Incest Sex Stories मेरी ससुराल यानि बीवी का मायका
01-19-2018, 01:35 PM,
#26
RE: Incest Sex Stories मेरी ससुराल यानि बीवी का मायका
दो मिनिट में शान्ताबाई बाहर आयीं. थोड़ी अपसेट लग रही थीं. "ये क्या चल रहा है भैयाजी? कौन है वो लड़का जो अंदर सोया है? मुए ने लीना बाई की बॉडी और चड्डी भी पहन रखी है लगता है"

मुझे हंसी आ गयी पर किसी तरह से मैंने उसे दबाते हुए कहा "कहां शान्ताबाई? लीना ही तो है. आपने चेहरा नहीं देखा?"

"इतना बड़ा तंबू बना है उसकी चड्डी में और तुम कहते हो लड़की है. मैं सब समझती हूं कि क्या चल रहा है." शान्ताबाई ने कमर पर हाथ रखकर कहा. लीना से छिपाकर मैं कुछ लफ़ड़ा कर रहा हूं, और वो भी एक जवान लड़के के साथ, यह विचार उसे सहन नहीं हो रहा था.

"शांत हो जाओ मेरी प्यारी शान्ताबाई. वो लीना का भाई है, मेरे साथ बंबई घूमने आया है. लीना वहीं है अपने मायके. मेरे को लगा कि तुम अपने आप समझ जाओगी"

वे थोड़ा नरम पड़ीं, फ़िर बोलीं "ऐसे औरतों की अंगिया क्यों पहने है? अजीब लड़का है, वैसे लंड तो अच्छा खासा लगता है, कितनी जम के खड़ा था नींद में. मैंने हाथ लगाया तो जाग गया, फ़िर घबरा गया कि ये कौन औरत अंदर बेडरूम में है"

मैंने उन्हें ललित की फ़ेतिश के बारे में समझाया. वैसे वे होशियार हैं, एक मिनिट में सब समझ गयीं. हंसकर बोलीं "बस इतनी सी बात है ये कुछ हजम नहीं होता भैयाजी. माना उस छोकरे को ये पहनने की आदत है पर इधर आप दोनों अकेले घर में, वो छोकरा सोते वक्त भी वो सब पहने ... ब्रा व्रा ... मस्ती चल रही है लगता है बाई की पीठ पीछे. याने आप को भी लौंडेबाजी का शौक चढ़ ही गया"

"अब शान्ताबाई ... क्या कहूं .... वो इतना सुन्दर छोकरा है और हूबहू लीना जैसा लगता है. ऊपर से उसका ये औरतों के कपड़े पहनने का शौक, अब अगर उसको लीना समझकर मेरा मन डोल जाता है तो बुरा क्या है? और भले लौंडेबाजी हो, अगर दिल आ गया तो बुरा क्या है? आप नहीं करतीं लीना के साथ लौंडीबाजी? साली नहीं है तो साले को साली समझा तो इसमें क्या गैर है?"

इस बात पर शान्ताबाई मुंह पर आंचल रखकर हंसने लगी. फ़िर बोली "भैयाजी, मैं चलती हूं, लगता है मैं फालतू ही आ गयी. आप की रंग रेलियां चलने दो, जब लीना बाई आ जायेगी तो मेरे को बता देना"

"अरे नहीं शान्ताबाई, मुझे आपकी जरूरत है, आपकी मदद के बिना ये काम नहीं होगा, बड़ी नाजुक जगह आकर मामला अटक गया है"

"आप दो जवान मर्द ... आपको मेरी क्या जरूरत होगी भैयाजी"

मैंने धीरे धीरे सब समझाया कि कैसे पिछले चार दिनों में ललित -ललिता के साथ सब तो कर लिया मैंने पर अब तक चोद नहीं पाया उसके घबराने की वजह से. फ़िर बोला "याद है शान्ताबाई, एक दिन आपने कैसी मदद की थी? वेसेलीन नहीं था और लीना जरा ऐसे रूठे चिढ़े मूड में ही थी?"

उस दिन असल में ये हुआ था कि मेरा जम के मूड था लीना की गांड मारने का. शादी के बाद उसने बस एक बार मुझसे मरवाई थी. मैं वैसे हठ नहीं करता पर दो दिन से लीना जैसी टाइट जीन पहनकर घूम रही थी, उसके गोल मटोल चूतड़ एकदम लंड को पागल कर गये थे. अब संयोग ऐसा कि वेसेलीन की बॉटल नहीं मिल रही थी. लीना वैसे भी इस बात से दूर भागती थी, अब तो बहाना मिल गया था. इस बात पर मैं उसे मना रहा था, वो शान्ताबाई ने काम करते करते सुन लिया था. फ़िर उन्होंने मदद की, और उस दिन लीना को दुखा भी कम, और काफ़ी मजा भी आया.

"हां भैयाजी, अच्छी तरह याद है" मुंह चढ़ा कर शान्ताबाई बोली "मैंने ठंडा मख्खन लाकर दिया था फ़्रिज से और फ़िर बाई को अपने ऊपर लेकर सोई थी उसको दिलासा देने को. आप मर्द लोग भी कैसे गांड के पीछे पड़ जाते हैं ये देखकर मेरे को तो बड़ी हैरत होती है. इतनी गरम रसीली रेशमी चूत से क्या आप का मन नहीं भरता?"

"अब कैसे समझाऊं शान्ताबाई, बस समझ लो किसी वजह से दिल जुड़ गये हैं मेरे और ललित के. रही गांड की बात, लीना की मैं नहीं मारता क्या? उतनी ही खूबसूरत ललित की गांड है. आखिर मिठाई तो मिठाई है. और वह भी मिठाई चखाने को एकदम तैयार है, जरा घबरा रहा है बस."

"ठीक है ठीक है भैयाजी, मैं समझ गयी, चलो मैं तैयार कर लूंगी उसको, अब जरा अंदर चलो और उसे समझाओ, मुझे देख कर नींद से जागते ही घबरा गया बेचारा" शान्ताबाई बोली.

मैं उनके साथ अंदर गया. जाते जाते बोली "बस एक घंटा लगेगा मुझे, उस छोकरे को भी फुसला लूंगी और आप के लिये तैयार रखूंगी"

मैं अंदर गया. ललित पलंग पर बैठा था. आधी नींद में था. पर अब अचानक शान्ताबाई के आने से जरा परेशान लग रहा था. मैंने उसके पास बैठ कर कहा "ललिता डार्लिंग - यह है शान्ताबाई, बस जैसे वहां राधाबाई हैं वैसे ही समझ लो." सुनकर ललित जरा आश्वस्त सा होता दिखा.

"फिर ठीक है जीजाजी, नहीं तो क्या धक्का लगा मेरे को - नींद खुली और .... ये बैठी थीं यहां ... मेरा पकड़कर ..."

"अरे मैंने ही उन्हें अंदर भेजा था कि लीना सोई है अंदर. सोचा जरा मजाक कर लूं. वैसे शान्ताबाई बहुत लाड़ दुलार करती हैं लीना दीदी के" मैंने ललित को समझाया.

"तू मत टेन्सन ले बेटे." ललित के बाजू में बैठ कर उसके गालों को सहलाती शान्ताबाई बोलीं. अब तक लगता है वे भी फिदा हो गयी थीं ललित पर. छोकरे की जवानी ही ऐसी थी. "ये तेरे जीजाजी जरा ऐसे ही मजाकिया हैं. अब उठो. दस बजने को आये, तुम लोगों ने नाश्ता भी नहीं किया होगा, मैं बनाती हूं. उसके बाद नहा धो लो. भैयाजी - आप जाकर अपना काम करो, मैं उपमा बनाती हूं. ललित बेटा, जरा मुंह धो लो और आकर मुझे थोड़ी मदद करो"

बीस मिनिट बाद शान्ताबाईने बुलाया. मैं डाइनिंग रूम में गया तो देखा कि शान्ताबाई चम्मच से ललित को उपमा खिला रही थीं. ललित भी आराम से खा रहा था. लगता है इतनी सी देर में ही शान्ताबाई का वशीकरण मंत्र चल चुका था.

"बहुत अच्छा उपमा है मौसी, एकदम सॉफ़्ट और टेस्टी. आप दोसे भी बनाती हो क्या?" ललित बोला. याने अब पहली बार मिली शान्ताबाई बीस मिनिट में मौसी बन गयी थी.

"खाओगे? वो भी बना दूंगी, चलो अब जल्दी जल्दी इतना और खा लो और नहाने चलो, मैं तुमको नहला देती हूं. भैयाजी, नाश्ता करके आप भी नहा वहा लो"

मैं खाने लगा. उधर ललित बोला "अब मैं बच्चा थोड़े ही हूं मौसी कि ..."

"जानती हूं मेरे लाल" उसके अब भी आधे खड़े लंड को पकड़कर शान्ताबाई बोलीं "तभी तो कह रही हूं, अब बच्चों को नहलाने में मेरा क्या फायदा?"

"करवा ले करवा ले मौसी से नहाने का करम. ये मुझे और लीना को भी कभी कभी नहला देती हैं." मैंने ललित को कहा.

शान्ताबाई ने ने बचा हुआ उपमा ललित को खिलाया और फ़िर हाथ पकड़कर खींच कर ले गयीं. ललित बेचारा अभी भी जरा परेशान था. शान्ताबाई के पीछे जाते वक्त मुड़ कर मेरी ओर देखा जैसे कह रहा हो कि बचा लो जीजाजी, पर मैंने बस उसे आंख मार दी.

नाश्ता खतम करके मैंने भी आराम से नहाया, बदन पोछा और थोड़ी देर तक ईमेल देखीं. आधे घंटे के बाद बेडरूम में दाखिल हुआ.

शान्ताबाई एकदम नंगी बिस्तर पर पड़ी हुई थीं. उनके जरा गीले से बालों से लग रहा था कि उन्होंने भी नहा लिया था. उनकी मोटी मोटी टांगें फैली हुई थीं और उनके बीच ललित झुक कर मजे से उनकी चूत चाट रहा था. इतना मग्न था कि मेरे आने का पता भी उसको नहीं चला.

ललित को देखकर मैं दंग रह गया. शान्ताबाई ने एकदम खास सजाया था उसको. याने था वही ब्रा और पैंटी में पर क्या पैंटी थी! काली, छोटी सी और एकदम तंग. लीना ने शायद हनीमून पर पहनी वाली थी. ललित के आधे से ज्यादा गोरे गोरे चूतड़ नंगे थे. और ऊपर से उस पैंटी में पीछे से एक छेद था, बड़ा सावधानी से जैसे किसी ने ठीक गुदा के ऊपर एक दो इंच का छेद कर दिया था. उसमें से ललित का लाल गुलाबी गुदा दिख रहा था. पहले मैं अचंभे में पड़ गया कि ये क्या चक्कर है, फ़िर देखा तो शायद शान्ताबाई ने उसपर हल्की लिपस्टिक से चूत जैसी बना दी थी.
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