Muslim Sex सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ
07-22-2018, 11:42 AM,
#15
RE: Muslim Sex सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ
चौधराइन 
भाग 15 – समझदार मामी की सीख 3



"क्यों तू मेरी देखेगा तो मैं तेरा क्यों न देखूँ सबर कर मैं अभी उतारती हूँ, कच्छी फिर तुझे बताऊँगी अपनी खुजली की दवाई, हाय कैसा मुसल जैसा है तेरा."

फिर उर्मिला देवी ने अपनी नाईटी के बटन खोलने शुरु कर दिये। नाईटी को बड़े आराम से धीरे कर के पूरा उतार दिया। अब उर्मिला देवी के बदन पर केवल एक काले रंग की ब्रा और नाईटी के अन्दर पहनी हुई पेटीकोट थी। गोरा मैदे के जैसा माँसल गदराया पर कसा हुआ पेट, उसके बीच गहरी गुलाबी नाभी, दो विशाल छातियाँ, जो की ऐसा लग रहा था की ब्रा को फ़ाड़ के अभी निकल जायेगी उनके बीच की गहरी खाई, ये सब देख कर तो मदन एकदम से बेताब हो गया था। लण्ड फुफकार मार रहा था और बार-बार झटके ले रहा था। मदन अपने हाथों से अपने लण्ड को नीचे की तरफ़ जोर जोर से दबाने लगा।
बाहर खूब जोरो की बारिश शुरु हो गई थी। ऐसे मस्ताने मौसम में मामी-भांजे क मस्ताना खेल अब शुरु हो गया था। ना तो अब उर्मिला देवी रुकने वाली थी ना ही मदन।
उर्मिला देवी ने जब उसकी बेताबी देखी तो आगे बढ़ कर खुद अपने हाथों से उसके लण्ड को पकड़ लिया और मुस्कुराती हुई बोली,
"मैं कहती थी ना की तेरे बस का नही है, तु रह नही पायेगा, अभी तो मैंने पूरा खोला भी नही है और तेरा ये बौखलाने लगा ।"
फ़िर उर्मिला देवी ने मदन के हाथ से लण्ड छुड़ा के बोली –
“तू अपने इस औजार को छोड़।”
“बड़ा दर्द कर रहा है मामी ”
मदन ने कहा और उसका हाथ फ़िर अपने लन्ड पर चला गया ये देख उर्मिला देवी बोली,
" तु मानता क्यों नही बेटा छूने से और अकड़ेगा, और दर्द करेगा, अच्छा तू ऐसा कर मेरी ब्रा खोल तेरा ध्यान बटेगा चल खोल ।" ये कहकर उसका हाथ अपनी ब्रा में कैद चूचियों के ऊपर रख दिया

मदन ने पीछे हाथ ले जा कर अपनी मामी की ब्रा के स्ट्रेप्स खोलने की कोशिश की मगर ऐसा करने से उसका चेहरा मामी के सीने के बेहद करीब आ गया और उसके हाथ कांपने लगे ऊपर से ब्रा इतनी टाईट थी की खुल नही रही थी। उर्मिला देवी ने हँसते हुए अपने बदन को थोड़ा ढीला किया खुद अपने हाथों को पीछे ले जा कर अपनी ब्रा के स्ट्रेप्स को खोल दिये और हँसते हुए बोली.
"ब्रा भी नही खोलना जानता है, चल कोई बात नही मैं तुझे पूरी ट्रेनिंग दूँगी, ले देख अब मेरी चूचियाँ जिनको देखने के लिये इतना परेशान था."

मामी के कन्धो से ब्रा के स्ट्रेप्स को उतार कर मदन ने झपट कर जल्दी से ब्रा को एक झटके में निकाल फेंका। जिससे उनके बड़े बड़े लक्का कबूतरों से उरोज फ़ड़फ़ड़ा के बाहर आ गये उसकी इस हरकत से मामी हँसने लगी जिससे उनके फ़ड़फ़ड़ाते स्तन और भी थिरकने लगे वो हँसते हुए बोली,
" आराम से, जल्दी क्या है, अब जब बोल दिया है कि दिखा दूँगी तो फिर मैं पीछे नही हटने वाली।"

मामी के ऊपर को मुँह उठाये फ़ड़फ़ड़ाते थिरकते स्तन देख कर मदन तो जैसे पागल ही हो गया था। एक टक घूर घूर कर देख रहा था उनके मलाई जैसे चुचों को। एकदम बोल के जैसी ठोस और गुदाज चूचियाँ थी। निप्पल भी काफी मोटे मोटे और हल्का गुलाबीपन लिये हुए थे उनके चारो तरफ छोटे छोटे दाने थे।
मामी ने जब मदन को अपनी चूचियों को घूरते हुए देखा तो मदन का हाथ पकड़ कर अपनी चूचियों पर रख दिया और मुस्कुराती हुई बोली,
"कैसा लग रहा है, पहली बार देख के !"

"हां मामी पहली बार बहुत खूबसुरत है."

मदन को लग रहा था जैसे की उसके लण्ड में से कुछ निकल जायेगा। लण्ड एकदम से अकड़ कर अप-डाउन हो रहा था और सुपाड़ा तो एकदम पहाड़ी आलु के जैसा लाल हो गया था।

"देख तेरा औजार कैसे फनफना रहा है, नसें उभर आई हैं थोड़ी देर और देखेगा तो लगता है फट जायेंगी."

"हाय मामी फट जाने दो, थोड़ा सा और कच्छी खोल के भीई………"

इस पर उर्मिला देवी ने उसके लण्ड को अपनी मुठ्ठी में थाम लिया और दबाती हुई बोली, "अभी ये हाल है तो कच्छी खोल दी तो क्या होगा ?"

"अरे अब जो होगा देखा जायेगा मामी, जरा बस सा खोल के……"

इस पर उर्मिला देवी ने उसके लण्ड को अपनी कोमल गुदाज हथेली मे पकड़ सहलाने और ऊपर नीचे करने लगीं । बीच बीच मे लण्ड के सुपाड़े से चमड़ी पूरी तरह से हटा देतीं और फिर से ढक देती। मदन को समझ में नही आ रहा था की क्या करे। बस वो सबकुछ भुल कर सिसकारी लेते बेख्याली और उत्तेजना में मामी के उनके बड़े बड़े लक्का कबूतरों से उरोज सहलाते दबाते हुए उनके हाथों का मजा लूट रहा था। लण्ड तो पहले से ही पके आम के तरह से कर रखा था। दो चार हाथ मारने की जरुरत थी, फट से पानी फेंक देता । मदन की आंखे बन्द होने लगी, गला सुख गया ऐसा लगा जैसे शरीर का सारा खून सिमट कर लण्ड में भर गया है। मजे के कारण आंखे नही खुल रही थी। मुंह से केवल गोगीयांनी आवाज में बोलता जा रहा था,
"हाय, ओह मामी,,,,,,,,,,,,,,,,,,"
तभी उर्मिला देवी ने उसका लण्ड सहलाते हुए बोल पड़ी,
"अब देख, तेरा कैसे फल फला के निकलेगा जब तु मेरी कच्छी की सहेली को देखेगा."

चुसाई बन्द होने से मजा थोड़ा कम हुआ तो मदन ने भी अपनी आंखे खोल दी। मामी ने एक हाथ से मुठ मारते हुए दूसरे हाथ से अपने पेटीकोट को पूरा पेट तक ऊपर उठा दिया और अपनी जांघो को खोल कर कच्छी के किनारे (मयानी) को पकड़ एक तरफ सरका कर अपनी झांटो भरी चूत के दर्शन कराये तो मदन के लण्ड का धैर्य जाता रहा और मदन के मुंह से एकदम से आनन्द भरी जोर की सिसकारी निकली और आंखे बन्द होने लगी और, "ओह मामी..........ओह मामी...." , करता हुआ भल-भला कर झड़ने लगा।
उर्मिला देवी ने उसके झड़ते लण्ड का सारा माल अपने हाथों में लिया और फिर बगल में रखे टोवल में पोंछती हुई बोली,
" देखा मैं कहती थी ना की, देखते ही तेरा निकल जायेगा।"

मदन अब एकदम सुस्त हो गया था। इतने जबरदस्त तरीके से वो आजतक नही झड़ा था। उर्मिला देवी ने उसके गालो को चुटकी में भर कर मसलते हुए एक हाथ से उसके ढीले लण्ड को फिर से मसला। मदन अपनी मामी को हँसरत भरी निगाहों से देख रहा था। उर्मिला देवी मदन की आंखो में झांकते हुए वहीं पर कोहनी के बल मदन के बगल में अधलेटी सी बैठ कर अपने दूसरे हाथ से मदन के ढीले लण्ड को अपनी मुठ्ठी में उसके अंडो समेत कस कर दबाया और बोली, "मजा आया………………???"

मदन के चेहरे पर एक थकान भरी मुस्कुराहट फैल गई। पर मुस्कुराहट में हँसरत भी थी और चाहत भी थी।
"मजा आया…?", उर्मिला देवी ने फिर से पूछ।

"हाँ मामी, बहुत्,,,,,,,,"

"लगता है पहले हाथ से कर चुका है ?"

"कभी कभी.."

"इतना मजा आया कभी ?"

"नही मामी इतना मजा कभी नही आया,,,,,,,,,,"
मामी ने मदन के लण्ड को जोर से दबोच कर उसके गालो पर अपने दांत गड़ाते हुए एक हल्की सी पुच्ची ली और अपनी टांगो को उसकी टांगो पर चढ़ा कर रगड़ते हुए बोली, "पूरा मजा लेगा....?"

मदन थोड़ा सा शरमाते हुए बोला, "हाय मामी, हां !!।"

उर्मिला देवी की गोरी चिकनी टांगे मदन के पैरो से रगड़ खा रही थी। उर्मिला देवी का पेटीकोट अब जांघो से ऊपर तक चढ़ चुका था।

"जानता है पूरे मजे का मतलब ?!"

मदन ने थोड़ा संकुचाते हुए अपनी गरदन हां में हिला दी। इस पर उर्मिला देवी ने अपनी नंगी गदराई जांघो से मदन के लण्ड को मसलते हुए उसके गालो पर फिर से अपने दांत गड़ा दिये और हल्की सी एक प्यार भरी चपत लगाते हुए बोली,
"वाह बेटा छुपे रुस्तम मुझे पहले से ही शक था, तु हंमेशा घूरता रहता था।"

फिर प्यार से उसके होठों को चुम लिया और उसके लण्ड को दबोचा। मदन को थोड़ा दर्द हुआ। मामी के हाथ को अपनी हथेली से रोक कर सिसकाते हुए बोला,
"हाय मामी...।"

मदन को ये मीठा दर्द सुहाना लग रहा था। वो सारी दुनिया भुल चुका था। उसके दोनो हाथ अपने आप मामी की पीठ से लग गये और उसने उर्मिला देवी को अपनी बाहों में भर लिया। मामी की दोनो बड़ी बड़ी चूचियाँ अब उसके चेहरे से आ लगीं। मदन ने हपक के एक छाती पे मुँह मारा और चूसने लगा मामी के मुह से कराह निकल गई। मदन उन बड़ी बड़ी चूचियाँ पे जहाँ तहाँ मुँह मारते हुए निपल चूस रहा था उर्मिला देवी सिसकारियाँ भर रहीं थीं ।ऐसे ही मुँह मारते चूसते चूमते बाहों कन्धों गरदन से होते हुए वो उर्मिला देवी के होठों तक पहुँच गया ।

उर्मिला देवी ने फिर से मदन के होठों को अपने होठों में भर लिया और अपनी जीभ को उसके मुंह में डाल कर घुमाते हुए दोनो एक दूसरे को चुमने लगे। औरत के होठों का ये पहला स्पर्श जहां मदन को मीठे रसगुल्ले से भी ज्यादा मीठा लग रहा था वहीं उर्मिला देवी एक नौजवान कमसिन लौंडे के होठों का रस पी कर अपने होश खो बैठी थी। उर्मिला देवी ने मदन के लण्ड को अपनी हथेलीयों में भर कर फिर से सहलाना शुरु कर दिया। कुछ ही देर में मुरझाये लण्ड में जान आ गई। दोनो के होंठ जब एक दूसरे से अलग हुए तो दोनो हांफ रहे थे ऐसा लग रहा था जैसे मीलो लम्बी रेस लगा कर आये हे। अलग हट कर मदन के चेहरे को देखते हुए उर्मिला देवी ने मदन के हाथ को पकड़ कर अपनी चूचियों पर रखा और कहा,
"अब तू मजा लेने लायक हो गया है."

फिर उसके हाथों को अपनी चूचियों पर दबाया। मदन इशारा समझ गया।उसने उर्मिला देवी की चूचियों को हल्के हल्के दबाना शुरु कर दिया। उर्मिला देवी ने भी मुस्कुराते हुए उसके लण्ड को अपने कोमल हाथों में थाम लिया और हल्के हल्के सहलाने लगी। आज मोटे दस इंच के लण्ड से चुदवाने की उसकी बरसों की तमन्ना पूरी होने वाली थी। उसके लिये सबसे मजेदार बात तो ये थी की लौंडा एकदम कमसिन उमर का था। जैसे मर्द कमसिन उमर की अनचुदी लड़कियों को चोदने की कल्पना से सिहर उठते है, शायद उर्मिलाजी के साथ भी ऐसा ही हो रहा था. मदन बाबू के लण्ड को मसलते हुए उनकी चूत पसीज रही थी और इस दस इंच के लण्ड को अपनी चूत की दिवारों के बीच कसने के लिये बेताब हुई जा रही थी।
मदन भी अब समझ चुका था की आज उसके लण्ड की सील तो जरुर टूट जायेगी। दोनो हाथों से मामी की नंगी चूचियों को पकड़ कर मसलते हुए मामी के होठों और गालो पर बेतहाशा चुम्मीयां लिये जा रहा था। दोनो मामी-भांजे जोश में आकर एक दूसरे से लिपट चिपट रहे थे।

तभी उर्मिलाजी ने मदन के लण्ड को कस कर दबाते हुए अपने होंठ भींच कर मदन को उक्साया, "जरा कस कर।"

मदन ने निप्पल को चुटकी में पकड़ कर आगे की तरफ खींचते हुए जब दबाया तो उर्मिला देवी के मुंह से तो मुंह से सिसकारियाँ फुटने लगी। पैर की एड़ीयों से बिस्तर को रगड़ते हुए अपने चूतड़ों को हवा में उछालने लगी। मदन ने मामी को मस्ती में आते हुए देख और जोर से चूचियों को मसला और अपने दांत गाल पर गड़ा दिये।

उर्मिला देवी एकदम से तिलमिला गई और मदन के लण्ड को कस कर मरोड दिया,
"उईईईईईईईई............माआआआआआ, सस्सस्सस धीरे से,,,,,,,,,,।"

लण्ड के जोर से मसले जाने के कारण मदन एकदम से दर्द से तड़प गया पर उसने चूचियों को मसलना जारी रखा और मामी की पुच्चियां लेते हुए बोला,
"अभी तो बोल रही थी, जोर से और अभी चील्ला रही हो,,,,,,,,,,,,,,,ओह मामी !!!।"

तभी उर्मिला देवी ने मदन के सर को पकड़ा और उसे अपनी चूचियों पर खींच लिया और अपनी बांयी चूची के निप्पल को उसके मुंह से सटा दिया और बोली,
"बातचीत बन्द।"
मदन ने चूची के निप्पल को अपने होठों के बीच कस लिया। थोरी देर तक निप्पल चूसवाने के बाद मामी ने अपनी चूची को अपने हाथों से पकड़ कर मदन के मुंह में ठेला, मदन का मुंह अपने आप खुलता चला गया और निप्पल के साथ जितनी चूची उसके मुंह में समा सकती थी उतनी चूची को अपने मुंह में लेकर चूसने लगा। दूसरे हाथ से दूसरी चूची को मसलते हुए मदन अपनी मामी के निपल चूस रहा था। कभी कभी मदन के दांत भी उसके मम्मो पर गड़ जाते, पर उर्मिला देवी को यही तो चाहिये था-----एक नौजवान जोश से भरा लौंडा जो उसको नोचे खसोटे और एक जंगली जानवर की तरह उसको चोद कर जवानी का जोश भर दे।

मदन की नोच खसोट के तरीके से उर्मिला देवी को पता चल गया था की लौंडा अभी अनाडी है, पर अनाडी को खिलाडी तो उसे ही बनाना था। एक बार लौंडा जब खिलाडी बन जाये तो फिर उसकी चूत की चांदी ही चांदी थी।

मदन के सर के बालों पर हाथ फेरती हुई बोली,
".........धीरे.....धीरे...,, चूची चूस और निप्पल को रबर की तरह से मत खींच आराम से होठों के बीच दबा के धीरे-धीरे जीभ की मदद से चुमला, और देख ये जो निप्पल के चारो तरफ काला गोल गोल घेरा बना हुआ है ना, उस पर और उसके चारो तरफ अपनी जीभ घुमाते हुए चुसेगा तो मजा आयेगा।"
मदन ने मामी के चूची को अपने मुंह से निकाल दिया, और मामी के चेहरे की ओर देखते हुए अपनी जीभ निकाल कर निप्पल के ऊपर रखते हुए पुछा,
"ऐसे मामी,,??"

"हां, इसी तरह से जीभ को चारो तरफ घुमाते हुए, धीरे धीरे।"

चुदाई की ये कोचिंग आगे जा कर मदन के बहुत काम आने वाली थी जिसका पता दोनो में से किसी को नही था। जीभ को चूची पर बड़े आराम से धीरे धीरे चला रहा था निप्पल के चारो तरफ के काले घेरे पर भी जीभ फिरा रहा था। बीच बीच में दोनो चूची को पूरा का पूरा मुंह में भर कर भी चूस लेता था। उर्मिला देवी को बड़ा मजा आ रहा था और उसके मुंह से सिसकारियाँ फुटने लगी थी,
" ऊऊउईई,,,,,,,,,,,,आअह्हहहह्,,,,,,,,,शशशशश्,,,,,,,,,,,,मदन बेटा,,,,,,,,,,,,,,,,आअह्हह्हह,,,,, ,,,,, ऐसे ही मेरे राजा,,,,,,,,,,शीईईईईईई................एक बार में ही सीख गया, हाय मजा आ रहा है,"

"हाय मामी, बहुत मजा है, ओह मामी आपकी चूची,,,,,,,,,,,,शशशश...... कितनी खूबसुरत है, हंमेशा सोचता था, कैसी होगी ??, आज,,,,,,,,"

" उफफफ्फ् शशशशशसीईईईईईई,,,,,,,,,,,,, आआराआआम से आराम से, उफफफ् साले, खा जा, तेरी चौधराइन चाची के बाग का लंगड़ा आम है, भोसड़ी के,,,,,,,,,,,,,,,,,,,चूस के सारा रस पी जा।"

मामी की गद्देदार माँसल चूचियों को मदन, सच में शायद लंगड़ा आम समझ रहा था। कभी बायीं चूची मुंह में भरता तो कभी दाहिनी चूची को मुंह में दबा लेता। कभी दोनो को अपनी मुठ्ठी में कसते हुए बीच वाली घाटी में पुच,,,,पुच करते हुए चुम्मे लेता, कभी उर्मिला देवी की गोरी सुराहीदार गरदन को चुमता।
बहुत दिनो के बाद उर्मिला देवी की चूचियों को किसी ने इस तरह से मथा था। उसके मुंह से लगातार सिसकारियाँ निकल रही थी, आहें निकल रही, चूत पनिया कर पसीज रही थी और अपनी उत्तेजना पर काबु करने के लिये वो बार-बार अपनी जांघो को भींच भींच कर पैर की एड़ीयों को बिस्तर पर रगड़ते हुए हाथ-पैर फेंक रही थी। दोनो चूचियाँ ऐसे मसले जाने और चुसे जाने के कारण लाल हो गई थी।

चूची चूसते-चूसते मदन नीचे बढ़ गया था और मामी के गुदाज पेट पर अपने प्यार का इजहार करते हुए चूम रहा था। एकदम से बेचैन होकर सिसयाते हुए बोली,
" कितना दुध पीयेगा मुये, उईई,,,,,,, शिईईईईईईईईई,,,,,,,,, साले, चूची देख के चूची में ही खो गया, इसी में चोदेगा क्या, भोसड़ी के ?।"
मदन मामी के होठों को चुम कर बोला,
"ओह मामी बहुत मजा आ रहा है सच में, मैंने कभी सोचा भी नही था. हाय, मामी आपकी चूचियाँ खा जाऊँ??"

उर्मिला देवी की चूत एकदम गीली हो कर चू ने लगी। भगनसा खड़ा होकर लाल हो गया था। इतनी देर से मदन के साथ खिलवाड करने के कारण धीरे-धीरे जो उत्तेजना का तुफान उसके अन्दर जमा हुआ था, वो अब बाहर निकलने के लिये बेताब हो उठा था।
उर्मिला देवी ने एक झापड़ उसके चूतड़ पर मारा और उसके गाल पर दांत गड़ाते हुए बोली, "साले, अभी तक चूची पर ही अटका हुआ है।"

मदन बिस्तर पर उठ कर बैठ गया और एक हाथ में अपने तमतमाये हुए लण्ड को पकड़ कर उसकी चमड़ी को खींच कर पहाड़ी आलु के जैसे लाल-लाल सुपाड़े को मामी की जाँघों पर रगड़ने लगा।
क्रमश:………………………………
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