"वीरेन..",सुरेन सहाय,देविका & वीरेन खाने की मेज़ पे बैठे थे.प्रसून पहले ही खा चुका था
"हाँ,भाय्या.",वीरेन ने चम्चे से चावल का 1 नीवाला अपने मुँह मे डाला.
"..मैने & देविका ने प्रसून के बारे मे कुच्छ सोचा है."
"क्या?",वीरेन ने 1 नज़र अपनी भाभी पे डाली तो देविका सर झुका के खाने लगी.
"अगर हम प्रसून की शादी करा दें तो कैसा रहेगा?"
"क्या?!",वीरेन का चमचा मुँह की ओर ले जा रहा हाथ बीच मे ही रुक गया,"..मगर भाय्या ये कैसे संभव है."
"तुम ही बताओ भाई हमारे बाद भी उसकी देख-भाल के लिए को तो चाहिए ना!"
"आप ट्रस्ट तो बना ही रहे हैं."
"लेकिन क्या ट्रस्ट उसे इंसान का प्यार दे सकता है?",ये देविका की आवाज़ थी.
"इस बात की क्या गॅरेंटी है की उसकी पत्नी उसे सच्चा प्यार देगी & उसकी दौलत के लालच मे उस से शादी नही करेगी?",वीरेन ने देविका को देखा.
"हम ट्रस्ट की बात & उस ट्रस्ट को चलाने के तरीके के बारे मे सब उस लड़की & उसके परिवार को बता देंगे.ये सॉफ कर दिया जाएगा की प्रसून की पत्नी को 1 खास रकम हर महने दी जाएगी मगर ट्रस्ट के काम मे उसका कोई दखल नही होगा & अगर खुदा ना ख़ास्ते प्रसून की मौत हो जाती है तो सभी कुछ ट्रस्ट के पास रहेगा जोकि उसे समाज सेवा के लिए दान कर देगा.",देविका ने अपने देवर को जवाब दिया
"लेकिन.."
"लेकिन क्या भाई?"
"भाय्या,मान लो कोई लड़की आपको मिल भी जाती है जोकि ज़रूरतमंद है.प्रसून से शादी करके उसकी परेशानिया दूर हो जाएँगी मगर क्या 1 लड़क को केवल पैसे की ज़रूरत होती है.भाय्या,इंसान की पैसे & खाने-पीने के अलावा भी 1 ज़रूरत होती है-जिस्म की.अगर कभी उस लड़की ने इसके लिए कोई ऐसा-वैसा कदम उठा लिया तो?"
"वो सब मैं संभाल लूँगी.",देविका ने बोला तो वीरेन चुप हो गया.
"फिर तो कोई परेशानी की बात ही नही है.",उसने चमचा उठाया & खाना खाने लगा.देविका ने उसकी बात मे छिपा व्यनग्य समझ लिया था.उसे गुस्सा तो बहुत आया मगर वो खामोशी से खाना खाती रही.
"आआहह...आहह....",रजनी इंदर के बिस्तर पे पूरी नंगी पड़ी हुई थी & वो उसकी कमर के पास घुटनो पे बैठा उसकी बाई टांग हवा मे उठा के उसकी अन्द्रुनि जाँघ को चूमे जा रहा था.रजनी की झांतो भरी गीली चूत उसके चेरे से बस कुच्छ ही दूरी पे थी मगर वो उसने उसे अभी तक च्छुआ भी नही था.रजनी की 32 साइज़ की छातिया जोश मे थोड़ी और बड़ी हो गयी थी & उनके काले निपल्स किशमिश के दानो की तरह दिख रहे थे.
इंदर उसकी दाई तरफ उसकी ओर अपने पैर कर लेट गया & उसकी जंघे फैला के उसकी झांतो भरी चूत को चूम लिया,"..ऊहह...",रजनी छटपटा के उस से अलग होते हुए जंघे बंद करने की कोशिश करने लगी तो इंदर ने मज़बूती से उसकी जाँघो को थाम के और फैला दिया फिर 1 हाथ से उसकी झांतो को अलग किया & उसकी चूत की दरार को चूम लिया,"..आअनह..!"
इंदर ने अपनी टाँगे उसके बदन के दोनो ओर रखी & अंडरवेर मे क़ैद अपने लंड को उसकी चूचियो पे दबाते हुए उसकी चूत चाटने मे जुट गया.रजनी का तो जोश से बुरा हाल था,वो बेचैनी से अपनी कमर हिलाते हुए इंदर की जाँघो को नोचती हुई झाडे जा रही थी.इंदर काफ़ी देर तक उसकी चूत चाटता रहा,रजनी की चूचियो पे दबा उसका लंड अब रजनी के दिल मे हुलचूल मचा रहा था.वो जानती थी की उसका कुँवारापन अब बस कुच्छ ही पॅलो का मेहमान है.