Chudai Kahani दिल पर जोर नहीं
06-27-2017, 11:54 AM,
#7
RE: Chudai Kahani दिल पर जोर नहीं
उनकी नजरों में देखते देखते पता नहीं कब मेरी पकड़ ढीली हुई और वो मुझसे थोड़ा सा अलग हुए… मेरी ब्रा और ब्‍लाउज निकल कर उनके हाथ में आ गये।
आहहह… मैं तो खुद को अपने हाथों से ही छुपाने लगी, ट्यूब की रोशनी में… मैं… अपना बदन… उनकी नजरों से बचाने की… नाकाम कोशिश… कर रही थी… और वो जैसे बेशर्मों की तरह मुझे लगातार एकटक निहार रहे थे…
हाय… मांऽऽऽऽ… ये कैसे… हो… गया… मुझसे… मैं तो काम और लज्‍जा के समुद्र में एक साथ गोते लगा रही थी।
उन्‍होंने मुझे पकड़ और धीरे से वहीं सोफे पर गिरा दिया…
मैंने लेटते ही अपने स्‍तनों की अपनी दोनों बाजुओं से ढक लिया। उन्‍होंने आराम से अपनी पैंट और शर्ट उतारी तो अरूण मेरे सामने बनियान और अन्‍डरवीयर में थे… उनके अन्‍डरवीयर को देखकर ही उसके अन्‍दर जागृत हो चुका नाग बार-बार अपना फन उठाने की कोशिश कर रहा था।
मेरी निगाह वहीं रूक गई।
अरूण आकर मेरे बराबर में फर्श पर बैठ गई और मेरा हाथ बड़े ही प्‍यार से एक स्‍तन से हटाकर उस स्‍तन को अपने… हाय रे… रसीले… होठों के हवाले कर दिया।
मेरे चुचूक इतने कड़े और मोटे लग रहे थे कि मुझे खुद ही उनमें हल्‍का हल्‍का दर्द महसूस होने लगा था पर वो दर्द इतना मीठा था कि दिल कर रहा था ये दर्द लगातार होता रहे…
उफ़्फ़… अब पता नहीं मुझे क्‍या होने लगा था? शरीर के अन्‍दर अजीब अजीब तरंगें पैदा हो रही थी। अरूण मेरे दोनों स्‍तनों से मस्‍ती से स्‍तनपान का आनन्‍द ले रहे थे अब तो उनके हाथ भी मेरे पेट और टांगों पर चलने लगे थे।
आहह… उफ़्फ़फ… की ही हल्‍की सी आवाज मेरे कण्‍ठ से उत्‍पन्‍न हो रही थी। अरूण मेरे कान में हल्‍के से बोले, “कैसा लग रहा है…?” मैं तो कुछ जवाब देने की स्थिति में ही नहीं थी। अरूण की उंगलियाँ मेरी नाभि के आसपास घूम रही थी। मैं उस समय खुद को जन्‍नत में महसूस कर रही थी।
अरूण ने धीरे से अपना हाथ नाभि से नीचे सरकाया… हाय्य… ये तो… इन्‍होंने अपना हाथ… मेरी पैंटी… के अन्‍दर घुसा दिया… मेरी पैंटी तो पूरी तरह से मेरे प्रेम रस से भीग चुकी थी… उनका हाथ भी गीला हो गया… अरूण अपनी एक उंगली कभी मेरे योनि द्वार पर और कभी मदनमणि पर फिराने लगे…
आहहह… मेरे मुँह से निकली… मेरा… सारा बदन कांप रहा था… मैं खुद ही अपनी टांगें सोफे पर पटक रही थी… अरूण ने मेरे कान में कहा, “पूरी गीली हो गई हो नीचे से !”
और अपनी हाथ मेरी पैंटी ने निकाल कर मेरे प्रेमरस से भीगी अपनी उंगली को धीरे-धीरे चाटने लगे।
“छी…” मेरे मुँह से निकला।
“बहुत टेस्‍टी है तुम्‍हारा रस तो, तुम चाट कर देखो।” बोलते बोलते अरूण ने अपनी उंगलियाँ मेरे मुँह में घुसा दी।
थोड़ा कसैला… पर… स्‍वाद बुरा नहीं था मेरे प्रेमरस का। अरूण पूरी तरह मेरे बदन पर अपना अधिकार कर चुके थे। वो खड़े हुए और अपना बनियान और अंडरवियर भी निकाल दिया। इतनी रोशनी में पहली बार मैं किसी पुरूष को अपने सामने नंगा देख रही थी। संजय ने जब भी मेरे साथ सैक्‍स किया था वो खुद ही बिजली बुझा देते थे। मुझे यह बहुत अजीब लगा और मैंने अपनी आँखें शर्म के बंद कर ली। अरूण की सबसे अच्‍छी खूबी यह थी कि वो मेरी किसी भी हरकत का बुरा नहीं मानते… और जवाब में ऐसी हरकत करते कि मैं खुद ही उनके सामने झुक जाती। यहाँ भी अरूण ने यही किया… मेरे आँखें बन्‍द करते ही वो सोफे पर मेरे बराबर में बैठ गये अपने
हाथ से मेरा हाथ पकड़कर अपने लिंग पर रख दिया…
आहहह… कितना… गर्म लग रहा था… ऐसा लगा जैसे मेरे हाथ में लोहे की कोई गरम छड़ दे दी हो।
मैंने एक बार हाथ हटाने की कोशिश की… पर अरूण ने मेरा हाथ पकड़ लिया और अपने लिंग पर रखकर हौले-हौले आगे पीछे करने लगे। मुझे यह अच्‍छा लगा तो मैं भी अरूण का साथ देने लगी। अब अरूण ने मेरा हाथ छोड़ दिया। वो मेरी दोनों पहाड़ियों से खेल रहे थे और मैं उनके उन्‍नत लिंग से। कुछ देर तक ऐसे ही चलता रहा। अन्‍दर ही अन्‍दर मुझे यह सबअच्‍छा लग रहा था पर मेरी योनि के अन्‍दर इतनी खुजली हो रही थी जो मैं बर्दाश्‍त भी नहीं कर पा रही थी। मेरी योनि में अन्‍दर ही अन्‍दर कुछ चल रहा था, मेरे हाथ अरूण के लिंग पर तेजी से चलने लगे। उतनी ही तेजी से मेरी योनि के अन्‍दर भी हलचल होने लगी।
अरूण थे कि मेरे चेहरे होंठ और स्‍तनों पर ही लगे हुए थे… नीचे कितनी आग लगी है इसका तो उन्‍हें अनुमान ही नहीं था।
पर.. मैं… बहुत… ही… बेचैन… होने… लगी… थी, मैं तो टांगें भी पटकने लगी थी अरूण ने मेरे हाथों से अपना लिंग छुड़ाया… थोड़ा सा पीछे की ओर घूमकर अपनी हाथ मेरी योनि पर रखकर सहलाने लगे। वो शायद मेरी आग को समझ गये थे और उसको बुझाने का प्रयास कर रहे थे।
पर उनका हाथ वहाँ लगते ही तो मेरी आग और तेजी से भड़कने लगी… “आहहह… हाय राम… उईईई… हाय रेरेरेरे… मैं तो आज मर ही जाऊँगी… हाय… कुछ करो नाऽऽऽऽऽ… ” अनायास ही मेरे मुँह से निकला।
अरूण ने मुझे सोफे से गोदी में उठाया और मेरे बैडरूम में ले गये। बैड पर मुझे सीधा लिटाकर वो मेरे ऊपर उल्‍टी अवस्‍था में आ गये… उन्‍होंने अपनी दोनों टांगों को मेरे चेहरे के इर्द-गिर्द रखकर अपना चेहरा मेरी योनि के ऊपर सैट किया और हाय… ये क्‍या किया…? अपनी जीभ मेरी योनि के दोनों गुलाब पंखों के बीच में घुसा दी। ऊफ़्फ़फफ… मैं क्‍या करूँ…?
मेरे अन्‍दर की कामाग्नि ने मेरी शर्म को तो शून्‍य कर दिया। इस समय दिल ये था कि अरूण पूरे के पूरे मेरी योनि के अन्‍दर घुस जायें… पर वो तो मेरी योनि को ऐसे चाट रहे थे जैसे कोई गर्म आईसक्रीम मिल गई हो…
मेरा सारा बदन पसीने पसीने हो गया… उनका लिंग मेरे बार-बार मेरे होठों को छू रहा था पर वो थे कि बस योनि चाटने में ही व्‍यस्‍त थे… पता नहीं कब और कैसे मेरा मुँह अपने आप ही खुल गया… होंठ लिंग को पकड़ने का प्रयास करने लगे। पर वो तो मेरे साथ अठखेलियाँ कर रहा था कभी इधर-‍िहल जाता कभी उधर… मैं तो खुद पूरी तरह उनके कब्‍जे में थी। मैंने अपने हाथ से अरूण के लिंग को पकड़ा और अपने होठों के बीच सैट किया… अब मैं भी उनका लिंग आइसक्रीम की तरह चूसने लगी…
कुछ ही देर में मेरा बदन अकड़ने लगा। मेरे अन्‍दर का लावा छलक गया मैं स्‍खलित हो गई… और शान्‍त भी अरूण का लिंग भी मेरे मुँह से निकल गया।
मैं तो जैसे कुछ पल के लिये चेतना विहीन हो गई। कुछ सैकेन्‍ड बाद तेरी चेतना जैसे लौटने लगी तो अरूण ने घूमकर मुझसे पूछा, “कैसा लग रहा है?”
“बहुत अच्‍छा ! ऐसे जीवन में पहले कभी नहीं लगा।” मैंने बिना किसी संकोच के कहा, “पर आपका तो नहीं हुआ ना।” मैंने कहा।
“अब हो जायेगा।” बोलकर अरूण मेरे पूरे बदन पर अपनी उंगलियाँ चलाने लगे मेरी जांघों पर हल्‍की हल्‍की मालिश करते और नाभि को चूमते मैं कुछ ही पलों में पुन: गर्म होने लगी।
इस बार मैंने खुद ही अरूण का लिंग अपने हाथों में ले लिया। लिंग का अग्रभाग बाहर की ओर निकलकर मुझे झांक रहा था बिल्‍कुल लाल हो चुका पूरी हेकड़ी से खड़ा था मेरे सामने। 
अरूण ने मेरे हाथ से अपना लिंग छुड़ाने का प्रयास किया। पर अब मैं उसको छोड़ने को तैयार नहीं थी… मेरे लिये अरूण का लिंग एक लिंग ही नहीं बल्कि उन लाखों भारतीय नारियों की इच्‍छा पूर्ति का यन्‍त्र बन गया जो अपनी कामेच्‍छाओं को पतिव्रत में दफन करके कामसती हो जाती हैं। अरूण का वो प्रेमदण्‍ड (लिंग) मुझे अपना गुलाम बना चुका था।
अब अरूण ने अपना प्रेमदण्‍ड मेरे हाथ से छुड़ाया और मेरी टांगों को फैलाकर उनके बीच में आ गये। उन्‍होंने फिर से मेरे कामद्वार का अपने होठों से रसपान करना शुरू कर दिया।
अब तो यह मुझसे बर्दाश्‍त नहीं हो रहा था। मजबूर होकर मुझे अपनी 32 साल की शर्म ताक पर रखनी पड़ी। मैंने ही अरूण को कहा, “अन्‍दर डाल दो प्‍लीज… नहीं तो मैं मर जाऊँगी।”
पर शायद अरूण मजा लेने के मूड़ में थे, मुझसे बोले- क्‍या डाल दूँ?
अब मैं क्‍या बोलती… पर जब जान पर बन आती है तो इंसान किसी भी हद तक गुजर जाता है, यह मैंने उस रात महसूस किया जब अरूण ज्‍यादा ही मजा लेने लगे और मुझमें बर्दाश्‍त करने की हिम्‍मत नहीं रही तो मैंने खुद ही अरूण को धक्‍का दिया और बिस्‍तर पर लिटा दिया। एक झटके में मैं अरूण के ऊपर आ गई और उनका मूसल जैसा प्रेमदण्‍ड पकड़कर अपने प्रेमद्वार पर लगाया, मैं उस पर बैठ गई।
आहहह… एक ही झटके में पूरा अन्‍दर… हम्मम… क्‍या आनन्‍द था…!
काश संजय ने कभी मुझे ऐसे तरसाया होता… तो मैं ये सुख कब का भोग चुकी होती… अब तो अरूण मेरे नीचे थे, मैं उनके प्रेमदण्‍ड पर सवारी कर रही थी… वाह… क्‍या आनन्‍द…! क्‍या अनुभव…! क्‍या उत्‍साह…! ऐसा लग रहा था जैसे मुझे यह आनन्‍द देने स्‍वयं कामदेव धरती पर आ गये हों।
अरूण का श्‍याम वर्ण प्रेमदण्‍ड… हायय… मुझे स्‍वर्ग की सैर करा रहा था… मैं जोर जोर से कूद कूद कर धक्‍के मार रही थी। अरूण ने मेरे दोनों मम्‍मों को हाथ में पकड़ कर हार्न की तरह दबाना शुरू कर दिया। आनन्‍द मिश्रित दर्द की अनुभूति होने लगी पर आनन्‍द इतना अधिक था कि दर्द का अहसास हो ही नहीं रहा था। अरूण बार बार मेरे उरोजों को दबाते… मेरे स्‍तनाग्रों को मसलते… मेरे बदन पर हाथ फिराते… ऐसा लग रहा था जैसे अरूण इस खेल के पक्‍के खिलाड़ी थे… उनकी उंगलियों ने मेरे खून में इतना उबाल पैदा कर दिया कि मैं खुद को सातवें आसमान पर थी।
तभी अचानक मुझे अपने अन्‍दर झरना सा चलता महसूस हुआ। अरूण का प्रेम दण्‍ड मेरे अन्‍दर प्रेमवर्षा करने लगा। अरूण के हाथ खुद ही ढीले हो गये… और उसी पल… आह… उईईईई… मांऽऽऽऽऽ… मैं भी गई… हम दोनों का स्‍खलन एक साथ हुआ… मैं अब धीरे धीरे उस स्‍वर्ग से बाहर निकलने लगी। मैं अरूण के ऊपर ही निढाल गिर पड़ी। अरूण मेरे बालों में अपनी उंगलियाँ चलाने लगे और दूसरे हाथ से मेरी पीठ सहलाने लगे।
मेरे लिये तो यह भी एकदम नया था क्‍योंकि संजय तो हर बार काम करके अलग होकर सोने चले जाते। मुझे समझ में आने लगा कि अरूण में क्‍या खास है? कुछ देर उनके ऊपर ऐसे ही पड़ रहने के बाद मैं हल्‍की सी ऊपर हुई तो अरूण ने मेरे माथे पर एक मीठा प्‍यार भरा चुम्‍बन दिया, पूछने लगे, “अब मैं जाऊँ, इजाजत है क्‍या?”


मैंने दीवार घड़ी की तरफ देखा और हंसने लगी, “हा… हा… हा… हा…”
“हंस क्‍यों रही हो?” अरूण ने पूछा।
“जनाब एक बजकर बीस मिनट हो चुके हैं और आपकी गाड़ी तो पक्‍का चली गई होगी।”
अरूण ने तुरन्‍त दीवार घड़ी की तरफ देखा, फिर मेरी तरफ देखकर मुस्‍कुराने लगे बोले, “आखिर तुमने मुझ पर अपना जादू चला ही दिया।”
“किसने किस पर जादू चलाया ये तो भगवान ही जानता है।” मैंने हंस कर कहा।
अरूण फिर से मेरे स्‍तनों से खेलने लगे।
“आह… बहुत दर्द है।” अचानक मेरे मुँह से निकला।
अरूण मेरी तरफ देखकर पूछने लगे, “तुम्‍हारी शादी को 12 साल होने वाले हैं और तुम दोनों रोज सैक्‍स भी करते हो तब भी आज तुम्‍हारे स्‍तनों में दर्द क्‍यों होने लगा?”
“वो कभी भी इनसे इतनी बेदर्दी से नहीं खेलते।” बोलते हुए मैं उनके ऊपर से उठ गई।
“ओह…” अरूण के मुँह से निकला। शायद उनको अपनी गलती का अहसास होने लगा।
मैंने पास ही पड़े छोटे तौलिये से अपनी रिसती हुई योनि और अरूण के बेचारे निरीह से दिख रहे लिंग को साफ किया और बाथरूम में धोने चली गई। अरूण भी मेरे पीछे पीछे बाथरूम में आये और पानी से ‘सबकुछ’ अच्‍छी तरह धोकर वापस बिस्‍तर पर जाकर लेट गये।
बाथरूम से वापस आकर मैंने अपना गाउन उठाया और पहनने लगी तो अरूण ने मुझे अपनी ओर खींच लिया।
‘हाययययय…’ एक झटके से मैं अरूण के पास बिस्‍तर पर जा गिरी, अरूण बोले, “थोड़ी देर गाउन मत पहनो प्‍लीज, मेरे पास ऐसे ही लेट जाओ। ऐसे ही बातें करेंगे।”
पर अब मुझ पर से सैक्‍स का नशा उतर चुका था, ऐसे तो मैं कभी संजय के सामने भी नहीं रही थी, और अरूण तो परपुरूष थे, मुझे शर्म आ रही थी। मैं अरूण की बाहों में कसमसाने लगी, “प्‍लीज, मुझे शर्म आ रही है। मैं गाउन पहन कर आपके पास बैठती हूँ ना…” मैंने कहा।
अरूण हंसते हुए बोले, “अब भी शर्म बाकी है क्‍या हम दोनों में।”
पर मैं थी कि शर्म से गड़ी जा रही थी… और अरूण थे कि मानने को तैयार नहीं थे। काफी देर तक बहस करने के बाद हम दोनों में सहमति हो गयी अरूण बत्ती बन्द करने को राजी हो गये और मैं लाइट ऑफ करने के बाद उनके साथ बिना गाउन के लेटने को।
हम दोनों ऐसे ही अपनी परिवार की और न जाने क्‍या क्‍या बातें करने लगे। बातें करते करते मुझे तो पता ही नहीं चला कि अरूण को कब नींद आ गई। मैंने घड़ी देखी रात के 2 बज चुके थे पर नींद मेरी आँखों से कोसों दूर थी।
अचानक अरूण ने मेरी ओर करवट ली और बोले, “पानी दोगी क्‍या, प्‍यास लगी है !”
मैं उठी और अरूण के लिये पानी लेने चली गई। वापस आई तो अरूण जग चुके थे और मेरे हाथ से पानी लेकर पीने के बाद मुझे खींचकर फिर से अपने पास बैठा लिया और अपना सिर मेरी गोदी में रखकर लेट गये। मैं उनके बालों को सहलाने लगी, मैंने देखा उनका लिंग मूर्छा से बाहर आने लगा था उसमें हल्‍की हल्‍की हरकत होने लगी थी। अरूण ने शायद मेरी निगाह को पकड़ लिया। थोड़ा सा घूम कर वो मेरे बराबर में आये और खुद ही मेरा हाथ पकड़कर अपने लिंग पर रख दिया।
अपने एक हाथ से अरुण मेरे होठों को सहलाना शुरू किया और दूसरे हाथ से मेरे उरोजों को, और फिर अचानक ही अपना दूसरा हाथ हटा लिया।
मैंने पूछा, “क्‍या हुआ?”
उन्‍होंने कहा, “मैं भूल गया था तुमको दर्द है ना !”
पर तब तक तो मेरा दर्द काफूर हो चुका था। मैंने खुद ही उनका हाथ पकड़ का अपने कुचों पर रख दिया और वो फिर से मेरे उभारों से खेलने लगे पर इस बार वो बहुत ही हल्‍के और मुलायम तरीके से मेरे निप्‍पल को सहला रहे थे, शायद वो कोशिश कर रहे थे कि मुझे फिर से दर्द ना हो उनको क्‍या पता कि मैं तो उस दर्द को पाने के लिये ही तड़प रही थी।
उनके लिंग पर मेरे हाथों की मालिश का असर दिखाई देने लगा। वो पुन: कामयुद्ध के लिये तैयार था। मैं भी अब खुलकर खेलना चाहती थी। मैं खुद ही घूम कर अरूण के ऊपर आ गई और उनके होठों को अपने होठों में दबा लिया। हम दोनों अपनी दूसरी पारी खेलने के लिये तैयार थे। अरूण मेरे नितम्‍बों को बड़े प्‍यार से सहलाने लगे, मैं उनके होठों को फिर ठोड़ी को, गर्दन को, उनकी चौड़ी छाती को चूमते हुए नीचे की ओर बढ़ने लगी।
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