Kamukta Kahani मेरी बहन कविता
07-15-2017, 12:48 PM,
#7
RE: Kamukta Kahani मेरी बहन कविता
इसी तरह एक रात जब मैं अपने लण्ड को खड़ा करके हलके हलके अपने लण्ड की चमरी को ऊपर निचे करते हुए अपनी प्यारी दीदी को याद करके मुठ मारने की कोशिश करते हुए, अपनी आँखों को बंद कर उसके गदराये बदन की याद में अपने को डुबाने की कोशिश कर रहा था तो मेरी आँखों में पड़ती हुई रौशनी की लकीर ने मुझे थोड़ा बैचैन कर दिया और मैंने अपनी आंखे खोल दी. दीदी के कमरे का दरवाज़ा थोड़ा सा खुला हुआ था. दरवाजे के दोनों पल्लो के बीच से नाईट बल्ब की रौशनी की एक लकीर सीधे मेरे तकिये के ऊपर जहाँ मैं अपना सर रखता हूँ पर आ रही थी. मैं आहिस्ते से उठा और दरवाजो के पास जा कर सोचा की इसके दोनों पल्लो को अच्छी तरह से आपस में सटा देता हूँ. चोरी तो मेरे मन में थी ही. दोनों पल्लो के बीच से अन्दर झाँकने के लोभ पर मैं काबू नहीं रख पाया. दीदी के गुस्सैल स्वाभाव से परिचित होने के कारण मैं जानता था, अगर मैं पकड़ा गया तो शायद इस घर में मेरा आखिरी दिन होगा. दोनों पल्लो के बीच से अन्दर झांक कर देखा की दीदी अपने पलंग पर करवट होकर लेटी हुई थी. उसका मुंह दरवाजे के विपरीत दिशा में था. यानि की पैर दरवाजे की तरफ था. पलंग एक साइड से दीवाल सटा हुआ था, दीदी दीवाल की ओर मुंह करके केवल पेटिकोट और ब्लाउज में जैसा की गर्मी के दिनों में वो हमेशा करती है लेटी हुई थी. गहरे नीले रंग का ब्लाउज और पेटिकोट दीदी के गोरे रंग पर खूब खिलता था. मुझे उनका पिछवारा नज़र आ रहा था. कई बार सोई हुई अवस्था में पेटिकोट इधर उधर हो जाने पर बहुत कुछ देख पाने का मौका मिल जाता है ऐसा मैंने कई कहानियों में पढ़ा था मगर यहाँ ऐसा कुछ भी नहीं था. पेटिकोट अच्छी तरह से दीदी के पैरों से लिपटा हुआ था और केवल उनकी गोरी पिंडलियाँ ही दिख रही थी. दीदी ने अपने एक पैर में पतली सी पायल पहन रखी थी. दीदी वैसे भी कोई बहुत ज्यादा जेवरों की शौकीन नहीं थी. हाथो में एक पतली से सोने की चुड़ी. गोरी पिंडलियों में सोने की पतली से पायल बहुत खूबसूरत लग रही थी. पेटिकोट दीदी के भारी चुत्तरो से चिपके हुए थे. वो शायद काफी गहरी नींद में थी. बहुत ध्यान से सुन ने पर हलके खर्राटों की आवाज़ आ रही थी. मैंने हलके से दरवाजे के पल्लो को अलग किया और दबे पाँव अन्दर घुस गया. मेरा कलेजा धक्-धक् कर रहा था मगर मैं अपने कदमो को रोक पाने असमर्थ था. मेरे अन्दर दीदी के प्रति एक तीव्र लालसा ने जन्म ले लिया था. मैं दीदी के पास पहुँच कर एक बार सोती हुई दीदी को नजदीक से देखना चाहता था. दबे कदमो से चलते हुए मैं पलंग के पास पहुँच गया. दीदी का मुंह दूसरी तरफ था. वो बाया करवट हो कर लेटी हुई थी. कुछ पलो के बाद पलंग के पास मैं अपनी सोई हुई प्यारी बहन के पीछे खड़ा था. मेरी सांस बहुत तेज चल रही थी. दम साध कर उन पर काबू करते हुए मैं थोड़ा सा आगे की ओर झुका. दीदी की सांसो के साथ उनकी छाती धीरे-धीरे उठ बैठ रही. गहरे नीले रंग के ब्लाउज का ऊपर का एक बटन खुला हुआ था और उस से गोरी छातियों दिख रही थी. थोड़ा सा उनके सर की तरफ तिरछा हो कर झुकने पर दोनों चुचियों के बीच की गहरी घाटी का उपरी भाग दिखने लगा. मेरे दिमाग इस समय काम करना बंद कर चूका था. शायद मैंने सोच लिया था की जब ओखली में सर दे दिया तो मुसल से क्या डरना. मैंने अपने दाहिने हाथ को धीरे से आगे बढाया. इस समय मेरा हाथ काँप रहा था फिर भी मैंने अपने कांपते हाथो को धीरे से दीदी की दाहिनी चूची पर रख दिया. गुदाज चुचियों पर हाथ रखते ही लगा जैसे बिजली के नंगे तार को छू दिया हो. ब्लाउज के ऊपर से चूची पर हाथो का हल्का सा दबाब दिया तो पुरे बदन में चीटियाँ रेंगने लगी. किसी लड़की या औरत की चुचियों को पहली बार अपने हाथो से छुआ था. दीदी की चूची एकदम सख्त थी. ज्यादा जोर से दबा नहीं सकता था. क्योंकि उनके जग जाने का खतरा था, मगर फिर भी इतना अहसास हो गया की नारियल की कठोर खोपरी जैसी दिखने वाली ये चूची वास्तव में स्पोंज के कठोर गेंद के समान थी. जिस से बचपन में मैंने खूब क्रिकेट खेली थी. मगर ये गेंद जिसको मैं दबा रहा था वो एक जवान औरत के थे जो की इस समय सोई हुई थी. इनके साथ ज्यादा खेलने की कोशिश मैं नहीं कर सकता था फिर भी मैं कुछ देर तक दीदी की दाहिनी चूची को वही खड़े-खड़े हलके-हलके दबाता रहा. दीदी के बदन में कोई हरकत नहीं हो रही थी. वो एकदम बेशुध खर्राटे भर रही थी. ब्लाउज का एक बटन खुला हुआ था, मैंने हलके से ब्लाउज के उपरी भाग को पकर कर ब्लाउज के दोनों भागो को अलग कर के चूची देखने के लिए और अन्दर झाँकने की कोशिश की मगर एक बटन खुला होने के कारण ज्यादा आगे नहीं जा सका. निराश हो कर चूची छोर कर मैं अब निचे की तरफ बढा. दीदी की गोरी चिकनी पेट और कमर को कुछ पलो तक देखने के बाद मैंने हलके से अपने हाथो को उनकी जांघो पर रख दिया. दीदी की मोटी मदमस्त जांघो का मैं दीवाना था. पेटिकोट के कपरे के ऊपर से जांघो को हलके से दबाया तो अहसास हुआ की कितनी सख्त और गुदाज जांघे है. काश मैं इस पेटिकोट के कपड़े को कुछ पलो के लिए ही सही हटा कर एक बार इन जांघो को चूम पाता या थोड़ा सा चाट भर लेता तो मेरे दिल को करार आ जाता. दीदी की मोटी जांघो को हलके हलके दबाते हुए मैं सोचने लगा की इन जांघो के बीच अपना सर रख कर सोने में कितना मजा आएगा. तभी मेरी नज़र दीदी की कमर के पास पड़ी जहाँ वो अपने पेटिकोट का नाड़ा बांधती है. पेटिकोट का नाड़ा तो खूब कस कर बंधा हुआ था, मगर जहाँ पर नाड़ा बंधा होता है ठीक वही पर पेटिकोट में एक कट बना हुआ था. ये शायद नाड़ा बाँधने और खोलने में आसानी हो इसलिए बना होता है. मैं हलके से अपने हाथो को जांघो पर से हटा कर उस कट के पास ले गया और एक ऊँगली लगा कर कट को थोड़ा सा फैलाया. ओह…वहां से सीधा दीदी की बुर का उपरी भाग नज़र आ रहा था. मेरा पूरा बदन झन-झना गया. लण्ड ने अंगराई ली और फनफना कर खड़ा हो गया. ऐसा लगा जैसे पानी एक दम सुपाड़े तक आ कर अटक गया है और अब गिर जायेगा. मैंने उस कट से दीदी के पेरू (पेट का सबसे निचला भाग) के थोड़ा निचे तक देख पा रहा था. चूँकि दीदी को बाथरूम में नहाते हुए देखने के बाद से तीन हफ्ते बीत चुके थे और शायद दीदी ने दुबारा फिर से अपने अंदरूनी बालों की सफाई नहीं की थी इसलिए उनकी चुत पर झांटे उग गई थी. मुझे वही झांटे दिख रही थी. वासना और उत्तेजना में अँधा हो कर मैंने धीरे से अपनी ऊँगली पेटिकोट के कट के अन्दर सरका दी. मेरी उँगलियों को पेरू की कोमल त्वचा ने जब छुआ तो मैं काँप गया और मेरी उँगलियाँ और अन्दर की तरफ सरक गई. चुत की झांटे मेरी उँगलियों में उलझ चुकी थी. मैं बहुत सावधानी से अपनी उँगलियों को उनके बीच चलाते हुए और अन्दर की तरफ ले जाना चाहता था. इसलिए मैंने पेटिकोट के कट को दुसरे हाथ की सहायता से थोड़ा सा और फैलाया और फिर अपनी ऊँगली को थोड़ा और अन्दर घुसाया और यही मेरी सबसे बड़ी गलती साबित हो गई. मुझे ज्यादा लालच नहीं करना चाहिए था मगर गलती हो चुकी थी. दीदी अचानक सीधी होती हुई उठ कर बैठ गई. अपनी नींद से भरी आँखों को उन्होंने ऐसे खोल दिया जैसे वो कभी सोई ही नहीं थी. सीधा मेरे उस हाथ को पकर लिया जो उनके पेटिकोट के नाड़े के कट के पास था.
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RE: Kamukta Kahani मेरी बहन कविता - by sexstories - 07-15-2017, 12:48 PM

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