सुरेन जी ने भी उसकी पीठ को अपनी दाई बाँह मे घेर लिया & उसके सीने से नीचे उतरने लगे.उनकी मंज़िल थी उसकी गुलाबी चूत जोकि बेअसबरी से उनका इंतेज़ार कर रही थी.जब देविका की टाँगे फैला के उसकी गंद के नीचे हाथ लगा उसे हवा मे उठा उन्होने बिजली की तेज़ी से अपनी जीभ उसकी चूत मे चलाई तो कमरा देविका की गरम,बेसब्र आहो से गूँज उठा.
थोड़ी ही देर मे देविका कमर उचकती हुई झाड़ गयी,ठीक उसी वक़्त सुरेन जी ने उसके दोनो तरफ बिस्तर पे अपने हाथ जमाए & अपना लंड उसकी चूत मे उतार दिया.देविका उनकी कमर थाम उनके धक्के झेलने लगी.अपने हाथो पे अपने बदन को टिकाए सुरेन जी अपनी बीवी को चोद रहे थे,"..ऊओह....इधर आओ ना...",देविका ने उनके गले मे बाहे डाल उन्हे नीचे खींचा तो वो अपनी बीवी के उपर लेट गये.
उनकी बालो भरी छाती ने उसकी चूचियो को पीस दिया & वो उसे चूमते हुए धक्के लगाने लगे.देविका ने उन्हे बाहो मे भर लिया & नीचे से अपनी कमर उचकाने लगी.देविका की चूत मे वैसा ढीलापन नही आया था जो आमतौर पे उसकी उम्र की औरत मे आ जाना चाहिए थे & सुरेन जी के लंड को पूरा मज़ा मिल रहा था.
अब वो भी उसके साथ आहे भर रहे थे.बरसो से दोनो साथ-2 ये खेल खेलते आ रहे थे & तजुर्बे से दोनो समझ गये थे कि अब दोनो की मंज़िल करीब है.देविका ने अपनी टाँगे उनकी कमर पे चढ़ा दी & उन की पीठ मे अपने नाख़ून गाड़ा दिए,उसे पता था की ऐसा करने से सुरेन जी फ़ौरन मस्ती की कगार पे पहुँच जाएँगे.उसी वक़्त सुरेन जी ने भी अपनी बीवी की गंद के नीचे हाथ लगाके उसे भींचते हुए उसकी फांको को बाहर की ओर खींचने लगे,देविका उनकी इस हरकत से हमेशा पागल हो जाती थी.
दोनो को अपने-2 हमसफर की कारस्तानियो के आगे घुटने टेकने पड़े & नतीजा ये हुआ की आहे भरते हुए दोनो 1 दूसरे से चिपते,1 दूसरे की बाहो मे क़ैद झाड़ गये.झाड़ते ही सुरेन जी देविका के उपर से उतर के बिस्तर पे लेट गये,देविका भी अपनी दाई करवट पे होते हुए उनकी बाई बाँह के घेरे मे उनके पहलू मे लेट गयी & उनके सीने के बालो मे उंगलिया फिराने लगी.काफ़ी देर तक चुप्पी च्छाई रही फिर देविका ने ही खामोशी तोड़ी,"क्या बात है?आज इतने चुप-2 क्यू हैं?",वो उनके पहलू मे थोड़ा उचक के उनके चेहरे को देखते हुए उसे अपने मुलायम हाथो से सहलाने लगी.
"नही कोई बात नही है.",सुरेन जी ने उसके चेहरे सहलाते हाथ को सहलाया मगर नज़र दूसरी तरफ कर ली.
"कोई बात तो है?",देविका ने उनके चेहरे को अपनी तरफ घुमा के उनकी आँखो मे झाँका.
"शाम लाल जी कितने खुसकिस्मत हैं,देविका.उनका बेटा उनकी ज़िम्मेदारी संभाल रहा है..मैं तो.."
"फिर वही बात..डॉक्टर ने कहा है ना की आपको ज़्यादा नही सोचना है.सुरेन,प्रसून की ये हालत क्या मेरी & आपकी बनाई हुई है?..नही ना?....पता नही क्यू भगवान ने हमारे बच्चे के साथ ही ऐसा किया..मगर उसके चलते हम हरदम मायूस रहे ये भी तो सही नही."
"तुम ठीक कहती हो लेकिन अब मैं थकने लगा हू..बूढ़ा हो गया हू.."
"अच्छा जी....थोड़ी देर पहले क्या कोई बूढ़ा मुझे पागल कर रहा था..",देविका की शरारत भरी बात सुनके सुरेन जी के होंठो पे भी मुस्कान आ गयी,"..पूरा बदन टूट रहा है मेरा सिर्फ़ आपकी वजह से!",उसने उनके निपल पे चूटी काट ली.
"मैं संजीदा हू..-"
"मैं जानती हू..",देविका ने उनके होंठो पे अपनी उंगलिया रख उन्हे चुप कराया,"..शाम लाल जी के जाने की वजह से आप परेशान हैं..इतने दीनो से वो आपके साथ थे...मगर आपको घबराने की ज़रूरत नही है..जब तक नया मॅनेजर नही मिलता मैं आपकी मदद करूँगी.आप सारी चिंता अपने मन से भगाइए & बस खुश रहा कीजिए."
"तुम?"
"हां,क्यू?मेरी काबिलियत पे शक़ है आपको?"
"नही-2,देविका!..मगर घर & कारोबार..दोनो.."
"आप तो ऐसे कह रहे हैं जैसे की दफ़्तर मीलो डोर है फिर आपने हमेशा कारोबार की भी सारी बातें मुझ से बांटी हैं..सुरेन,आपकी पत्नी हू..आपका बोझ बाँटना तो मेरा फ़र्ज़ है..चलिए अब आँखे बंद कीजिए & सोइए..कल से आपका बोझ मैं हल्का करूँगी.",उसने अपने हाथो से उनकी पलके मूंदी & खुद भी उनके सीने पे सर रख के आँखे बंद कर ली.
सुरेन जी का ऑफीस उनके बंगल के अहाते मे ही बना हुआ था & देविका काफ़ी समझदार भी थी,उन्हे अपनी बीवी की बातो से बड़ा सहारा मिला था.उनके दिल मे उसके लिए काफ़ी प्यार उमड़ आया & बाहो का घेरा उसके गिर्द कसते हुए नींद के आगोश मे चले गये.देविका ने पति की बाहो की मज़बूती मे उनके दिल के एहसास को महसूस कर लिया.बहुत ज़रूरी था की वो इस वक़्त उनके साथ रहे,इतने सालो की कड़ी मेहनत के बाद कामयाबी का ये मक़ाम हासिल हुआ था की दुनिया सहाय नाम का लोहा मानती थी & उसने भी तो बड़े जतन से ये सब हासिल किया था..ऐसे कैसे इस सब पे वो आँच आने देती.