Hindi Sex Kahaniya काँच की हवेली
07-25-2018, 11:23 AM,
#56
RE: Hindi Sex Kahaniya काँच की हवेली
कमला जी और रवि जैसे ही हवेली से बाहर निकले दीवान जी भागते हुए उनके पास आए.

"सामान मुझे दीजिए बेहन जी. मैं लिए चलता हूँ. मेरा घर आपके होने से पवित्र हो जाएगा." दीवान जी खुशी से आँखें चमकाते हुए बोले और कमला जी से सूटकेस लेने लगे.

"हम अपने घर जाना चाहते हैं दीवान जी. अब हम इस गाओं में नही रुकेंगे."

कमला जी की बात सुनकर दीवान जी के होश उड़ गये. उन्हे अपनी योजना असफल होती नज़र आई. वे तुरंत बात बनाकर बोले - "ऐसा ना कहिए बेहन जी, कुच्छ दिन हमारे घर रुक जाइए. हमें अपनी सेवा का मौक़ा दें. मोहन बाबू को यहाँ लाने वाला मैं ही था. मुझे भी प्रयशचित का मौक़ा दीजिए. कम से कम 2 दिन के लिए ही सही पर इनकार मत कीजिए."

कमला जी रवि को देखने लगी.

रवि के लिए जैसे ठाकुर साहब थे वैसे ही दीवान जी. उसे ना तो ठाकुर साहब की सूरत पसंद थी और ना ही दीवान जी की. पर मरता क्या नही करता. ना जाने क्यों उसका मन भी यही चाह रहा था कि वो अभी गाओं छोड़ कर ना जाए. कोई तो बंधन था जो उसे रोक रहा था. उसने सहमति में सर हिलाते हुए कहा - "दीवान जी ठीक कह रहे हैं मा. हमें कुछ दिन रुकना चाहिए."

कमला जी का मन विचलित था. पर ना ना करके भी वो दिन के लिए रुकने को राज़ी हो गयीं.

उनकी हां देखकर दीवान जी का चेहरा खिल गया. उन्होने कमला जी का सामान उठाया और अपने घर की तरफ बढ़ गये. रवि और कमला जी भी उनका पद-अनुसरण करते हुए उनके पिछे चल पड़े.

दीवान जी उन्हे उनके कमरे तक ले गये. रवि काफ़ी देर तक कमला जी के साथ बैठा उन्हे दिलासा देता रहा. कमला जी ने लंच भी नही किया. कुच्छ देर बाद थकान ने उन्हे आ घेरा और वो बिस्तर पर आराम की ग़र्ज़ से लेट गयीं. उन्हे आराम करता देख रवि भी अपने कमरे में चला आया.

रवि बिस्तर पर लेटा कंचन के बारे में सोच रहा था. हवेली से निकलते वक़्त उसका मुरझाया हुआ सूरत बार बार आँखों के आगे आ रहा था. उसने सोचा - "इसमे कंचन का क्या दोष....उसने तो कुच्छ भी नही किया. वो तो सुगना के घर पली बढ़ी है. हवेली के हर पाप और मक्कारी-फरेब से दूर रही है. फिर मैं उसे किस बात की सज़ा दे रहा हूँ. अगर उसका गुनाह इतना है कि वो ठाकुर जैसे खूनी की बेटी है तो मुझे ये भी नही भूलना चाहिए कि उसे जन्म देने वाली औरत राधा जैसी देवी है."

राधा जी की याद आते ही उसकी सोच का दायरा घुमा. "राधा जी, उनका इलाज भी तो अधूरा है, उन्हे किस भरोसे छोड़ कर जाउन्गा? क्या डॉक्टर होने का कर्तव्य यही है? नही... उन्हे इस वक़्त मेरे साथ की मेरे इलाज़ की ज़रूरत है, ऐसी हालत में मैं उन्हे छोड़ कर नही जा सकता. मुझे इस संबंध में मा से बात करनी होगी."

रवि उठा और मा के कमरे में दाखिल हुआ.

कमला जी सो चुकी थी. रवि उनके पायतने बैठा उनके जागने का इंतेज़ार करने लगा.

काफ़ी देर बाद कमला जी की आँख खुली.

"कैसी हो मा?" उन्हे जागता देख रवि बोला - "मा मैं आपसे कुच्छ बात करना चाहता हूँ."

"हां बोलो...." कमला जी उठकर बैठी हुई बोली.

"मा, मैं कुछ दिन और यहाँ रहने की बात कर रहा था."

"क्यों....क्या कंचन का भूत अभी तक तुम्हारे दिमाग़ से उतरा नही है?"

"इसमे उसका क्या दोष है मा? उसने तो कुच्छ नही किया. वो तो गाओं में पली बढ़ी एक ग़रीब लड़की है. उसका हवेली वालों से कोई लेना देना नही. फिर उसे इस बात की सज़ा क्यों दे मा?"

"बस कर रवि." कमला जी आँखें तरेर कर बोली - "फिर कभी अपनी ज़ुबान पर उस लड़की का नाम भी मत लाना, अगर मैं उसे अपने घर ले आई तो वो लड़की ज़िंदगी भर मेरी छाती में शूल की तरह चुभती रहेगी. वो उस हत्यारे की बेटी है जिसने मेरी माँग का सिंदूर उजाड़ा. मुझे उसके साए से भी नफ़रत है."

"और राधा जी. क्या उनसे भी इतनी ही नफ़रत है. जिन्हे पिताजी की मौत ने इतना दुखी किया कि वो अपना मानसिक संतुलन खो बैठी. जो पिच्छले 20 सालों से बंद कोठरी में पड़ी ना तो जी रही हैं ना मर रही हैं. क्या उनके बारे में भी ऐसे ही विचार हैं आपके?"

कमला जी चूप हो गयी. राधा जी की याद आते ही उनका गुस्सा पल में गायब हो गया. - "उस देवी से मुझे भी हमदर्दी है...पर बेटा...!"

"मा....राधा जी के बारे में सोचो मा. बिना कोई अपराध किए उनका पूरा जीवन बंद कोठरी में बीत गया. क्या आप चाहती हैं कि निर्दोष होते हुए भी वो इसी तरह एक दिन मर जाएँ? मा मैं जब कभी उनके कमरे में जाता था उनकी आँखों में एक अज़ीब सी पीड़ा का अनुभव करता था. किंतु जैसे ही उनकी नज़र मुझपर पड़ती उनके सूखे चेहरे पर खुशी दौड़ जाती थी. जाने क्या बात थी पर उन्हे देखकर मुझे तुम्हारी याद आ जाती थी. उनका मेरे सिवा कोई नही है मा. कम से कम एक डॉक्टर होने के नाते मैं उन्हे मरते हुए नही छोड़ सकता."

"ठीक है रवि, तुम उनका इलाज़ करो, जब तक वो ठीक नही हो जाती. हम इसी गाओं में रहेंगे." कमला जी भावुक होकर बोली.

"थॅंक यू मा." रवि उन्हे अपनी छाती से लगाते हुए बोला.

"लेकिन कंचन के बारे में मेरा फ़ैसला अभी भी वोही है. मैं उसे अपने घर की बहू कभी नही बनाउंगी."

कमला जी के इस बात पर रवि ने चुप्पी साध लेना ही बेहतर समझा.
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