RE: Kamukta Story बदला
गतान्क से आगे...
सवेरे देविका की नींद खुली तो उसने देखा की वो बिस्तर पे अकेली है.उसने
सोचा तो उसे ख़याल आया की रात वो कब सोई उसे याद ही नही था.वो उठी तो
उसने देखा की उसकी नाइटी की स्लिट उसकी कमर तक उठी थी & उसकी दाई टांग &
जाँघ कमर तक नुमाया थी.ये सोच के इंदर ने उसे ऐसे देखा होगा शर्म & खुशी
की मिली-जुली लहर उसके दिल मे दौड़ गयी.
वो कपड़े बदल बाहर आई,अब घर वापस जाने का वक़्त हो गया था.शुरू मे इंदर &
वो 1 दूसरे से नज़रे नही मिला पा रहे थे मगर थोड़ी देर बाद दोनो सहज हो
गये थे & साथ-2 बंगल पे लौट गये.
"मॅ'म,कल हमे पंचमहल जाना है.आपको याद है ना?"
"हां,इंदर.11 बजे तक चलेंगे."
"ओके,मॅ'म.",देविका बंगल के अंदर आई & कल के कपड़े धोने के लिए नौकरानी
को देने लगी.इंदर के लिए उसने प्रसून का ही नाइटसूट मंगवा दिया था & बॅग
से निकाल नौकरानी को देते हुए उसका ध्यान सूट के पाजामे पे गया जिसके
सामने 1 बड़ा सा धब्बा बना हुआ था.देविका ने धब्बे को गौर से देखा & फिर
उसे सब समझ आ गया..तो जनाब गे नही हैं!..& रात रोमा की आहो ने उनका हाल
भी बुरा कर दिया था.उसकी तरह इंदर ने भी अपने हाथ से काम चलाया था....तो
उसने उसे क्यू नही पुकारा?..वो भी तो उसी के जैसे तड़प रही थी....क्या
अच्छी नही लगती मैं उसको?..देविका नौकरानी के जाने के बाद बाथरूम मे खड़ी
अपने नंगे जिस्म को शीशे मे निहार रही थी..ऐसा तो नही था..कल जीप मे जब
उसकी गोद मे गिरी थी उस वक़्त उसकी आँखो मे उसने अपने हुस्न की तारीफ &
उसके जिस्म की करीबी से पैदा हुई बेताबी सॉफ देखी थी....उसकी शराफ़त की
कायल हो गयी वो....उस वक़्त जब दुनिया का कोई भी मर्द बड़ी आसानी से
कमज़ोर हो जाता & उसे अपनी बाहो मे खींच लेता उस वक़्त भी इंदर ने अपनी
मर्यादा नही भूली थी.अब देविका को उसके करीब जाने का ख़याल और भी महफूज़
लगने लगा.
"ओह..इंदर..थोड़े तो बदमाश बनो!!",देविका बत्टूब मे बैठ गयी.इन ख़यालो से
उसका जिस्म फिर से दुखने लगा था.उसने बाया हाथ उसके सीने पे उसकी बाई
चूची को सहलाने लगा मानो दिल को समझा रहा हो & दाया उसकी चूत के दाने
पे.1 बार फिर देविका इंदर को सोच अपने जिस्म से खेलने लगी.
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सब्ज़ियो से लदे ट्रक मे मज़दूर के कपड़े पहने शिवा एस्टेट से बाहर जा
रहा था.रात वो चोरी से बंगल मे घुसा था,उसका इरादा था बस 1 बार अपनी
जान,अपनी महबूबा किए हसीन चेहरे का दीदार करने का मगर वो वाहा नही थी.उसे
मलाल था इस बात का मगर 1 बात की खुशी भी थी.उसका दिल उसके दिमाग़ से जीत
गया था.उसने अपने कुर्ते की जेब टटोली,वो चीज़ जो इंदर ने फेंकी थी उसने
ढूंड निकाली थी.वो नारंगी रंग की डिबिया जिसका रंग & जिसकी लिखावट बारिश
& धूप सहते-2 थोड़ा धुंधले पड़ गये थे मगर जिनके अंदर की दवा हैरत्नगेज़
रूप से अभी भी महफूज़ थी.शिवा की समझ मे इंदर की चाल आ गयी थी & अब उसका
इंदर से बदले का इरादा और भी पुख़्ता हो गया था.
"मॅ'म,बहुत देर हो गयी है.मुझे नही लगता इतनी रात गये एस्टेट वापस लौटना
सेफ होगा.रास्ता लंबा & सुनसान है.",पंचमहल मे अपने कस्टमर्स से मीटिंग
करते हुए कब रात के 11 बज गये इंदर & देविका को पता भी नही चला.जब इंदर
ने अपनी घड़ी पे नज़र डाली तब उसे होश आया.
"तुम्हारी बात तो ठीक है,इंदर."
"तो आज रात किसी होटेल मे कमरे ले लेते हैं.कल सवेरे-2 निकल
पड़ेंगे.",इंदर ने देविका के लिए वार का दरवाज़ा खोला.
"होटेल की क्या ज़रूरत है,हमारा बुंगला है यहा.वही चलो.",इंदर ड्राइविंग
सीट पे बैठ गया था & चाभी इग्निशन मे डाल रहा था.
"ठीक है.रास्ता बताइए."
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"वीरेन,मुझे शिवा की 1 तस्वीर & कुच्छ डीटेल्स चाहिए होंगे जैसे उसने
एस्टेट कब जाय्न की थी,उसके पहले कहा था वग़ैरह-2.",रेस्टोरेंट मे बैठी
कामिनी ने वाहा की स्पेशल बिरयानी का 1 नीवाला चम्चे से अपने मुँह के
हवाले किया.
"हूँ..बिरयानी लाजवाब है!",वीरेन ने जैसे उसकी बात सुनी ही नही थी.
"वीरेन!",कामिनी ने अपना चमचा नीचे रखा & वीरेन की ओर गुस्से से देखा.
"सुन लिया बाबा!",वीरेन ने जल्दी से नीवाला निगला,"..मगर इसके लिए तो
देविका से बात करनी पड़ेगी.1 काम करते हैं,इस वीकेंड एस्टेट चलते
हैं.रोमा भी बार-2 फोन करती रहती है की वाहा जाके प्रसून को कुच्छ
पैंटिंग सिखाऊँ."
"ठीक है.",कामिनी के चेहरे पे अभी भी हल्के गुस्से की झलक थी.
"क्या जान!",वीरेन ने अपना चमचा नीचे रख मेज़ पे रखे कामिनी के हाथ पे
अपना हाथ रखा,"..पहले तो इतनी बढ़िया बिरयानी खिलाने ले आती हो & उसके
ज़ायके मे जब डूब जाता हू तो काम की बात छेड़ देती हो.अब तुम्हारी बात
ठीक से नही सुनी इसके लिए मुझसे क्यू इस बिरयानी से खफा हो ना!मत खाओ
इसे!",वीरेन की बात पे कामिनी को हँसी आ गयी & रहा-सहा गुस्सा भी काफूर
हो गया.
"मैं बस इतना कह रही हू,वीरेन की प्लीज़ होशियार रहो.जब तक शिवा हमे नही
मिल जाता समझो ख़तरा बना हुआ है.",कितनी ग़लत थी कामिनी!उस बेचारी को
क्या पता था की शिवा सहाय परिवार का बुरा नही चाहता था बल्कि उस से
ज़्यादा बड़ा परिवार का शुभचिंतक तो शायद कोई था ही नही.
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क्रमशः.................
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