Sex Kahani ह्ज्बेंड ने रण्डी बना दिया
06-19-2018, 12:44 PM,
#56
RE: Sex Kahani ह्ज्बेंड ने रण्डी बना दिया
वहीं छत पर चाचा मेरी चूचियों को निकाल कर मुँह में लेकर चूसने लगे और अपने मोटे लण्ड के सुपारे को मेरी बुर पर चांप कर मेरी आग को भड़काने लगे।
मैं होश सम्हालते हुए बोली- चाचा कोई आ सकता है.. नीचे का गेट भी बंद नहीं है.. आज रात मेरी जमकर चूत मारना.. मैं भी आपसे चुदने को तड़प रही हूँ। 
तभी चाचा बोले- बहू छत पर अंधेरा है कोई आ गया तो भी हम दोनों को देख नहीं पाएगा.. हम लोग पूरी तरह तो नहीं ऊपरी तरह से तो मजा ले सकते हैं। प्लीज बहू साथ दो ना.. मैं हूँ ना..
अब मैं भी चाचा के सीने की गरमी पाकर चिपक गई। 
‘बहू तुम मेरे लण्ड को तो चूस ही सकती हो..’
‘जी बाबू जी.. लेकिन एक बार आप मेरी बुर चूस दो.. कोई आ जाए.. इससे पहले मैं मजा ले लूँ.. आप तो अपना काम कर चुके हो..’
मेरा इतना कहना था कि चाचा मेरी जाँघों के बीच मुँह डाल कर मेरी मुनियाँ को चाटने लगे। अपनी चूत चाचा की जीभ का स्पर्श पाकर मैं गनगना उठी, मेरे मुँह से सिसकारी फूट पड़ी- आई सीईईई.. ईईईई..
चाचा मेरी बुर की फांकों को फैलाकर मेरी चूत चाटने लगे। वे अपनी जीभ और होंठों से मेरी चूत के अंदरूनी हिस्से को चूसते हुए चाचा मुझे थोड़ी ही देर में जन्नत दिखाने लगे। मैं भी कमर उठाकर सब कुछ भूल कर अपनी चूत फैलाकर चटवाने लगी। 
तभी चाचा मेरी चूत पीना छोड़कर खड़े होकर अपना हलब्बी लण्ड निकाल कर मुझसे बोले- बहू अब तुम इसकी सेवा कर दो..
मैं भी उठकर चाचा के लण्ड को मुँह में लेकर सुपारे पर जीभ फिराने लगी।
चाचा मेरे सर को पकड़ कर मेरे मुँह में सटासट लण्ड आगे-पीछे करते हुए मेरे मुँह की चुदाई करते रहे और मैंने जी भर कर चाचा के लण्ड को चूसा। 
फिर चाचा ने मुझे वहीं दीवार के सहारे झुकाकर बोले- रानी अब चूत मार लेने दो.. रहा नहीं जाता।
‘नहीं.. अभी नहीं.. आप तो अपना माल गिरा लोगे.. और मैं प्यासी रह जाऊँगी.. अभी यह समय बुर मारने का नहीं है।’
‘अरे मेरी जान.. मैं पूरी तरह से नहीं कह रहा.. बस थोड़ा रगड़ आनन्द लेने को ही तो कह रहा हूँ.. और मेरे खयाल से तुम भी लेना चाहती हो.. क्यों ना सही कहा ना?’
‘जी आप बिल्कुल सही कह रहे हैं.. पर कोई आ सकता है..’
चाचा बोले- अगर कोई आया तो मैं यहीं रह जाऊँगा.. और तुम आगे बढ़ जाना..’ 
मेरी तरफ से कोई उत्तर न पाकर चाचा ने पीछे मेरी मिनी स्कर्ट उठा कर लण्ड मेरी चूत पर लगा दिया। अब वे एक हाथ से कूल्हों को और चूचियों मसल रहे थे और दूसरे हाथ से चूतड़ों की दरार और चूत पर लण्ड का सुपारे को दबाते हुए रगड़ने लगे।
चाचा के ऐसा करने से मैं तड़प कर सीत्कार उठी- अह्ह ह्ह्ह्ह्ह ह्ह्ह.. स्स्स्स्स स्स्स्स्स्स.. उम्म्म्म.. आहह्ह्ह.. सीईईई..
मैं सीत्कार हुए सिसक रही थी और चाचा मेरे चूत और गाण्ड वाले हिस्से को लंड से रगड़ते जा रहे थे। मैं बैचेन होकर चूतड़ पीछे करके लण्ड को अन्दर लेना चाहती थी ‘जल्दी करो ना चाचा.. कोई आ जाए.. इससे पहले आप मेरी चूत में एक बार लण्ड उतार कर मुझे मस्ती से सराबोर कर दो..’
मेरा इतना कहना सुनते ही चाचा ने मेरे कूल्हे को पकड़ कर मेरी बुर के छेद पर लण्ड लगा कर.. एक जोरदार धक्का मारा।
‘आहह्ह्ह.. माआआ.. अहह.. मररररर गई.. आपके लण्ड ने तो मेरी बच्चेदानी को ठोकर मार दी रे.. आहह्ह्ह..’ 
इधर लण्ड चूत में और उधर किसी की आहट लगी.. पर चाचा ने एक और शॉट लगा दिया.. और मैं आहट पर ध्यान ना देकर चूत पर लगे शॉट को पाकर.. फिर सीत्कार उठी- उईईई माँ.. आह्हह ह्हह.. सीईईई ईईईई.. आहह्ह्ह.. 
अब वो आहट मेरे करीब होती जा रही थी।
‘चचाचा.. ककोई.. आ रहा है..?’ 
चूत में ही लण्ड डाले हुए चाचा ने उधर देखा जिधर वह साया था और चाचा मेरे कान में फुसफुसा कर बोले- कौन हो सकता है बहू?
मैं बोली- चाचा घर में दो ही लोग हैं.. एक जेठ जी.. दूसरे आज मैंने एक नया नौकर रखा है.. इन्हीं दोनों में से कोई हो सकता है। वैसे भी चाचा चाहे जो भी हो.. पर आपकी चुदाई में खलल डाल दिया है। 
तभी उस शख्स ने आवाज दी- डॉली तुम कहाँ हो.. इतने अंधेरे में तुम छत पर क्या करने आई.?
‘यह तो जेठ जी की आवाज है..’ मैं हड़बड़ा कर थोड़ा आगे हुई और सटाक की आवाज के साथ चाचा का लण्ड चूत से बाहर हो गया।
‘जी.. मैं यहाँ हूँ.. अभी आई..’ 
लेकिन मुझे चाचा ने पकड़ कर एक बार फिर मेरी चूत में लण्ड घुसा दिया और शॉट लगाने लगे। जैसे उनको जेठ से कोई मतलब ही ना हो।
उधर जेठ जी मेरी तरफ बढ़ने लगे, इधर चाचा मेरी चूत में लण्ड डाले पड़े थे। 
मैं कसमसाते हुए बोली- चाचा छोड़ो..
‘मेरी जान, मैं तो छोड़ ही दूँगा.. पर वादा करो.. रात में मेरी मरजी से सब कुछ होगा..’
‘हाँ हाँ हाँ.. आप अभी तो जाओ..’
‘लो.. मैं जा रहा हूँ..’ ये कहते हुए मेरी चूत पर चाचा ने दो कड़क शॉट लगाकर लण्ड को बुर से खींच लिया और अंधेरे में गायब हो गए। 
इधर जेठ जी मेरे करीब आ चुके थे.. चाचा ऐसे समय पर मुझे छोड़ कर हटे कि मैं अपनी चूत को ढक भी नहीं पाई थी कि जेठ जी मेरे पास आ गए।
मैंने चारों तरफ निगाह दौड़ाई पर चाचा अंधेरे की वजह से कहीं नजर नहीं आ रहे थे। 
जेठ मेरे करीब आकर मुझे इस हाल में देख कर कुछ कहने ही जा रहे थे कि मैं जेठ को खींच कर उनके होंठों को किस करने लगी। 
मैं यह सब मैंने जानबूझ किया क्योंकि मैं ऐसा नहीं करती और जेठ बोल पड़ते तो चाचा को शक हो जाता.. जो कि वो भी अभी छत पर ही थे। 
मैं किस करते हुए बोली- मैंने आपको सरप्राइस देने के लिए ऐसा किया है.. मैं कैसी लगी.. वैसे भी आपकी चुदाई पाकर मेरी मुनिया आजकल कुछ ज्यादा ही मचल रही है और खुली छत पर आपकी याद में मुझे यह सब करना अच्छा लग रहा था।
तभी जेठ मेरी चूत को अपने हाथ भींच कर बोले- तू कहे तो जान अभी तेरी चुदाई शुरू कर दूँ?
मैंने कहा- अभी नहीं.. क्योंकि नीचे संतोष है और हम लोगों को भी चलना चाहिए। 
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