RE: kamukta Sex Kahani पत्नी की चाची को फँसाया
फिर उनके सामने देखा तो वो वापिस आकर चौकी पर खड़ी हो गईं और जैसे ही मैंने अपना पेट उनके साथ चिपकाया और थोड़ा सा रगड़ा तो सासूजी ने जान-बूझकर अपना संतुलन थोड़ा बिगाड़ा और गिरने की एक्टिंग करने लगीं।
तब मैंने उनको पकड़ लिया.. वो बोलीं- कब से खड़ी हूँ.. इसलिए ये हाल हुआ.. क्या ये विधि किसी और तरीके से नहीं हो सकती..?
और सच कहूँ तो सासूजी ने मेरे मुँह की बात छीनी थी.. क्योंकि मैं भी यही चाहता था।
मैंने कहा- ठीक है..
फिर मैं दीवार का सहारा लेकर दोनों पैरों को लंबा करके बैठ गया और सासूजी से कहा- अब आप आकर यहाँ बैठ जाइए।
तब सासूजी ने थोड़ा शरमाने का नाटक किया और आकर मेरे सामने मुँह करके मेरे पैरों के ऊपर बैठ गईं। लेकिन दोनों के पेट की दूरियां ज़्यादा थीं.. जिसकी वजह से स्वास्तिक नहीं निकल सकता था।
तब मैंने थोड़ी हिम्मत करके उनकी कमर को पकड़ा.. तो उनकी साँसें थोड़ी तेज हो गईं.. लेकिन मैंने वहाँ ध्यान नहीं दिया और उनकी कमर को पकड़ कर मेरे पेट से उनके पेट को चिपका लिया। जिसकी वजह से मेरा लण्ड उनकी चूत को छूने लगा।
वो भी ये सब महसूस कर रही थीं। अब हम दोनों धीरे-धीरे एक-दूसरे के पेट को घिसने लगे.. हम दोनों कंट्रोल से बाहर थे फिर भी दोनों संयम रखते हुए ये कार्य कर रहे थे।
जब मुझसे नहीं रहा गया.. तब मैंने कहा- एक काम करो.. मैं जैसे करता हूँ.. आप भी वैसा ही करो ताकि स्वास्तिक जल्द निकल जाए।
तब सासूजी ने ‘हाँ’ में अपना सर हिलाया और फिर मैंने अपने दोनों हाथों को उनकी पीठ पर ले जाकर उन्हें अपनी बाँहों में ले लिया तो उन्होंने भी ऐसा ही किया।
अब हम दोनों एक-दूसरे को चिपकाए हुए थे और मेरा लण्ड और उनकी चूत एक-दूसरे से चिपक गए थे।
अगर दोनों ने अंडरगार्मेंट्स नहीं पहने होते.. तो शायद कब के वो दोनों यानि कि मेरा लण्ड और सासूजी की चूत एक हो गए होते।
करीब 10 मिनट तक हम ये करते रहे और हम दोनों ने ये महसूस किया कि हम दोनों ही झड़ चुके हैं।
लेकिन दोनों में से कोई भी अपने मुँह से ये बोलना नहीं चाहते थे.. इसलिए मैंने पहल की और मैंने कहा- अब स्वास्तिक निकल गया होगा..
सचमुच में स्वास्तिक निकल गया था। फिर हम बारी-बारी से स्नान करने चले गए और स्नान करके वापिस आए तो रात का एक बज गया था।
सासूजी मुझसे नशीली आवाज में बोलीं- अब क्या करना है..?
वैसे तो मैंने पूरी विधि उन्हें पहले ही लिख कर दे चुका था.. फिर भी वो मेरे मुँह से सुनना चाहती थीं और एक बात मैंने नोटिस की कि सासूजी अब मुझसे शरमा नहीं रही थीं।
तब मैंने उन्हें दो डिब्बे दिए। जिसमें से एक में मांड और दूसरे में मलाई थी।
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