Hindi Sex Kahaniya काँच की हवेली
07-25-2018, 11:10 AM,
#14
RE: Hindi Sex Kahaniya काँच की हवेली
अपडेट 14



वह तेज़ी से सुंदरी को नंगा करता चला गया. उसके बदन से एक एक कपड़ा नोचने के बाद बिरजू उसके बूब्स पर टूट पड़ा वो उसके बूब्स को बुरी तरह चूसने मसल्ने लगा. सुंदरी को शुरू शुरू में दर्द हुआ पर अब धीरे धीरे उसे अच्छा लगने लगा. उसे बिरजू की आक्रामकता आज एक अलग ही मज़ा दे रही थी. उसकी एक एक हरकत से वो चीख उठती थी. उसका बदन बड़ी तेज़ी से पिघलता जा रहा था. उसकी योनि पानी छोड़ने लगी थी. बिरजू उसके बूब्स को चूसना छोड़ उसकी जाँघो तक आया और उसकी जाँघ को चुम्मने चाटने लगा. सुंदरी के मूह से कामुक आहें निकलने लगी. - "उफ़फ्फ़....आहह क्या कर रहे हो बिरजू? क्या हो गया है तुम्हे?"

बिरजू कुच्छ ना बोला अब उसने अपनी जीभ उसकी रस बरसाती योनि पर रख दी, और उसकी मलाई चाटने लगा. सुंदरी का शरीर धू-धू करके जलने लगा. सुंदरी भी आज कुच्छ ज़्यादा ही कामुक सिसकारियाँ निकाल रही थी. बिरजू कुच्छ देर उसकी योनि चाट लेने के बाद खड़ा हुआ और अपने कपड़े उतारने लगा.

सुंदरी बिस्तर पर उठ बैठी, और बलिहारी हो जाने वाली नज़रों से बिरजू को देखती रही, उसका फौलादी शरीर देखकर वो हमेशा ऐसी ही मस्त हो जाया करती थी. बिरजू के कपड़े उतरते ही उसने उसका लंड पकड़ लिया और सहलाने लगी. नर्म गर्म हाथों का स्पर्श पाकर उसका मर्दाना अंग फड़कने लगा. बिरजू देर ना करते हुए सुंदरी को बिस्तर पर गिराया, फिर उसकी टांगे चौड़ी करके अपना अंग-प्रहरी उसकी योनि द्वार पर टिका कर एक तेज़ धक्के के साथ उसकी गहराइयों में उतार दिया.

"आअहह....." सुंदरी के मूह से दबी दबी सी चीख निकली.

बिरजू ने उसकी दोनो टाँगो को पकड़ा और अपनी कमर का तेज़ धक्का देना शुरू कर दिया. उसका हर धक्का इतना शक्तिशाली होता था कि सुंदरी उसके हर धक्के से उपर सरक जाती थी.

लगभग 15 मिनिट उसकी सवारी करने के बाद बिरजू हाफ्ता हुआ उसके उपर गिरा.

सुंदरी उसे अपनी बाहों में भिचकर चूमने लगी. यूँ तो उसका और बिरजू का 15 वर्षों का संबंध था. पर आज जो उसने मज़ा दिया था, ऐसा मज़ा उसे आज से पहले कभी नही मिला था. वो बिरजू के बालों पर हाथ फेरते हुए उन पलो में खो गयी, जब वो दुल्हन बनकर इस घर में आई थी. उस वक़्त वो 20 साल की थी.शादी से पहले ही वो अनेको मर्दो से जवानी के मज़े लूट चुकी थी.

धनपत जी की ये दूसरी शादी थी, उस वक़्त उनकी उमर 35 के आस-पास होगी, पहली पत्नी से उनको एक लड़की थी. जिसका नाम धनपत जी ने अनिता रखा था. तब वो 5 साल की थी.

धनपत जी के घर में आते ही पहली ही रात को सुंदरी को ये एहसास हो गया था कि उसके पति में वो दम नही है जिसकी वो आदि हो चुकी थी, कुच्छ दिन तक तो वो शांत रही फिर अपनी नज़रें इधक़र उधर दौड़ने लगी. और एक दिन बिरजू पर ठहर गयी. बिरजू उस वक़्त 18 साल का था. उसका कसरती बदन शुरू से ही महिलाओं को आकर्षित करता था. सुंदरी ने उसे देखा तो उसके उपर डोरे डालने लगी, और एक दिन अकेले अपने घर में पाकर उसपर चढ़ बैठी. बिरजू को तो जैसे मूह माँगी मुराद मिल गयी हो, उसने जमकर उसकी चुदाई की, उस एक चुदाई ने सुंदरी को बिरजू का गुलाम बना दिया. उस दिन के बाद ये सिलसिला चल पड़ा.

एक दिन इन दोनो को मुखिया ने रंगे हाथों पकड़ लिया. बिरजू तो डर गया , पर सुंदरी उल्टे मुखिया पर बरस पड़ी. उसे धमकी दी कि अगर उसने बिरजू को यहाँ आने से रोका तो वो पूर गाओं में हल्ला कर देगी कि वो नामार्द है. उसकी बाते सुनकर मुखिया के होश उड़ गये. उन्होने सोचा भी नही था कि जिस औरत को अपना मान सम्मान बनाकर अपने घर ले जा रहे हैं वही औरत एक दिन उनके साथ ऐसा भी कर सकती है. वो विवशता के आँसू पीकर रह गये. वो नारी स्वाभाव से परिचीत हो गये थे, वो जान गये थे कि ये औरत अपनी काम वासना शांत करने के लिए कुच्छ भी कर सकती है. कुच्छ लोगों को अपनी इज़्ज़त अपनी जान से प्यारी होती है, मुखिया भी उन्ही लोगों में से एक थे. उन्होने उस दिन से उसे उसके हाल पर छ्चोड़ दिया. तब से लेकर आज तक बिरजू उनकी पत्नी के साथ चिपका हुआ था. और सुंदरी के ज़रिए ना जाने कितनी औरतों को लूट चुका था.

सुंदरी कुच्छ देर बिरजू के बालों को सहलाती रही फिर बोली - "आज तुम्हे क्या हो गया था रे? एक दम जानवर बन गये थे."

बिरजू बिस्तर पर उठ बैठा और उसके चेहरे को दोनो हाथों से भरकर चूम लिया - "तुम्हे बुरा लगा क्या? अगर ऐसी बात है तो फिर ऐसा नही करूँगा."

सुंदरी को आश्चर्या हुआ. उसने कभी बिरजू को इतना मीठा बोलते नही सुना था. वो बिरजू को चूमती हुई बोली - "नही राजा मुझे बुरा नही लगा. बल्कि आज तो मुझे वो मज़ा मिला है जो आज से पहले कभी ना मिला था."

"तू चाहती है कि मैं तुम्हे रोज़ ऐसे ही मज़ा दूँ?" बिरजू उसके बूब्स सहलाता हुआ बोला.

"ये भी पुच्छने की बात है? मैं तो इस मज़े के लिए कुच्छ भी कर सकती हूँ."

"सच कह रही है?" बिरजू ने उसे टटोला. -"कहीं मुकर गयी तो?

"जान दे दूँगी, पर इनकार नही करूँगी, बोल के तो देख." सुंदरी मचल कर बोली.

"तो फिर सुन....मुझे कंचन को अपने नीचे लेना है, लेकिन वो प्यार से मानने वाली लड़की नही है, हमें चालाकी और धोखे से काम करना होगा. लेकिन इसके साथ एक और काम हमें करना पड़ेगा. कंचन की बुआ शांता को अपने झाँसे में लेना होगा. अगर वो हमारे हाथ लग गयी तो समझ लो मुझे कंचन मिल गयी. तुम्हे शांता को अपने झाँसे में लेना है.....कैसे ये तुम जानो. मैं सिर्फ़ इतना बता दूं इस काम के लिए तुम्हारे पास समय बहुत कम है."

"कंचन का ख्याल छोड़ दे बिरजू, वो तेरे हाथ आने वाली नही है."

"तू वो कर जो मैने कहा है" बिरजू गुस्से में बोला - "मैं उसे किसी भी कीमत में हासिल करके रहूँगा. मेरे होते कोई और उसका रस पीए....ये मुझे मंज़ूर नही. अगर वो मेरी ना हुई तो किसी की भी ना होगी."

"ठीक है राजा, मैं अपना काम कर दूँगी." वो मुस्कुराकर बोली. और बिरजू को अपने उपर खींचकर गिरा दी.

वे दोनो फिर से एक दूसरे में समाते चले गये.

*****

कंचन इस वक़्त अपने घर में चारपाई पर उकड़ू बैठी हुई है. वो उन लम्हो में डूबी है, जब झरने के पास रवि से मिली थी. उसकी मष्टिसक में रवि के आत्मीयता से कहे गये शब्द घूम रहे हैं, उन्ही बातों को याद करके कभी उसके होठ मुस्कुरा उठते तो कभो वो उदास हो जाती.

वो सोच रही थी - आज कितना अच्छा मौक़ा था....साहेब से अपने दिल की बात कहने का. पर मैं मूर्ख क्यों ना कही उनसे. कह देती तो क्या हो जाता. उफ्फ उन्होने पुछा भी था....पर मैं सोचती रह गयी...और जो बोला भी तो क्या "जाइए...मैं नही बताती, आप बड़े वो हो." मैं ऐसी मूर्खों जैसी बात क्यों कह गयी?. अब साहेब क्या सोच रहे होंगे मेरे बारे में?. क्या साहेब अब भी वहीं होंगे? क्यों ना मैं वापस जाकर देखूं....शायद साहेब मिल जाएँ. लेकिन जो मैं उनसे फिर मिली तो साहेब क्या सोचेंगे? चाहें साहेब जो भी सोचे, पर इसी तरह उनसे मिलूंगी तभी तो वो मेरा हाल जानेगे. जो ना मिली तो वो कैसे जान पाएँगे कि मेरे दिल में क्या है?

"आए कंचन क्या हुआ है तुम्हे?" अचानक कंचन के कानो से आवाज़ टकराई तो वो चिहुनक-कर पलटी. नज़रें उठी तो देखा सामने बुआ खड़ी थी. और आश्चर्य से उसे देखे जा रही थी.

"कब से खड़ी देख रही हूँ, तू अपने आप हंस रही है, कभी खुद से झुंझला रही है, मैं सामने खड़ी हूँ पर तेरा ध्यान ही नही है मुझपर, सब ठीक तो है?" बुआ ने सवाल किया.

"नही....हान्ं....मैं....मुझे कुच्छ नही हुआ है, मैं ठीक हूँ." कंचन हक्लाई.

"हां....नही....मैं." बुआ हैरानी से कंचन के शब्द दोहराई. फिर कंचन को घुरती हुई बोली - "क्या बोल रही है तू? सॉफ सॉफ बोल. तू इस तरह उदास सी क्यों बैठी थी? तुझे कुच्छ तो हुआ है."

"कुच्छ भी तो नही हुआ है बुआ. मैं ठीक तो हूँ." कंचन बोली और कमरे से बाहर जाने लगी.

"अब कहाँ जा रही है? अभी तो बाहर से आई है तू....फिर से बाहर क्या करने जा रही है?" शांता बुआ उसे बाहर जाते देख बोली - "और आज तू स्कूल क्यों नही गयी?"

"स्कूल जाने को मन नही किया, कल चली जाउन्गि, अभी हवेली जा रही हूँ." ये कहकर वो तेज़ी से बाहर निकल गयी.

कंचन तेज़ी से चलती हुई उसी झरने के पास पहुँची, जहाँ पर वो रवि को छोड़ कर गयी थी. उसे ये उम्मीद थी कि शायद रवि अब भी वहीं हो.

वो उस जगह पर पहुँच कर अपनी निगाहें चारो तरफ दौड़ाने लगी. पर रवि को कहीं ना पाकर उसका दिल बैठ गया. वह एक बार फिर से इधर-उधर . मार कर रवि को ढूँढने लगी, पर जो था ही नही वो मिलता कैसे. वह निराश होकर एक पत्थेर पर बैठ गयी. घर से कितनी उमंगे लेकर आई थी, पर रवि को ना पाकर उसका मॅन भारी हो गया. अचानक से वो उठी और हवेली के रास्ते अपने कदम बढ़ाती चली गयी.
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