Desi Kahani Jaal -जाल
12-19-2017, 10:38 PM,
#41
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--40

गतान्क से आगे.

विजयंत ने उसे इशारा किया तो वो घुटनो के बल बिस्तर पे चढ़ गयी & जब तक वो लेटटी विजयंत ने उसे वैसे ही झुका दिया.अब रंभा अपने घुटनो पे झुकी हुई थी & विजयंत बिस्तर पे बैठा उसकी कमर को थाम उसकी पॅंटी के उपर से ही उसकी गंद की फांको को चूमने लगा.

"दूसरी ये की अगर उसने खुद ही ये काम करने की बेवकूफी की है तो फिर अपना चेहरा दिखाने से डरता नही.वो तो गधे की तरह खिंसे निपोरटा मेरे सामने खड़ा हो समीर की सलामती का सौदा करता मुझसे.",रंभा की काली,छ्होटी सी पॅंटी उसकी गंद को पूरी तरह से ढँकने मे नाकामयाब थी & जब उसके ससुर ने अपनी दाढ़ी उनपे रगड़ी तो उसे गुदगुदी महसूस हुई & वो जोश & खुशी से मुस्कुरा दी.

"उउन्न्ञन्..तो आपको लगता है कोई और है इस सब के पीछे?",उसने गर्दन घुमा अपनी गंद चाटते ससुर को देखा.

"हूँ..यही तो पता लगाना है अब मुझे.",उसने उसकी गंद मे फाँसी पॅंटी को नीचे सरकाया & फिर उसकी गंद के छेद को चूमते हुए उसे जीभ की नोक से छेड़ा.

"ऊन्नह..नही..",रंभा ने गंद उसके मुँह से हटाते हुए करवट ली & अपनी कोहनियो पे उचक के ससुर को शोखी से मुस्कुराते हुए देखने लगी,"..वाहा नही."

"क्यू?",विजयंत ने मुस्कुराते हुए उसकी घुटनो पे अटकी पॅंटी को नीचे खींच उसे पूरी तरह से नग्न कर दिया.

"दर्द होता है मुझे.",विजयंत ने उसकी टाँगे पकड़ उसे पलट दिया & इफ्र उसके पेट के नीचे हाथ लगा उसे पहले जैसी हालत मे ही कर दिया.

"मज़ा भी तो आता है जानेमन.",वो पीछे से आके उसकी चूत को अपनी ज़ुबान से परेशान करने लगा.

"उउन्न्ह..हाईईईईईई..नही..!",रंभा आहें भरती गंद गोल-2 घूमने लगी.

"प्लीज़,डार्लिंग..",विजयंत ने उसकी कमर को पकड़ उसकी चूत मे ज़ोर-2 से जीभ चलाना शुरू कर दिया.रंभा कमर बेसब्री से हिलाते हुए ज़ोर-2 से आहे भरती झड़ने लगी,"..फिर पता नही कभी मौका मिले भी या नही."

"1 बात समझ लीजिए..",रंभा ससुर की बात सुन फ़ौरन पलटी.विजयंत बिस्तर से उतर फर्श पे खड़ा हो गया था.रंभा उसके सामने बैठ बिस्तर से टाँगे लटका के बैठ गयी & उसका अंडरवेर नीचे सरका दिया,"..समीर के वापस आने के बाद भी मुझे आपका साथ ऐसे ही चाहिए.....उउम्म्म्ममम..!",उसने ससुर के लंड को पकड़ उसे मुँह मे भर लिया.उसके सख़्त एहसास,मदमाती खुश्बू & नशीले स्वाद की खुशी से उसने आँखे बंद कर ली & उसे शिद्दत के साथ चूसने लगी.

"लेकिन रंभा?",विजयंत लंड चुस्ती रंभा के बाल सहला रहा था.

"लेकिन-वेकीन कुच्छ नही..",रंभा ने लंड मुँह से निकाला & उसके आंडो को दबाते हुए लंड के आसपास की जगह को चूमने लगी,"..मैं अब आपकी चुदाई के बिना नही रह सकती.",विजयंत ने बाया घुटना बिस्तर पे जमा दिया था & रंभा ने भी बाई टांग पलंग पे रख ली थी.चूत की कसक उसे बहुत तडपा रही थी लेकिन लंड को भी वो जी भर के चूस लेना चाहती थी.वो विजयंत के लंड को जकड़े उसे चूस्ते हुए बेचैनी से अपनी कमर हिला रही थी & अपनी जंघे भी.उसकी चूत तो बस अब लंड के इंतेज़ार मे आँसुओ की धारा बहाए चली जा रही थी.

विजयंत ने नीचे नज़रे झुकाई,ना जाने कितनी लड़किया उसके बिस्तर की रौनक बनी थी लेकिन वो भी अब इस लड़की से दूर रहने की नही सोच पा रहा था.वो उसके बेटे की बीवी थी लेकिन अब वो उसके दिल मे भी 1 खास जगह बना चुकी थी.समीर की वापसी के बाद भी उसे ये रिश्ता बरकरार रखना ही होगा नही तो वो बेचैनी से मर जाएगा.उसने प्यार से रंभा का मुँह अपने लंड से लगा किया & उसे बिस्तर पे लेटने का इशारा किया.

जैसे ही वो बिस्तर पे आया रंभा ने उसे पलट के लिटा दिया & हँसती उसके जिस्म के दोनो तरफ घुटने जमाते हुए बैठ गयी & फिर दाया हाथ पीछे ले जाके लंड को थामा & उसपे बैठ गयी.

"ऊहह..!",लंड उसकी चूत को हमेशा की तरह फैला रहा था.अभी तक लंड घुसने पे उसे हल्का दर्द होता था.वो आँखे बंद कर मज़े से मुस्कुराती ससुर के सीने पे हाथ दबा के अपने नखुनो से उसके बालो को खरोंछती कमर हिला-2 के उस से चुदने लगी.

विजयंत के हाथ उसकी गंद की फांको को तौलने लगी तो वो आगे झुकी & उसके चौड़े सीने पे अपनी चूचिया टीका के उसके चेहरे & होंठो को चूमते हुए उस से चुदने लगी.

"ये रिश्ता तो अब मेरी जान के साथ ही जाएगा.",विजयंत की बात सुन रंभा ने उसके होंठो को अपने होंठो से बंद कर दिया & बहुत तेज़ी से कमर हिलाने लगी.विजयंत उसकी गंद मसल्ते हुए लेटा था.वो समझ गया था कि रंभा मस्ती मे पागल हो गयी है.

"उउन्न्ञणन्..हााआअन्न्‍ननननननणणन्..!",रंभा ने होंठो को वियजयंत के लबो से जुदा किया & अपना सर उठाके बालो को झटकते हुए ज़ोर-2 से कमर हिलाने लगी & झाड़ गयी.विजयंत ने उसे पलटा & अपने नीचे ले उसकी चूत की आख़िरी गहराइयो मे उसकी कोख तक अपना लंड घुसाते हुए उसकी चुदाई शुरू कर दी.रंभा तो बस मस्ती मे उड़े जा रही थी.अभी वो खुमारी से निकली भी नही थी & विजयंत उसकी चूचियाँ चूस्ता ज़ोर के धक्के लगाता उसे फिर से उसी खुमारी मे वापस ले जा रहा था.

रंभा ने हाथ पीछे बिस्तर पे फैला दिए & अपना जिस्म कमान की तरह मोडते हुए अपना सीना उपर उचकाते हुए ससुर के मुँह मे और घुसाने की कोशिस की & बिस्तर की चादर को नोचते हुए अपनी टाँगे विजयंत की पिच्छली जाँघो पे फँसा के कमर उचकाते हुए उसके धक्को का जवाब देने लगी.

विजयंत ने बाई बाँह उसकी गर्दन के नीचे सरका दी & दाए हाथ से उसकी गंद की बाई फाँक को दबोचते हुए उसके चेहरे को चूमते हुए उसकी चुदाई को आगे बढ़ाया.रंभा ने जिस्म के मज़े से बेचैन हो सुबक्ते हुए ससुर के बालो को खींचते हुए उसके चेहरे को पागलो की तरह चूमने लगी.

रंभा की चूत की कसक फिर से चरम पे पहुँच रही थी & उसने विजयंत के लंड को भी अपने सिकुड़ने-फैलने की हरकत से बेचैन कर दिया.रंभा 1 बार और झाड़ गयी थी.उसे पूरे जिस्म मे मस्ती की लहर दौड़ती महसूस हो रही थी & उसका दिल इतनी खुशी झेल नही पाया & उसके जज़्बात आँखो के रास्ते फूट पड़े.विजयंत ने उसके चेहरे को तब तक चूमा जब तक वो संभाल नही गयी उसके बाद वो घुटने पे हुआ & रंभा की दाई टांग को उठाके उसे उसकी बाई टांग के उपर कर दिया.

रंभा उसका इशारा समझते हुए घूम के बाई करवट पे हो गयी.विजयंत घुटनो पे बैठा थोड़ी देर तक हल्के धक्को से उसकी चुदाई करता रहा.रंभा नशे से बोझल पल्को से उसे देखते हुए होंठो से चूमने का इशारा करती रही..समीर लौटेगा तो उसे कभी-कभार इस हसीन एहसास का लुत्फ़ नसीब होगा..अफ..कैसे रहेगी वो इस मज़बूत,हसीन मर्द की क़ातिल चुदाई के बिना..उसने आँखे बंद कर उस ख़याल को ज़हन से दफ़ा किया & बेचैनी से अपनी चूचिया अपने हाथो से ही दबा दी.

विजयंत बिना लंड निकाले झुकता हुआ उसके पीछे करवट से लेट गया & उसके पेट को सहलाता उसकी गर्दन & दाए कंधे को चूमता चोदने लगा.रंभा ने सर पीछे घुमाया & उसके बालो को खींचते हुए उसे चूमने लगी..कितना नशीला एहसास था ये..उसकी जीभ से खेलने का..लेकिन पता नही आज की रात के बाद फिर कब मौका मिले..इस ख़याल से उसका जिस्म फिर से मस्ती के उस एहसास को फिर से पाने के लिए मचल उठा.

"आन्न्न्नह......ऊहह...डॅड.....हाआंन्‍णणन्..!",रंभा अब चीख रही थी,विजयंत उसकी चूत के दाने को रगड़ते हुए धक्के लगा रहा था.रंभा का बेचैन जिस्म उसकी गिरफ़्त मे कसमसा रहा था & उसकी चूत फिर से उसके लंड को जकड़ने लगी थी.रंभा से अब ये मज़ा बर्दाश्त नही हुआ & उसने विजयंत के अपने चूत के दाने को रगड़ते दाए हाथ की कलाई को पकड़ लिया & सुबक्ते हुए फिर से झाड़ गयी.

रंभा अपनी साँसे संभाल ही रही थी की विजयंत ने करवट लेते हुए उसे बिस्तरा पे पेट के बल कर दिया & खुद उसके उपर चढ़ गया & हाथ नीचे घुसा उसकी कोमल छातियो को दबाते हुए चोदने लगा.रंभा तो मस्ती & थकान मे चूर हो गयी थी & बस बिस्तर पे बेचैनी से सर हिलाते हुए आहें भरते हुए उसके लंड का लुत्फ़ उठा रही थी.

विजयंत उसकी पीठ & कंधो को चूम रहा था.बहू का रेशमी जिस्म उसे अपना दीवाना बना चुका था.उसका दिल उसकी चुदाई से भरता ही नही था.ऐसे परेशानी भरे माहौल मे भी उसके जैसा पक्का कारोबारी रंभा के हसीन बदन के साथ का कोई मौका भी नही छ्चोड़ना चाहता था.चंद दिनो की चुदाई मे ही रंभा का जिस्म विजयंत के होंठो के निशानो से भर गया था जिन्हे देख वो खुद भी मस्त होती थी & उसका ससुर भी.

विजयंत उसकी मुलायम गर्दन को चूम के उठा & घुटनो पे हो उसकी कमर थाम उसकी गंद को भी उठा लिया.रंभा बिस्तर मे मुँह छुपे अपनी कोहनियो & घुटनो पे झुकी उसकी चुदाई से मस्त होती रही.बिस्तर की चादर अब पूरी तरह से सलवटो से भर चुकी थी.इस पोज़िशन मे लंड फिर से उसकी कोख पे चोट करने लगा & वो फिर से मस्ती भरी आवाज़ें निकलती कमर आगे-पीछे कर विजयंत की ताल से ताल मिलाने लगी.

"ऊन्न्न्नह.....आआन्न्न्नह....हाआअन्न्‍नणणन्.....न्‍न्‍नणन्नाआआहह..!",रंभा ने बिस्तर की चादर को अपने हाथो मे भींच लिया & अपना सर उपर उठाके बाल झटकने लगी.विजयंत ने इस बार बड़ी मुश्किल से खुद को झड़ने से रोका.उसके लंड पे बहू की चूत की पकड़ क़ातिलाना हो गयी थी.रंभा पीछे गंद करते हुए इस बार रोने लगी थी.उसके जिस्म की मस्ती की शिद्दत इस बार सारी हदें पर कर गयी थी.

वियजयंत ने लंड बाहर खींचा & अपने थूक से जल्दी से रंभा की गंद के छेद को गीला किया.उसका लंड तो पहले ही उसके प्रकूं & रंभा की चूत के नशीले रस से गीला था.

"हाआऐययईईईईई..!",रंभा ने चेहरे पे दर्द & मस्ती की मिलीजुली लकीरें खींच गयी.लंड का सूपड़ा उसकी गंद के छेद को बहुत फैलाता हुआ अंदर घुसा था.विजयंत ने भी आह भरते हुए उसकी कमर को ज़ोर से पकड़ा & & लंड को उसकी आधी लंबाई तक घुसा दिया.

होटेल सूयीट के उस कमरे मे ससुर & बहू की मस्ती भरी आवाज़े गूंजने लगी.दोनो को कुच्छ होश नही था सिवाय इसके की 1 दूसरे के जिस्म उन्हे जन्नत की सैर करा रहे थे.विजयंत रंभा की गंद मारने के साथ-2 उसकी चूत मे भी उंगली कर रहा था.रंभा की चूत की कसावट ने उसे पहले दिन से ही हैरान कर रखा था.इस वक़्त भी वो उसकी उंगली को अपनी जाकड़ मे कस चुकी थी & उसकी गंद उसके लंड को.

कुच्छ देर बाद ही कमरे मे 2 आवाज़े गूँजी-1 भारी & 1 पतली,लेकिन दोनो ही मस्ती से भरी हुई & दोनो ही ये एलान कर रही थी की 2 प्यार भरे जिस्मो ने 1 दूसरे के साथ वो सफ़र पूरा कर लिया है जिसे दुनिया चुदाई कहती है & उस मंज़िल पे पहुँच गये हैं जहा सिर्फ़ खुशी ही खुशी होती है.

प्रणव अपने कॅबिन मे बैठा था.शाम के 8 बज रहे थे लेकिन अभी तक वो फोन नही आया था जिसका उसे इंतेज़ार था.सोनम ने उसके कॅबिन का दरवाज़ा बहुत हल्के से खोल के अंदर देखा.उसे ये आदमी अब बिल्कुल भी ठीक नही लग रहा था & उसने तय कर लिया था कि अब उसे उसके बारे मे विजयंत मेहरा को बता देना चाहिए.पहले तो उसने सारे प्रॉजेक्ट्स मे कुच्छ ना कुच्छ बदलाव किए.ऐसा नही था कि ट्रस्ट ग्रूप बिना नियमो को तोड़े-मरोड़े हर काम ईमानदारी से करता था लेकिन विजयंत का 1 ही उसूल था कि ग्राहक के साथ हमेशा ईमानदारी बर्तो.उसके ज़्यादा से ज़्यादा पैसे लेने की कोशिश करो मगर उसे ये महसूस नही होना चाहिए कि वो ठगा गया है.तभी बाज़ार मे ग्रूप की साख बनी रहेगी & ग्राहको की तादाद भी बढ़ेगी मगर प्रणव तो हर प्रॉजेक्ट मे बस फ़ायदा देख रहा था & उसे कंपनी की साख की कोई चिंता नही थी.

"हेलो.",तभी उसका मोबाइल बजा & प्रणव ने झट से फोन कान से लगाया,".गुड ईव्निंग मिस्टर.शाह..जी..ओके...हां..हां..",वो कोई पता नोट कर रहा था,"..ठीक है..मार्केट से राइट..ओक.मैं 9 बजे तक आपके पास पहुँचता हू.",उसने फोन काटा & सोनम फ़ौरन दरवाज़े से हट गयी..ये शाह कौन था?..ये उस से मिलने क्यू जा रहा था?

"सोनम..",प्रणव बाहर आया,"..वो लेटर्स ड्राफ्ट हो गये ना?"

"यस सर."

"गुड & कल की मेरी अपायंट्मेंट्स?"

"सर,आपकी डाइयरी मे लिख दिया है..",उसने 1 डाइयरी 1 ब्रीफकेस मे डाली & उसे बंद किया तो प्रणव ने उसे उठा लिया.

"थॅंक यू.चलो,देर हो गयी है.अब घर जाओ.गुड नाइट!"

"गुड नाइट,सर!",सोनम वाहा से सीधा अपनी किसी सहेली से मिलने 1 नाइटक्लब मे गयी जहा उसकी सहेली के बाय्फ्रेंड का बड़ा हॅंडसम दोस्त भी आया हुआ था.नाइटक्लब से निकलने के बाद ही वो उस जवान मर्द के साथ उसके घर चली गयी थी & उसके मज़बूत बाजुओ मे अपनी जवानी उसे चखाते हुए वो विजयंत को फोन करना भूल गयी.

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क्रमशः.......
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