RE: Kamukta Story बदला
कामिनी कार से उतर के वीरेन के बंगल मे दाखिल होने लगी तो वीरेन ने पीछे
से उसके गले बदन को देखा.सफेद सारी बदन से ऐसे चिपकी थी मानो वही उसकी
स्किन हो & उसके नशील जिस्म का 1-1 उभार नुमाया हो रहा था.वीरेन की
निगाहे उसकी नंगी कमर से उसकी चौड़ी गंद पे फिसली & उसी वक़्त कामिनी
पलटी & उसकी आँखो के सामने उसके लगभग नुमाया सीने के उभार चमक उठे,"आइए
अंदर चलते हैं."
"आए बैठिए,कामिनी जी..",वीरेन ने अपना 1 बातरोब कामिनी को दिया था.उसके
बाथरूम मे अपने कपड़े गीले उतार अपना बदन सूखा कामिनी ने उसे ही पहन लिया
था,"..ये लीजिए चाइ." (ये कहानी आप राज शर्मा के ब्लॉग कामुक-कहानियाँ
में पढ़ रहे है )
"थॅंक्स.",कामिनी ने कप लिया & सोफे पे बैठ गयी.वीरेन का रोब उसे बहुत
बड़ा हो रहा था & उसकी आएडियो से कुच्छ उपर तक आ रहा था.
"आप यहा अकेले ही रहते है?"
"हां."
"कोई नौकर वग़ैरह भी नही है?"
"हैं,दोनो सवेरे आते हैं & सारा काम करके दोपहर तक चले जाते हैं.",वीरेन
ने भी कपड़े बदल लिए थे & वो भी उसके साथ चाइ की चुस्किया ले रहा था.
"वैसे भी मुझे अकेला रहना ही ठीक लगता है.जैसे मर्ज़ी रहो जो मर्ज़ी
करो.",कामिनी ने उसकी तरफ मुस्कुराते हुए सवालिया नज़रो से देखा.
"आप कुछ ग़लत मत समझिए.अरे मैं ठहरा पेंटर.कभी-2 1-2 दिन तक बस पैंटिंग
ही बनाता रहता हू.कभी कयि दीनो के लिए गायब हो जाता हू.अब ऐसे मे जो साथ
रहेगा उसे परेशानी तो होगी ही & उस से ज़्यादा मुझे.काम करते वक़्त मुझे
पसंद नही की कोई मुझे डिस्टर्ब करे.इस वजह से लोग कभी-2 मुझे बदतमीज़ &
खाड़ुस भी समझ लेते हैं."
"उम्मीद करती हू अभी मेर वजह से आप डिस्टर्ब नही हो रहे हैं?"
"कैसी बात करती हैं कामिनी जी आप!ये तो मेरी ख़ुशनसीबी है की आज आप मेरे
साथ बैठी हैं & मुझ से बाते कर रही है.",कामिनी मुस्कुराइ & अपना खाली कप
मेज़ पे रखा.
"ना.मैने ग़लत कह दिया..अभी मैं खुशनशीब नही हू..खुशनसीब तो तब होता जब
आप मेरी पैंटिंग की सिट्टिंग के लिए तैय्यार हो जाती.",जवाब मे कामिनी ने
कुच्छ ना कहा बस सर झुका लिया.कमरे मे सन्नाटा पसर गया.उस खामोशी से
कामिनी को थोड़ी बेचैनी हुई तो उसने उसे तोड़ने की गरज से वीरेन से सवाल
किया,"वीरेन जी,आप क्यू बनाना चाहते हैं मेरी पैंटिंग?"(ये कहानी आप राज
शर्मा के ब्लॉग कामुक-कहानियाँ में पढ़ रहे है )
वीरेन ने अपनी वही दिलकश मुस्कान फेंकी.कामिनी को उस पल वो बहुत ही हसीन
लगा.वो वही सोफे से टेक लगाके पाँव फेला के बैठ गया.
"कामिनी जी,पता नही कभी आपने सुना है या ना पर हम पेंटर्स फेज़स मे काम
करते हैं.",कामिनी ने अपनी बाई कोहनी अपने घुटनो टीका दी थी & उसी हथेली
पे अपनी ठुड्डी & गौर से उसे सुन रह थी,"..मैं आपको अपनी ही मिसाल देता
हू.जब मे कॉलेज मे था..यही पंचमहल मे..उस वक़्त मुझे इंसानी चेहरे बड़े
दिलचस्प लगते थे & मैं बस पोरट्रेट्स बनाता था.घरवालो के,दोस्तो के..या
फिर राह चलते कभी कोई दिल चस्प इंसान दिख गया उसका भी."
"..फिर मैं पॅरिस चला गया & वाहा मेरा 1 दूसरा फेज़ शुरू हुआ,मुझे शहर &
उनका माहौल,शहर मे बसने वालो की खास आदतो ने बहुत लुभाया & मैं उनकी
पेनट्ग्स बनाने लगा."
"उरबनिया..",कामिनी के मुँह से निकला,यह नाम दिया था उस दौर को किसी आर्ट
क्रिटिक ने.कामिनी ने किसी मॅगज़ीन मे पढ़ा था उस बारे मे & तस्वीरे भी
देखी थी,"..उसमे आपकी 1 बहुत मशहूर तस्वीर थी,मदर & चाइल्ड अट दा आइफल
टवर.",तस्वीर मे 1 बच्चा अपन मा के साथ खड़ा सर उठा के आइफल टवर को देख
रहा है & उन्दोनो के बगल मे टवर की परच्छाई पड़ रही है.बच्चे के चेहरे पे
बिल्कुल निश्च्छाल खुश है-जैसी की केवल बच्चे महसूस करते हैं मगर माँ के
चेहरे के भाव बड़े दिलचस्प थे.वो बच्चे को खुश देख मुस्कुरा रही है मगर
उस खुशी मे कही दर्द भी दिख रहा थ.कैमरे से खींची फोटो मे ये दिखना तो
बड़ा आसान है मगर रंग & कूची के साथ ऐसी कलाकारी,वो तो बस कमाल था!
"तो आप वकालत के साथ-2 आर्ट का भी शौक रखती हैं?"
"जी,लेकिन मेरा ज्ञान बस सतही है."
"वही सबसे अच्छा होता है..हां तो मैने कहा कि ये मेरा दूसरा & सबसे लंबा
फेज़ था,फिर मैं ऊब गया & 1 दिन दिल ने कहा की वापस घर चलो तो यहा चला
आया.कामिनी जी,यहा मैं आया था इस बार केवल हिन्दुस्तानी औरत की तलाश
मे.मैं आज की हिन्दुस्तानी औरत की तस्वीरे बनाना चाहता था,(ये कहानी आप
राज शर्मा के ब्लॉग कामुक-कहानियाँ में पढ़ रहे है )आज की लड़की जोकि
मर्दो से कंधा मिला के नही बल्कि उनसे आगे चल रही है मगर फिर भी उसके
पहनावे मे,उसके रूप मे उसकी शख्सियत मे अभी भी अपनी मिट्टी की खुश्बू आती
है..",कामिनी बड़े गौर से उसे सुन रही थी,ये पहली बार था जब वो 1 कलाकार
वो भी वीरेन जैसे नामचीन पेंटर की सोच के बारे मे जान रही थी.
"..मगर मैं यहा आया तो मुझे बड़ी निराशा हुई,हमारी औरतो ने तरक्कत तो
बहुत की है मगर जहा तक उनकी शख्सियत का सवाल है वो अपनी विदेशी सथिनो की
ड्यूप्लिकेट होती जा रही हैं.."उसने कामिनी की आँखो मे देखा,"..जब मैने
पहली बार आपको देखा तो मुझे लगा की मेरी तलाश ख़त्म हो गयी.आप ही थी
जिन्हे मैं ढूंड रहा था-हौसले & हिम्मत से भरी,खूबसूरत मगर खस्लिस
हिन्दुस्तानी.",वो उठ खड़ा हुआ & दोनो खाली कप्स मेज़ से उठाए,"..मगर
मेरी किस्मत इतनी अच्छी नही थी & आपने इनकार कर दिया.",वो मुस्कुराया &
कप्स रखने किचन मे चला गया.
कामिनी के दिल मे उठा-पुथल मच गयी....किस शिद्दत के साथ इसने अपनी बात
कही थी & उन बातो मे कही भी कोई झूठ नही था..यानी की वो केवल 1 पॅनिटर की
हैसियत से ही उसके पास आया था..उसका शक़ की वो अपने भाई की वकील के करीब
रह ये जानना चाहता है की कही वो उस से छुपा के तो कुच्छ नही कर
रहा-बिल्कुल बेबुनियाद था.उसने 1 मासूम इंसान के उतने ही मासूम पेशकश को
नाहक ही ठुकरा दिया था.उसे बहुत बुरा लग रहा था.वो उठी & किचन मे चली
गयी,(ये कहानी आप राज शर्मा के ब्लॉग कामुक-कहानियाँ में पढ़ रहे है
)वीरेन फ्रिड्ज से खाना निकाल के गरम कर रहा था.आज तक वो उसे 1 बदतमीज़ &
बद्दिमाग शख्स समझती आई थी जोकि अपने मतलब के लिए उसके करीब आना चाहता
था..कितनी ग़लत थी वो.हक़ीक़त ये थी की वीरेन 1 भला & मददगार इंसान था
जिसे सिर्फ़ 1 ही बात मे दिलचस्पी थी-पैंटिंग.
"वीरेन जी..",आवाज़ सुन वीरेन घुमा,"..आप जाइए & ड्रॉयिंग रूम मे
बैठिए.खाना मैं गरम करती हू.",उसने उसके हाथ से बर्तन लिया & माइक्रोवेव
मे रखा.वीरेन जाने लगा,"और हां..",किचन से निकलता वीरेन पलटा,"..मैं आपकी
पैंटिंग के लिए सिटिंग्स करने को तैय्यार हू."
वीरेन का मुँह हैरत से खुल गया & उसके चेहरे पे बेइंतहा खुशी का भाव आ
गया.कामिनी मुस्कुराइ & घूम के खाने का समान बर्तनो मे निकालने लगी.वीरेन
कुच्छ देर खड़ा उसे देखता रहा & फिर खुशी से मुस्कुराता ड्रॉयिंग रूम मे
चला गया.
"ट्ररर्नन्ग्ग....!",मूसलाधार बारिश के शोर के कारण & बाथरूम मे होने की
वजह से रजनी ने अपने क्वॉर्टर की डोरबेल ज़रा देर से सुनी.वो कुच्छ देर
पहले ही बंग्लॉ से लौटी थी & पूरी तरह से भीग गयी थी.अभी उसने अपना गीला
बदन पोंच्छा ही था कि ना जाने कौन आ गया.
"अब इस वक़्त कौन हो सकता है?....ज़रूर पड़ोस की गीता होगी.",बड़बाडदते
हुए रजनी ने सेफ्टी चैन लगाके दरवाज़ा खोला तो उसे इंदर बाहर खड़ा नज़र
आया.
"तुम!!",उसने फ़ौरन सेफ्टी चैन हटा के दरवाज़ा खोल इंदर को अंदर आने
दिया,"इंदर,तुम इस वक़्त यहा कैसे?"
"तुम्हारी याद ने दीवाना कर दिया तो चला आया.",इंदर ने उसे बाहो मे भर लिया.
"ओह्ह..छ्चोड़ो ना!तुम एस्टेट मे घुसे कैसे?कही किसी को पता चल गया तो
आफ़त आ जाएगी.",रजनी ने उसे परे धकेला.
"अच्छा!",इंदर ने बाहे ढीली की & उसकी बाहे पकड़ उसके चेहरे को
देखा,"..किसकी मज़ाल है जो सहाय एस्टेट के मॅनेजर से कोई सवाल करे?"
"मतलब की..",रजनी का मुँह हैरत से खुल गया.
"हां,मेरी जान.तुम्हारे सामने यहा का नया मॅनेजर खड़ा है.",उसने उसे फिर
से अपने सीने से लगा लिया & उसके चेहरे को अपने हाथो मे भर लिया,"ये सब
तुम्हारी वजह से मुमकिन हुआ है.",उसने उसके माथे को चूम लिया.
"ओह्ह..इंदर,मैं तुम्हारे लिए कुच्छ भी कर सकती हू.",रजनी ने उसके सीने
पे सर रख दिया,"..आज मैं बहुत खुश हू.",उसकी बाहे अपने प्रेमी की पीठ पे
कस गयी.
"और मैं भी.",इंदर ने अपने बाए हाथ से उसकी ठुड्डी पकड़ उसका चेहरा उपर
कर उसके होंठो को तलब किया तो रजनी ने भी बड़ी गर्मजोशी से उन्हे उसकी
खिदमत मे पेश कर दिया.बिल्कुल सच कहा था इंदर ने,इस लड़की की वजह से आज
उसने अपने बदले की ओर 1 पहला मज़बूत कदम रखा था.ये ना होती तो पता नही
उसे क्या-2 मशक्कत करनी पड़ती.
"उउंम्म..मेरा तो ध्यान ही नही गया,तुम तो बिल्कुल भीग गये हो.",रजनी ने
किस तोड़ी,"..चलो,जाओ बदन पोंच्छ लो तब तक मैं खाना निकालती हू."
"बदन तो पोंच्छूंगा मगर तौलिए से नही & मुझे जो खाना है वो डिश तो तुम
हो,जानेमन!",इंदर ने उसके चेहरे पे किस्सस की झड़ी लगा दी.रजनी के दिल मे
सवाल उठे की वो अपनी कॉटेज से यहा तक आया कैसे..कही किसी को पता ना चल
जाए (ये कहानी आप राज शर्मा के ब्लॉग कामुक-कहानियाँ में पढ़ रहे है
)..मगर उसका इश्क़ उसके सर पे सवार था & उसका जिस्म इंदर के आगोश मे
टूटने को बेचैन.ऐसे मे वो क्या करती!उसने भी बड़ी गर्मजोशी से उसके अस्र
के बालो मे उंगलिया फिराते हुए उसे खुद से चिप्टा लिया.
रजनी ने जल्दी मे नाइटी के नीचे कुच्छ नही पहना था & इंदर के सख़्त हाथ
उसके नाज़ुक अंगो पे बड़ी बेदर्दी से मचल रहे थे.रजनी के जिस्म की आग भी
धीरे-2 भदक्ति जा रही थी,उसने अपने हाथ इंदर की पीठ पे फिरते हुए उसकी
गीली कमीज़ को उसकी पॅंट से बाहर खींचा & फिर हाथ उसके अंदर घुसा गीली
पीठ सहलाने लगी.इंदर भी उसकी नाइटी उपर उठाते हुए उसके गले & क्लीवेज को
चूम रहा था.
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