Mastram Kahani वासना का असर
08-15-2018, 11:38 AM,
#4
RE: Mastram Kahani वासना का असर
मेरे मन में थोड़ी निराशा भी हुई की बुआ मेरे लिंग का अहसास नहीं करना चाहती लेकिन वो वासना ही क्या जो इतने से बात से निराश हो जाये। मेरा वासना ने ये तय कर लिया आज बुआ की नंगी चूत पे ना सही नंगी पीठ पे ही लण्ड की घिसाई होगी। मैंने अपने एक हाथ को हौले से और जल्दी से अपने लोअर के अंदर घुसाया और चड्डी को एक साइड कर के लण्ड को आजाद कर दिया और बुआ की पीठ पे इस बार थोड़े दबाब के साथ कमर को ठोकी। अब मेरे लोहे की रॉड के तरह खड़े लण्ड और बुआ की नंगी पीठ के बीच बस मेरा पतला सा लोअर था, बुआ को भी इस बात का अहसास हो गया था क्योंकि उसने अपने पीठ को आगे की तरफ खिसकाने कि कोशिश की थी पर वो भूल गयी थी की मेरे दोनों हाथ उसके कंधे पे थे, मैंने उसे आगे खिसकने से रोक दिया था। पहली बार मेरा पूरा तना लौड़ा बुआ के किसी भी हिस्से से पूरी तरह स्पर्श कर रहा था..मै उसे अपने खड़े लौड़े का अहसास करवा के उसकी चूत में आग लगाना चाहता था। उसकी शादी-शुदा बुर से निकले कामरस से उसकी कच्छी भिगाना चाहता था। मैं चाहता था कि उसे अपने चरित्रवान चुत की चुदासी मिटाने के लिये अपने सगे भतीजे की जवान लौड़े की जरुरत पड जाये।
मै अपना काम सुरु कर चुका था। मैं अपने हाथों से उसके नंगे कंधे पे हल्का सा दबाब बनाते हुए सहला रहा था और नीचे लण्ड से उसके पीठ के नग्न वाले हिस्से पे हल्के से रगड़ रहा था। हालाँकि बीच बीच में वो आगे होने की कोशिश कर रही थी पर मेरे दोनों हाथ उसे बार बार रोक रहे थे। पता नहीं मेरे में इतनी हिम्मत कहाँ से आगयी थी पर अपने खड़े लण्ड को अपनी अधेर उम्र की कामुक बुआ के पीठ पे रगड़ने का मजा ही कुछ अलग है और वो भी तब जब ना चाहते हुए भी आपकी बड़ी गांड और चुंचियों वाली बुआ गर्म..चुदासी हो कर आपका साथ दे रही हो। 
"ये भी एक स्वर्ग है मेरे दोस्त"
लण्ड रगड़ते हुए मैंने अपने एक हाथ को पीछे की ओर लाया और बुआ की नंगी पीठ पे पुरे पंजे सहित रख दिया। उस चिकनी..रेशमी त्वचा का स्पर्श जादुई था, मै उसके मांसल पीठ को पूरे पंजे में लेकर मसलना चाहता था। मैंने अपनी एक ऊँगली को पीठ के ठीक बीचो-बीच रखा वहाँ जहाँ रीढ़ की हड्डी होती है और उस्से हलके से और धीरे-धीरे नीचे की ओर ले जाने लगा उसके ब्लाउज के पट्टी के पास। बुआ के शरीर में एक हल्की सी सिहरन हुई, मै अपने लौड़े के नीचे उसके पीठ को हल्के से काँपते हुए महसूस कर सकता था। उसकी साँसे चंद सेकंडों के लिए रुकी और फिर उसने एक लंबी साँस छोरी। शायद अब वो अपने शरीर से हार मान गयी थी। वो पालथी मार बैठी हुई थी और मै उसके हाथो को उसके दोनों पैरों के बीच उसकी लपलपाती चुत के ऊपर जाते हुए देख सकता था। वहां अपनी चुत पे उसने हाथो से दबाब बनाया, हल्का सा रगड़ा भी..शायद वो अपने बुर से निकलती आग को बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी। ये कुछ देर ही हुआ फिर उसने अपना हाथ हटा लिया शायद उसे अपनी स्थिति का आभास हो गया था कि वह कहाँ बैठी हुई है और ये सब देख कर मैंने अपने लण्ड रगड़ने की स्पीड बढ़ा दी। मै अब कुछ देर में झड़ने वाला था, लेकिन मुझे कुछ बड़ा चाहिए था कुछ ऐसा की मेरे उत्तेजना को चरम सुख की ओर ले जाये। मै उसके दोनों कंधो को पकडे अपने लौड़े को उसकी पीठ पे रगड़े जा रहा था। मैंने अपने एक हाथ को नीचे की ओर ले जाना सुरु किया उसके चौड़े गांड की ओर। मैं उसके हाहाकारी और मांसल गांड की दरार में ऊँगली रगड़ते हुए झड़ना चाहता था और तभी वो एक साड़ी को उठा कर देखने लगी। साड़ी को दोनी हाथो से पकड़ कर फैला कर देख रही थी..उसके दोनों हाथ ऊपर उठे थे, साड़ी ने उसके गले के निचले वाले हिस्से को ढक रखा था और तभी मेरे वासना ने इशारा किया और मेरे दोनों हाथ उसके दोनों हाथों के नीचे से निकल कर साड़ी की ओट में उसके गुदाज माँसल और बड़े-बड़े चुंचियों पे आगये। मैंने उसके दोनों चुंचियों को ब्लाउज के ऊपर से अपने पंजे में दबोच रखा था..काफी बड़ी बड़ी चूचियां थी, मै जन्नत में था..उसके दोनों चुंचियों को मसल रहा था..उसके मुंह से हलकी सी.. "सी..सी..सी" की आवाज़ निकली पर वहां बैठी औरतो के बातो के बीच दब के रह गयी। उसने साड़ी नीचे नहीं रखी थी शायद उसे मजा आरहा था या सब देख लेते इस कारण से। मैने अबतक उसके कड़े हो चुके निप्पलों को अँगूठे से रगड़ना चालू कर दिया था, मै उसके चुंचियों को मसलते हुए उसके निप्पलों को रगड़ रहा था। और तभी उसने अपने पीठ को मेरे लण्ड पे दबाया थोड़ा जोर से दबाया था उसने..वो मेरे लौड़े को पूरे अच्छे तरीके से महसूस कर के अपनी चुदास बढ़ाना चाहती थी। अब दबाब के साथ वो अपनी पीठ से हलकी सी रगड भी रही थी। मेरे दोनों हाथों में उस शादी-शुदा, चुदी-चुदाई बुआ के दोनों बड़ी बड़ी चूचियाँ थी और वो चुदासी से भरपूर अधेर उम्र की औरत अपने नंगे पीठ से मेरे खड़े जवान लौड़े को रगड़ रही थी..वो औरत मेरी सगी बुआ थी। ये सोच मेरे दिमाग में आते ही..मेरे शरीर में एक विस्फोट हुआ..मेरा लौड़ा पूरा तन्ना के वीर्य की बौछार करने लगा। मै हलके से काँपते हुए झड़ रहा था और जोश में मै बुआ के चुंचियों को पूरे ताकत से मसल रहा था..उसके मुंह से हल्की सी.."आह" निकली जो फिर से बातो के नीचे दब गयी और मै शांत पड़ गया। मैंने अपनों हाथो को उसके गुदाज चुंचियों से हटाने से पहले एक बार और जोर से दबाया और उसके निप्पलों पे एक रगड़ भी दी। मै उसे बताना चाहता था कि ये सब अनजाने में नहीं हुआ..मै तुम्हे चोदना चाहता हूँ..तुम्हारे चौड़े बुर को अपने लौड़े की मालिश देना चाहता हु और ये खबर उस तक पोहोच गयी थी। मैं धीरे से उसके पीछे से हटा और दोनों हाथों से लोअर के आगे वाले हिस्से को छुपाता हुआ कमरे से निकल कर सीधा अपने रूम की ओर दौरा..मुझे अपने वीर्य से सने हुए अपने लोअर को बदलना था..मेरा चड्डी सेफ था। मैं खुश था..मेरा वासना दिवाली मना रहा था। आख़िरकार ये एक बड़ा पड़ाव था मेरे इस वासना-पूर्ति के लक्ष्य में। अब तो बुआ की चुदाई निष्चित थी चाहे जैसे भी हो..।

शाम को हुए उस घटना के बाद मैं अत्यधिक खुश था। अब बुआ के सामने प्रत्यक्ष रूप से यह स्पष्ट था कि मैं उसके साथ सम्भोग करना चाहता हूँ पर अभी तक उसकी मनोदशा सही रूप से मेरे सामने स्पष्ट नहीं हो पायी थी। कभी मुझे लगता था, वो सम्भोग के लिए तैयार है, कभी की वो बिलकुल भी इसे होते हुए नहीं देखना चाहती है और कभी लगता था कि वो उत्तेजित हो कर मेरा साथ देती है। मैंने "उत्तेज्जित हो कर साथ देने" वाले थ्योरी को ही सही माना। कुल मिलाकर बात ये थी की मुझे कोशिश करनी थी भरपूर कोशिश और बाकि बाते भाग्य पे छोर देना चाहिए। समय और परिस्थिति भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली थी। 
शादी में परसो होने वाली थी। पूरा घर मेहमानों से भर गया था। अच्छी बात ये थी की फूफा जी शादी के दिन शाम को आने वाले थे मतलब बुआ की रस उगलती योनि को मालिश मिलने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे थे। पूरा घर व्यस्त दिख रहा था..हर जगह सभी लोग ग्रुप बना के गप्पे लड़ा रहे थे..तो एक वर्ग ऐसा भी था जो काम करने में व्यस्त था और एक वर्ग ऐसा जो ना ही गप्पे लड़ा रहे थे नाही काम कर रहे थे। बाहर डी. जे. बॉक्स पे मद्धिम आवाज़ में गाने बज रहे थे और अंदर मेहमानों की चहल-पहल थी। घर का मौसम खुशनुमा था और मेरा मन भी। मेरी श्रेणी अलग थी, मै काम करते हुए बीच-बीच में आराम करने वाले वर्ग में था और इसी आराम करने के लिए मैं जगह ढूंढ रहा था और इस बात का पूरा ख्याल रख रहा था कि मैं बुआ के आस-पास वाली जगह का ही चुनाव करू। मै बुआ के चुत को आराम देने के मूड में नहीं था, मै उसके कच्छी को लगातार गीली देखना चाहता था। मै उसके कामुकता पे लगातार चोट करना चाहता था ताकी वो थक कर टूट जाए। ढूंढते-ढूंढ़ते मै उस कमरे में पोहोंचा जहाँ बुआ बैठे हुए गप्पे लड़ा रही थी। बिस्तर पे जगह बची हुई थी पर उसपे बैठे लोग इस तरह बैठे हुए थे जिस कारण मैं कुछ नहीं कर पता। पर हार मारना मेरे वासना को पसंद नहीं थी। मैं जा के बैठ गया। कुछ देर गप्पे लड़ाने के बाद मुझे अहसास हो गया मै अभी कुछ नहीं कर पाउँगा। मै बेचैन हो गया था। मैंने बुआ के चहरे पे देखा, मुझे वहां एक व्यंग्य भड़ी हुई खुशि नजर आयी। वो मेरे बेचैनी का मजा ले रही थी। मुझे तड़पा के वो ख़ुश हो रही थी। मै वही अपने पैर फैला के लेट गया। बुआ बैठी हुई थी और मै उसके बगल में केहुनि बिस्तर पे टिकाये और हाथो से सर को सहारा देते हुए लेटा हुआ था। उसके दाहिने तरफ वाले जाँघों के पास मेरा केहुनि था। मै इससे ज्यादा कुछ नहीं कर पाता क्योंकि सब एक दूसरे की तरफ चेहरा कर के बाते कर रहे थे। मै बेचैन हो गया था अपनी नाकामी पे..हार मान कर मैं उठ कर जाने वाला था तभी बुआ अपने दाहिने तरफ वाले हाथ को मेरे केहुनि के पास लाके थोड़ा ऐसे झुक गयी जैसे बैठे बैठे उसके कमर में दर्द हो गया हो। मुझे अपने सर पर एक माँसल बोझ का अहसास हुआ और मेरे दिल को ये समझने में तनिक भी देर ना लगा की वो मेरी कामुकता की मारी बुआ की भारी और गुदाज चूचियाँ है। कुछ पलों के लिए मैं बूत बन गया था, ये पहली दफा थी जब बुआ ने खुद पहल की थी। हालाँकि पहले भी वो थोड़ा सा मेरा साथ देती थी पर मेरे सुरूआत करने के बाद। लेकिन आज उसने खुद अपनी बड़ी बड़ी चुंचियों को मेरे सर से स्पर्श करवा रही थी। मैंने कुछ ही पलों में अपने सर को ऊपर की ओर दबाना चालू कर दिया पर ये क्या अगले ही पल वो बड़ी गांड वाली औरत की बड़ी बड़ी चूचियां मेरे सर के पोहोंच से बोहोत दूर थी। मैंने अपने सर को थोड़ा और ऊपर उठाने की कोशिश की पर मैं विफल रहा। थक-हार के मै वापस अपनी पहले वाले पोजीशन में आ गया। कुछ मिनटो के बाद मुझे अपने सर पे फिर से उसी अहसास का अनुभव हुआ। मैंने इस बार फिर उस गुदाज चुंचियों को सर से दबाने की कोशिश की लेकिन फिर वो मेरे पहोंच से दूर हो गया और अगले ही पल फिर से मेरे सर पे आके किसी बड़े बैलून की तरह चिपक गया। मैंने इस बार उसे अपने सर से दबाने की कोई कोशिश नहीं की। कुछ मिनटों तक वैसे ही स्थिर रहने के बाद चुदास से भरी बुआ ने हल्का हल्का हिलना स्टार्ट कर दिया जैसे की वो अपने बिस्तर पे टिकाये हाथो के सहारे बाहर बॉक्स पे बजने वाले गाने पे थिडक रही हो। मुझे अपने सर पे उस शादी-शुदा बच्चो वाली कामुक बुआ के हाहाकारी चुँचो का पूरा अहसास हो रहा था। वो अपने चुँचो को घिसे जा रही थी। कुछ देर बाद उसने हिलना बंद कर दिया और फिर वो बिस्तर से अपना हाथ उठा पहले वाली पोजीशन में आगयी। कुछ देर इन्तजार करने के बाद मुझसे रहा नहीं गया और मैंने अपनी केहुनि हटा अपने सर को बिस्तर पे टिका कर पूरी तरह लेट गया। अब मैं अपने बुआ के तरफ वाले हाथ को पीछे की ओर फैला रहा था और धीरे-धीरे मेरे हाथ उसके कमर के पीछे और फिर उसके कमर पे आगये। बुआ इस बार बिलकुल शांत थी जैसे उसे पता हो मै क्या करने वाला हूँ।
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