Dost ki Maa ki Chudai दोस्त की नशीली माँ
06-14-2018, 12:29 PM,
#48
RE: Dost ki Maa ki Chudai दोस्त की नशीली माँ
मुझे भी काफी सुकून मिल रहा था क्योंकि अभी हफ्ते भर पहले तक मेरे पास कोई ऐसा जुगाड़ तो क्या कल्पना भी नहीं थी कि मुझे ये सब इतना जल्दी मिल जायेगा!
पर हाँ इच्छा जरूर थी और इच्छा जब प्रबल हो तो हर कार्य सफल ही होता है, बस वक़्त और किस्मत साथ दे !
फिर मैंने उसके चेहरे की ओर देखा तो उधर उसका भी वही हाल था वो भी अपनी दोनों आँखें बंद किए हुए मेरे सीने पर सर रखे हुए काफी सहज महसूस कर रही थी जैसे कि उसे उसका राजकुमार मिल गया हो।
मैं इस अवस्था में इतना भावुक हो गया कि मैंने अपने सर को हल्का सा नीचे झुकाया और उसके माथे पर किस करने लगा जिससे रूचि के बदन में कम्पन सा महसूस होने लगा।
शायद रूचि इस पल को पूरी तरह से महसूस कर रही जो उसने मुझे बाद में बताया।
वो मुझे बहुत अधिक चाहने लगी थी, मैं उसका पहला प्यार बन चुका था!
अब आप लोग समझ ही सकते हो कि पहला प्यार तो पहला ही होता है।
आज भी जब मैं उस स्थिति को याद कर लेता हूँ तो मैं एकदम ठहर सा जाता हूँ, मेरा किसी भी काम में मन नहीं लगता है और रह रह कर उसी लम्हे की याद सताने लगती है।
आज मैं इसके आगे अब ज्यादा नहीं लिख सकता क्योंकि अब मेरी आँखों में सिर्फ उसी का चेहरा दौड़ रहा है क्योंकि चुदाई तो मैंने जरूर माया की करी थी पर वो जो पहला इमोशन होता है ना प्यार वाला… वो रूचि से ही प्राप्त हुआ था।
दोस्तो, आज के लिए क्षमा… आज मैं अपनी लेखनी को यही विराम देना चाहूँगा।

इसी तरह मैंने चुम्बन करते हुए उसके गालों और आँखों के ऊपर भी चुम्बन किया और जैसे ही उसकी गर्दन में मैंने अपनी जुबान फेरी.. तो उसके मुख से एक हलकी सी ‘आह’ फूट पड़ी- आआआअह.. शीईईईई.. मत करो न.. गुदगुदी होती है..

वो मेरी बाँहों में से छूटते हुए बोली- यार अब मुझसे रहा नहीं जाता.. कुछ भी करो.. पर मुझे आज वो सब दो.. जो मुझे चाहिए..
तो मैं बोला- जान बस तुम साथ देना और कुछ न बोलना.. जैसा मैं बोलूँ.. करती जाना.. फिर देखना.. आज नहीं तो कल पक्का तुम्हें मज़ा ही मज़ा दूँगा।
वो बोली- ठीक है.. तुम्हारा प्लान तो ठीक है.. पर भगवान करे सब अच्छा अच्छा ही हो..
तो मैं बोला- तुम फिक्र मत करो.. अब मैं विनोद के पास जा रहा हूँ।
उसने मुझे फिर से मेरे कन्धों पर हाथ रख कर मेरे होंठों पर चुम्बन लिया और बोली- तुम कामयाब होना..
फिर मैं सीधा बाहर आ गया और विनोद के पास आकर बैठ गया और हम इधर-उधर की बात करते हुए टीवी देखने लगे। 
इतने में ही रूचि आई और मेरी ओर मुस्करा कर बोली- आप के लिए चाय ले आऊँ?
मैं बोला- अरे खाना खाते हैं न पहले?
तो बोली- खाने में अभी कुछ टाइम और लगेगा..
मैं बोला- फिर चाय ही बना लाओ..
तो बोली- जरूरत नहीं है.. माँ को आपकी पसंद पता है.. वो बना चुकी हैं.. मैं तो बस आपकी इच्छा जानने आई थी कि आप क्या कहते हो?
मैंने कहा- अगर जवाब मिल गया हो.. तो जाओ.. अब ले भी आओ..। 
यह कहते हुए मैंने विनोद से बोला- यार ये भी तुम लोगों की तरह.. मेरी मौज लेने लगी.. जैसे मेरे सभी दोस्त चाय के लिए मेरे पीछे पड़े रहते थे..
तभी विनोद भी बोला- और इतनी ज्यादा चाय पियो साले.. मैंने 50 दफा बोला कि सबके सामने अपने इस शौक को मत जाहिर किया करो.. पर तुम मानते कहाँ हो.. अब झेलो..
तभी आंटी और रूचि दोनों लोग आ गईं.. और दूसरी साइड पड़े सोफे पर बैठते हुए बोलीं- आज तो बहुत ही गरम है।
तो मैं हँसते हुए बोला- चाय तो गर्म ही अच्छी होती है। 
वो बोली- मैं मौसम की बात कर रही हूँ। 
सभी हंसने लगे.. फिर हमने चाय खत्म की और फिर रूचि मेरी तरफ देखते हुए बोली- अच्छा खाना तैयार है.. अब आप बोलें.. कितनी देर में लेना चाहोगे?
उसके इस दो-अर्थी शब्दों को मैंने भांपते हुए कहा- मज़ा तो तभी है.. जब गर्मागर्म हो।
वो भी कातिल मुस्कान लाते हुए बोली- फिर तैयार हो जाओ.. मैं यूं गई और आई..
अब आंटी.. विनोद और मैं उठे और खाने वाली टेबल पर बैठ कर बात करने लगे। 
तभी मैंने आंटी को छेड़ते हुए पूछा- आज आप इतना थकी-थकी सी क्यों लग रही हो..?
वो बोलीं- नहीं ऐसा तो कुछ भी नहीं है..
मैं बोला- फिर कैसा है? 
वो बोलीं- कुछ नहीं.. बस गर्म बहुत है तभी कुछ अच्छा नहीं लग रहा है.. 
मुझे उन्होंने बाद में बताया था कि उन्हें बेचैनी इस बात की सता रही थी कि विनोद के होते हुए हम चुम्बन कैसे लेंगे.. 
खैर.. फिर मैंने बोला- अरे कोई बात नहीं.. आप खाना खाओ.. फिर आज हम लोग भी एक गेम खेलेंगे।
वो बोलीं- अरे ये गेम-वेम तुम लोग ही खेलना.. मुझे इस चक्कर में मत डालो.. मुझे कोई खेल-वेल नहीं आता।
मैं बोला- अरे ये बहुत मजेदार है.. आप खेल लोगी.. और तो और इससे आपको पुराने दिनों की बातें भी याद आ जाएगीं। 
वो बोलीं- ऐसा क्या है.. इस गेम में?
तो मैं आँख से इशारा करते हुए बोला- क्या है.. ये खुद ही देख लेना..
वो समझते हुए बोलीं- अब तुम इतना कह रहे हो.. तो देखते हैं ये कौन सा खेल है?
तभी रूचि आई और मेरी ओर देखकर हँसते हुए बोली- अरे मुझे भी बताओ.. तुम लोग कौन से खेल की बात कर रहे हो?
तो विनोद बोला- हम में से सिर्फ राहुल को ही मालूम है।
मैं बोला- सब कोई खेल सकता है इस खेल को। 
तो वो बोला- पहले बता तो दे कि कौन सा खेल है?
मैं बोला- ठीक है.. पहले पेट पूजा बाद में काम दूजा..
एक बार इसी के साथ साथ सब लोग फिर हंस दिए। 
अब आप लोगों को बता दूँ कि हम कैसे बैठे थे.. ताकि आप आगे का हाल आसानी से समझ सकें। 
खैर.. हुआ कुछ इस तरह कि मेरे दांए सेंटर चेयर पर विनोद बैठा था और मैं उसके बाईं ओर बैठा था। फिर आंटी यानि कि वो मेरे बाईं ओर.. फिर रूचि विनोद के दांई ओर.. यानि कि मेरे ठीक सामने..
तो दोस्तो, दिल थाम कर बैठ जाईए क्योंकि अब असली खेल शुरू होता है। 
आंटी ने प्लेट लगाना चालू किया तो सबसे पहले रूचि को दिया.. पर उसने ये बोल कर अपनी थाली को अपने भाई विनोद की ओर सरका दी.. कि माँ आपने इसमें अचार क्यों रख दिया..
तो माया हैरान होकर बोलीं- पर ये तो तुम्हें बहुत पसंद है.. तुम रोज ही लेती हो।
वो बोली- मेरा पेट ख़राब है। 
जबकि आपको बता दूँ उसने ऐसा इसलिए किया था ताकि वो देर तक खाना खा सके। 
विनोद ने खाना शुरू नहीं किया था तो वो फिर बोली- भैया शुरू करो न..
तो विनोद बोला- पहले सबकी प्लेट लग जाने दे।
वो बोली- अभी जब बन रहा था तो आपको बड़ी भूख लगी थी.. अब खाओ भी.. हम में से कोई बुरा नहीं मानेगा। 
तो मैंने भी बोल दिया- हाँ.. शुरू कर यार.. वैसे भी प्लेट तो लग ही रही हैं। 
इस पर उसने खाना चालू कर दिया और इधर आंटी ने खाना लगाया और रूचि को प्लेट दी.. तो वो रखकर बोली- सॉरी.. अभी आई.. मैंने हाथ तो धोए ही नहीं..
उसने मुझे आँखों से अपने साथ चलने का इशारा किया.. जिससे मैंने भी तपाक से बोल दिया- अरे हाँ.. मैंने भी नहीं धोए.. थैंक्स रूचि.. याद दिलाने के लिए..
फिर हम उठे और चल दिए। 
अब मैं आगे और रूचि मेरे पीछे थी.. शायद उसने इसलिए किया था ताकि मैं पहले हाथ धोऊँ। 
मैं वाशबेसिन के पास जाकर हाथ धोने लगा और रूचि से इशारे में पूछा- क्या हुआ? 
तो वो फुसफुसा कर बोली- जान कुछ होगा.. तो अपने आप बोलूँगी तुम्हें..
और उसने एक नॉटी स्माइल पास कर दी। 
प्रतिक्रिया में मैं भी हंस दिया। मैं हाथ धो ही रहा था.. तभी वो बोली- खाना खाते समय चौंकना नहीं.. अगर कुछ एक्स्ट्रा फील हो तो..
मैं बोला- क्यों क्या करने का इरादा है? 
वो बोली- इरादा तो नेक है.. पर हो.. ये पता है कि नहीं.. ये ही देखना है बस..
फिर मैं हाथ धोकर टेबल की ओर चल दिया.. साथ ही साथ सोचने लगा कि रूचि क्या करने वाली है.. ये सोचते हुए बैठ गया। 
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