RE: Kamukta Story बदला
गतान्क से आगे...
"सरासर बकवास है!..झूठे हैं ये काग़ज़ात..!",शिवा ने वो सारे काग़ज़ हवा
मे उड़ा दिए,"..देविका..ये चाल है उस इंदर की वो कमीना कोई बहुत बड़ा खेल
खेल रहा है..",देविका लगातार उसे देखे जा रही थी.शिवा ने देखा की उन आँखो
मे आज उसके लिए ना प्यार था ना ही उनमे भरोसे की झलक थी.वो समझ गया था की
आज अगर उपरवाला खुद भी उसकी पैरवी करे,देविका को भरोसा नही होगा.
"आपने बुलाया,मॅ'म.",इंदर बंगल के ड्रॉयिंग हॉल मे दाखिल हुआ.
"आइए,इंदर धमीजा जी!",देविका के कुच्छ बोलने से पहले शिवा ताली बजाते हुए
बोला,"..कमाल की चाल चली आपने.अब क्या मैं जान सकता हू कि आपका असली
मक़सद क्या है?",शिवा की बातो से देविका को भी ऐसा लगने लगा था की कही
शिवा ही सच ना हो.आख़िर जो काम उसने आज तक नही किया वो अब क्यू करेगा
लेकिन फिर इंसान की फ़ितरत का क्या भरोसा!
"शिवा भाई,मैने तो बस अपना फ़र्ज़ अदा किया है.ये बात मॅ'म से च्छुपाना
नमकहरामी होती."
"अच्छा.तो ये बताओ की ये काग़ज़ात आपको कैसे मिले?"
"आपने सॅलरी अकूउंतस खुलवाए थे इन दो फ़र्ज़ी नामो के.मैने एस्टेट मॅनेजर
की हैसियत से बॅंक से ये काग़ज़ात माँगे थे."
"अच्छा.तो इनमे ये कहा लिखा है की ये मैने खुलवाए हैं?"
"नाम आपका नही है शिवा भाई पर पॅन नंबर & मोबाइल नंबर्स तो आप ही के हैं."
"तो आपका कहना है की मैं इतना बेवकूफ़ हू की अपने डीटेल्स इस्तेमाल करूँगा?"
"शिवा भाई,आप तो मुझ से ऐसे पुच्छ रहे हैं जैसे की मैं मुजरिम हू जबकि
फरेब आपने किया है!",इंदर की आवाज़ मे 1 ईमानदार इंसान पे तोहमत लगाने से
पैदा हुए गुस्से की झलक थी.
"इंदर बिल्कुल सही कह रहा है,शिवा.",प्रेमिका की बात सुन शिवा का दिल टूट
गया,"..तुम साबित करो की ये कागज झूठे हैं."
"अच्छा.ठीक है.मिस्टर.इंदर इन काग़ज़ो को बनवाने पे मुझे बॅंक से डेबिट
कार्ड्स,चेकबुक वग़ैरह मिली होगी वो तो मेरे पास होनी चाहिए?",इंदर खामोश
रहा.
"तुमने तो ये सब पहले ही सोच लिया होगा & कही च्छूपा रखा होगा वो
सब.",देविका ने बिना शिवा की ओर देखे ये कड़वी बता कही.कल रात भर वो सोई
नही थी & अपने तकिये मे मुँह च्छूपा रोती रही थी.दिल मे 1 उमीद थी कि
शायद शिवा वापस आए तो सब झूठ साबित हो मगर ऐसा नही होता दिखता था.
"तो फ़ायदा क्या होगा मुझे?अगर पैसे चुराए हैं तो उन्हे खर्च भी तो
करूँगा नही तो चोरी किस काम की!",शिवा ने टॅन्ज़ कसा.
"ये मुझे नही पता.",देविका ने गुस्से से कहा.
"अब मैं 1 बात कहता हू.मेरे कमरे की,मेरे बॅंक अकाउंट्स,लॉकर्स & मेरे
भाई की घर-हर जगह की तलाशी लीजिए & अगर कही से कोई भी सबूत मिले तो मुझे
क़ानून के हवाले कर दीजिएगा.",उसकी बात सुन इंदर की खुशी का ठिकाना ना
रहा.कल रात ही उसने सब इंतेज़ाम कर दिया था.शिवा के कमरे की चाभी की नकल
का उसने बखुबी इस्तेमाल किया था.
"ठीक है.कमरे से ही शुरू करते हैं.",देविका ने तल्खी से कहा & 2-3 नौकरो
को आवाज़ दी.
देविका,इंदर & शिवा कमरे मे 1 कोने मे खड़े थे & नौकर कमरे का समान
उलट-पलट रहे थे.लगभग पूरा कमरा छान मारा मगर कुच्छ हाथ नही लगा.कमरे मे 1
बेड था & 1 कबॉरॅड,1 कोने मे 1 पढ़ने की मेज़ & कुर्सी थे.इसके अलावा
कमरे मे और कोई फर्निचर नही था.कमरे को छानने के बाद 1 नौकर बाथरूम मे
घुस गया.बाथरूम मे भी कोई अलमारी तो थी नही नही कोई ऐसी जगह थी जहा कुच्छ
च्छुपाया जाए.
नौकर बाथरूम से निकल के बहा आया तो उसकी नज़र ठीक सामने दीवार मे बने
कपबोर्ड को खंगालते दूसरे नौकर पे पड़ी.दूसरा नौकर स्टूल पे चढ़ा कपबोर्ड
के उपर के खाने मे ढूंड रहा था मगर उसे वो नही दिखा जो इस नौकर को दिख
गया था,"वो क्या है?"
"कहा?",उसके साथी ने पुचछा.
"अरे,ये जो सूटकेस अभी उतारा उसके पीछे देखो."
"देख तो लिया,पुरानी मॅगज़ीन हैं."
"अरे हटो यार.",वो उसे हटा खुद चढ़ा & उन मॅगज़ीन्स के बीच रखे 1 पतले से
बॅग को उसने खींच निकाला.बॅग 6 इंच लंबा & 4 इंच चौड़ा था & मोटाई थी बस
2 इंच.ये काग़ज़ात वग़ैरह रखने के काम आने वाला बाग था.नौकर ने उसे खोल
तीनो के सामने उस बॅग को पलट दिया & अंदर से डेबिट कार्ड्स,चेकबुक्स &
बॅंक के और काग़ज़ात गिर पड़े.
देविका आगे बढ़ी & काँपते हाथो से कार्ड्स को उठा के उनपे नाम पढ़ा-वो
वही फ़र्ज़ी नाम थे.उसकी आँखो मे गुस्सा & दुख आँसुओ की शक्ल मे उतर
आए.शिवा समझ चुका था की इंदर ने ये बाज़ी जीत ली है.उसकी आँखो मे हार सॉफ
झलक रही थी मगर साथ ही दुख & अपनी महबूबा की फ़िक्र भी झलक रही थी.आज
उसकी समझ मे आया था की इंदर के बारे मे उसे क्या खटकता था-वो बहुत
ज़्यादा शरीफ था!
हां..इतना शरीफ की उसे कभी किसी बात पे झल्लाहट भी नही होती थी लेकिन अब
क्या फ़ायदा था!वो बाज़ी जीत चुका था & शिवा अपनी जान की नज़रो से गिर
चुका था.देविका से जुदाई की बात से उसके दिल मे टीस सी उठी मगर अगले ही
पल उस पुराने फ़ौजी के जिगर ने उसे ललकारा....वो मर्द का बच्चा था!..इस
वक़्त हवा का रुख़ उसके खिलाफ था & उसे शांत रहना था मगर वो इस
ज़िल्लत,इस धोखे का बदला लेके रहेगा..चाहे कुच्छ भी हो जाए,देविका का बाल
भी वो बांका नही होने देगा & इस ज़लील इंसान से इस बात का बदला ज़रूर
लेगा.
कमरे मे अब कोई भी नही था.नौकर वाहा से जा चुके थे & उनके साथ इंदर भी.1
कोने मे बुत की तरह खड़ी देविका के दिल ने जैसे अब जाके ये बात जैसे समझी
थी की जिस शख्स पे उसने इतने सालो आँख मूंद के भरोसा किया था....अपने पति
से भी ज़्यादा भरोसा उसी ने उसकी पीठ मे च्छुरा घोंपा था!
इस एहसास से उसके दिल का गुबार आँखो से आँसू बनके छलक उठा.
"देविका..",शिवा ने उसके कंधे पे हाथ रखा.
"मत च्छुओ मुझे!",देविका ने उसका हाथ झटक दिया.
"मेरी बात..-"
"कुच्छ नही सुनना मुझे!",देविका चीखी,"..बस मेरी नज़रो से दूर हो जाओ &
कभी अपनी घिनोनी शक्ल नही दिखना!",शिवा ने 1 बार फिर अपनी प्रेमिका के
करीब आना चाहा मगर वो और दूर हो गयी.
"1 बात कान खोल के सुन लो अगर अभी तुम्हारे साहब होते तो यहा अभी तक
पोलीस आ चुकी होती.",देविका की आँखो से आँसू बह रहे थे मगर साथ-2 उनसे
अँगारे भी बरस रहे थे,"..पर मैं बस बीते दीनो का ख़याल करके तुम्हे यहा
से जाने दे रही हू.2 घंटे मे यहा से निकल जाओ.",देविका वाहा से निकल गयी.
दरवाज़े के बाहर दूसरी तरफ ओट मे खड़ा इंदर सारी बातें मुस्कुराते हुए
सुन रहा था.उसे यकीन ही नही हो रहा था की वो अपने प्लान मे इस कदर कामयाब
हो गया था.
वो मुस्कुराते हुए बंगल से बाहर निकल अपने क्वॉर्टर चला गया.
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"क्या बात है मम्मी?",नाश्ते की मेज़ पे बैठी देविका को कुच्छ ना खाते
देख रोमा अपनी कुर्सी से उठ उसके करीब आ गयी.
"हूँ..क-कुच्छ नही.",देविका जो गुम्सुम बैठी थी बहू को देख जल्दी से
नाश्ता ख़तम करने लगी.3 दिन हो गये थे शिवा को गये हुए.रोमा को ये तो पता
था की शिवा ने क्या घपला किया है मगर उसे ये पता नही था की उसकी सास का
शिवा से असल मे क्या रिश्ता था.उसे अब देविका की फ़िक्र होने लगी
थी.बिज़्नेस मे तो ये सब होता रहता था.अगर वो इस तरह की हर बात को यू दिल
पे लेंगी तो बिज़्नेस का नुकसान तो होगा ही साथ ही उनकी सेहत पे भी बुरा
असर पड़ेगा.
नाश्ता ख़तम होते ही देविका लॉन मे गयी तो रोमा भी उसके पीछे-2 वाहा चली
गयी,"मम्मी."
"हां,बेटा."
"आप इतना क्यू परेशान हैं?देखिए,हमे समय रहते सब पता चल गया & कोई बहुत
बड़ा नुकसान भी नही हुआ.और आप ये सोचिए मम्मी की अगर 1 इंसान ने हमे धोखा
दिया तो वही दूसरे ने अपना फ़र्ज़ निभा के हमारे साथ नमकहलाली की है.हमे
1 भरोसेमन आदमी का फाय्दा ही हुआ है इस बात से."
देविका ने रोमा को देखा,ठीक ही बात कर रही थी वो.इंदर सचमुच 1 ईमानदार &
भला इंसान था लेकिन उस बेचारी को क्या पता की शिवा ने उसका दिल तोड़ दिया
था & वो दर्द इतनी आसानी से नही मिटता.दिल की तकलीफ़ च्छूपाते हुए देविका
मुस्कुराइ,"तुम तो सच मे बड़ी सयानी है,बेटा.",बहू के गाल पे उसने प्यार
से हाथ फेरा.
"अच्छा.अब आप आज से टाइम पे ऑफीस जाएँगी & टाइम से आएँगी!ओके?"
"ओके."
"& अगर कभी भी ज़रूरत पड़े तो मुझसे अपनी परेशानी बाँटेंगी.ओके?"
"ओके."
"मम्मी,ज़रूरत पड़े तो मैं भी ऑफीस का काम देख सकती हू."
"हां बेटा,मुझे पता है & तुम्हारा ही ऑफीस है मगर हमे इस बात का भी तो
ख़याल रखना है की तुम्हारा पति घर मे अकेला ना रह जाए.",रोमा का नाम
पुकारते हुए लॉन मे आते प्रसून की ओर देविका ने इशारा किया,"देखो,कुच्छ
पॅलो के लिए तुम गायब हुई तो कैसे शोर मचा रहा है!ऑफीस जाओगी तब तो पूरा
घर सर पे उठा लेगा.",रोमा के गाल शर्म से सुर्ख हो गये & वो झट से लाजते
हुए पति के पास चली गयी.
देविका हंस पड़ी & दूर खड़ी दोनो को बात करते देखने लगी.रोमा की बात ने
उसका दिल हल्का कर दिया था & उसे बहुत सहारा मिला था.बस यही बच्चे तो
उसका सबकुच्छ थे & इन्ही के लिए तो उसकी ज़िंदगी थी.उसने लॉन मे खड़े हो
चारो ओर नज़र घुमाई,ये सब इनके लिए महफूज़ रखना ज़रूरी था & उसके लिए
उसका दफ़्तर जाना ज़रूरी था.ख़याल आते ही खुद बा खुद उसके कदम दफ़्तर की
ओर मूड गये.
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क्रमशः......
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