RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
गर्ल्स स्कूल पार्ट --36
हेलो दोस्तो मैं यानी आपका राज शर्मा गर्ल्स स्कूल पार्ट 36 लेकर आपके लिए हाजिर हूँ
ये पार्ट आपको कैसा लगा लिखना मत भूलना
" स्नेहा जी.. हमें आगे से दूसरी गाड़ी लेंगे!" विकी ने सहज भाव से कहा...
"क्यूँ?" स्नेहा के पल्ले बात नही पड़ी...
"आपके पापा का आदेश है..." विकी ने बिना कोई भाव चेहरे पर लाए कहा...
"पर क्यूँ.. व्हाई दा हेल वी.... दिस कार इस सो कंफर्टबल यू नो..." स्नेहा को सौ सौ कोस तक भी अंदाज़ा नही था की फिलहाल कुच्छ भी उसके पापा की मर्ज़ी से नही हो
रहा है....
" अब मैं तो पॉलिटिक्स में नही हूँ ना.. स्नेहा जी! उनकी बातें.. वही जाने.."
" तुम्हारी कितनी उमर है....?"
"27 साल!"
"मैं तुमसे 8 साल छ्होटी हूँ.. ये नाम के साथ आप और जी लगाना बंद करो.. नही तो में तुम्हे अंकल जी कहना शुरू कर दूँगी.. समझे!" शरारती मुस्कान पल भर के लिए स्नेहा के कमनीया और मासूम से चेहरे पर दौड़ गयी..
" ओके! तो फिर क्या बोलूं..? तुम ही बता दो..." विकी ने भी स्टाइल मारने में देर नही लगाई...
"स्नेहा! ... चाहो तो सानू भी बोल सकते हो.. मेरी फ्रेंड्स मुझे यही कहती हैं.. मुझे बड़ा अच्च्छा लगता है..." स्नेहा अगली सीट के साथ सर टिका कर विकी को निहारने लगी...
"ओक.. सानू! बहुत प्यारा नाम है.. सच में..." विकी ने नज़र भर कर सानू की और देखा.. और तुरंत गाड़ी एक इमारत के साथ रोक दी...
"क्या हुआ... ?" स्नेहा की आवाज़ में अब कुच्छ ज़्यादा ही मिठास आ गयी थी...
तभी अंधेरे को चीरती हुई एक लंबी सी गाड़ी वहाँ आकर रुकी.. कौनसी थी.. ये दिखाई नही दिया...
स्नेहा के लिए वो जगह बिल्कुल अंजानी थी.. और वो चेहरे भी.. जो गाड़ी से उतरे.. एकद्ूम काले कलूटे.. बेढंगे से.. स्नेहा उनको देखकर सहम सी गयी.. वो तीनो उन्ही की और बढ़े आ रहे थे...
"ये कौन हैं.. ये सब क्या है..?" भय के मारे स्नेहा खिड़की से जा चिपकी...
पर विकी के बोलने से पहले ही स्नेहा को जवाब मिल गया..
उन्न तीनो में से एक ने विकी की खिड़की खोली...," लड़की को उतार दो... तुम्हारा काम ख़तम हुआ..."
स्नेहा को काटो तो खून नही.. इसकी तो उसने कभी कल्पना भी नही की थी...
"सोनू! तुम्हे अब इनके साथ जाना होगा... साहब का यही आदेश था...!" विकी ने पिछे देखते हुए कहा...
"नही.. मैं नही जाउन्गि.. मुझे नही जाना कहीं... मुझे वापस छ्चोड़ आओ.. हॉस्टिल में.." स्नेहा के दिल में उन्न चेहरों को देखकर ही इतना डर समा गया था की उसने अपने दोनो हाथ प्रार्थना की मुद्रा में जोड़ लिए...
" ठीक है.. मैं बात करके देखता हूँ.. " कहकर विकी नीचे उतर गया...
" स्नेहा तुम लोगों के साथ नही जाना चाहती.. मैं उस गाड़ी में ले जाता हूँ.. स्नेहा को.. तुम लोग ये ले जाओ..." विकी की ये बात सुनकर स्नेहा के दिल में हुल्की सी ठंडक पहुँची.. पर वो ज़्यादा देर तक कायम ना रह सकी...
" तुम अपनी नौकरी करो.. और हमें हमारा काम करने दो... हमें लड़की को उठाकर ले जाने के पैसे मिले हैं.. गाड़ी को ले जाने के नही.. अब चलो फूटो यहाँ से..." तीनो में से एक ने कहा...
स्नेहा थर थर काँप रही थी... क्यों हुआ.. कैसे हुआ.. इसकी उसको फिकर नही थी.. बस जान बच जाए; बहुत था.. उसने खिड़की खोली और विकी से जाकर चिपक गयी.. ," नही.. प्लीज़.. मुझे मत भेजना.. छ्चोड़कर मत जाना... मैं मार जाउन्गि..." स्नेहा ने अपनी आँखें बंद कर ली थी...
आआअह... विकी के लिए ये सब किसी हसीन सपने से कम नही था.. स्नेहा के जिस्म का कतरा कतरा अपनी महक विकी में छ्चोड़ रहा था.. सब कुच्छ विकी के प्लान के मुताबिक ही हो रहा था.. पर ये वक़्त कुच्छ करने का था..," नौकरी गयी भाड़ में... अगर सानू कह रही है कि उसको तुम्हारे साथ नही जाना.. तो मैं इसको नही भेजूँगा.. जाकर साहब को बता देना.... कि स्नेहा ने मना कर दिया... चलो अब भागो यहाँ से...."
" ऐसे कैसे भाग जायें.. अभी तो सिर्फ़ पैसे लिए हैं... इसकी भी तो लेनी है अभी.. 7 रातों की बात हुई है हमारी.. इसको कुँवारी थोड़े रहने देंगे.. चोद..." कहते हुए जैसे ही उनमें से एक आदमी ने अपना हाथ स्नेहा की और बढ़ाया.. विकी ने अपनी दाहिनी तरफ सानू को अपने आगोश में समेटे बायें हाथ की मुठ्ठी कसी और ज़ोर से एक दमदार घूँसा उसकी ओर लपक रहे आदमी को जड़ दिया...
नाटक चल रहा था.. पर शायद घूँसा असली था.. उस आदमी के पैर उखड़ गये और अपनी नानी को याद करता हुआ वो शक्श पीठ के बल ज़मीन पर जा गिरा..," आयाययू!"
स्नेहा अब और भी डर गयी.. क्या छाती क्या जांघें.. सब छुप जाना चाहते थे.. विकी में समा जाना चाहते थे..
गिरा हुआ आदमी उठ नही पाया... दूसरे ने चाकू निकाल लिया.. लूंबे फन वाला... धारदार!
"ओह्ह्ह..." ये क्या हुआ.. रिहर्सल की कमी थी.. उस आदमी को चाकू मारना था और विकी को उसको बीच में ही लपकना था... पर बायें हाथ की वजह से वो चूक गया और चाकू करीब एक इंच विकी के कंधे में जा बैठा.....
"साले.. तेरी मा की.. मुझे चाकू मारा.." दर्द से बिलबिला उठा विकी कुच्छ पल के लिए नाटक वाटक सब भूल गया.. स्नेहा को झटके के साथ अपने से दूर किया और उन्न दोनो पर पिल पड़ा.. तीन चार मिनिट में ही उनको इतने ज़्यादा लात घूँसे जमा दिए की उनको लगा अब भाई के सामने ठहरना बेकार है.. तीनो ने अपनी लंगोटी संभाली और नौ दो ग्यारहा हो गये.. गाड़ी वाडी सब वहीं छ्चोड़कर.....
अब जाकर विकी को स्नेहा का ख़याल आया.. वो आँखें फाडे विकी के इश्स प्रेपलन्नेड़ कारनामे को देख रही थी... जैसे ही विकी उसकी और घूमा.. वो दौड़ कर उस'से आ लिपटी.. इश्स बार डर से नही.. खुशी से..!
" जल्दी करो स्नेहा.. हमें अपना सारा समान दूसरी गाड़ी में डालना है...."
"पर... ये सब क्या है मोहन..? मेरी कुच्छ समझ नही आ रहा..."
" बताता हूँ.. अब तो सब कुच्छ बताना ही पड़ेगा... तुम जल्दी उस गाड़ी में बैठो...." विकी ने उसकी कमर सहलाते हुए बोला...
" नही.. मुझे डर लग रहा है.. तुमसे दूर नही जाउन्गि... एक पल के लिए भी....
"ओक.. तुम मेरे साथ ही रहो.." विकी ने स्नेहा के गालों पर हाथ फेरा और उसको बगल में दबाए.. गाड़ी से समान उतारने लगा...
"चलो बैठ जाओ...!" विकी ने पिच्छली खिड़की खोलते हुए स्नेहा को इशारा किया...
स्नेहा की जांघों में चीटियाँ सी रेंग रही थी.. उसको पता नही था की क्यूँ बस दिल कर रहा था की एक बार फिर से वैसे ही अपने 'मोहन' से चिपक जाए.. एक दम से वो उसकी पुजारीन सी बन गयी थी.. कुच्छ पहले तक उसको अपने बाप की जागीर समझने वाली स्नेहा अब खुद को उसकी जागीर बना बैठी थी.. और उसको अपनी तकदीर.. लड़कीपन ने अपना रंग दिखाना शुरू किया..," नही.. मैं भी आगे ही बैठूँगी.. मुझे डर लग रहा है पिछे बैठते हुए..." मानो विकी का साथ अब सबसे सुरक्षित था दुनिया में....
"ओ.के. सोनू मॅ'मसाहब! आ जाओ.." विकी मुस्कुराया...
विकी की मुस्कुराहट का जवाब सानू ने जीभ निकाल कर दिया.. और आगे जा बैठी...
गाड़ी चल चुकी थी.. प्लान के अगले पड़ाव की ओर..
"बताओ ना.. ये सब क्या था.. मुझे तो चक्कर आ रहे हैं... सोचकर ही.." स्नेहा सीट से उचकी और उसकी जांघों को नितंबों तक अनावृत करके पिछे सरक गयी अपनी मिनी स्कर्ट को दुरुस्त किया...
विकी संजीदा अंदाज में इश्स कपोल कल्पित रहस्या पर से परदा उठाने लगा," देखो सानू.. मैने जो कुच्छ भी कर दिया है.. उस'से मेरी नौकरी ही नही..जान भी ख़तरे में पड़ गयी है... और अब में जो कुच्छ बताने जा रहा हूँ.. उस'से पहले तुम्हे एक वादा करना होगा..."
"वादा किया!" सानू ने गियर पर रखे विकी के हाथ पर अपना हाथ रख दिया...
"पहले सुन तो लो.. क्या वादा करना है..?"
"नही.. मैने अभी जो कुच्छ भी देखा है.. उसके बाद तुम पर विस्वास ना करना.. मैं सोच भी नही सकती.. इतना तो कोई किसी अपने के लिए भी नही करता.... मैने वादा किया.. जैसा कहोगे.. वैसा करूँगी.. पर प्लीज़.. मुझे छ्चोड़ कर ना जाना.. अब!" स्नेहभावुक हो गयी...
"कभी भी?" वी की के दिल में गुदगुदी सी होने लगी... उसने एक पल के लिए स्नेहा की और देखा...
स्नेहा की आँखें झुक गयी.. पर झुकने से पहले बहुत कुच्छ कह गयी थी.. विकी के हाथ पर बढ़ गयी उसके हाथ की कसावट आँखों की भाषा को समझने की कोशिश कर रही थी....
"सब तुम्हारे पापा ने करवाया है....! तुम्हारी किडनॅपिंग का नाटक..!" विकी ने एक ही साँस में स्नेहा को बोल दिया...
अजीब सी बात ये रही की स्नेहा को इश्स पर उतना अचरज नही हुआ.. जितना होना चाहिए था," हाँ.. एक पल को सारी बातें मेरे जहाँ में घूम गयी थी.. पापा ने खुद ही मुझे घूम कर आने को कहा.. जबकि उन्होने मुझे स्कूल की लड़कियों के साथ भी जाने नही दिया.. 2 दिन पहले.. मुझसे ढंग से बात तक नही की.. फिर पापा ने गाड़ी बदलने की बात कही.. फिर ये लोग....!"
"... पर ऐसा किया क्यूँ उन्होने.... क्या चाहते हैं वो.. ऐसा करके.."
"पता नही.. पर जहाँ तक मेरा ख़याल है.. वो ऐसा करके एलेक्षन में लोगों की सहानुभूति बटोरना चाहते होंगे.. क्या पता मरवा भी देते..." विकी ने अपना नज़रिया उसको बताया...
सानू का चेहरा पीला पड़ गया... मुत्ठियाँ भिच गयी," पर इश्स'से उनको मिलेगा क्या..? लोगों की सहानुभूति कैसे मिलेगी...?" वो विकी के मुँह से निकली हर बात को पत्थर की लकीर समझ रही थी...
"ये राजनीति चीज़ ही ऐसी है सानू.. जाने क्या क्या करना पड़ता है...! हो सकता है की विरोधी पार्टी के लोगों पर आरोप लगायें.... एक मिनिट.. आगे पोलीस का नाका लगा हुआ है शायद.. तुम कुच्छ भी मत बोलना.. बस अपने चेहरे पर मुस्कान लाए रखना.. ध्यान रखना.. कुच्छ भी मत बोलना...."
"ओके! " कहकर सानू मुस्कुराने लगी.....
पोलीस वाले ने बॅरियर रोड पर आगे सरका दिया. विकी ने गाड़ी पास ले जाकर रोक दी... ," क्या बात है भाई साहब?"
"कुच्छ नही...! कहकर वो गाड़ी के अंदर टॉर्च मार कर आगे पिछे देखने लगा...," ये लड़की कौन है?"
"मेरी बीवी है.. क्यूँ?" विकी ने सानू को आँख मारी.. सानू को अहसास हुआ मानो आज वो सच में ही दुल्हन बन'ने जा रही हो.. अपने 'मोहन' की....
"सही है बॉस.. चलो!" पोलीस वाले ने हाथ बाहर निकाल लिया...
"अरे बताओ तो सही क्या हुआ...?" विकी ने अपना सिर बाहर निकाल कर पूचछा...
"क्या होना है यार.. वो ससुरे मुरारी की लड़की भाग गयी होगी.. कह रहे हैं किडनप हो गयी है.. है भला किसी की इतनी हिम्मत की उस साले की लौंडिया को उठा ले जाए.. हमारी नींद हराम करनी थी .. सो कर रखी है..."
स्नेहा का मुँह खुला का खुला रह गया.. वो बोलना चाहती थी.. पर उसको 'मोहन' की इन्स्ट्रक्षन्स याद आ गयी...
विकी ने गाड़ी चला दी....," सच में.. पॉलिटिक्स बड़ी कुत्ति चीज़ है.. कहकर विकी ने स्नेहा का फोन निकाल कर उसको दे दिया....
"ययए.. तुम्हारे पास...???" सानू चौंक गयी...
"क्या करें सानू जी.. साहब का हुक़ुम जो बजाना था.. उनको लगा होगा की कहीं तुम फोन करके उनकी प्लांनिंग ना बिगाड़ दो.. उन्होने ही बोला था.. तुमसे लेकर फैंक देने के लिए.. पर मैने चुरा लिया.. अब जो तुम्हारे पापा चाहते थे.. वो मेरे दिल को अच्च्छा नही लगा.. भला कोई कैसे अपनी बेटी को बलि की बकरी बना सकता है...!" विकी का हर पैंतरा सही बैठ रहा था..
"मैं उनको अभी मज़ा चखाती हूँ.... कहकर वो पापा का नंबर. निकालने लगी....
"नही सानू.. प्लीज़.. मैने वादा लिया था ना.. यही वो वादा है की मेरे कहे बिना वहाँ फोन नही करोगी... मेरे घर वालों की जान पर बन आएगी.. उनको यही लगना चाहिए की तुम्हे कुच्छ नही पता.... बस.. मेरे कहे बिना तुम किसी को कोई फोन नही करोगी...." विकी ने अपनी बातों के जाल में सानू को उलझा लिया...
"ठीक है.. पर मुझे बहुत गुस्सा आ रहा है...!"
"तुम्हारा गुस्सा जायज़ है.. सानू.. पर उनको सबक सीखना ज़रूरी है.. उनकी इश्स चाल को नाकामयाब करके तुम उन्हे रास्ते पर ला सकती हो.." विकी ने किसी दार्शनिक के अंदाज में कहा...
"सही कहते हो.. पर कैसे.. मैं कैसे नाकामयाब करूँ... आइ हेट हिम!" जाने कब की दबी कड़वाहट सानू के मुँह से निकल ही गयी...
"मेरे पास एक प्लान है.. पर उस'से पहले ये जान'ना ज़रूरी है कि वो अब करते क्या हैं..... फिर देखते हैं...."
सानू ने सहमति में अपना सिर हिलाया... उसको विस्वास हो चुका था.... हर उस बात पर जो विकी के मुँह से निकली थी.....दोस्तो इस पार्ट को यहीं ख़तम करता हूँ फिर मिलेंगे अगले पार्ट के साथ
आपका दोस्त
राज शर्मा
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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
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