अरूण फिर से बोले, “कुसुम एक कप चाय पिला दो फिर जाना भी है।”
अब तो मुझे गुस्‍सा आ गया, मैंने कहा, “इतनी जल्‍दी है जाने की तो आप आये की क्‍यों थे? अब मैं चाय नहीं बनाऊँगी आपको जाना है तो जाओ।”
“ओह…हो… मेरी बुलबुल नाराज हो गई, चलो मैं बुलबुल को चाय बनाकर पिलाता हूँ।” अरूण ने कहा।
उनका इस तरह प्‍यार से बोलना मुझे बहुत ही अच्‍छा लगा… और चाय तो 11 सालों में मुझे कभी संजय ने भी नहीं पिलाई, उनको तो चाय बनानी आती भी नहीं। मैं तो यही सोचती रही, तब तक अरूण उठ कर रसोई की तरफ चल दिये।
मैंने कहा, “ठीक है आज चाय आप ही पिलाओ।”
अरूण बोले, “मैं चाय बनाकर पिलाऊँगा तो क्‍या तोहफ़ा दोगी?”
“अगर चाय मुझे पसन्‍द आ गई तो जो आप मांगोगे वो दूंगी और अगर नहीं आई तो कुछ नहीं।” मैंने कहा।
“ओके…” बोल कर वो गैस जलाते हुए बोले, “तुम बस साथ में खड़ी रहो, क्‍योंकि रसोई तुम्‍हारी है। मुझे तो सामान का नहीं पता ना…”
मैं उनके साथ खड़ी उनको देखती रही। कितनी सादगी और अपनापन था ना उनमें। मुझे तो उनमें कोई भी अवगुण दिखाई ही नहीं दे रहा था।
वो चाय बनाने लगे। मैं उनको देखती रही। मुझे अरूण पर बहुत प्‍यार आ रहा था पर मैं अपनी सामाजिक बेड़ियों में कैद थी। चाय बनाकर अरूण कप में डालकर ट्रे में दो कप सजाकर डाइनिंग टेबल पर रखकर वापस रसोई में आये… और मेरा हाथ बड़ी नजाकत से पकड़कर किसी रानी की तरह मुझे डाइनिंग टेबल तक लेकर गये और बोले, “लीजिये मैडम, चाय आपकी सेवा में प्रस्‍तुत है।”
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