Hindi Sex Kahaniya काँच की हवेली
07-25-2018, 11:15 AM,
#28
RE: Hindi Sex Kahaniya काँच की हवेली
अपडेट 27

रवि जब हवेली पहुँचा तो निक्की भी उसके पिछे पिछे हवेली में दाखिल हुई.

हॉल में ठाकुर साहब के साथ दीवान जी बैठे हुए थे. वे आपस में कुच्छ बातें कर रहे थे जब रवि ने उन्हे हाथ जोड़कर नमस्ते किया.

रवि और निक्की को एक साथ बाहर से आते देख ठाकुर साहब की आँखें खुशी से मुस्कुरा उठी. - "आओ रवि, हम तुम्हारा ही इंतेज़ार कर रहे थे. तुमसे कुच्छ आवश्यक बातें करनी है." ठाकुर साहब रवि से संबोधित हुए.

रवि की आँखें आश्चर्य से सिकुड गयी. पास ही खड़ी निक्की की और नज़र घूमी तो उसके होंठों पर एक विषैली मुस्कान थिरक्ते पाया. उसने फिर से अपनी नज़रों का रुख़ ठाकुर साहब के चेहरे पर किया. उनके चेहरे पर गहरे संतोष का भाव था. रायपुर आने के बाद आज पहली बार उसने ठाकुर साहब को इतना प्रसन्न देखा था. लेकिन उनके संतोष का कारण उसके समझ से परे था.

"बैठो रवि. खड़े क्यों हो?" ठाकुर साहब रवि को खड़ा देख बैठने का इशारा किए.

"जी धन्यवाद." रवि ठाकुर साहब को उत्तर देकर धीमे कदमो से चलते हुए सोफे पर जाकर बैठ गया. फिर सवालिया नज़रों से ठाकुर साहब की ओर देखा - "कहिए मुझसे किस समबन्ध में बात करना चाहते थे आप?" रवि ने पुछा.. उसके चेहरे पर निक्की के साथ हुई झड़प का तनाव अभी भी फैला हुआ था.

"बात आप ही से संबंधित है रवि." ठाकुर साहब बोले - "आप जब से इस हवेली में आए हैं. हमारे लिए हर चीज़ शुभ होती जा रही है. सच कहूँ तो अब हमें ऐसा लगने लगा है जैसे हमारी हर खुशी आपसे होकर ही जाती है"

"मैं कुच्छ समझा नही....? आप कहना क्या चाहते हैं?" रवि चौंकते हुए कहा.

"रवि बात यह है कि.....!" ठाकुर साहब बात अधूरी छोड़कर अपने स्थान से उठ खड़े हुए. फिर चहलकदमी करते हुए एक स्थान पर खड़े हो गये और कुच्छ सोचने लगे.

उन्हे खड़ा होता देख दीवान जी भी सोफा छोड़ दिए. लेकिन रवि अपनी जगह बैठा ठाकुर साहब की ओर देखता रहा. ठाकुर साहब उसकी ओर पीठ किए खड़े थे और उनके दोनो हाथ पिछे बँधे हुए थे.

"दर-असल....हम निक्की का विवाह करना चाहते हैं." ठाकुर उसी अवश्था में खड़े खड़े बोले. वो जो कुच्छ भी कहना चाहते थे उसके लिए सीधे मूह रवि से बात करना उन्हे सहज नही लग रहा था.

"ये तो बहुत खुशी की बात है ठाकुर साहब." रवि जबर्जस्ति मुस्कुराने की कोशिश करते हुए कहा. उसने एक सरसरी निगाह निक्की पर डाली जो उसी की ओर देख रही थी.

"आप ठीक कह रहे हैं रवि." ठाकुर साहब रवि की तरफ पलटकर बोले - "ये वाक़ई खुशी की बात है, लेकिन हमारी खुशी अभी अधूरी है, ये तभी पूरी होगी जब इसमे आपकी मर्ज़ी भी शामिल हो जाएगी."

"म....मेरी मर्ज़ी?" रवि हकलाया. - "मैं कुच्छ समझा नही. आप किस मर्ज़ी की बात कर रहे हैं?"

"रवि, हमे ज़्यादा घुमा फिरकर बात करना नही आता." ठाकुर साहब रवि की घबराहट को नज़र-अंदाज़ करते हुए बोले - "असल बात यह है कि हम निक्की के लिए आपकी रज़ामंदी चाहते हैं. हमें निक्की के लिए जैसा वर चाहिए था वो सारे गूण आप में हैं. सच तो यह है रवि कि जिस दिन आपने राधा के सामने दामाद होने का नाटक किया....उसी दिन से हम भी आपको दामाद के रूप में देखने लगे हैं. अब अगर आपको ऐतराज़ ना हो तो, हम इस रिश्ते को पक्का करना चाहते हैं."

रवि सोच में पड़ गया ! उसने सोचा भी नही था कि ठाकुर साहब उसे इस तरह लपेटे में लेंगे. रवि असमंजस में पड़ गया. वो ठाकुर साहब को सब के सामने ना कहकर उनका अपमान नही करना चाहता था. और हां वो कह नही सकता था.

"क्या हुआ रवि? किस सोच में पड़ गये?" अचानक ठाकुर साहब की आवाज़ से रवि चौंका. ठाकुर साहब की नज़रें उसपर गढ़ी हुई थी.

"ठाकुर साहब, मैं आप सब की बहुत इज़्ज़त करता हूँ, प्लीज़....मेरी बात का बुरा मत मानीएगा." रवि ने नम्र स्वर मे ठाकुर साहब से कहा -"मैं इस वक़्त आपके इस सवाल का जवाब नही दे सकता. मेरी कुछ मजबूरियाँ हैं. मुझे थोड़ा वक़्त चाहिए." उसने एक सरसरी सी निगाह निक्की पर डालकर आगे बोलने लगा - " फिलहाल मैं आपसे एक बात की इज़ाज़त चाहता हूँ. मैं अपनी मा को यहाँ बुलाना चाहता हूँ....अगर आप लोगों को कोई परेशानी ना हो तो?"

"कोई बात नही रवि, हमें कोई जल्दी नही है. आप ठीक से विचार कर लीजिए फिर हमें बता दीजिएगा?" ठाकुर साहब उसकी झेंप मिटाते हुए बोले - "अब रही बात आपकी माताजी के आने की तो उन्हे ज़रूर बुलाए....उनसे मिलने की इच्छा तो हम भी रखते हैं. उनसे मिलकर हम बेहद खुश होंगे."

"आपका धन्यवाद....ठाकुर साहब." रवि ने खड़ा होते हुए कहा - "मैं कल ही मा को फोन करके यहाँ बुला लेता हूँ."

"रवि बाबू." अचानक से दीवान जी बोले - "मैं दो एक दिन में किसी काम से शहर जाने वाला हूँ. अगर आप उचित समझे तो आपकी माताजी मेरे साथ ही आ जाएँगी. मेरे होते उन्हे कोई परेशानी भी नही होगी."

"इससे अच्छी बात और क्या होगी दीवान जी. उनके अकेले आने को लेकर मैं चिंतित था. पर अब मेरी चिंता दूर हो गयी." रवि ने दीवान जी का आभार प्रकट किया.

"ठीक है रवि, अब आप जाइए आराम कीजिए. अब हम इस संबंध में आपकी माताजी के आने के बाद ही बात करेंगे." ठाकुर साहब रवि से बोले.

"जी...बहुत अच्छा, नमस्ते." रवि हाथ जोड़ते हुए ठाकुर साहब और दीवान जी को प्रणाम किया. फिर एक नज़र निक्की पर डालकर सीढ़ियों की तरफ बढ़ गया.

"आपको क्या लगता है दीवान जी? क्या रवि इस रिश्ते के लिए हां कहेगा?"" रवि के जाने के बाद ठाकुर साहब सोफे पर बैठते हुए दीवान जी से पुच्छे.

"वो हां नही कहेगा पापा !" दीवान जी से पहले निक्की बोल पड़ी.

निक्की की बात पर दीवान जी और ठाकुर साहब एक साथ चौंक कर उसकी तरफ पलटे. दोनो की नज़रें एक साथ निक्की के चेहरे पर पड़ी. उसके चेहरे पर उदासी के घने बादल मंडरा रहे थे. वो बेबसी से अपने होंठों को काट रही थी.

निक्की की ऐसी हालत देखकर दोनो ही भौचक्के से रह गये. निक्की अपने होंठों को चबाते हुए आगे बोली - "रवि की पसंद मैं नही हूँ पापा. उसकी पसंद कंचन है." इतना कहकर निक्की ने अपनी गर्दन घुमा ली. जैसे उसे भय था कि कहीं उसकी आँखें पीड़ा से ना छलक पड़े. वो अपने पिता को अपने आँसू नही दिखाना चाहती थी.

"ये तुम क्या कह रही हो निक्की?" ठाकुर साहब घायल नज़रों से निक्की की ओर देखते हुए बोले.

"यही सच है पापा, इसे स्वीकार कर लीजिए. रवि से अब इस समबन्ध में बात करना बेकार है. उसके सपने उसके अरमान.....इस हवेली में रहने वाली निक्की के लिए नही, उस झोपडे में रहने वाली कंचन के लिए हैं." ये कहते हुए निक्की का स्वर भारी हो गया. उसे अपने आँसू छुपाना मुश्किल जान पड़ने लगा. - "मैं अपने कमरे में जा रही हूँ पापा." निक्की बोली और तेज़ी से सीढ़ियों की तरफ बढ़ गयी.

ठाकुर साहब और दीवान जी पत्थेर की मूर्ति बने उसे जाते हुए देखते रहे.

"ये सब अचानक क्या हो गया दीवान जी?" होश में आते ही ठाकुर साहब दीवान जी से बोले - "हमारे पिछे इतना सब कुच्छ होता रहा और हमें इसकी खबर ही ना हुई."

"इसका ग्यान तो मुझे भी नही था सरकार....पर आप निश्चिंत रहें. बात अभी भी बन सकती है." दीवान जी ठाकुर साहब को दिलाषा देते हुए बोले - "बस मुझे इस वक़्त निक्की बेटा से मिलने की इज़ाज़त दीजिए. मैं पहले उनके दिल का हाल जान लूँ."

"जाइए.....दीवान जी, जाकर निक्की को देखिए. मेरी तो कुच्छ भी समझ में नही आ रहा है. पता नही क्यों खुशी हमें रास नही आती." ठाकुर साहब हताश होकर बोले.

"मेरे होते....इस बार खुशी दरवाज़े से नही लौटेगी सरकार....! आप हिम्मत ना हारें." दीवान जी ने उन्हे फिर से आश्वासन दिया - "मैं पहले निक्की बेटा से मिल लूँ फिर आप से बात करता हूँ." इतना कहकर दीवान जी निक्की के कमरे की तरफ बढ़ गये.

दरवाज़े पर पहुँचकर दीवान जी ने धीरे से दरवाजे को हाथ लगाया तो दरवाज़ा खुलता चला गया. दीवान जी की नज़र अंदर पहुँची. निक्की बिस्तर पर औंधे मूह पड़ी हुई थी.

"निक्की बेटा." दीवान जी दरवाज़े से ही बोले. उनकी आवाज़ से निक्की पलटी, दरवाज़े पर खड़े दीवान जी पर नज़र पड़ी तो बिस्तर पर उठकर बैठ गयी.

"निक्की बेटा....हमें बताइए.....पूरी कहानी बताइए.....आपके, रवि और कंचन के बीच जो कुच्छ भी है वो सब हमें बताइए." दीवान जी अधिरता के साथ बोले.

"वे दोनो एक दूसरे से प्यार करते हैं अंकल...." निक्की दीवान जी की ओर देखकर भारी स्वर में बोली - "मैं अपनी आँखों से उन दोनो का मिलन देख चुकी हूँ."

"पर तुम क्या चाहती हो बेटा?" दीवान जी निक्की के सर पर हाथ फेरते हुए बोले - "कोई कुच्छ भी चाहे....पर होगा वही जो तुम चाहोगी. ये मेरा वचन है." अचानक दीवान जी की आवाज़ में कठोरता उभरी.

निक्की ने आश्चर्य से दीवान की ओर देखा. उनकी बूढ़ी आँखों में भी इस वक़्त चिंगारी दहक उठी थी. निक्की उनकी आँखों में झाँकते हुए धीरे से बोली - "मैं कंचन का बुरा नही चाहती अंकल.....पर मैं रवि के बगैर नही जी सकती. शुरू में मैं रवि को पसंद नही करती थी पर पता नही क्यों मैं जितना उससे दूर होने की कोशिश करती.....वो मुझे उतना ही मेरे करीब महसूस होता. धीरे धीरे मैं कब उससे प्यार करने लगी मैं नही जान पाई. इसका एहसास मुझे उस दिन हुआ जब आपके और पापा के मूह से रवि से अपनी विवाह की बात सुनी. पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी. रवि किसी और का हो चुका था."

"उसे तुम्हारा ही होना है निक्की" दीवान जी निक्की के सर को अपने पेट से सटा कर उसके बालों को सहलाते हुए बोले. - "वो किसी और का हो ही नही सकता. मैं उसे किसी और का होने नही दूँगा." दीवान जी जबड़े भिचकर बोले.

"अंकल....." निक्की दीवान जी के गुस्से से भरे शब्द सुनकर काँप उठी. -" क्या आप.....कंचन को हानि पहुँचाएंगे. वो मेरी दोस्त है.....इसमे उसका कोई कुसूर नही, वो तो ये भी नही जानती कि मैं रवि से प्यार करती हूँ."

निक्की के मूह से सहमा सा स्वर सुनकर दीवान जी मुस्कुराए. - "आप चिंता मत कीजिए निक्की बेटा. हम भी कंचन का बुरा नही चाहते.....और उसका बुरा करने की तो हम सोच भी नही सकते. पर कुच्छ ऐसा ज़रूर करेंगे कि....रवि कंचन को छोड़कर आपके पास चला आए."

"क्या ये संभव है अंकल....?" निक्की ने आश्चर्य से दीवान जी की और देखा. - "रवि कंचन से बहुत प्यार करता है. वो उसे कभी नही छोड़ेगा."

"आप उसकी चिंता मत करो बेटा....!" दीवान जी धीरे से मुस्कुराए. फिर निक्की का चेहरा अपने हाथों में लेकर उसकी आँखों में झाँकते हुए बोले - "बस आप एक वादा करो कि जब तक हम शहर से नही लौट आते.....तब तक आप अपनी ओर से कोई भी कदम नही उठाएँगे. जो कुच्छ रवि और कंचन के बीच चल रहा है चलने दीजिए. आप सिर्फ़ मुक्दर्शक बने देखते रहिए."

"ठीक है अंकल...." निक्की ने दीवान जी की बात पर हामी भरी - "आप जैसा कहते हैं मैं वैसा ही करूँगी. मैं आपके शहर से लौट के आने तक कुच्छ नही करूँगी. पर आप जल्दी लौटकर आईएगा."

"बिल्कुल बेटा.....सिर्फ़ तीन चार दिन लगेंगे मुझे. लेकिन एक और बात का भी ध्यान रखें. इस कमरे में आपके और मेरे बीच जो भी बातें हुई....उसके बारे में मालिक को मत बताना." दीवान जी ने सरगोशी की - "अगर मालिक पूछें तो आप कह देना.....जिसमें रवि और कंचन की खुशी है उसी में आपकी भी खुशी है. आप उनके रिश्ते से खुश हैं. मालिक तो पहले से ही बहुत दुखी हैं.....आपके दुख की भनक भी उन्हे लगी तो वे टूट जाएँगे. आप सदा उनके सामने मुस्कुराते रहिएगा."

"जी....समझ गयी अंकल..." निक्की ने सहमति में अपनी गर्दन हिलाई.

"ओके बेटा....अब मैं चलता हूँ. अपना ख्याल रखना." ये कहकर दीवान जी निक्की के कमरे से बाहर निकल गये.
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