RE: अन्तर्वासना सेक्स कहानियाँ नीतू भाभी का कामशास्त्र
वो मेरे चेहरे को बिल्कुल ध्यान से देखती रही और बहुत सावधानी से आधे लंड को चूत के अंदर लेकर रुक गयी. और कमर को सीधा किया. फिर पूचछा, "ठीक हो?"
"जी."
"बिल्कुल ठीक?… हनन्न….. ……बिल्कुल?"
"हन्णन्न्……बहुत मज़ा आ रहा है, पर अभी झरूँगा नही."
"फिर ठीक है!" वो गहरी साँस लेकर और आँखें मूंद कर अपनी चूत को नीचे मेरे लंड पर दबाकर लेने लगी, बहुत धीरे धीरे, एक बार में आधे इंच से ज़्यादा नही….और धीरे से बोली, "आहिस्ते से….आहिस्ते……महसूस करो कि अंदर कैसा लगता
है…. क्या होता है!….. जैसे मैं तुम्हारे लौदे को अंदर लेती हूँ……तो महसूस करो कि वो मेरी चूत में किस तरह घिस रहा हैं….बुर उसको किस तरह से लेती है…." वो गहरे साँस लेकर अपने होंठों पर जीभ चलाकर होंठों को गीला किया.
"गौर करो….. अब मैं तुम्हारे पूरे लॉड को किस तरह चूत में ले रही हूँ, किस तरह तुम्हारा लौदा मेरी चूत को पूरी तरह से खोल रहा है…..बिल्कुल अंदर तक……देखी कितनी गहराई मे है…… म्म्म्मममम…. …… अब मुझे थोरे आराम से
महसूस करने दो…..म्म्म्मममममम." मेरा लौदा उनकी चूत के बिल्कुल अंदर था, हमारी झाँतें बिल्कुल मिल गयी थी, उनकी चूत मेरे लॉडा के जड़ पर बैठी थी. "म्म्म्मममम," वो बोली, " …… झरोगे तो नही?"
मैने अपनी साँस रोके हुए सर हिला दिया. धीरे से बोला, "नही."
"बहुत अच्छा," और वो फिर अपना ध्यान चूत में लंड पर लगाने लगी. "अपने आप को ठीक से रोकना, जिस से हम दोनो पूरा मज़ा ले सकें. ठीक?" वो अपनी बुर को और नीचे लाई, करीब आधा इंच, फिर थोरा उपर उठाकर, मानो मेरे लॉडा के
किसी ख़ास पार्ट का ज़ायक़ा ले रही हों. मुझे लगा कि नीतू भाभी बिल्कुल सही कह रही थी: इस वक़्त कोई और ख्याल नही आना चाहिए.
अब फिर से पूरे लॉड को लेने के बाद उन्होने कहा,`हाआंन्नणणन्!" फिर एक पल साँस लेने के बाद मेरी आँखों में देखते हुए उन्होने पूचछा, "मज़ा आ रहा है?"
"म्म्म्मम…ह" मैने अपने सर को थोरा पीछे कर के ज़ोर्से साँस छोड़ा और नीतू भाभी को जवाब तो देना चाहता था, पर मुँह से सिर्फ़ आवाज़ निकली, "व्ह"
" अब एक मिनिट रूको, बस इसी तरह……", और भाभी ने गहरी साँस लेकर अपने चेहरे पर से अपने बाल को हटाकर एक लूज जूड़ा बना लिया, फिर कहा, "और बस बुर में पड़े हुए लंड का मज़ा लेना सीखो! महसूस करो कि बुर के अंदर लंड किस तरह से थिरकता है, ……किस तरह बुर लौदे को चूमती है, किस तरह बुर और लोड्ा एक दूसरे के साथ खेलते हैं." वो अब मेरे उपर पीठ सीधी करके बैठ गयी, और फिर कहा, " अपने उपर काबू रखने की कोशिश करना….ठीक?……तुम झरना चाहो तो झार सकते हो ….पर कोशिश करना कि जितनी देर तक अपने आप को रोक सको, रोकना…….. ठीक? जीतने देर तक अपने लौदा को इसी तरह अंदर रखोगे, उतना ही मज़ा आएगा ……तुमको भी……और मुझे भी ……म्म्म्ममममममम…….. जानते हो ना ……..
धीरे-धीरे साजना ……हौले हौले साजना ….. हम भी पीछे हैं तुम्हारे…….!
मेरी तो मस्ती से जान निकल रही थी. मैं ने गहरी साँस ली, और फिर कुच्छ बोलने की कोशिश करने लगा, पर मुँह से वाज़ निकली बस, "व्ह"
"कर सकोगे?……सिर्फ़ महसूस करो…. और कुच्छ करने की ज़रूरत नही है… सिर्फ़ मज़ा लो! …….करोगे ना?"
"हान्णन्न्."
उन्होने अपनी आँखें फिर मूंद ली और एक लंबी "अहह" भर के मेरे कंधों पर अपनी पकड़ को थोडा ढीला छ्चोड़ दिया.
कुच्छ समय तक हम दोनो चुप रहे, मेरे उपर भाभी बिल्कुल खामोश और रुकी रही. फिर मुझे समझ में आने लगा कि वो मुझे क्या महसूस कराना चाहती थी. अब मुझे महसूस होने लगा कि किस तरह मेरा लौदा उनकी बुर में उसके गीलेपान से बिल्कुल नाहया हुआ था और बुर के अंदर की बनावट को, बुर के अंदर के सभी खूबियों का ज़ायक़ा ले रहा था. अब मैं समझा कि बुर की गहराइयों मे हर जगह एक जैसा नही होता, पर हर गहराई का एक अपनी ही खूबी है. यह सब महसूस करते हुए मेरा लौदा और भी सख़्त होता जा रहा था, और एक बार ज़ोर्से थिरक
गया. भाभी की बुर ने भी जवाब में मेरे लौदा को जाकड़ लिया. नीतू भाभी बोली," इसी तरह रहो अभी…. आराम से. ………..और कुच्छ मत करो… बस… इसी तरह."
मैं ने वैसा ही किया. पर मेरे कोशिश के बावजूद मेरा लौदा बीच बीच में थिरक जाता था. भाभी के गीली बुर के जकड़ने से मेरा लौदा मस्ती में था और मुझे नही लग रहा था कि मैं अपने लौदा को पूरी तरह से काबू में रख पाउन्गा.
भाभी आँखें मूंदी ही हुई थी, पर मुस्कुराते हुए पूच्ची, " क्यूँ, नही रुका जाता क्या?"
मैने अपना सर हिलाते हुए कहा, "नही, पर मज़ा बहुत आ रहा है…अहह."
"हान्न्न, मुझे भी, मेरे राजा. बहुत मज़ाअ आ रहा है…ह". और मेरे कंधों को पकड़े हुए ही उन्होने अपने चेहरे को मेरे कान के पास रख दिया. वो फुसफुसकर बोली, "कितना मज़ा आता है …… इसी तरह से बुर में लौदा डालकर
…….. सिर्फ़ महसूस करने में….कुच्छ सोचो मत …….कोई और क्याल नही ……सिर्फ़ बुर में लॉडा…….सिर्फ़ लॉड की सख्ती…..लॉड की गर्मी……और बुर की मखमली, रस भरी सकूदती हुई जाकरन! ….सिर्फ़ जिस्म का ख्याल रखो….और कुच्छ भी नही…. आअहह."
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