Sex Hindi Kahani अनाड़ी पति और ससुर रामलाल
07-08-2017, 11:49 AM,
#12
RE: Sex Hindi Kahani अनाड़ी पति और ससुर रामलाल
अनाड़ी पति और ससुर रामलाल--5

गतान्क से आगे............. ....
रात के करीब 11 बजे का बक्त होगा, सुनीता चुपचाप अनीता के पास से उठकर रामलाल के कमरे में जा घुसी। अनीता और अजय अपने-अपने बिस्तर पर लेटे नीद आने का इन्तजार कर रहे थे। अनीता के मन में धक्-धक् हो रही थी कि कहीं अजय उसके साथ कुछ करने लगे तो उसे कैसे रोकेगी वह। सुनीता की तो ले ही चुका है, अब उसका अगला निशाना कहीं वह न हो। इसी बीच अजय ने अनीता को आवाज दी - दीदी, क्या सो गयीं? अनीता ने कहा - नहीं तो, क्या बात है? अजय बोला, दीदी, तुम्हें भी नीद नहीं आ रही क्या? अनीता बोली - ऐसी बात नहीं, पर मेरे सिर में कुछ दर्द सा है, इसी लिए नीद नहीं आ रही है। अजय बोला - दीदी आपका सिर दबा दूं? मेरे हाथो में जादू है। हलके हाथ से दबाने पर ही सर दर्द गायव हो जाएगा। अनीता कुछ न बोली और अजय उसकी मौन स्वीकृति को भांप कर अनीता के सिरहाने जा बैठा और हलके-हलके उसका सर दबाने लगा। अजय के हाथ अनीता के सर पर इसप्रकार से फिर रहे थे कि उसे स्वयं भी अच्छा लगने लगा था। दीदी, कन्धों में भी दर्द हो रहा है न, ऐसा कहकर उसने अनीता की हाँ, ना का इंतजार न करते हुए उसके कन्धों पर भी धीरे-धीरे हाथ फिराने शुरू कर दिए थे। अनीता ने सोने का अभिनय करते हुए खर्राटे भरने शुरू कर दिए थे। अजय ने अवसर पाकर उसके कन्धों से नीचे की ओर अपने हाथ फिसलाने शुरू कर दिए और उसकी चूचियों को भी हलके से सहलाना आरम्भ कर दिया। अनीता तो जगी ही पड़ी थी किन्तु फिर भी वह अनजान बनी चुपचाप लेटी रही। उसने नीद में होने का अभिनय करते हुए अपने बदन को बिलकुल सीधा कर दिया।
अजय को उससे अनीता के सारे बदन को टटोलने में काफी सुबिधा हो गयी। वह अंपने हाथ धीरे-धीरे फिसलाता हुआ उसकी जाँघों तक ले आया। धीरे से उसने अनिता की साड़ी उठाकर उसके पेट पर रख दी और उसकी चिकनी मासल जाँघों पर हाथ फिराने लगा। अनीता के मुंह से एक हलकी सी सिसकारी फूटी जिसका अजय ने तुरंत लाभ उठाकर अपनी एक उंगली उसकी चूत में घुसेड़ कर उसे अन्दर-बाहर करने लगा। अनीता ने मस्ती में आकर अपना एक हाथ अजय के लिंग को टटोल कर उसे पकड़ लिया और बोली - अजय तू मुझसे कितना छोटा है, तुझे चोदने को सिर्फ मैं ही मिली थी। अजय बोला - नहीं दीदी, आपसे पहले मैं सुनीता को भी चोद चुका हूँ चुदवाते वक्त सुनीता ने मुझे सब-कुछ बता दिया कि सबसे पहले उसने तुम्हारे ससुर से अपनी चूत फटवाई है। उसने यह भी बताया क़ि जीजू तो नामर्द हैं। इसी लिए दीदी भी अपने ससुर से अपनी आग शांत करवाती हैं। अब दीदी, एक बात बताओ, अगर तुम्हारा छोटा भाई भी बहती गंगा में हाथ धो लेगा तो तुम्हारा क्या बिगड़ जाएगा। ऐसा कहकर अजय ने अपनी उंगलिओं से अनीता की चूत सहलानी शुरू कर दी और दोनों छातियों को कस-कस कर दबाने और चूंसने लगा।
अनीता के बदन के सारे तार झनझना उठे। उसने कस कर अजय को अपनी बांहों में जकड़ लिया और बोली - अच्छा चल तू भी लेले मेरी, डाल दे अपना पूरा लंड मेरी चूत में। पर तुझे मेरी कसम, इस बात का ज़िक्र किसी से भूल कर भी न करना। अजय बोल - दीदी, क्या मैं पागल हूँ जो किसी से ऐसी बातें कहूँगा। लोग मुझे 'बहनचोद' कहकर नहीं पुकारेंगे। तो ठीक है, आ जा सारे कपडे उतार कर मेरे ऊपर। और फिर अजय ने एक ही धक्के में अनिता की चूत में अपना पूरा लंड घुसेड़ दिया। अजयबोला - दीदी, आपको तो जरा भी दर्द नहीं हुआ और मेरा समूंचा लंड तुम्हारी बुर में समां गया। सुनीता ने कुछ दर्द महसूस तो किया था। देख अजय, मैं कब से अपने ससुर से चुदवा रही हूँ। अनीता ने सिर्फ एक सप्ताह ही अपने मौसा जी से चुदवाई है। उसकी मुझसे ज्यादा चुस्त तो होगी ही। अच्छा, अब देर मत कर, मेरी चूत को जितनी तेजी से फाड़ सके, फाड़ डाल इसे। अजय ने एक जोरदार धक्का फिर अनीता की चूत में दे मारा और अनीता ख़ुशी से उछल पड़ी और उसकी सिसकियाँ उस बड़े कमरे में गूंजने लगीं ... आह: अजय ....मेरे भाई .....आज पूरी ताकत से मेरी बुर को फाड़ डाल मेरे भैया, अगर तूने मुझे खुश कर दिया तो फिर तेरे लिए अपनी चूत के द्वार हमेशा-हमेशा के लिए खोल दूँगी ...आज मेरी चूत का चित्तोड़-गढ़ बना डाल। तेरा जीजू तो न मर्द है साला ....अनीता चूतड़ उछाल -उछाल कर अजय के लंड को अन्दर ले जाने का भरसक प्रयास कर रही थी। और अंत में दोनों ही एक साथ झड़ गए।
काफी देर तक दोनों एक दूसरे से नंगे बदन लिपटे रहे। सुबह सुनीता ने आकर दोनों के ऊपर से कम्बल उठाया तो दोनों को नंगा लिपटे देखकर खिलखिलाकर हंस पड़ी तो उनकी नीद टूटी। अनीता की बात बन आई, वह बोली - क्यों दीदी, याद है तुमने क्या कहा था 'खूंटे पे रखकर फाड़ दूँगी पर भाई को नहीं दूँगी।' अनीता झेंप सी गई और बोली - चुप हरामजादी, तूने ही तो इसके लंड की तारीफों के पुल बाँध कर मुझे इससे चुदने को मजबूर कर दिया। दीदी, सुनीता बोली -अब तो में अजय भैया से रोज रात को चुदवा सकती हूँ? सच बताओ तुम्हें भैया का लंड कैसा लगा। अनीता मुस्कुरा भर दी। अगले दिन सुनीता और अजय ने बिदा ली और अपने घर की ओर चल पड़े। रास्ते भर दोनों लोग अपने अगले प्लान के वारे में सोचते रहे। अंत में उन्होंने तय किया कि वह किस प्रकार अपने बड़े भैया जो मझली भाभी को चोदते हैं, को ब्लैकमेल करके पहले उनसे खुद चुदवायेगी और फिर वह मझली भाभी को डरा-धमका कर अजय भैया से चुदवाने को मजबूर कर देगी।


सुनीता और अजय दोनों अब पूरी योजना बना चुके थे कि उन्हें बड़े भैया रविशंकर को और मझली भाभी को अपने शिकंजे में कैसे फांसना है। सुनीता का मकसद था बड़े भैया के साथ मजे लेना और अजय का इरादा था अपनी मझली भाभी की योनि लेना। अत: एक दिन मौका पाकर सुनीता बड़े भैया के कमरे में जा पहुंची और बोली, "बड़े भैया, मेरे सीने में एक गाँठ उभर आई है। इसमें सुबह से हल्का सा दर्द हो रहा है।" ऐसा कहते हुए सुनीता ने रवि का हाथ पकड़ अपनी दाहिनी चूची पर रख दिया। रवि के तन-बदन में एक झुरझुरी सी आ गयी। सुनीता बोली-"भैया अन्दर से पकड़ कर देखो, ऊपर से गाँठ दिखाई नहीं देगी।" रवि को सकुचाते देख सुनीता ने उसका हाथ पकड़ कर अपनी कुर्ती के अन्दर डाल दिया। अन्दर ब्रा न पहने होने के कारण सुनीता की समूची नंगी चूची रवि के हाथ में आ गई। रवि ने हिम्मत करके उसे धीरे-धीरे सहलाना शुरू कर दिया। सुनीता पर मदहोशी सी छाने लगी। बोली, "भैया, आप ऐसे ही धीरे-धीरे सहलाते रहो, इससे दर्द कुछ कम सा होता जा रहा है।" रवि भी अत्तेजित हो उठा था। उसने धीरे-धीरे अपना हाथ दोनों चूचियों पर फिराना शुरू कर दिया। सुनीता के सारे शरीर में करंट सा दौड़ गया। उसके मुंह से सिसकारियाँ फूटने लगीं। रवि ने हाथ पेट से होते हुए नीचे नाभि तक सरकाना शुरू कर दिया। उसका लिंग तन कर खड़ा होने लगा था जो सुनीता की जाँघों से रगड़ खा रहा था।
रवि ने कहा, "सुन्नो, अपनी कुर्ती उतार दे। में अभी दरबाजा बंद करके आता हूँ।" और जब रवि लौटा तो उसने सुनीता को अपनी बांहों में भर कर चूम और बोला, "सुन्नो, तू सीधी होकर लेट जा, मैं इस गाँठ को अभी ठीक करता हूँ।" तब रवि ने अर्ध-नग्न सुनीता की दोनों चूचियों को खुलकर सहलाना शुरू कर दिया और घुंडियों को मुंह में लेकर चूंसना भी आरम्भ कर दिया था। सुनीता मस्ती में भर कर सिस्कारियां भरने लगी थी। रवि ने अपना एक हाथ सुनीता की सलवार के अन्दर सरका कर उसकी जाँघों को सहलाना शुरू कर दिया था। सुनीता सिंहर उठी और उसने रवि के सीने में अपना मुंह छुपा लिया। वह बोली, "भैया, यह क्या कर रहे हो?" "तुझे जी भर के प्यार कर रहा हूँ पगली, आज में तुझे इतना प्यार करूंगा जितना तुझे कभी किसी ने नहीं किया होगा। बोल चाहती है कि मैं तुझे इसी तरह प्यार करूँ ...या तुझे अच्छा नहीं लग रहा यह सब करना?" "नहीं भैया, ऐसी बात नहीं है। मगर मुझे गुदगुदी सी हो रही है।" "कहाँ हो रही है गुदगुदी सी, जरा मैं भी तो देखूं ..." "दोनों जाँघों के बीच में भैया ... आह: ... उंगली अन्दर न डालो भैया ..." "क्यों, क्या दर्द हो रहा है? अच्छा, एक काम कर ...." "क्या भैया?" "अपनी सलवार भी उतार दे। आज तुझे पूरा मज़ा दे ही डालूँ ..." "नहीं भैया, मुझे डर लगता है। आप वैसे ही करोगे, जैसा मझली भाभी के संग करते हो। .."
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