RE: Kamukta Story बदला
कयि पलो
बाद उसे जब होश आया तो उसने पाया की वो सोफे पे बाई करवट से पड़ी हुई है
& उसके गुरु उसके पीछे उसकी कमर पे अपनी दाई बाँह लपेटे लेटे हुए
हैं.उसने फिर से बातो का टूटे सिलसिले को शुरू किया,"प्रसून का क्या होगा
फिर?",अपने सर को उसने पीछे घुमाया & अपने गुरु के चेहरे पे अपना दाया
हाथ फिराया. "देखो,प्रसून के लिए तो देविका ट्रस्ट बनाएगी ही मगर वो सब
तो देविका की मौत के बाद होगा ना.",उन्होने अपना सर सोफे से उठाया &
कामिनी के चेहरे पे हल्क-2 किस्सस छ्चोड़ने लगे,"..अगर उसके सर पे शिवा
का जादू चढ़ा हुआ है तब तो शिवा जो कहेगा वो करेगी.शिवा को ये दौलत अगर
चाहिए तो वो वसीयत मे कुच्छ ऐसा लिखवाएगा की सब कुच्छ उसी की झोली मे
आए." "ऐसे तो प्रसून की जान को भी ख़तरा है?",चंद्रा साहब का हाथ उसके
पेट पे चल रहा था & वो अपने दाए हाथ से उनके बालो से खेल रही थी.
"हां,बिल्कुल.",उन्होने अपनी उंगली से उसकी नाभि को कुरेदा. "तो फिर शिवा
ने प्रसून की शादी क्यू होने दी?" "ये तो तुमने पते की बात कही!",उनकी
उंगली अभी भी नाभि को कुरेद रही थी,"अगर शिवा ग़लत आदमी है तो वो इस शादी
को किसी भी कीमत पे रोकता.शादी हो गयी इसका मतलब है की देविका ने उसकी
सुनी नही & उसने भी ज़्यादा दबाव नही डाला होगा की कही देविका को उसपे
कोई शक़ ना हो जाए मगर अब घर मे 1 और शख्स है जिसे की उसे रास्ते से
हटाना होगा." "लेकिन वो प्री-नप्षियल अग्रीमेंट भी तो है उसके हिसाब से
प्रसून की मौत के बाद रोमा को बस 1 तय की हुई रकम मिलेगी और कुच्छ नही.तो
शिवा को अगर उसे पैसे देने भी पड़ते हैं तो वो ये मामूली नुकसान सह
लेगा." "हूँ..",चंद्रा साहब के हाथ कामिनी के बदन से खेल रहे थे मगर
दिमाग़ गहरी सोच मे डूबा था. "आपको क्या लगता है की मुझे देविका को आगहा
करना चाहिए या फिर वीरेन को?" "देखो मेरे हिसाब से तो जब तक वसीयत नही
बनती शिवा कुच्छ नही करेगा..-" "..-लेकिन अगर वसीयत मे सब प्रसून के नाम
है तो वो उसे ख़त्म कर अपनी मर्ज़ी की वसीयत बनवा सकता है." "वो क्यू
करेगा ऐसे?" "क्यू नही करेगा?" "प्रसून मंदबुद्धि है.अगर वो मालिक बन
जाता है जयदाद का तो भी बस नाम का ही रहेगा.सारी डोर तो देविका & देविका
की डोर संभाले शिवा के हाथ मे ही रहेगी.क़त्ल कर वो बिना बात का झमेला
क्यू मोल ले?..फिर प्रसून को तो वो कभी भी हटा सकता है क्यूकी प्रसून का
क़त्ल तभी ज़रूरी है जबकि देविका की वसीयत मे देविका की मौत के बाद
सबकुच्छ प्रसून के नाम हो जाता है.",बात कामिनी की समझ मे आई तो वो
चंद्रा साहब के पैने दिमाग़ की दाद दिए बिना नही रह सकी.उसने करवट बदली &
अपने गुरु के सीने से लिपट गयी,"मैं कब सोच पाऊँगी आपकी तरह!",दोनो अभी
भी करवट से ही लेटे थे & 1 दूसरे के जिस्मो को सहलाते हुए हौले-2 चूम रहे
थे. महबूबा के मुँह से तारीफ सुन चंद्रा साहब खुशी से हँसे,"..तुम मुझसे
भी ज़्यादा होशियार हो.ये बात तुम भी समझ जाती मगर शायद आज उपरवाला चाहता
था की हम-तुम ये नशीली रात साथ गुज़ारें.",उनकी बात सुन कामिनी मुस्कुराइ
& 1 बार फिर उनकी बाहो मे खो गयी. इंदर बिस्तर से उतरा,रजनी गहरी नींद
सोई हुई थी & सोती भी क्यू ना!..पिच्छले 3 घंटो तक इंदर ने उसे जम के
चोदा था.चेहरे पे परम संतोष का भाव लिए रजनी थकान से निढाल हो सो गयी
थी.क्वॉर्टर के दरवाज़े पे गिरी अपनी शॉर्ट्स की जेब से उसने चाभी निकली
& रजनी के बाथरूम मे गया.1 कोने मे पड़े नहाने के साबुन को उसने लिया &
उसपे चाभी दबा के उसकी छाप ले ली.काम हो जाने के बाद उसने चाभी बाहरी
कमरे के शेल्फ पे रजनी के क्वॉर्टर की चाभी के साथ रख दी. उसने घड़ी देखी
तो रात के 1.30 बज रहे थे.उसने अपने कपड़े पहने & फिर बिस्तर पे नंगी सोई
रजनी के बगल मे लेट गया.30 मिनिट बाद वो उसे जगाके दरवाज़ा लगाने को
कहेगा & अपने क्वॉर्टर मे चला जाएगा.उसका दिमाग़ तेज़ी से चल रहा था & वो
कल रात के बारे मे सोच रहा था.कल भी उसे रजनी को इसी तरह थकाना था ताकि
जब वो यहा से निकल के बंगल के अंदर जाए तब उसे इस बात का बिल्कुल भी पता
ना चले. "उम्म्म....!",रजनी के मुँह मे इंदर का लंड भरा हुआ था जोकि उसके
नीचे लेटा उसकी चूत चाट रहा था.रजनी उसके उपर थी & उसकी बेशर्म ज़ुबान से
परेशान हो अपनी कमर उसके मुँह पे ऐसे हिला रही थी मानो चूत मे जीभ नही
लंड घुसा हो. "रजनी..",इंदर ने जीभ को चूत से बाहर निकाला & उसके दाने पे
फिराया. "हूँ....!",रजनी ने आह भरी. "तुम 2-3 महीनो के लिए अपने
माता-पिता के पास क्यू नही चली जाती?",इंदर उसकी मोटी गंद को दबाते हुए
उसके दाने को छेड़ रहा था.रजनी ने चौंक के लंड को मुँह से निकाला & अपनी
गर्दन घूमके इंदर की ओर देखा. "हां,तुम अभी ही हो आओ क्यूकी जब हमारी
शादी हो जाएगी फिर तो मैं तुम्हे 1 पल के लिए भी खुद से जुदा नही होने
दूँगा & कभी भी तुम्हे मयके नही जाने दूँगा.",इंदर की जीभ की छेड़-छाड़
से रजनी की चूत बहाल हो गयी थी & उसमे से रस की धार बह रही थी.प्रेमी की
बात सुन उसके जिस्म के साथ-2 दिल मे भी खुशी की लहर दौड़ गयी.ठीक उसी
वक़्त इंदर की ज़ुबान ने उसके दाने को कुच्छ ऐसे छेड़ा की वो झाड़ गयी.
आहे भरती हुई वो झाड़ रही थी मगर वो फ़ौरन घूमी & इंदर के सीने पे अपनी
छातिया दबाते हुए उसके चेहरे को हाथो मे थाम लिया,"ओह!इंदर.." "हां,मैं
अब और इंतेज़ार नही कर सकता.तुम अपने गाँव जाके अपने माता-पिता के साथ 2
महीने रह लो.उन्हे मेरे बारे मे बता देना & फिर अपने साथ उन्हे यहा ले
आना ताकि उनके आशीर्वाद के साथ हम शादी कर सकें." रजनी की आँखे भर आई.उसे
यकीन तो था की इंदर उस से शादी ज़रूर करेगा मगर जब उसने ये बात कही तो
उसका दिल इस खुशी को झेल नही पाया & आँखो से आँसुओ की धार बह निकली.
"क्या हुआ?मेरी बात अच्छी नही लगी?",इंदर के माथे पे शिकन पड़ गयी.जवाब
मे रजनी ने हंसते हुए उसके चेहरे पे किस्सस की बरसात कर दी.इंदर अभी भी
हैरान था. "ठीक है.मैं मॅ'म से छुट्टी माँग के घर जाती हू.",उसने अपने
प्रेमी को झुक के चूमा. "हां,लेकिन अभी देविका जी को हमारे बारे मे बात
बताना..",इंदर ने उसकी गंद की दरार मे हाथ फिराया तो रजनी उसका इशारा समझ
गयी & अपने घुटने उसके बदन की दोनो तरफ टिकते हुए चूत को लंड के लिए खोल
दिया,"..क्यूकी मैं नही चाहता की सब बातें करें.जब वापस आओगी तब हम दोनो
मिलके उन्हे बताएँगे." इंदर ने उसकी गंद से हाथ नीचे ले जाते हुए उसकी
चूत को हाथो से फैलाया तो रजनी ने दाया हाथ पीछे ले जा लंड को पकड़ उसे
चूत के अंदर का रास्ता दिखाया,"जैसा तुम कहो,मेरी जान.",लंड अंदर जाते ही
वो उसके चेहरे पे झुक गयी & दोनो चूमते हुए चुदाई करने लगे.
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क्रमशः..............
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