"आज आप ये लिबास पहेनिए.",उसने उसे काले रंग का 1 लहंगा-चोली थमाया & 1 छ्होटा सा बॉक्स भी.कामिनी ने उसे खोला तो उसमे कुच्छ चाँदी के ज़वरात थे.उसने सभी चीज़े ले वीरेन की ओर सवालिया नज़रो से देखा.
"कामिनी,मैं आपको हर इंसानी जज़्बात को महसूस करते हुए दिखाना चाहता हू..इस तस्वीर मे आप 1 बहुत ही विश्वास से भरी औरत नज़र आ रही हैं जोकि आप हक़ीक़त मे भी हैं.",उसने अपनी बनाई हुई पैंटिंग की ओर इशारा किया,"..अब अगली पैंटिंग मे मैं आपको गम महसूस करते हुए दिखाना चाहता हू-इंतेज़ार का गम.ये लिबास हमारे गाओं की लड़किया अभी भी पहनती हैं.(ये कहानी आप राज शर्मा के ब्लॉग कामुक-कहानियाँ में पढ़ रहे है )ये ज़वरात आपके जिस्म पे सजे ये दिखाएँगे की आपको धन-दौलत की कमी नही है मगर जो चीज़ आपके लिए सबसे ज़्यादा ज़रूरी है,सबसे खास है आपके लिए वोही आपके पास मौजूद नही & आप उसी के इंतेज़ार मे हैं."
वीरेन अपनी कला के प्रति पूरी तरह से समर्पित था & इस वक़्त कामिनी 1 कलाकार को ही सुन रही थी.वीरेन की बात पूरी होने पे वो मुस्कुराइ & बाथरूम की ओर बढ़ गयी.कुच्छ लम्हो बाद जब वो बाहर आई तो उसे देख वीरेन का मुँह हैरत से खुला रह गया.वो 1 पेंटर था & आम लोगो के मुक़ाबले उसकी इमॅजिनेशन कुच्छ ज़्यादा सॉफ होती थी.ये लिबास चुनते वक़्त उसके दिमाग़ ने कामिनी की 1 तस्वीर बना ली थी कि वो कैसी दिखेगी मगर इस वक़्त जो लड़की उसके सामने खड़ी थी वो उस तस्वीर वाली कामिनी से कही ज़्यादा हसीन & दिलकश लग रही थी.
चोली थोड़ी तंग थी & इस वजह से कामिनी की छातिया आपस मे दब गयी थी & चोली के गले से उसका क्लीवेज थोड़ा और उभर आया था.हाथो मे चूड़ियाँ खनक रही थी & चलते हुए पैरो मे पायल.पतली कमर पे वो चाँदी का कमरबन्द झूल रहा था & उसके उपर उसकी गहरी,गोल नाभि चमक रही थी.वीरेन ने उसके माथे पे चमक रही बड़ी सी लाल बिंदी को देखा तो उसका दिल किया की इसी वक़्त उसे आगोश मे भर उसके माथे को चूम ले & अपने जज़्बातो का इज़हार कर दे उस से.
वीरेन की निगाहे लगातार उसे देखे जा रही थी & कामिनी उन नज़रो की तपिश से शर्मा रही थी & बेचैन भी हो रही थी,"क्या देख रहे हैं?",उसकी खनकती आवाज़ ने वीरेन को जगाया.
"हुन्न...हा-हन...क-कुच्छ नही..आइए यहा खड़े होइए..ऐसे.",वीरेन ने उसे कमरे की बड़ी खिड़की के पास खड़ा कर के बाहर देखने को कहा.अब कामिनी की पीठ उसकी तरफ थी.चोली की डोरिया पीठ के आर-पार हो रही थी मगर पीठ कमर तक लगभग पूरी नुमाया ही थी.वीरेन ने उसकी पीठ से लेके कमर तक निहारा.पतली कमर के बाहरी कोने फैलते हुए लहँगे मे गायब हो गये थे....उफफफ्फ़....कितनी चौड़ी गंद थी & कितनी भरी हुई!उसका दिल किया की 1 बार उस दिलकश अंग पे अपने हाथ फिरा ले मगर उसने खुद पे काबू रखा & अपने ईज़ल के पास खड़ा हो गया.
अब कामिनी अपने हाथ खिड़की के बदन शीशे पे रखे हुए बाहर देख रही थी,उसका चेहरा थोड़ा सा दाई तरफ घुमा हुआ था & वीरेन भी उसके पीछे उसी तरफ खड़ा अपनी कूची चला रहा था.कामिनी को ये तो पता चल गया था की उसके रूप ने वीरेन के दिल को पूरी तरह से घायल कर दिया है & इस वक़्त वो कल की तरह उसके चेहरे को देख नही पा रही थी इसलिए उसे ऐसा लग रहा था की पैंटिंग करता वीरेन अपनी आँखो से उसके जवान हुस्न के घूँट पी रहा है.इस ख़याल ने उसके दिल मे खलबली मचा दी थी.
इन्ही ख़यालो मे गुम वो खिड़की से बाहर बंगल के लॉन को देख रही थी कि,"हाअ..!",अपनी कमर पे कुच्छ महसूस कर वो चौंक पड़ी.
"मैं हू.आप वैसे ही खड़े रहिए,प्लीज़.बिल्कुल भी मत हीलिएगा.",वीरेन ने उसकी कमर की बाई ओर बँधी लहँगे की डोरी को ढीला कर दिया.कामिनी को इतनी हैरानी हुई की पूछो मत..इसका इरादा क्या था?क्या वो उसको.."वीरेन..",उसने उसे टोका.
"बस 1 मिनिट.",वीरेन के हाथो की लंबी उंगलिया उस डोरी को खोल लहँगे को थोडा नीचे कर रही थी & फिर कस रही थी.उसके हाथो की कोमल छुअन ने कामिनी के जिस्म की आग को भड़का दिया.वीरेन ने डोरी कस कर कमर को पकड़ के थोड़ा सा हिला के सही पोज़िशन मे किया & वापस ईज़ल के पास चला गया.कामिनी की चूत मे कसक सी उठी & उसका दिल किया की काश वीरेन उसके लहँगे को खोल अपनी लंबी उंगलिया उसकी चूत मे घुसा देता.(दोस्तो ये कहानी आप राजशर्मास्टॉरीजडॉटकॉम पर पढ़ रहे है) इस गुस्ताख ख़याल के आते ही उसकी आँखे बंद हो गयी & गले से बहुत धीमी सी आह निकली.
"क्या हुआ कामिनी?",वीरेन ने चिंतित हो पुचछा.
"क-कुच्छ नही.",कामिनी ने खुद को संभाला & खिड़की से बाहर देख अपने दिमाग़ से वीरेन का ख़याल हटाने लगी.