"ऊव्व!..पागल मत बानिए..कही आंटी ने बाहर से देख लिया तो.",कामिनी कसमसाई.
"इस शीशे से बाहर से अंदर नही दिखता.",चंद्रा साहब ने अपनी पकड़ मज़बूत कर दी & उसकी गर्दन चूमने लगे.कामिनी भी अब मस्त होने लगी थी मगर उसकी नज़र बाहर खड़ी मिसेज़.चंद्रा पे ही थी.चंद्रा साहब ने अपना दाया हाथ उसके पेट से हटा के उसके चेहरे को पकड़ अपनी ओर घूमके उसके होंठो को चूम लिया,"घबराओ मत..बस इस लम्हे का लुत्फ़ उठाओ."
कामिनी ने खुद को उनके हवाले कर दिया & उनकी जीभ से अपनी जीभ लड़ा दी.दोनो जानते थे की वक़्त कम था मगर फिर भी दोनो इस मौके का भरपूर फयडा उठना चाहते थे.कामिनी का आँचल उसके सीने से ढालाक गया था & उसका बड़ा सा क्लीवेज उसके धड़कते दिल की बेचैनी की गवाही उपर-नीचे होके दे रहा था.उसे चूमते हुए चंद्रा साहब उसकी चूचियो को ब्लाउस के उपर से ही दबा रहे थे.कामिनी भी थोड़ा पीछे हो अपनी भारी-2 गंद से उनके लंड को मसल रही थी.उसके हाथ उनके चेहरे & बालो मे घूम रहे थे.
चंद्रा साहब ने उसके होंठो को आज़ाद किया & उसे घुमा कर उसकी पीठ पे हाथ फेरते हुए चूमने लगे.कामिनी ने सोफे के पीछे खिड़की की सिल पे अपने हाथ रख के उनपे अपना चेहरा टीका दिया & बाहर अपने गुरु की बीवी को देखते हुए उनके पति की कामुक हर्कतो का मज़ा उठाने लगी.चंद्रा साहब उसकी पीठ चूमते हुए नीचे आ गये थे & अब उसकी कमर की बगलो को दबाते हुए वाहा पे चूम रहे थे.थोड़ी देर चूमने के बाद उन्होने उसकी टाँगो को पकड़ कर उपर सोफे पे कर दिया.