Mastram Kahani वासना का असर
08-15-2018, 11:39 AM,
#10
RE: Mastram Kahani वासना का असर
मैंने अब एक और कदम बढ़ाने की सोची।
"चाची.. चाची सुनो"
उसने अपनी आँखे ऊपर उठायी और मेरे आँखों में देखा..जैसे पूछ रही अब और क्या करना है.."
उनकी आँखे जल रही थी..वासना के डोरे तैर रहे थे।
मेरी मुँह से स्वतः बोल फुट पड़े..
"अपनी साड़ी ऊपर उठाओ.. प्लीज़"
चाची की आँखे कुछ पल तक मेरे आँखों में देखती रही जैसे वो समझना चाहती है मैंने क्या कह दिया है..और फिर उनकी आँखे फिसलती हुई मेरे लौड़े पे आ गयी। मै उसकी वासना को और भड़का देना चाहता था..मैंने अपने अँगूठे से प्री-कम को पूरे सुपाड़े पे फैला दिया और कमर को आगे धकेलते हुए लौड़ा को गोल-गोल नचाने लगा और फिर उसे हथेली में कैद कर के पहले से कहीं ज्यादा तेज मुठियाने लगा। मुझे चाची के चेहरे पे बेचैनी बढ़ते हुए देखा।
दोबारा मैंने चान्स लिया..
"प्लीज़ चाची साड़ी ऊपर उठाओ ना"
इस बार चाची ने अपनी आँखे लौड़े पर से नहीं हटायी पर उनका हाथ उनके जांघो पे आके साड़ी को इकठ्ठा करना सुरु कर चुका था। वासना हवा में घुल चूका था। मेरी साँसे तेज हो चुकी थी और चाची का भी वही हाल था। मैंने अपनी हाथो को स्पीड कम कर दी अब मैं जल्दी झड़ना नहीं चाहता था। 
साड़ी घुटनो तक पोहोंच चुकी थी। उफ़्फ़ क्या पैर थे। बालों एक भी निसान नहीं था..पूरी तरह चिकनी..मलाई की तरह उजली। गुदाज पिंडलियां और फिर साड़ी थोड़ी और ऊपर सड़की और यहाँ से गुदाज..केले के तने जैसे चिकने..मक्खन की तरह मुलायम और बेइंतिहा मादक जांघो का सफर सुरु हो रहा था। चाची की साँसे बोहोत तेज हो चुकी थी..सीने पे उनकी चुँचिया ऊपर नीचे हो रही थी..वासना पूरी तरह हावी हो गया था उसपे। उफ़्फ़.. मैंने अपने लण्ड को मुट्ठी में जोड़ से दबा दिया..चाची की साड़ी अब पूरे जांघो को बेपर्दा कर चुकी थी। क्या माल थी वो..एक दम दूध के तरह उजले..चीकने जाँघ। गुदाज..माँस से भड़े हुए थे। मै उनपे दांत गड़ाना चाहता था..चांटा मार के उनको लाल करना चाहता था। चाची रुक गयी थी। पर मेरी वासना अब रुकने का नाम भी नहीं सुन सकता था। मैं और देखना चाहता था..चाची की चुत की दर्शन चाहता था।
"चाची थोड़ा और ऊपर करो ना..चुत तक"
मै वासना में बोलता चला गया। 
चाची के रसीले होंठो से एक छोटी सी "आह" निकली। शायद गंदे और कामुक शब्द पसंद थे उसको।
और फिर उसके हाथ साड़ी समेत उसके कमर तक पोहोंच चुके थे। 
उफ़्फ़..अगर मैंने अपने हाथों को लण्ड से हटाया ना होता तो मैं झड़ चूका होता। अत्यधिक मादक दृश्य था वो। एक नयी शादी-शुदा जवान..चुदासी चाची अपने दोनों हाथों से साड़ी ऊपर उठायी हुई..लाल लेस वाली कच्छी पहने हुए अपने भतीजे को मुठ मारते हुए देख रही थी। गोरी जाँघे..लाल कच्छी वो भी लेस वाली..उसमे कसे हुए..उभड़े.. पाँव रोटी की तरह फुले हुए चाची की चुत कहर ढा रही थी। और तभी चाची ने साड़ी पकडे हुए ही अपनी दो अंगुलियां नीचे की और कच्छी के ऊपर से ही अपनी चुत को दबा दिया..उसके मुँह से एक मादक सिसकी निकली। ये पहली हरकत थी जो चाची ने बिना मेरे कहे की थी..वो भी वासना में जल रही थी। मेरा लौड़ा पूरा फूल चूका था..झड़ने की कगार पे था मैं। उधर चाची अपने बुर को दो अंगुलियों से रगड़ रही थी। और तभी मेरे मुँह से निकल गया..
"आह चाची बुर दिखाओ..कच्छी साइड करो..उफ़्फ़..मुझे बुर देखना है प्लीज़"
चाची ने एक पल भी देर नहीं किया..अपने दाहिने तरफ वाले साड़ी के छोर को पेटिकोट में फंसाया और अपने हाथों से पहले उसने कच्छी के ऊपर से ही पूरे चुत को सहलाया..रगड़ा और फिर कच्छी को एक तरफ कर के वो पीछे की ओर थोड़ा झुकी और अपने कमर को आगे कर दिया। उफ़्फ़.. क्या चुदासी औरत थी वो..उसका चुत दिखाने का पोज़ बोहोत ही सेक्सी था..जैसे वो चुत दिखाने के लिए बेचैन हो रही हो। छोटे-छोटे काली झांटो के बीच उसकी फूली हुई चुत थी। चुत के दोनों फांको के बीच एक लम्बी दरार थी जो एक-दूसरे से चिपकी हुई थी..इसका मतलब इस चुत ने ज्यादा लौड़ा नहीं देखा है..चाचा जी ऐसे आइटम को इग्नोर कैसे कर पाते होंगे। मुझे चाची की काली झांटे चमकती हुई दिख रही थी..ओह.. काफी कामरस छोर रही थी वो। चाची ने एक ऊँगली से दरार को फैलाया..हाय..अन्दर का दृश्य कतई हाहाकारी था..लालिमा लिए हुए उसके बुर का छेद..मेरे लौड़े को पुकार रहा था..पूरी तरह गीली मेरी चुदासी चाची की छिनार बुर लौड़ा माँग रही थी..चाची का चेहरा लाल हो चूका था..उसके नथुने फूल-पिचके रहे थे..निचले वाले होंठ उसके दांतो के तले रौंदे जा रहे थे और आँखे बंद हो चुकी थी उसकी..लगातार मुँह से हल्की..
"आह.. उफ़्फ़.. सस्स..सस्स.." निकल रही थी।
बुर फैलाये हुए ही उसकी बीच वाली उँगली दोनों फांको के बीच घुस चुकी थी और उसने अपने भगनासा को रगड़ना सुरु कर दिया था। मेरा लौड़ा अब प्रचण्ड बेग पे था..घोड़ा अपना लगाम तोड़ चूका था..और मैं अब झड़ने वाला था और बोहोत ही प्रचण्ड तरीके से..शायद जिन्दगी में पहली बार ऐसे..इतनी प्रचण्ड वासना से।
चाची की बुर रगड़ाई को देखते हुए..मेरे मुँह से ना जाने कैसे निकल गया..शायद इतनी प्रचण्ड वासना से..
"कमाल की हो चाची तुम..आआह..एक दम रण्डी हो तुम..कसी हुई चुत वाली रण्डी"
चाची के मुँह से एक जोरदार "आह" निकला और उसकी अंगुलियां काफी तेजी से बुर को रगड़ने लगी..और उसके पैर हलके से काँपने लगे..उफ़्फ़..इस छिनाल को गालियाँ भी पसँद है। 
मैं अब झड़ने वाला था बस कुछ ही पलो में..मेरी हाथ की स्पीड बढ़ चुकी थी..चाची की पसँद जान के मैंने दोबारा कहा..
"और रगड़ो जोर से रगड़ो अपनी बुर को छिनार.."
चाची की आँखे खुल गयी थी और वो मेरे लौड़े को देख रही थी और अपनी बुर को प्रचण्ड वेग से रगड़ रही थी..
"मादरचोद..रण्डी..मेरा लौड़ा का पानी चाटेगी छिनार..रण्डी चाची..ले मुँह में ले मादरचोद.."
मैंने पहली पिचकारी मार दी। चाची के बाएं हाथ से भी साड़ी छुट चुकी थी..और उसका चुत ढक चूका था। दाहिना हाथ अब और प्रचण्ड गति से बुर को रगड़ रहा था और तभी उसने बाएँ हाथ में पकडे मेरे रात के वीर्य से सने रुमाल को अपने मुँह के पास लाके जीभ से चाटना सुरु कर दिया..उसकी कमर बुरी तरह से कांप रही थी..उसके बुर से चिपकी अंगुलियां पे उसकी कमर आगे-पीछे हो रही थी..और वो मेरी वीर्य उगलते लौड़े को देखते हुए..सूखे हुए वीर्य से सने रुमाल को चाट रही थी। 
और फिर तभी..
"आह..सस्स..सस्स..मै गयी..उफ़्फ़..माँ..हाय.."
उसके कमर ने चार-पांच दफा जोर का झटका मारा और वो शान्त पड़ गयी। अभी भी रुमाल पे उसके जीभ चल रहे थे..और फिर धीरे-धीरे..बिना साड़ी के अंदर से अपनी अंगुलियां निकाले वो नीचे बैठती चली गयी। 
मौहोल शांत पड़ गया था..मै और चाची भी शांत पड़ गए थे। कुछ 2-3 मिनट बाद चाची ने अपना चेहरा ऊपर उठाया और मेरी तरफ देखा..हमारी नजरे मिली बस कुछ पलों के लिए और मैंने उसके आँखों में कुछ नहीं देखा..उसका चेहरा भी सपाट था..बिना किसी भाव के..और फिर वो उठी..अपने साड़ी को ठीक किया और हाथ में पकडे रुमाल को मेरी तरफ उछाल दिया जो सीधा मेरे ठन्डे पड़े लिंग पे आके गिरा..फिर बिना कुछ बोले वो पलटी और अपनी गाण्ड हिलाते हुए कमरे से बाहर निकल गयी। मैंने रुमाल से लौड़े को साफ किया वीर्य पोछा। चाची बोहोत ही आसान माल थी..एक दिन में औरत अपनी बुर दिखा दे तो बिस्तर तक लाना बोहोत आसान है..शायद भड़ी जवानी का असर था..
"कम अनुभवी औरते बिस्तर पे जल्दी आती है अगर वो कामुक हो तो।"
बुआ अधेर उम्र की खेली खायी औरत थी और तभी मुझे बुआ का ध्यान आया..
मै उसे कैसे भूल गया..भले ही चाची जवान थी..कसी हुई थी लेकिन मेरी पहली वासना मेरी बुआ थी..ये ठीक पहले प्यार जैसा था। मुझे खुद पे गुस्सा आया..मुझे बुआ को पाना था..उसे चोदना था..अब मुझे सिर्फ बुआ पे ध्यान लगाना था..समय कम था..शादी ख़त्म हो चुकी थी और बुआ अब जल्दी ही जाने वाली थी..और डर को मैं बोहोत पीछे छोड़ आया था..मुझे उसके जाने से पहले पूरी कोशिश करनी थी..
अपनी वासना पूर्ति की कोशिश।
मैं कमरे से बाहर निकला और अगले ही कमरे में मुझे चाची फिर से दिखी बिलकुल अकेले..मै दरवाजे पे पोहोंचा और रुमाल उसकी ओर उछाल दिया..उसने हाथ से रुमाल पकड़ा और फिर छोर दिया तब तक उसके हाथ मेरे वीर्य से सन चुके थे..मैंने इशारे से उसे चाटने को कहा और बिना देखे मुड़ के बुआ की तलाश में निकल पड़ा..मै अब डरना बिलकुल भूल चुका था..
"वासना का असर था"
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