RE: Kamukta Kahani मेरी बहन कविता
समीज खुलते ही दीदी कमर के ऊपर से पूरी नंगी हो गई. उन्होंने ब्रा नहीं पहन रखी थी ये बात मुझे पहले से पता थी. क्यों की दिन भर उनकी समीज के ऊपर से उनके चुचियों के निप्पल को मैं देखता रहा था. दोनों चूचियां आजाद हो चुकी थी और कमरे में उनके बदन से निकल रही पसीने और परफ्यूम की मादक गंध फ़ैल गई. मेरे से रुका नहीं गया. मैंने झपट कर दीदी को अपनी बाँहों में भरा और निचे लिटा कर उनके होंठो गालो और माथे को चुमते हुए चाटने लगा. मैं उनके चेहरे पर लगी पसीने की हर बूँद को चाट रहा था और अपने जीभ से चाटते हुए उनके पुरे चेहरे को गीला कर रहा था. दीदी सिसकते हुए मुझ से अपने चेहरे को चटवा रही थी. चेहरे को पूरा गीला करने के बाद मैं गर्दन को चाटने लगा फिर वह से छाती और चुचियों को अपनी जुबान से पूरा गीला कर मैंने दीदी के दोनों हाथो को पकड़ झटके के साथ उनके सर के ऊपर कर दिया. उनकी दोनों कांख मेरे सामने आ गई. कान्खो के बाल अभी भी बहुत छोटे छोटे थे. हाथ के ऊपर होते ही कान्खो से निकलती भीनी-भीनी खुश्बू आने लगी. मैं अपने दिल की इच्छा पूरी करने के चक्कर में सीधा उनके दोनों छाती को चाटता हुआ कान्खो की तरफ मुंह ले गया और उसमे अपने मुंह को गार दिया. कान्खो के मांस को मुंह में भरते हुए चूमने लगा और जीभ निकाल कर चाटने लगा. कांख में जमा पसीने का नमकीन पानी मेरे मुंह के अन्दर जा रहा था मगर मेरा इस तरफ कोई ध्यान नहीं था. मैं तो कांख के पसीने के सुगंध को सूंघते हुए मदहोश हुआ जा रहा था. मुझे एक नशा सा हो गया था मैंने चाटते-चाटते पूरी कांख को अपने थूक और लार से भींगा दिया था. दीदी चिल्लाते हुए गाली दे रही थी “हाय हरामी….सीईईइ…ये क्या कर रहा है…..चूतखोर…..सीई….बेशरम…..कांख चाटने का तुझे कहा से सूझा…..उफ्फ्फ्फ्फ्फ….पूरा पसीने से भरा हुआ था….साला मुझे भी गन्दा कर रहा है….. हाय पूरा थूक से भींगा दिया….हाय माधरचोद….ये क्या कर रहा है….उफ्फ्फ्फ्फ्फ….हाय मेरे पुरे बदन को चाट रहा है…..हाय भाई……तुझे मेरे बदन से रस टपकता हुआ लगता है क्या…..हाय…… उफ्फ्फ्फ्फ्फ….” मुझे इस बात की चिंता नहीं थी की दीदी क्या बोल रही है. मैं दुसरे कांख को चाटते हुए बोला “हाय दीदी…तेरा बदन नशीला है…उम्म्म्म्म्म्म्म…..बहुत मजेदार है….तू तो रसवंती है….रसवंती….तेरे बदन को चाटने से जितना मजा मुझे मिलता है उतना एक बार बियर पी थी तब भी नहीं आया था….हाय…..दीदी तुम्हारी कान्खो में जो पसीना रहता है उसकी गंध ने मुझे बहुत बार पागल किया है…..हाय आज मौका मिला है तो नहीं छोरुगा….तुम्हारे पुरे बदन को चाटूंगा…..गांड में भी अपनी जुबान डालूँगा…हाय दीदी आज मत रोकना मुझे….मैं पागल हो गया हूँ…..उम्म्म्म्म्म्म्म्म….” दीदी समझ गई की मैं सच में आज उनको नहीं छोड़ने वाला. उनको भी मजा आ रहा था. उन्होंने अपना पूरा बदन ढीला छोर दिया था और मुझे पूरी आजादी दे दी थी. मैं आराम से उनके कान्खो को चाटने के बाद धीरे धीरे निचे की तरफ बढ़ता चला गया और पेट की नाभि को चाटते हुए दांतों से सलवार के नारे को खोल कर खीचने लगा. इस पर दीदी बोली “फार दे ना….बहनचोद…पूरी तो पहले ही फार चूका है….और फार दे….” पर मैंने खींचते हुए पूरी सलवार को निचे उतार दिया और दोनों टांग फैला कर उनके बीच बैठ एक पैर को अपने हाथ से ऊपर उठा कर पैर के अंगूठे को चाटने लगा धीरे धीरे पैर की उँगलियों और टखने को चाटने के बाद पुरे तलवे को जीभ लगा कर चाटा. फिर वहां से आगे बढ़ते हुए उनके पुरे पैर को चाटते हुए घुटने और जांघो को चाटने लगा. जांघो पर दांत गाराते हुए मांस को मुंह में भरते हुए चाट रहा था. दीदी अपने हाथ पैर पटकते हुए छटपटा रही थी. मेरी चटाई ने उनको पूरी तरह से गरम कर दिया था. वो मदहोश हो रही थी. मैं जांघो के जोर को चाटते हुए पैर को हवा में उठा दिया और लप लप करते हुए कुत्ते की तरह कभी बूर कभी उसके चारो तरफ चाटने लगा फिर अचानक से मैंने जांघ पकर कर दोनों पैर हवा में ऊपर उठा दिया इस से दीदी की गांड मेरी आँखों के सामने आ गई और मैं उस पर मुंह लगा कर चाटने लगा. दीदी एक दम गरमा गई और तरपते हुए बोली “क्या कर रहा है…हाय गांड के पीछे हाथ धो कर पर गया….है….सीईईई गांड मारेगा क्या….जब देखो तब चाटने लगता है…उस समय भी चाट रहा था….हाय हरामी….कुत्ते….सीईई…चाट मगर ये याद रख मारने नहीं दूंगी……साला आज तक इसमें ऊँगली भी नहीं गई है…..और तू कुत्ता…..जब देखो…उफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ़….हाय चाटना है तो ठीक से चाट…..मजा आ रहा है….रुक मुझे पलटने दे……” कहते हुए पलट कर पेट के बल हो गई और गांड के निचे तकिया लगा कर ऊपर उठा दिया और बोली “ले अब चाट….कुत्ते….अपनी कुतिया दीदी की गांड….को…..बहनचोद…..बहन की गांड….खा रहा है…..उफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ़ बेशरम……” मेरे लिए अब और आसन हो गया था. दीदी की गांड को उनके दोनों चुत्तरों को मुठ्ठी में कसते हुए मसलते हुए खोल कर उनकी पूरी गांड की खाई में जीभ डाल कर चलाने लगा. गांड का छोटा सा भूरे रंग का छेद पकपका रहा था. होंठो को गांड के छेद के होंठो से मिलाता हुआ चूमने लगा. तभी दीदी अपने दोनों हाथो को गांड के छेद के पास ला कर अपनी गांड की छेद को फैलाती हुई बोली “हाय ठीक से चाट…चाटना है तो….छेद पूरा फैला कर….चाट…मेरा भी मन करता था चटवाने को…..तेरी जो वो मस्तराम की किताब है न उसमे लिखा है….हाय राजू…..मुझे सब पता है…बेटा….तू क्या क्या करता है….इसलिए चौंकना मत….बस वैसे ही जैसे किताब में लिखा है वैसे चाट…..हाय…जीभ अन्दर डाल कर चाट….हाय सीईईईईई…..” मैं समझ गया की अब जब दीदी से कुछ छुपा ही नहीं है तो शर्माना कैसा
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