RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
वाणी नीचे चारपाई पर अकेली लेटी थी... बराबर वाली खत पर दिशा कब की सो
चुकी थी.. पर वाणी से नींद रूठ गयी थी.. हां.. जागते हुए भी एक सपना उसकी आँखों से जुड़ा होने का नाम नही ले रहा था.. मनु का उसको बाथरूम से नंगी उठा कर ले जाने वाला सपना...
मनु का चेहरा उसके सामने ही चक्कर लगा रहा था.. मानो उस 'से कह रहा हो.. ," वाणी मैने कम से कम शर्ट पहन तो रखी थी.. चाहे वो उल्टी ही क्यूँ ना हो.. पर तुमने क्या किया.. बिना कपड़ों के ही मेरी गोद में आ गयी... ये विचार वाणी के मान में आते ही उसके चेहरे के भाव बदल जाते.. और रह रह कर बदलते रहते... कभी वा अपना ननगपन याद करके शर्मा कर पानी पानी हो जाती... कभी मनु की बाहों में अपने को सोचकर नर्वस हो जाती और कभी सिर्फ़ मनु के बारे में सोचने लगती.. सीरीयस होकर....
"मनु को किसी भी आंगल से एक बहुत ही प्यारे दोस्त के तौर पर नकारा नही जा सकता था... वो इंटेलिजेंट था.. लंबे.. छरहरे शरीर का था.. बहुत ही प्यारी सूरत वाला था.. और सबसे बड़ी बात.. वो बहुत ही नेक दिल.. और शरीफ था.. अगर उसकी जगह कोई और होता तो क्या उसको उस्स हालत में छेड़े बिना छोड़ देता... बिल्कुल नही... वाणी ने करवट लेकर अपना ध्यान हटाकर सोने की कोशिश करी.. पर मनु तो जैसे उसको अकेला ना छोड़ने का प्राण कर चुका था....
लाख कोशिशों के बाद भी जब वाणी सो ना सकी तो उठकर टवल उठाया और नहाने चली गयी.....
वाणी ने बाथरूम में जाकर लाइट ओं करी और दीवार पर टाँगे छोटे शीशे में अपना चेहरा देखने लगी... उसको अहसास था की उसका चेहरा भगवान ने बड़ी फ़ुर्सत से गढ़ा है.. उसमें मासूमियत थी.. चंचलता थी.. बिंदास मनमोहक आँखें थी... रसीले हमेशा ताज़ा रहने वेल गुलाबी गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होन्ट थे.. उसमें सब कुछ था.... उसकी हर चीज़ निराली थी..
वाणी को लगा जैसे मनु पीछे खड़ा हंस रहा है.. उसने आँखें बंद कर ली और पीछे दीवार से सॅट कर खड़ी हो गयी... क्या मनु को भी वो पसंद होगी... क्या मनु भी उसको याद कर रहा होगा... आज उसने तो उसका सबकुछ देख लिया.... क्या मैं उसको बिना कपड़ों के अच्छी लगी हूँगी... एक पल में ही वो उसके कितने करीब आ गया है.. आज वाली घटना ना होती तो वो कभी उसके बारे में सोचती भी नही.. और अब है की वो उसके दिमाग़ पर छाया हुआ है.. शायद दिल पर भी... वाणी ने अपना टॉप उतार दिया और अपने आपको चेक करने लगी...
समीज़ उसकी छातियों को ढकने में नाकामयाब था.. मोटी मोटी उभरी हुई छातियों का जोड़ा समीज़ में यूँ तना हुआ था जैसे समीज़ उनको नही, बुल्की वो समीज़ को संभाल रही हों... समीज़ के बाहर उसके अनमोल दानों का उभर अत्यंत कामुकता से पारदर्शन हो रह था.. पर मनु ने तो उनको साक्षात ही देखा होगा... वाणी के शरीर में एक जानी पहचानी सिहरन दौड़ गयी.. उसकी छातियों से लेकर उसकी नाभि से होती हुई उसकी अनपढ़ मछली की फांकों और गड्राए हुए नितंबों की दरार तक.. वाणी शर्म से अपने में ही सिमट गयी.. उसकी छातियाँ उसके दिल की धड़कन के साथ कंपित हो रही थी.. जब वो साँस अंदर लेती तो छातियाँ बाहर होकर अपने बीच की दूरी को बढ़ा लेती और गर्व से फूल जाती.. और जब साँस अंदर जाती तो समीज़ का कपड़ा थोड़ा सा खुल कर जैसे उनके बीच की दूरी पाटने की कोशिश करता... वाणी ने अपने हाथों में समीज़ का निचला कोना पकड़ा और उसको उपर खींच कर अपनी ड्यूटी से मुक्त कर दिया..
छातियों का गड्रयापन.. समीज़ को आज़ाद करते ही मचल उठा.. वो अब किन्ही प्यार भरे हाथों में जाने के लिए बेचैन होकर दायें बायें हिलने लगी... पर अब वाणी के खुद के अलावा और था ही क्या.. वाणी ने अपने दोनो हाथों से जन्नत के गुंबाडों को एक एक करके पकड़ा और उनको दबा कर देखने लगी.. नीचे से उपर सहलाने लगी.. दाने उसकी चिकनी छातियों पर हाथ फेरने में रुकावट बन कर तन कर खड़े हो गये.. एक अनार के दाने के जीतने....
वाणी ने अपना लोवर उतार दिया और शवर चला कर उसके नीचे आ गयी...ठंडा पानी उसके बदन की गर्मी को शीतल नही कर पाया अपितु.. वाणी को लगा.. पानी उसके शरीर से लगकर गरम हो रहा है...
अपने नाज़ुक हाथों से वाणी ने अपने हर अंग को सहलकर, दुलार पूछकर कर, दबाकर, फैलाकर, उठाकर और मसलकर शांत करने की कोशिश करी.. पर आज वो आख़िर में अपनी उंगली को घुसा कर भी जब वाणी को चैन नही मिला तो वाणी को यकीन हो गया.... की उसको प्यार हो गया है!
वासू शहर जाने के लिए घर से निकल कर बस-स्टॉप पर जाकर खड़ा हुआ ही था की राकेश और राहुल मोटर साइकल पर वहाँ आ धमके.. पता नही ये संयोग वश था या जान बूझ कर; पर राहुल को पता था की ये कुर्ते पाजामे वाला जवान 'मास्टर' वाणी के घर के उपर रहता है...
राहुल के इशारे पर राकेश ने बाइक स्टॉप के पास एक घर के आगे खड़ी कर दी और वासू के सामने आकर खड़े हो गये..
वासू का ध्यान उनपर कतयि नही गया था.. वो तो शहर जाकर खरीदने वाली खाने पीने और औधने वाली चीज़ों का हिसाब किताब लगा रहा था...
राकेश ने सिगरेट सुलगई और वासू के चेहरे पर धुआँ छोड़ते हुए बोला," आ मास्टर! पीनी है क्या? भरी हुई है...."
"क्षमा करो भाई... ये तो तुम्हे भी छोड़ देनी चाहिए.. इश्स उमर में ये सब व्यसन करके ज़्यादा जी नही पाओगे...
राकेश हंसा और सिगरेट राहुल को देते हुए बोला," क्या मास्टर! हम जी कर क्या करेंगे... जी तो तू रहा है.. एक को तो शमशेर ले उड़ा.. दूसरी पर तू ठंडा हो रहा होगा.. क्या किस्मत पाई है तूने..." राकेश ने वासू के कंधे पर हाथ रख कर धीरे से कहा...
"क्या कह रहे हैं आप... मैं कुछ समझा नही.. मैं तो हमशा ठंडा ही रहता हूँ भाई.. क्रोधित होने से क्या मिलता है इंसान को...." वासू ने शराफ़त से अपने कंधे से उसका हाथ हटा दिया....
"आब्बी.. यहाँ सब भोले ही बनकर आते हैं.." तभी राकेश ने देखा नीरू स्टॉप की और ही आ रही है..," पर मास्टर हमें सब पता है.... गर्ल'स स्कूल में क्या क्या होता है... हमारे लिए भी कुछ छोड़ दो मास्टर.." राकेश ने नीरू को उपर से नीचे देखते हुए वासू के गले में ही हाथ डाल लिया...
"अरे भाई साहब! आप तो गले ही पड़ गये.. हटिए ना.. ना आप हम को जानते.. ना हम आपको.. तब से धुन्या मेरे चेहरे पर छोड़ रहे हैं.. कृपया दूर हट जायें..." वासू बेचैन होकर थोड़ा तेज बोलने लगा..
नीरू राकेश द्वारा नये मास्टर जी को इस तरह परेशन होते देख अपने आपको रोक ना पाई..," सर.. आप यहाँ आ जाइए.. ग़लत लोगों के मुँह नही लगते..." नीरू वासू के हाव भाव देखते ही समझ गयी थी की वो बहुत ही 'शरीफ' इंसान है...
"देवी जी.. इन अंजन लोगों के चंगुल से बचाने का धन्यवाद!" वासू नीरू से दूरी बना कर उसके पीछे पीछे जाकर और लोगों के साथ खड़ा हो गया...
"सर! मैं देवी जी नही, आपके स्कूल में स्टूडेंट हूँ.." नीरू उसकी हद से ज़्यादा सौम्या भासा पर मुस्कुराए बिना ना रह सकी.."
"तो क्या हुआ.. मेरे लिए तो हर कन्या देवी का ही रूप है.. मैं तो हनुमान जी का भगत हूँ... बॉल ब्रह्मचारी... हमेशा से ही गुरुकुल में रहा हूँ.. और सनातन भारतिया संस्कृति सीखी है... आजकल के नौजवानो को देख कर बड़ा दुख होता है.. अच्छा हुआ आज गाँधी जी जिंदा नही हैं..."
"ये सर तो बातें बहुत करते हैं.." सोचते हुए नीरू ने कहा," सर लगते तो आप भी आजकल के ही हैं.. पर ये सब परवरिश का ही फ़र्क़ है..."
"बिल्कुल ठीक कहा देवी जी.. बिकुल ठीक .. अब मैं 25 का होने वाला हूँ.. देखा जाए तो ये मुझसे 3-4 साल ही छोटे होंगे.. पर इसी उमर में इन्होने अपने आपको कितना दूषित कर लिया है... .."
वासू की बात बीच में ही काट-ते हुए नीरू बोली..," सर, बस आ गयी!"
"आ राहुल क्या बोलता है.. इस लीडर के पीछे चलें.. बहुत पंख फड़फदा रही है साली.. मौका मिला तो नोच देंगे साली के पंख..!" राकेश ने सिगरेट फैंकते हुए राहुल से कहा..
"फिर तो बस में ही चलते हैं.. साले!.. भीड़ मिली तो रास्ते में ही गरम कर देंगे..."
और दोनो वासू और नीरू के साथ बस में लटक लिए.....
वासू बस में चढ़ते ही ड्राइवर के बराबर वाली लुंबी सीट पर बैठ गया.... नीरू को ड्राइवर के पीछे वाली सीट पर बाहर वाली सीट मिल गयी.. हालाँकि पीछे 2 तीन सीटे खाली थी.. पर राकेश और राहुल नीरू के पास खड़े हो गये...
नीरू उन दोनो की नीयत पहचानती थी.. पर बेचारे 'वासू' को उन दोनो के पास छोड़ कर पीछे जाना नीरू को अच्छा नही लगा.. और फिर इस बात का भी क्या भरोसा था की वो पीछे नही आयेंगे...
अगले ही स्टॉप पर करीब 20 सवारियाँ और बस में चढ़ गयी.. बस खचा खच भर गयी और राहुल को आगे आने का मौका मिल गया.. उसने अपने कदम खिसका कर नीरू के पास कर दिए.. इस हालत में नीरू को अपने कंधे पर राहुल की जांघों के बीच का 'कुछ' अपने कंधे से रग़ाद ख़ाता महसूस हुआ.. नीरू जानती थी की ए 'कुछ' क्या है.... उसने जितना हो सका अपने को बचने की कोशिश की पर राहुल साथ ही आगे सरकता चला गया.. नीरू बेचैन हो गयी..," आ राहुल! सीधा खड़ा नही हो सकता क्या?"
राकेश ने मज़े लेते हुए कहा," आ राहुल! पीछे हो जा.. मेडम तो लंबी गाड़ियों में चलती है.. इसको गर्मी लग रही होगी.. तेरी टाँग लगने से.." कहते ही दोनो खिल खिला कर हंस पड़े..
राहुल ने पीछे बस में गर्दन घुमाई.. सारी सवारियों ने अपनी गर्दन झुका ली.. सरपंच के बेटे से पंगा कौन लेता...
दोनो समझ गये.. बस में कोई मर्द नही है.. राहुल ने आगे होते हुए नीरू की बाजू को अपनी जांघों के बीच ले लिया..
नीरू कसमसा उठी... राहुल का भारी लंड उसको जैसे धक्का मार रहा था... वा उठ कर खड़ी हो गयी.. और यहीं उसने बहुत बड़ी ग़लती कर दी.. राकेश तुरंत खाली हुई सीट पर बैठ गया.. नीरू ने आगे पीछे देखा.. कहीं तिल रखने की भी जगह नही थी....
नीरू की हालत कुछ इस तरह की हो गयी की उसके ठीक सामने राहुल अपना 'तनाए' खड़ा था... उस 'से सटकार.. और सीट पर बैठे रोहित ने अपना कंधा उसकी उँचुई.. कुम्हलाई हुई गांद के बीचों बीच फँसा दिया...
नफ़रत और बेबसी की दोहरी आग में झुलस रही नीरू का चेहरा क्रोध से लाल हो गया..," हर्रररंजाड़े! उसने अपना हाथ जैसे तैसे निकल कर राहुल के मुँह पर छाँटा मरने की सोची.. पर राहुल ने उसका हाथ नीचे ही पकड़ लिया.. खड़ा होकर गुर्रा रहा लंड पॅंट के अंदर से ही नीरू को अपने वजूद का अहसास करने लगा...
इतने में अपनी मस्ती में मस्त वासू को जब किसी बेबस कन्या के मुखमंडल से 'हराम्जादे' सुना तो वो जैसे होश में आया..
खड़ा होकर भीड़ को इधर उधर करके अपना मुँह निकाला," देवी जी आप! क्या कष्ट हो गया है...
नीरू जानती थी.. की ये बेचारा उसकी मदद क्या करेगा.. पर फिर भी सहानुभूति के दो शब्द सुनते ही उसकी आँख से आँसू टपक पड़े...
"अरे देवी जी! बताओ तो क्या हुआ..? आप यूँ परेशन सी क्यूँ है..."
"अरे मास्टर! तेरी देवी जी को भीड़ में परेशानी हो रही है.. इसको हेलिकॉप्टर दिलवा दे..!" राकेश ने अपना कंधा नीरू की जांघों के बीच सरकते हुए कहा...
उसके बोलने के लहजे से ही वासू समझ गया.. ज़रूर गड़बड़ यहीं है.. तभी उसका ध्यान नीरू की लाकुआर हालत पर गया...
"छी छी छी.. आप ने तो हद ही कर दी.. आइए देवी जी.. मेरी सीट पर बैठ जाइए.." वासू ने विनम्रता से कहा...
"तेरी पर तो तब बैठेगी ना जब यहाँ से हिलेगी... देखता नही अंधे.. भीड़ कितनी है... यहाँ चलना तो दूर, हिलना भी मुश्किल है..." राहुल ने अपनी रग़ाद बढ़ते हुए कहा..
"कोई बात नही बंधु!" कहते हुए वासू में जाने कहाँ से जोश आया की उसके हाथ का धक्का लगते ही राहुल अपने से पीछे तीसरी सवारी पर गिरते गिरते बचा... जगह बन गयी.. और नीरू मौका मिलते ही वासू के पीछे पहुँच गयी...
"यहाँ आराम से बैठ जाइए देवी जी.." वासू ने नीरू को सीट दिखाते हुए कहा..
"अब वाला 'देवी जी' नीरू को बड़ा प्यारा लगा.. आख़िर वो लल्लू जैसा भी था.. नीरू की असमात ही बचाई थी...
वासू की इस हरकत पर राकेश का खून खौल उठा," ओये मास्टर! लड़की को पटाने की कोशिश ना कर.. ये हमारे गाँव की इज़्ज़त है...
"यही तो मैं समझने की कोशिश कर रहा हूँ बंधु.. लड़की की इज़्ज़त पुर गाँव की इज़्ज़त होती है.. उसको मा और बेहन के समान समझो..! नारी अगर सही है तो देवी का रूप है.. अगर ग़लत है तो नरक का द्वार... दोनो ही तरह की नारियों की दूर से इज़्ज़त करने में ही भलाई है पगले! जाने तुम को क्या हो गया है.. आज अगर गाँधी जी..."
"आब्बी ओ गाँधी के बंदर.. हट रास्ते से.. कहकर राहुल ने उसको ढका कर नीरू के पास जाने की कोशिश की.. पर वह सफल नही हो सका...
राकेश ने हेरोगीरि झाड़ने की खातिर अपनी कमर
पर बँधी साइकल की चैन उतार ली..," आबे ओ ड्राइवर.. बस रोक.. यहीं पर.. साला बहुत बकबक कर रहा है.. आज इसकी सारी खुसकी निकल देता हूँ साले की..."
ड्राइवर उन्न बच्चो से पंगा नही ले सकता था.. उसने तुरंत ब्रेक लगा दिए...
"चल साले बेहन के लौदे.. नीचे उतार..! तेरी मा...
" भाई.. क्यूँ उत्तेजित हो रहे हो.. हिंसा और गली गलौच सभ्या लोगों को शोभा नही देते..!" ठंडे दिमाग़ से अपने गंतव्या पर जाओ.. ताकि उद्देशा पूरा भी हो.. यहाँ बस क्यूँ रुकवा रहे हो.. मेरे साथ साथ सभी सवारियों को जल्दी है.." वासू उनको उस वक़्त भी उपदाएश दे रहा था.. पर उसके उपदेश भैंस के आगे बिन बजाने से ज़्यादा असर करते दिखाई नही दिए...
"आबे तू नीचे उतार.." कहकर रोहित ने उसको धक्का दिया.. पर उसके पोले पकड़े होने की वजह से राकेश उसको हिला नही पाया...
"अरे ओ भाई.. नीचे क्यूँ नही उतार जाता.. अपने साथ हमें भी लेट करवाएगा क्या..?" अब जाकर भीड़ में से किसी ने मर्दानगी दिखाकर बोलने की कोशिश की... ऐसे हैं हम... हमारा समाज..!
"ठीक है बंधुओ.. मेरी वजह से आप लोग क्यूँ लेट होते हो... लो मैं उतार जाता हूँ.." कहकर अपने शास्त्री जी नीचे उतर गये...
"ये बस अभी नही चलेगी... इसकी देवी जी के सामने इसकी गांद फोड़ेंगे!... सुन ले ड्राइवर.. सबको मज़ा लेने दे..." राकेश हर पल अपनी दादागिरी चमकाने के चक्कर में पहले से और उगरा होता जा रहा था... दोनो नीचे उतर आए..
नीरू अंदर बैठी बैठी काँप रही थी.. उसके चक्कर में सर जी ने किन कुत्तों से पंगा ले लिया.. उसकी आँखों में आँसू थे.. पर वो क्या कर सकती थी.. मारे शर्म के वो तो किसी को कह भी ना सकी.. सर को बचाने के लिए..
"हन अब बोल..! तू बनेगा.. मेरे गाँव की लड़कियों का रखवाला.." राकेश ने चैन हवा में लहराते हुए कहा...
"हे प्रभु! मैं कितनी बार आपसे प्रार्थना करता हूँ की मुझे हिंसा से डर लगता है.. मुझे लड़ाई झगड़े से नफ़रत है.. कितनी बार परीक्षा लेगा तू.. " वासू अपने हाथ जोड़ कर प्रभु को याद कर रहा था...
तभी भीड़ में से एक और आदमी की आवाज़ आई..," राकेश भैया... बुरा ना मानो तो.. है है है... मैं ऑफीस में लेट हो रहा था... अगर आप चाहो तो लड़की को भी उतार लो... पर बस जाने दो भाई प्लीज़..."
राकेश ने शेर की तरह बस के शीशों में से आगे पीछे देखा...
"हन हन.. राकेश भैया.. लड़की उतार लो.. बस जाने दो..! प्लीज़ प्लीज़ प्लीज़.....
राकेश की हालत गुणदवों में मर्द जैसी होती जा रही थी.. उसकी छाती फूल कर चौड़ी हो गयी... सारी प्रजा उससे प्रार्थना कर रही थी," ठीक है ठीक है.. जा राहुल उतार ले नीरू को... आज उसकी सील यहीं तोड़ेंगे.. जाने दो बस को..!"
"ठीक है भाई... मज़ा आ जाएगा.. कुँवारी चूऊऊ..." और राहुल आगे ना बोल पाया... वासू ने एक पैर पर घूम कर हाइ किक से उसको लपेट कर बस से चिपका दिया.. वासू की टाँग उसकी छाती पर थी... अब भी... एक ही वार से राहुल अधमरा सा हो गया...
" भाई.. मैं अब भी कहता हूँ... मुझे हिंसा से नफ़रत है.. मुझे मजबूर मत करो... प्लीज़... तुम जवान हो.. अपनी ताक़त अच्छे कामों में लगाओ.. क्यूँ....
वासू की बात पूरी भी ना हुई थी की राकेश ने चैन घुमा कर उस पर वार कर दिया... पर इस वार से बचकर अगले को काबू में करना वासू के लिए बायें हाथ का खेल था.. और सच में ही.. उसने बायें हाथ से तेज़ी से उसकी तरफ आई चैन को जाने कैसे फुर्ती से लपेटा और झटका देकर राकेश को घुमा दिया.. चैन दो बार राकेश के गले से लिपटी और राकेश वासू के पास खींचा चला आया... दोनो में इतना ही दम था... वासू के ढीला छोड़ते ही राहुल धदम से वासू के पैरों में गिर पड़ा... और ज़्यादा खींचाव की वजह से राकेश बेहोश हो गया...
"कोई बात नही बंधु.. इसमें पैर पकड़ने वाली कोई बात नही... ग़लतियाँ इंसान से ही होती हैं.. चलो उठो.. और अपने दोस्त को बस में चढ़ने में मेरी मदद करो... इसका इलाज करवाना पड़ेगा..." वासू ने राहुल को उठाया और राकेश के गले से चैन उतार कर उसको खड़ा करने में राहुल की मदद करने लगा...
नीरू अपने इस भगवान को आँखें फाडे देख रही थी...
जैसे ही वासू बस में चढ़ा... सारी भीड़ सिमट कर पिछले आधे भाग में अड्जस्ट हो गयी.. मर्द के साथ खड़े होने का दम उन हिजड़ों में नही था...
पता नही नीरू पर वासू शास्त्री का क्या जादू चला.. वो बाकी बचे पुर रास्ते में एकटक उसको ही देखती रही.. वासू के चेहरे पर चिर प्रिचित गंभीरता और शांति थी.. जैसे कुछ हुआ ही ना हो... जैसे उसने कुछ किया ही ना हो.. राकेश को भी होश आ गया था और वो भी दूसरी सवारियों के साथ दूर चिपक कर खड़ा हो गया.. हिजड़ों के साथ.. उसकी मर्दानगी हवा हो गयी थी.. वासू के प्रचंड तेज के आगे...
बस से उतरते ही वासू निसचिंत होकर चल दिया.. अपन ही धुन में.. शॉपिंग के लिए हिसाब किताब करता.. नीरू उसके पीछे मीयर्रा दीवानी की तरह कदम पर कदम रखती चल रही थी.. जैसे वा उसी के साथ आई हो.. जैसे उसी के साथ जाना हो...
जब नीरू को लगा की सर पीछे नही देखेंगे तो वा हिम्मत करके बोल ही पड़ी,"सर!"
वासू सिर घूम कर चौंके," देवी जी! कोई समस्या है क्या...?"
"नही सर.... वो... मैं ये कह रही थी की.... थॅंक योउ सर!"
"अरे.. कमाल करती हो आप भी.. निसंकोच होकर जाइए... अगर दर लग रहा हो तो मैं छोड़ आता हूँ..." वासू ने दूर से ही उस 'से पूछा...
हालाँकि डर वाली कोई बात नही थी.. वो अगली क्लास के लिए बुक्स लेने आई थी..," जी.. सर! वो मुझे किताबें लेनी थी...मार्केट से..."
"मैं भी मार्केट ही जा रहा हूँ... कहिए तो साथ ही चलते हैं... देवी जी!"
"जी मेरा नाम नीरू है..." वैसे अब नीरू को उसके मुँह से देवी जी भी बड़ा प्यारा लग रहा था.. 'अपना सा'
पहले वासू ने उसको किताबें दिलवाई.. फिर एक पंसारी की दुकान पर जाकर खड़ा हो गया," भाई साहब! आधा किलो गुड देना..!"
"गुड को हाथ में लेकर वासू नीरू को दिखाने लगा," चाय गुड की ही पीनी चाहिए.......... वग़ैरह वग़ैरह...."
वासू अपनी हर भोली बात के साथ नीरू के दिल के करीब आता जा रहा था.. 24-25 साल का युवक और इतना शांत.. असहज ही लगता था.. पर नीरू को उसकी हर बात बड़ी प्यारी लग रही थी...
वापस आते हुए नीरू ने वासू से हिम्मत करके पूच ही लिया," सर.. एक बात पूछूँ..."
अपने गोले चस्में को अपनी नाक पर उपर चढ़ाता वासू जवाब देने को तैयार हो गया..," हां बोलिए....!"
"वो आपमें अचानक इतनी ताक़त कहाँ से आ गयी......"
"अच्छा वो... " वासू ने फिर से अपना लेक्चर शुरू कर दिया," वो मेरी ताक़त नही थी.. वो योग की ताक़त है.. योग आदमी को सर्वशक्तिमान बना देता है.. मैं गुरुकुल के समय से ही योग करता आ रहा हूँ... गाँधी जी भी योग की बड़ी तारीफ़ करते थे.. योग ही महान है.. आपको भी योग करना चाहिए... ज़रूर... वैसे में मार्षल आर्ट का नॅशनल चॅंपियन भी रहा हूँ.. रही अचानक ताक़त आने की बात तो वो तो हनुमान जी की कृपा है... मैं बाल.... छोड़ो.. इस बात को...!"
नीरू मान ही मान खुद पर मुश्कुरा रही थी... की किस लल्लू को दिल दे बैठी," सर आप मुझे योग सीखा देंगे...?"
वासू हड़बड़ा गया...," एम्म मैं.. नही.. मैं नही सीखा सकता...!"
"क्यूँ सर?"
"वो क्या है की.. डी.ए.ओ. साहब ने जाने किस खुन्नस में मेरा ट्रान्स्फर 'गर्ल'स स्कूल में कर दिया... मैं तो मजबूरी में यहाँ आया हूँ.. मैं लड़कियों को नही पढ़ा सकता... मैं जल्द ही ट्रान्स्फर करवा लूँगा अपना.."
नीरू बेचैन हो गयी...ट्रान्स्फर की बात सुनकर," पर सर आपने वाडा किया था. की आप मेरी मदद करेंगे.. मुझे योग सीखा दीजिए ना...!"
नीरू की लाख कोशिशों के बाद भी वाशु ने अपने आपको टच नही करने दिया था नीरू को..," मुझे सोचना पड़ेगा..!"
गाँव आ गया था.. नीरू ने वासू को दोनो हाथ जोड़कर प्रणाम किया और अपने घर की और चल दी....
नीरू के घर जाते ही मया ने चाय बनाकर उसको दी...
"नही मम्मी.. मैं गुड की चाय पियूंगी...!"
"गुड की... पागल है क्या.. जब चीनी है तो गुड की चाय क्यूँ..?"
"मुझे नही पता.. बस मैं अपने आप बना कर पी लूँगी" आख़िर नीरू को आदत डालनी थी ना... शादी से पहले ही....
विकी यूनिवर्सिटी के गेट के बाहर गाड़ी में बैठा था.. किसी शिकार के इंतजार में..
दोस्तो विकी नाम का ये किरदार भी अब इस कहानी का हिस्सा बन गया है वैसे तो विकी अपने अजीत यानी टफ ओर शमशेर का स्कूल के जमाने का दोस्त है ओर आज कल सीमा के कोलेज के चक्कर किसी नयी लड़की को फसाने
के लिए लगा रहा था
उसकी आँखें रात को ज़्यादा शराब पीने की वजह से अब भी लाल थी.. जाने कितनी लड़कियों को वा अपने बिस्तेर तक ले जा चुका था.. अपने पैसे, सूरत और जवान मर्द जिस्म की वजह से.... उसका अंदाज निराला था लड़की को सिड्यूस करने का.. कोई खूबसूरत लड़की उसको दिख जाती तो वा उसको नंगी करके ही दम लेता.. 2-4 दिन उसके पीछे चक्कर लगाता.. पट जाती तो ठीक वरना पहले ही उसको अपना 'सब कुछ' दे चुकी लड़कियों को उसके पीछे लगा देता.. उसके बारे में हर बात जान लेता.. फिर उसकी दुखती राग पर चोट करता.. आम तौर पर लड़की भावनाओं में बहकर उसकी बाहों में आ ही जाती थी... और फिर वो खुल कर उसके शरीर और उसकी भावनाओ से खेलता... कोठी पर ले जाकर...
ऐसी भी लड़कियों की कमी नही थी जो उसकी हसियत से प्रभावित होकर अपने उल्टे सीधे अरमान पूरे करने के लिए उसकी रखैल बन जाती...
विकी एक घंटे से किसी नयी चिड़िया के लिए जाल बिछाए बैठा था.. पर आज लगता है उसका दिन खराब था..
नही... ! आज का दिन तो उसके लिए जाने कितनी बड़ी सोगात लेकर आया था.. बॅक व्यू मिरर में उसने देखा.. एक मस्त फिगर वाली लड़की अपनी छाती से किताबें चिपकाए, अपने हाथ से हवा में ऊड रहे बालों की लट सुलझती बड़ी शराफ़त से चलती उसकी गाड़ी की और आ रही थी... थोड़ा पास आने पर वो चौंक गया.. इतनी खूबसूरत लड़की उसने आज तक देखी ही नही थी.. मोटी आँखें.. भरे भरे गाल.. गोले चेहरे.. चेहरे पर जहाँ भर की मासूमियत लिए.. वो नज़रें झुकायं चली आ रही थी..
जैसे ही लड़की अगली खिड़की के पास आई.. विकी ने अंजान बनकर खिड़की अचानक खोल दी.. लड़की टकराते टकराते बची," उप्पप्प्स.."
"सॉरी मिस...? मैं पीछे देख नही पाया.. आइ आम टू सॉरी" विकी ने अपनी आँखों से 'रेबन' का ड्युयल पोलेराइज़्ड गॉगल्स उतारते हुए कहा.
"इट'स ओके!" लड़की ने बिना उसको देखे अपना रास्ता बदला और आगे चल दी..
"ओह माइ गॉड! क्या लड़की है यार... आज से पहले मुझे ये क्यूँ नही दिखी" लड़की के कुल्हों के बीच जीन्स में बनते बिगड़ते कयामत ढा ते भंवर को देखकर विकी ने सोचा....
"सुनिए मिस...!" विकी ने स्टाइल में उसको पुकार कर रोका...
"जी.. मैं?" लड़की आवाज़ सुनकर पलटी..
"जी.. नाम तो बताती जाइए.. दुनिया इतनी छोटी है.. जाने कब कहाँ मुलाक़ात हो जाए.. कूम से कूम आपका नाम तो याद रख ही सकता हून...!" विकी ने अपना पहला दाँव खेला...
"नही! मेरी दुनिया इतनी छोटी नही की उसमें हर टकराने वेल से मुलाक़ात होती रहे.." लड़की ने रूखा जवाब दिया...
"देखिए.. मैं यहाँ नया हूँ.. मुझे यूनिवर्सिटी लाइब्ररी में किसी से मिलना है.. अगर आप रास्ता बताने की कृपा कर सकें तो...?"
"यहाँ से अंदर जाकर रोज़ पार्क से लेफ्ट हो जाइए... लाइब्ररी पहुँच जाएँगे.." कहते ही लड़की ने चलना शुरू किया...
"नाम तो बताते जाइए..." विकी पीछे ही पड़ गया..
लड़की को विकी बातों से शरीफ आदमी जान पड़ा," सीमा.. सीमा ढनखाड़!... अब खुश?"
"आक्च्युयली.. मुझे लाइब्ररी नही जाना.. मैं भी आगे ही जा रहा हूँ.. अगर आप मेरी लिफ्ट कबूल कर लें.. तो मेरा आहो भाग्या होगा!" राजनीति में विकी किस समय पर कौनसी बात करनी है, सब जान गया था...
"अजीब आदमी हैं आप... पीछे ही पड़ गये.." कहकर सीमा अपने रास्ते चल दी...
सीमा के कुल्हों की कातिल लचक देखकर विकी अपने दिल पर हाथ रख कर खड़ा हो गया," जाएगी कहाँ जान... आज नही तो कल.. तू मेरी बाहों में आएगी ही.....
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