RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
पिया मिलन को जाना
मैं जल्दी से अपने कमरे की ओर बढ़ी।
मेरी निगाह अपनी पतली कलाई में लगी घडी की ओर पड़ी।
सवा आठ , और साढ़े आठ पे अजय को आना है।
और एक पल में मैं सब कुछ भूल गयी, भाभी की छेड़छाड़ , बसंती और गुलबिया , बस मैं तेजी से चलते हुए आँगन तक पहुंच गयी।
लेकिन तब तक बारिश शुरू हो चुकी थी.
टप ,टप ,टप ,टप,…
और बूंदे बड़ी बड़ी होती जा रही थीं।
लेकिन इस समय अगर आग की भी बूंदे बरस रही होतीं तो मैं उन्हें पार कर लेती।
……………..
मुझे उस चोर से मिलना ही था , जिसने मुझसे मुझी को चुरा लिया था।
जिसने जिंदगी की एक नयी खुशियों का एक नया दरवाजा मेरे लिए खोल दिया था।
थोड़ा बदमाश था लेकिन सीधा ज्यादा ,
जैसे बैकग्राउंड में गाना बज रहा था , ( जो मैंने कई बार सुबह सुबह भूले बिसरे गीत में सूना था )
तेरे नैनों ने , तेरे नैनों ने चोरी किया ,
मेरा छोटा सा जिया ,परदेशिया
तेरे नैनों ने चोरी किया ,
जाने कैसा जादू किया तेरी मीठी बात ने ,
तेरा मेरा प्यार हुआ पहली मुलाकात में
पहली मुलाकात में हाय तेरे नैनों ने चोरी किया ,
मेरा छोटा सा जिया ,परदेशिया ,....
हाँ पक्के वाले आँगन से निकलते समय उसके और कच्चे वाले हिस्से के बीच का दरवाजा मैने अच्छी तरह बंद कर दिया।
वैसे भी दोनों हिस्सों में दूरी इतनी थी की मेरे कमरे में क्या हो रहा था वहां पता नहीं चलने वाला था , और चंपा भाभी ,मेरी भाभी की कब्बड्डी तो वैसे ही सारे रात चलने वाली थी,
फिर भी ,…
अब मैं कच्चे वाले आँगन में आ गयी ,जहाँ एक बड़ा सा नीम का पेड़ था, और ज्यादातर आँगन कच्चा था.
वहां ताखे में रखी ढिबरी बुझ चुकी थी ,कुछ भी नहीं दिख रहा था।
बूंदो की आवाज तेज हो चुकी थी ,उस हिस्से में कमरों और बरामदे की छतें खपड़ैल की थीं ,और उन पर गिर रही बूंदो की आवाज , और वहां से ढरक कर आँगन में गिर रही तेज मोटी पानी की धार एक अलग आवाज पैदा कर रही थी।
बादलों की गरज तेज हो गयी थी ,एक बार फिर तेजी से बिजली चमकी ,
और मैं एक झटके में आँगन पार कर के अपने कमरे में पहुँच गयी।
पिया मिलन को जाना, हां पिया मिलन को जाना
जग की लाज, मन की मौज, दोनों को निभाना
पिया मिलन को जाना, हां पिया मिलन को जाना
काँटे बिखरा के चलूं, पानी ढलका के चलूं - २
सुख के लिये सीख रखूं - २
पहले दुख उठाना, पिया मिलन को जाना ...
(पायल को बांध के -
पायल को बांध के
धीरे-धीरे दबे-दबे पावों को बढ़ाना
पिया मिलन को जाना ...
बुझे दिये अंधेरी रात, आँखों पर दोनों हाथ - २
कैसे कटे कठिन बाट - २
चल के आज़माना, पिया मिलन को जाना
हां पिया मिलन को जाना, जाना
पिया मिलन को जाना, जाना
पिया मिलन को जाना, हां
पिया मिलन को जाना
....
गनीमत थी वहां ताखे में रखी ढिबरी अभी भी जल रही थी और उस की रोशनी उस कमरे के लिए काफी थी।
लेकिन उसकी रोशनी में सबसे पहली नजर में जिस चीज पे पड़ी , उसी ताखे में रखी,
एक बड़ी सी शीशी , जो थोड़ी देर पहले वहां नहीं थी।
कड़ुआ तेल ( सरसों के तेल ) की ,
मैं मुस्कराये बिना नहीं रह सकी ,चंपा भाभी भी न ,
लेकिन चलिए अजय का काम कुछ आसान होगा ,आखिर हैं तो उन्ही का देवर।
अब एक बार मैंने फिर अपनी कलाई घड़ी पे निगाह डाली , उफ़ अभी भी ८ मिनट बचे थे।
थोड़ी देर मैं पलंग पर लेटी रही , करवटें बदलती रही , लेकिन मेरी निगाह बार बार ताखे पर रखी कडुवे तेल की बोतल पर पड़ रही थी।
अचानक हवा बहुत तेज हो गयी और जोर जोर से मेरे कमरे की छोटी सी खिड़की और पीछे वाले दरवाजे पे जोर जोर धक्के मारने लगी।
लग रहा था जोर का तूफान आ रहा है।
ऊपर खपड़ैल की छत पर बूंदे ऐसी पड़ रही थीं जैसे मशीनगन की गोलियां चल रही हों। बादल का एक बार गरजना बंद नहीं होता की दूसरी बार उससे भी तेज कड़कने की आवाज गूँज जाती , कमरा चारो ओर से बंद था लेकिन लग रहा था सीधे कान में बादल गरज रहे हों ,
बस मेरे मन में यही डर डर बार उठता था ,इतनी तूफानी रात में वो बिचारा कैसे आएगा।
|