Muslim Sex सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ
07-22-2018, 11:40 AM,
#5
RE: Muslim Sex सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ
चौधराइन
भाग 5 मदन की इन्द्र सभा 2


“मोटे और लम्बे लण्ड से ही मजा आता है,,,,,,,,,क्यों भौजी.....?”
मदन ने लाजो को आवाज दी।
“हां मदन बाबू, आपका तो बड़ा मस्त लण्ड है,,,,,,,,,मेरे जैसी चुदी चूत भी फ़टने लगती है।”
तभी लाजो मदन की गोद से उठ घुटनों के बल हो अपनी खरबूजे सी चूची का निपल मदन के होठों मे देते हुए बोली -“हाय मालिक, दबा मसल के आपने लाल कर दी बहुत दर्द कर रही है थोड़ा चूस के अपनी इस छिनाल भौजी की चूची को कुछ आराम दें। आह मदन चूसने लगा।
आह,,,,,,,,ह सीईईएए,,,,,,,,,,,ह सीईईएए,,,

मदन ““भौजी, जरा अपनी ननद के की नन्ही बिलैय्या(बिल्ली यानि बुर) के दर्शन तो करवाओ।”

“हाय मालिक, नजराना लगेगा…!!। एक दम कोरा माल है, आज तक किसी ने नही…”

“तुझे तो दिया ही है…अपनी बसन्ती रानी को भी खुश कर दूँगा…मैं भी तो देखु कोरा माल कैसा…।”

“हाय मालिक, देखोगे तो बिना चोदे ही निकाल दोगे…इधर आ बसन्ती, अपनी ननद रानी को तो मैं गोद मैं बैठा कर…”,
कहते हुए बसन्ती को खींच कर अपनी गोद मैं बैठा लिया और उसके लहन्गे को धीरे-धीरे कर उठाने लगी।
शरम और मजे के कारण बसन्ती की आंखे आधी बन्द थी। मदन उसकी दोनो टांगो के बीच बैठा हुआ, उसके लहन्गे को उठता हुआ देख रहा था। बसन्ती की गोरी-गोरी जांघे बड़ी कोमल और चिकनी थी। बसन्ती ने लहन्गे के नीचे एक कच्छी पहन रखी थी, जैसा गांव की कुंवारी लड़कियाँ आम तौर पर पहनती है।

लहँगा पूरा ऊपर उठाने के बाद, बसन्ती को शरमाते देख लाजो कच्छी के ऊपर हाथ फेरते हुए बोली,
“चल अच्छा जरा सा कच्छी हटाकर दिखा देती हूँ।”

“हाय, चाहे जैसे परदा हटा…, परदा हटने के बाद फ़ाड़ूँगा तो मैं फिर भी...”

लाजो ने कच्छी के बीच में बुर के ठीक ऊपर हाथ रखा और मयानी मे अपने दो उन्गलियाँ फ़ँसा एक तरफ़ सरका के बसन्ती की कोरी बुर से परदा हटा दिया।
उसकी १६ साल की बुर मदन की भुखी आंखो के सामने आ गई। हल्के-हल्के झाँटों वाली, एकदम कचौड़ी के जैसी फुली बुर देख कर मदन के लण्ड को एक जोरदार झटका लगा।

मदन ने लाजो को इशारा किया तो उसने बसन्ती की कच्छी उतार दोनो टांगे फैला दी और बसन्ती की बुर के ऊपर हाथ फेर उसकी बुर के गुलाबी होंठो पर उँगली चलाते हुए बोली,
“हाय मदन बाबू, देखो हमारी ननद रानी की लालमुनिया…”

नंगी बुर पर उँगली चलने से बसन्ती के पूरे बदन में सनसनी दौड़ गई। सिसकार कर उसने अपनी आंखे पूरी खोल दी। मदन को अपनी बुर की तरफ भूखे भेडिये की तरह से घूरते देख उसका पूरा बदन सिहर गया, और शरम के मारे अपनी जांघो को सिकोड़ने की कोशिश की मगर, लाजो के हाथों ने ऐसा करने नही दिया। वो तो उल्टा बसन्ती की बुर के गुलाबी होंठो को अपनी उंगलियों से खोल कर मदन को दिखा रही थी,

“हाय मालिक, देख लो कितना खरा माल है !!!…ऐसा माल पूरे गांव में नही है…वो तो आपकी मोहब्बत में, मैं आपको मना नही कर पाई…। नही तो ऐसा माल कहाँ मिलता है ?!!…”

“हां रानी, सच कह रही है तु…। मार डाला तेरी ननद की बुर ने…लगता है जैसे दो सन्तरे की फ़ाँके सी जुड़ी हैं!!!!!”

“खाओगे ये सन्तरा मालिक ?…चख कर तो देखो...”

“हाय रानी, खिला,,,,,कोरी बुर का स्वाद कैसा होता है ?…”

लाजो ने बसन्ती की दोनो जांघें फैला दीं।
मदन आगे सरक कर, अपने चेहरे को उसकी बुर के पास ले गया और सन्तरे की फ़ाँके होठों मे दबा लीं जीभ निकाल कर फ़ाँकों के बीच डालने लगा।

“ऊऊफफ्फ्……। भौजी…।
बसन्ती –“सीएएएए मालिक…॥”

बुर के गुलाबी होंठो के बीच जीभ घुसते ही मदन का लण्ड अकड़ के अप-डाउन होने लगा। मदन सन्तरे की फ़ाँके अपने मुंह में भर खूब जोर जोर से चूसने, और फिर बीच में जीभ डाल कर घुमाने लगा। बसन्ती की अनचुदी बुर ने पानी छोड़ना शुरु कर दिया। जीभ को बुर के छेद में घुमाते हुए, उसके भगनसे को अपने होंठो के बीच कस कर चुमलाने लगा। लाजवन्ती उसकी चुचियों को सहला रही थी।

बसन्ती के पूरे तन-बदन में आग लग गई। मुंह से सिसकारियाँ निकलने लगी। लाजो ने पुछा,
“बिट्टो, मजा आ रहा है…?"

“हाय मालिक,…ओओओओ ऊउस्स्स्स्सीईई भौजी, बहुत…उफफ्फ्फ्…भौजी, बचा लो मुझे कुछ हो जायेगा…उफह्फ्फ्फ् बहुत गुद-गुदी…सीएएएए मालिक को बोलो, जीभ हटा ले…हायएए।”

लाजो समझ गई की, मजे के कारण सब उल्टा पुल्टा बोल रही है। उसकी चुचियों से खेलती हुई बोली,
“हाय मालिक,,…चाटो…अच्छे से…अनचुदी बुर है, फिर नही मिलेगी…पूरी जीभ पेल कर घुमाओ...गरम हो जायेगी तब खुद…”
मदन भी चाहता था की, बसन्ती को पूरा गरम कर दे. फिर उसको भी आसानी होगी अपना लण्ड उसकी चूत में डालने में यही सोच, वो टीट के ऊपर अपनी जीभ चलाने लगा।

जीभ ने बुर की दिवारों को ऐसा रगड़ा की, उसके अन्दर आनन्द की एक तेज लहर दौड़ गई। ऐसा लगा जैसे बुर से कुछ निकलेगा, मगर तभी मदन भगनशे पर एक जोरदार चुम्मा ले, उठ कर बैठ गया।

मजे का सिलसिला जैसे ही टुटा, बसन्ती की आंखे खुल गई। मदन की ओर आशा भरी नजरो देखा।

“मजा आया, बसन्ती रानी…!!?”

“हाय मालिक…सीएएएए”, करके दोनो जांघो को भींचती हुई बसन्ती शरमाई।

“अरे, शरमाती क्यों है ?,…मजा आ रहा है तो खुल के बता…और चाटु,,,??”

“हाय मालिक…,! मैं नही जानती...”,
कह कर अपने मुंह को दोनो हाथों से ढक कर, लाजो की गोद में एक अन्गडाई ली।

“तेरी चूत तो पानी फेंक रही है.”

बसन्ती ने जांघो को और कस कर भींचा, और लाजो की छाती में मुंह छुपा लिया।
मदन समझ गया की, अब लण्ड खाने लायक तैयार हो गई है। दोनो जांघो को फिर से खोल कर, चूत की फांको को चुटकी में पकड़ कर, मसलते हुए बुर के भगनशे को अंगुठे से कुरेदा और आगे झुक कर बसन्ती का एक चुम्मा लिया। लाजो दोनो चुचियों को दोनो हाथों में थाम कर दबा रही थी। मदन फिर से टीट के ऊपर अपनी जीभ चलाने लगा। बसन्ती सिसकने लगी। 

“हाय मालिक, निकल जायेगा,,!!??… सीएएएए. हाय मालिक...“

“क्या निकल जायेगा…???,,, पेशाब करेगी क्या…??”

“हां मालिक,,,,, सीएएएए, पेशाब निकल…”

”ठीक है, जा पेशाब कर के आ जा,,,… मैं तब तक भौजी को चोद देता हुं …”
लाजो ने बसन्ती को झट से गोद से उतार दिया, और बोली,
“हां मालिक,,,,, बहुत पानी छोड़ रही है…”

उँगली के बाहर निकालते ही, बसन्ती आसमान से धरती पर आ गई। पेशाब तो लगा नही था, चूत अपना पानी निकालना चाह रही थी. ये बात उसकी समझ में तुरन्त आ गई। मगर तब तक तो पासा पलट चुका था।

उसने देखा की लाजो अपनी ताम्बई चमकती हुई मोटी मोटी केले के खम्बे जैसी जाँघे फैला कर लेट गई थी ।मदन, उसकी दोनो जांघो के बीच बैठ गया और अपने दोनों हाथों से उसकी फ़ूली हुई चुदक्क्ड़ चूत के मोटे मोटे होठों को फ़ैला अपने फ़ौलादी लण्ड का सुपाड़ा टिका, उसकी बड़ी चूचियों को दोनो हाथों में थाम कर बसन्ती की तरफ़ देख बोला –“ अब देख बसन्ती भौजी कैसे मजे से चुदवाती है। बसन्ती एकदम जल-भुन कर कोयला हो गई। उसका जी कर रहा था की लाजो को धकेल कर हटा दे, और खुद मदन के सामने लेट जाये, और कहे की मालिक मेरी में डाल दो।

तभी लाजो ने बसन्ती को अपने पास बुलाया,
“हाय बसन्ती, आ इधर आ कर देख, कैसे मदन बाबू मेरा भोसड़ा चोदते है…?। तेरी भी ट्रेनिंग़…।”

बसन्ती मन मसोस कर सरक कर, मन ही मन गाली देते हुए लाज्वन्ती के पास गई, तो उसने हाथ उठा उसकी चूची को पकड़ लिया और बोली,
“देख, कैसे मालिक अपना लण्ड मेरी चूत में डालते है ?!, ऐसे ही तेरी बुर में भी…उई!”
तभी मदन ने जोर का धक्का मारा. एक ही झटके में पक से पूरा लण्ड उतार दिया। लाजो कराह उठी,
“हाय मालिक, एक ही बार में पूरा …!!… सीएएएएए,,,”

“साली. इतना नाटक क्यों चोदती है? अभी भी तुझे दर्द होता है …??”

“हाय मालिक, आपका बहुत बड़ा है …!।” फिर बसन्ती की ओर देखते हुए बोली,
“…तु चिन्ता मत कर. तेरी में धीरे-धीरे खुद हाथ से पकड़ के डलवाउन्गी… तु मालिक को अपनी चूची चुसा।”

मदन अब धचा-धच धक्के मार रहा था। कमरे में लाजो की सिसकारियाँ और धच-धच फच-फच की आवज गुंज रही थी।

“ले मेरी छिनाल भौजी, ले अपना इनाम तेरी तो आज फ़ाड़ ही दूँगा…। बहुत खुजली है ना तेरी चूत में !!?…ले रण्डी…खा मेरा लण्ड…सीएएएए कितना पानी छोड़ती है !!?……कन्जरी.”

“हाय मालिक .आज तो आप कुछ ज्यादा ही जोश में…। हाय, फ़ाड़ दी मालिक,,”

“हाय भौजी, मजा आ गया…। तूने ऐसी सन्तरेकी फ़ाँको के(जैसी बुर) के दर्शन करवाये हैं, की बस…लण्ड लोहा हो गया है…ऐसा हाय मजा आ रहा है ना भौजी…आज तो तेरी चूत फ़ाड़ मारुन्गा…।
“हाय मालिक, और जोर से चोदो मालिक और जोरसे फ़ाड़ दो …। ……हाय सीएएएएएए,,, सीईईईईईईहयेएएएए,,,”
बसन्ती देख रही थी, की उसकी भाभी अपने चूतड़ उछाल उछाल कर मदन का लण्ड अपनी चूत में ठुँकवा रही थी, और मदन भी कमर उठा-उठा कर उसकी चूत में लण्ड ठोक रहा था। मन ही मन सोच रही थी की, साला जोश में तो मेरी बुर को देख कर आया है, मगर चोद भाभी को रहा है। पता नही मेरी चोदेगा भी कि नही।

करीब पंद्रह मिनट की धका-पेल चोदा-चोदी के बाद लाजो ने पानी छोड़ दिया, और बदन अकड़ा कर मदन की छाती से लिपट गई। मदन रुक गया, वो अपना पानी आज बसन्ती की अनचुदी बुर में ही छोड़ना चाहता था। अपनी सांसो को स्थिर करने के बाद। मदन ने उसकी चूत से लण्ड खींचा। पक की आवाज के साथ लण्ड बाहर निकल गया। चूत के पानी में लिपटा हुआ लण्ड अभी भी तमतमाया हुआ था. लाल सुपाड़े पर से चमड़ी खिसक कर नीचे आ गई थी। पास में पड़ी साड़ी से पोंछने के बाद, वहीं मसनद पर सिर रख कर लेट गया। उसकी सांसे अभी भी तेज चल रही थी। लाजो को तो होश ही नही था। आंखे मूंदे, टांगे फैलाये, बेहोश पड़ी थी। उसकी चूत इतनी देर की ठुकाई से और सूझ गई थी।
बसन्ती ने जब देखा की, मदन अपना खड़ा लण्ड ले कर ऐसे ही लेट गया, तो उस से रहा नही गया। सरक कर उसके पास गई, और उसकी जांघो पर हल्के से हाथ रखा. मदन ने आंखे खोल कर उसकी तरफ देखा और पूछा –“क्या इरादा है?”
तो बसन्ती ने मुस्कुराते हुए कहा,
“हाय मालिक, मुझे बड़ा डर लग रहा है,,? ...आपका बहुत लम्बा !!…”

मदन समझ गया की, साली को चुदास लगी हुई है। तभी खुद उसके पास आ कर बाते बना रही है कि, मोटा और लम्बा है। मदन ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया,
“अरे, लम्बे और मोटे लण्ड से ही तो मजा आता है. एक बार डलवा लेगी, फिर जिन्दगी भर याद रखेगी चल, थाम इसे”
कहते हुए, बसन्ती का हाथ पकड़ के खींच कर अपने लण्ड पर रख दिया।

बसन्ती ने शरमाते-सकुंचते अपने सिर को झुका दिया. मदन ने कहा,
“अरे, शरमाना छोड़ रानी !।”
लाजो वहीं पास पड़ी, ये सब देख रही थी। थोड़ी देर में जब उसको होश आया, तो उठ कर बैठ गई और अपनी ननद के पास आ कर, उसकी चूत अपने हाथ से टटोलती हुई बोली,
“बहुत हुआ रानी, इस मूसल को कितना सहलायेगी ? … अब जरा इससे कुटाई करवा ले,,”

और बसन्ती के हाथ को मदन के लण्ड पर से हटा दिया. और मदन का लण्ड पकड़ के हिलाती हुई बोली.
“ हाय मालिक,,,… जल्दी करिये…बुर एकदम पनिया गई है ।"

“अच्छा भौजी,,,… क्यों बसन्ती डाल दे ना ?…”

“हाय मालिक, मैं नही जानती,,,”

“… चोदे ना,,,??!!??”

“हाय,,…मुझे नही…जो आपकी मरजी हो,,…”

“अरे आप भी क्या मालिक ? …। चल आ बसन्ती, यहां मेरी गोद में सिर रख कर लेट..”
इतना कहते हुए लाजो ने बसन्ती को खींच कर, उसका सिर अपनी गोद में ले लिया और उसको लिटा दिया।
बसन्ती अपनी आंखें बन्द किये किये ही दोनो पैर पसारकर लेट गई थी। मदन उसके पैरों को फैलाते हुए उनके बीच बैठ गया। तभी लाजवन्ती बोली,
“मालिक, इसके चूतड़ों के नीचे तकिया लगा दो … आराम से घुस जायेगा ।"

मदन ने लाजवन्ती की सलह मान कर मसनद उठाया, और हाथों से थप-थपा कर, उसको पतला कर के बसन्ती के चूतड़ों के नीचे लगा दिया। बसन्ती ने भी आराम से चूतड़ों उठा कर तकिया लगवाया। दोनो जांघो के बीच उसकी अनचुदी, हल्के झाँटों वाली बुर चमचमा रही थी। बुर की दोनो नारंगी फांके आपस में सटी हुई थी। मदन ने अपना फनफनाता हुआ लण्ड, एक हाथ से पकड़ कर बुर के थरथराते हुए छेद पर लगा दिया और रगड़ने लगा।
क्रमश:………………………………
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