RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
उपर जाकर दया चंद ने दरवाजा खटखटाया. शमशेर लॅपटॉप पर काम कर रहा था. उसने दरवाजा खोला, आइए अंकल जी.
अंदर जाते ही दोनों को यकीन हो गया की वाणी उपर रहने की ज़िद क्यूँ कर रही है. बिल्कुल ठंडा माहौल था कमरे में.
बैठने के बाद डायचंद ने बोलना शुरू किया; उसको समझ नही आ रहा था बात कहाँ से शुरू करे," बेटा कोई तकलीफ़ तो नही है ना!"
"जी नही तकलीफ़ कैसी, मैं तो यहाँ अपने घर की तरह से रह रहा हूँ!"
डायचंद: फिर भी बेटा.... वो वाणी है ना, बहुत ही शरारती है! परेशन तो कर देती होगी आपको.
शमशेर: अरे नही अंकल जी! वो तो गुड़िया जैसी है; उसने ही तो मेरा दिल लगाया है यहाँ पर. शमशेर ने हद से ज़्यादा मीठा होते हुए कहा. उसकी अब तक ये समझ नही आ रहा था की माजरा क्या था.
निर्मला: वो भी ना मस्टेरज़ी, आपसे बहुत घुलमिल गयी है. नीचे भी आप ही की बात करती रहती है.
शमशेर: आंटिजी, वो तो है ही ऐसी. कितनी प्यारी है गुड़िया जैसी.
डायचंद: (थूक निगलते हुए) बात ऐसी है बेटा; वो वाणी ज़िद किए बैठी है की मैं तो सर जी के साथ रहूंगी. खाना भी नही खाया; रो रही है जबसे नीचे गयी है( ए.सी. वाली बात को बताने में उन्हे शरम आ रही थी)
शमशेर की समझ में नही आया इश्स बात पर कैसे रिएक्ट करे! वो कुच्छ नही बोला.
डायचंद: मुझे तो बहुत गुस्सा आया था बेटा, बच्चों की इतनी ज़िद ठीक नही. पर इसकी मम्मी कहती है एक दो दिन...... अगर आपको कोई दिक्कत ना हो तो यहाँ... इश्स दूसरे कमरे में दोनों बच्चियाँ रह लेंगी. ....अगर आपको ऐतराज ना हो तो... 1-2 दिन में अपने आप दिल भर जाएगा; अपनी मम्मी के बिना भी तो नही रहती ना... देख लो... उसको समझा कर देख लो... मास्टर जी!
"ओ..ओह अंकल जी( शमशेर के मॅन में लड्डूओं की बरसात हो रही थी. 'दोनो' सुन-ने के बाद और कुच्छ उसको सुनाई ही नही दिया... क्या किस्मत दी है भगवान ने!) भला मुझे क्या दिक्कत हो सकती है उस्स बेचारी से! आपका ही घर है.... वैसे भी वो कमरा तो में यूज़ करता ही नही... प...पढ़ा... मेरा मतलब है पढ़ाई में भी कोई दिक्कत होगी तो पढ़ा दूँगा. वैसे भी में तो खाली ही रहता हूँ... बाकी आपकी मर्ज़ी!... मैं तो उस्स कमरे में जाता ही नही"
शमशेर ने इतना लंबा भासन दिया ताकि इनको विस्वास हो जाए उसको कोई प्राब्लम नही है.
निर्मला: तो मास्टर जी उनकी चारपाई लगवान दे उपर?
शमशेर: जी मुझे तो कोई दिक्कत है नही... आपकी मर्ज़ी... शमशेर ख़ुसी में हकला रहा था.
निर्मला: तो ठीक है बेटा, हम उन्हे उपर भेज देते हैं. कोई दिक्कत हो तभी बता देना. तभी ले जाएँगे हम दोनों को!
शमशेर: जी अच्च्छा!
बाहर निकल कर डायचंद बोला," बड़ा भोला है बेचारा. इतना पैसा होने पर भी किसी बात का घमंड नही; भगवान ऐसी औलाद सबको दे!"
कुच्छ देर बाद दोनो अपनी अपनी चारपाई लेकर उपर आ गयी और दूसरे कमरे में डाल लिया. दिशा तो किताब लेकर पढ़ने बैठ गयी पर वाणी दौड़ी आई और सर से लिपट गयी. दिशा ने एक बार उनकी और देखा पर शमशेर को अपनी और देखता पाकर शर्मकार नीचे चेहरा कर लिया. वाणी की आँखें रोने की वजह से और भी मोटी मोटी हो गयी थी. शमशेर ने उसके गाल पर प्यार से किस किया तो बदले में वाणी ने भी एक चुम्मा सर के गाल पर दे डाला.
सच में वाणी तो एक प्यारी गुड़िया ही थी.
शमशेर पालती मारे बैठा था; वाणी उसकी गोद में आकर बैठ गयी और उसकी गालों के नीचे अपना सिर फँसा लिया. उसने अब भी स्कर्ट पहन रखा था
वाणी की गॅंड शमशेर की गोद में होने की वजह से ना चाहते हुए भी शमशेर गरम होता जा रहा था. उसने लाख कोशिश की अपना ध्यान बताने की पर उसकी दुनिया की सबसे हसीन कन्या जब उसके सामने हो और उसकी 17 साल की अनच्छुई बहन उसके लंड पर अपने मस्त चूतदों को टिकाए बैठी हो तो उस्स जैसे गरम खून वाले का कंट्रोल कहाँ तक टिकता. स्कर्ट और एक पतली सी कच्च्ची उसके शेर की टक्कर कहाँ तक सहन करते. वैसे भी वाणी उसके लंड के ठीक बीच में बैठी थी. उसको अपने चूतदों में कुच्छ चुभता सा महसूस हुआ, पर वो उसको समझ नही पाई. उसने सोचा वा सर की टाँग पर बैठी है. नासमझ थी तो क्या हुआ फिर भी थी तो वह लड़की ही, उसको बेचेनी सी होने लगी. ऐसी बेचैनी जिसमें उसको मज़ा आ रहा था. धीरे धीरे उसकी चूत में गर्मी बढ़ने लगी. अजीब सा खुमार च्छा गया था उस्स पर. धीरे धीरे उसने बोलना बंद कर दिया. बस हां हूँ में ही जवाब देने लगी. शमशेर की 'टाँग' पर अपनी चूत की रगड़ से उसको अजीब सा आनंद मिल रहा था. वो आराम आराम से आगे पीच्चे होने लगी, उसको पता नही था ऐसा क्यूँ हो रहा है. शमशेर उसकी हालत को ताड़ गया था. उसने अपनी दोनों बाहें आगे ले जाकर वाणी को कसकर पकड़ लिया; बातें करते करते. शमशेर की कलाई का दबाव उसकी छतियो पर बढ़ गया, इसमें उसका आनंद और बढ़ गया. हिलने की वजह से अब शमशेर का लंड उसकी चूत के दाने पर दबाव बढ़ा रहा था, जिससे वाणी की आँखें बंद हो गयी और उसका आगे पीच्चे हिलना और तेज़ हो गया. अचानक वो काँपने लगी. उसने सिर के हाथों को काशकर पकड़ लिया और अपनी चुचकों पर दबाव बढ़ने लगी. करीब 10-15 सेकेंड के बाद उसको हल्की सी हिचकी आई और वो निढाल हो गयी. जब उसका होश संभला तो उसको लगा जैसे उसका पेशाब निकल आया हो. वो बिना कुच्छ कहे बाथरूम में भाग गयी. पहली बार उसने यौवन सुख के साम्राज्य में परवेश किया था. इतना सब हो जाने के बाद भी दिशा को अहसास भी नही हुआ की उसकी छ्होटी बेहन ने उससे पहले ही किसी पुरुष की सहायता से ष्क्लन का चरम आनंद प्राप्त कर लिया है, बेशक यह संभोग नही था.
बाथरूम में जाकर वाणी ने देखा उसकी कच्च्ची भीग गयी है. उसने निकाल कर देखा, यह पेशाब तो नही था, इतना गाढहा पेशाब हो ही नही सकता. वा काँपने क्यूँ लगी थी? उसको इतना मज़ा कैसे आया. और उसने सर के हाथ को अपनी छति पर क्यूँ दबाया? वह विचलित सी हो गयी थी. उसको शरम आ रही थी. पूच्छे तो किस-से पूच्छे! बताए तो किसको बताए. उसने झुक कर अपनी चूत की फांकों को दूर करके देखा. वा अंदर से अजीबोगरीब तरीके से लाल हो चुकी थी. एक पल के लिए तो जब उसका ष्क्लन हुआ तहा उसको लगा की शायद वह मर रही है. पर अब उसके मॅन में थोड़ी शांति थी. लेकिन उस्स आनंद को जो अंजाने में सर की गोद में उसको मिला; भूल नही पा रही थी.
उसकी कच्च्ची तो गीली हो गई थी. अब वो पहनेगी क्या. नीचे तो जा नही सकती, कहीं मा उसको वहीं ना रख ले. दिशा को बताती तो क्या बताती. आख़िर में उसने कच्च्ची को धोकर टाँग दिया और ऐसे ही स्कर्ट को टाँगो से चिपकाए बाहर आकर अपनी खाट पर बैठ गयी.
नीचे मामा मामी को चोद रहा था. बहुत दिनों बाद उसको प्यार करने लायक अकेला पन मिला था. मामी निढाल सी अपनी टांगे चौड़ाए पड़ी थी और मामा उसकी खुली चूत में अपना 'जैसा भी था' लंड पेले जा रहा था. पर वो चुदाई मामी को फॉरमॅलिटी भर लग रही थी. जैसे बस करवाना ही है. उसको मामा के 4 इंची लंड से कोई खास लगाव नही था. अब मामा की उमर भी तो हो गयी थी ना. ऐसा नही है की वो दूश्रों की और देखती थी अपनी सेक्स की पूर्ति के लिए. बस वा 'जो मिला' से ही संत्ुस्त थी.
अपनी टांगे फाडे फाडे ही वो कहने लगी," सुनो जी, दिशा के लिए शमशेर जैसा रिश्ता मिल जाए तो....' हमारी बेटी लाखों में एक है... और शमशेर भी तो....! मामा उसके उपर निढाल होकर गिर पड़ा," कैसी बात करती हो निर्मला! वो कहाँ और हम कहाँ! कहने से पहले कुच्छ सोच तो लिया करो." उसने अपना लंड मामी की चूत से निकल लिया और बोला," अब वो बात नही रही निर्मला! बुढ़ापा दस्तक देने लगा है" वा हाँफ रहा था.
उपर वाणी का बुरा हाल था. जो कुच्छ भी थोड़ी देर पहले हुआ वा तो जैसे स्वर्ग में जाकर आने जैसा था. उसको चुपचाप देखकर दिशा ने धीरे से पूचछा," क्या हुआ वाणी!?"
वाणी ने भी उसी टोने में जवाब दिया," कुच्छ नही दीदी?"
दिशा: नींद आ रही है क्या?
वाणी: नही तो... दीदी!
दिशा: फिर सर के पास से उठ क्यूँ गयी?
वाणी: ऐसे ही दीदी! क्यूँ?
दिशा: कुच्छ नही, ऐसे ही! वो सर की कुंभकारण वाली बात तू सच कह रही थी ना!
वाणी: हां दीदी! बेशक तुम उठा के देख लेना, बिना बोले; नही उठेंगे.
दिशा: तू झूट बोल रही है!
वाणी पिच्छली बात और अपने नंगेपन को भूल गयी! वा उठकर सर के पास भागी चली गयी," सर, आपकी नींद कुम्भकरण जैसी है ना!
शमशेर: क्यूँ वाणी?
वाणी: मैने दीदी को बताया था; वो कह रही हैं मैं झूठ बोल रही हूँ!
शमशेर हँसने लगा," नही, अपनी दीदी को बता दो हम झूठ नही बोलते!"
वाणी ने जीभ निकल कर दिशा को चिडा दिया!
दिशा गुस्सा थी की उसने सर को क्यूँ बताया की वो उनके बारे में पूच्छ रही थी. उसने खिज में अपनी चप्पल उठाई और वाणी की और आराम से फंकी. चप्पल वहाँ तक पहुँची ही नही. वा शर्मिंदा होकर लेट गयी और आँखें बंद कर ली.
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