RE: अन्तर्वासना सेक्स कहानियाँ नीतू भाभी का कामशास्त्र
कुच्छ देर तक उसी तरह लेट रहने के बाद, नीतू भाभी मेरे नीचे से हटने की कोशिश करने लगी. मैं उनके उपर से हटकर किनारे हो गया. भाभी बाथरूम जाने के लिए उठी, पर बीच मे रुक कर मुझसे कहते गयी, "ओईइ…… तुम तो इसको बिल्कुल भर दिए हो…. मेरी चूत बहती जा रही है…. " और वो जल्दी से बाथरूम को भागी. शायद हुंदोनो का मिला हुआ रस वाक़ई बहते हुए फर्श पर गिरने लगा हो. बाथरूम का दरवाज़ा खुला ही था, और मैं लेते हुए ही उनके पेशाब करने की आवाज़ सुनता रहा. वो देर तक ज़ोर की रफ़्तार से पेशाब करती रही, फिर ज़ोर्से "ऊऊओह" कह कर कमरे में आई. मेरे बगल में बिल्कुल सटकार भाभी अपना हाथ मेरे लौदे पर फिर रख दिया. अपनी चुचियों को मेरे पीठ में धीरे से रगड़ते हुए, भाभी मुझसे बोली, "बहुत मज़ा आया अभी, …….. बिल्कुल अंदर तक हिला दिया तुमने!" और धीरे धीरे
मेरे लौदे को मूठ मारने लगी. मेरा लौदा फिर से थोरा खड़ा होने लगा. भाभी और मैं दोनो करवट से लेते हुए थे. भाभी अपनी जाँघ को मेरे जांघों के उपर डाल दी थी और मेरे लौदे को कभी दबाती, कभी सरकती.
"क्यूँ, पार्टी अच्छी थी ना? ….. तुम बोर तो नही हुए?"
मैं ने कहा, "नही ……. मुझे तो बहुत मज़ा आया! बहुत आछे लोग थे."
"ह्म्म्म …… बहुत गरम होकर लौटे तुम! ….. क्यूँ? …….. मैं भी गरम हो गयी थी …….!"
"जी …. " और मैं ने करवट बदल कर नीतू भाभी के होंठों को अपने मुँह में लेकर उनको चूसने लगा. लौदे पर भाभी के हाथ का जादू मुझे फिर से खूब गरम बना रहा था. आँखों के सामने उस शाम की पार्टी के लोगों की झलक आ जा
रही थी. भाबी और उनके सहेलियों का मज़ाक़, उनके इशारों-इशारों में बातचीत और उनका खिलखिलाना. मैं उन के चुचियों के शेप, उनके चूतड़ के शेप और साइज़ के बारे में ही सोच रहा था, पर भाभी उस पार्टी के माहौल में किसी से भी कम नही लग रही थी. मैं ने भाभी के होंठों को चूस्ते हुए अब उनके दाँतों को अपने ज़ुबान से चाटने लगा, और उसको उनके मुँह में घुसने लगा. भाभी अपनी ज़ुबान मेरे मुँह में डाल रही थी, और मेरे मुँह में चारो तरफ अपनी ज़ुबान फेर रही थी. मैं उनके ज़ुबान को अपनी ज़ुबान में लपेटकर चूस्ता, और फिर वो मेरी ज़ुबान को उसी तरह लपेटकर कभी अपनी तरफ खींचती, तो कभी मेरे मुँह में घुसेड़ती. अपने हाथ से मेरे लौदा को वो उसी तरह तैयार करती रही. सूपड़ा के नीचे, फिर चारो तरफ वो कभी अपने उंगलियों से, कभी अपने नाख़ून से दबाती, मसालती, करोंछती जा रही थी. और हमारे मुँह एक दूसरे के ज़ुबान के खेल में बिल्कुल लीं थे. भाभी नेअपनी ज़ुबान से ढेर सारा थूक मेरे मुँह में डाल दी, और फिर मेरे मून के चारो तरफ, अपनी ज़ुबान घुमा घुमा कर वो मेरे मुँह को चाटने लगी, मेरे ज़ुबान से खेलने लगी, कभी उसको अपनी तरफ खींचती, कभी उसको लपेटकर चारो तफ़ घूमती, और इसी तरह मेरे मुँह का सारा थूक चाट गयी. मैं ने उनके मुँह मे उसी तरह थूक डालकर, उनकी ज़ुबान को चाटने लगा, चूसने लगा, कभी ज़ोर्से, कभी धीरे.
हम दोनो को कोई जल्दिबाज़ी नही थी. एक बार अच्छी तरह से झड़ने के बाद हुंदोनो आराम से मज़ा लेने के मूड में थे. सारी रात जो अपनी थी!
मेरे हाथ अब भाभी के चुचियों पर गये, और उनकी निपल जो कड़क हो गयी थी अब मेरे अंगूठे और उंगलियों के बीच मसलवाने के लिए बेकरार हो रही थी. उसी तरह एक दूसरे के ज़ुबान से चुदाई के धक्के के अंदाज़ में हुंदोनो एक दूसरे के चूस्ते रहे, पर अब मैं उनके चुचि को भी मसलता रहा. मेरे लौदे पर भाभी की पकड़ ओर ज़ोर की हो रही थी, और हमारा चूमना-चूसना जारी रहा. बीच बीच में भाभी सिसकारी लेती, और मुझे भी बढ़ती मस्ती के कारण गहरी साँस लेनी पड़ रही थी. भाभी ने फिर मेरे लौदे को जड़ से सूपदे तक दबाकर देखा, जैसे वो उसकी सख्ती को माप रही हो. मैं अब उनके मुँह से अपनी ज़ुबान निकालकर, उनके होंठों को एक बार ज़ोर्से चुस्कर, उनकी चुचि को मुँह में लेकर चूसने लगा. उनके कड़े हुए घुंडी पर ज़ुबान फेरने लगा, और उसको एक अंगूर की तरह चूसने लगा. भाभी मस्ती में "अहह ……….. हाअन्न्न्न्न्न्न्न' की आहें भरने लगी, पर मेरे लौदे को अपनी मुट्ठी में जकड़े ही रखा.
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