इंदर ने ना मे सर हिलाया & देविका को अपने आगोश मे लिया.देविका ने मुस्कुराते हुए अपना सर उसके बाए कंधे पे टीका उसे प्यार से देखा,"1 बात का वादा कीजिए."
"क्या इंदर?",देविका उसके सीने के बालो से खेल रही थी.
"कि आप कभी इस रिश्ते की हदो को तोड़ने के लिए मुझे नही कहेंगी?हम दुनिया के सामने नही आ सकते & कभी ऐसा किया तो चाहे हमारे इरादे कितने ही नेक क्यू ना हो ये दुनिया कभी हमे सही नही समझेगी.",इंदर ने बड़ी सफाई से अपने & देविका के रिश्ते को राज़ रखने की बात उसे कह दी.हर इंसान का कोई इतना अज़ीज़ होता है उसके दिलबर के सिवा जिस से वो अपनी सारी बाते कहता है.इंदर को पता नही था की देविका का ऐसा दोस्त कौन है मगर वो कोई रिस्क नही लेना चाहता था.
"वादा किया.",देविका ने मुस्कुराते हुए उसे देखा,"..मगर 1 वक़्त पे कभी कोई हद्द नही मानूँगी?"
"कब?"
"जब हम दोनो तन्हा हो.",देविका के हाथ इंदर के सीने से उसके पेट तक गये मगर उस से नीचे ले जाने मे देविका को झिझक हुई.
"जो आपका हुक्म,मॅ'म.",इंदर ने देविका के झिझकते हाथ को पकड़ उसे अपने सिकुदे लंड पे रख दिया.देविका को शर्म आ गयी & उसने इंदर के बाए कंधे मे अपना चेहरा च्छूपा लिया.इंदर अभी भी उसका हाथ वैसे ही लंड पे दबाए था.
थोड़ी ही देर मे देविका ने लंड को थाम लिया था & बहुत धीरे-2 हिला रही थी.इंदर ने उसके बालो को चूमा तो उसने अपना चेहरा उठा अपने होंठ इंदर के सामने पेश कर दिए.इंदर ने उसके तोहफा अपने होंठो से कबूला & अपना दाया हाथ उठा दीवार पे लगे लाइट स्विच को ऑफ किया & देविका को ले 1 बार फिर बिस्तर की ओर बढ़ गया.
पंचमहल का बाहरगूँज इलाक़ा जहा सस्ते होटेल्स की भरमार थी.इन्ही मे से 1 होटेल के 1 कमरे मे लेटा शिवा अपनी ज़िंदगी के बारे मे सोच रहा था.फौज से सहाय एस्टेट & अब ना जाने कहा ले जाने वाली थी उसकी तक़दीर उसे.उसके हाथ मे वो दवा की डिबिया थी & उसे समझ नही आ रहा था की अब आगे क्या करे.
उसके पैने दिमाग़ ने इतना अंदाज़ा तो लगा लिया था की इस दवा का सुरेन सहाय की मौत से कुच्छ ना कुच्छ ताल्लुक तो ज़रूर था & इस सबके पीछे इंदर का हाथ था मगर इंदर ये सब क्यू कर रहा था..दौलत के लिए?..पर इस सब मे कितना ख़तरा था..इतना ख़तरा दौलत के लिए...लगता तो नही.1 बात तो तय थी की जिस तरह से उसने सुरेन जी को मौत की नींद सुलाया था & उसके चौक्काने होने के बावजूद उसे देविका की नज़रो से गिरा दिया था उसका दिमाग़ बहुत तेज़ था.इतना तेज़ दिमाग़ शख्स इस तरह से ख़तरा उठाया सिर्फ़ दौलत के लिए..ना!वो तो और काई कम ख़तरे वाले तरीक़ो से पैसे कमा सकता था.तो फिर क्या थी वजह & फिर सहाय एस्टेट ही क्यू?पंचमहल मे दौलत्मन्दो की कमी नही थी फिर सहाय परिवार ही क्यू?
शिवा ने इस सवाल से जूझना छ्चोड़ा..अभी सबसे ज़रूरी था इस दवा की असलियत जानना लेकिन कैसे?उसने दवा को पास पड़ी अपनी पॅंट की जेब मे डाला & कमरे की बत्ती बुझा दी.आँखे मूंद उसने सोने की कोशिश की मगर नींद उसकी आँखो से कोसो दूर थी.हर रात देविका के कोमल जिस्म को बाहो मे भरके सोना उसकी आदत बन गया था & जब से वो एस्टेट से निकाला गया था दिन तो किसी तरह कट जाता था मगर राते उस से काटे नही कटती थी....इस सबका ज़िम्मेदार इंदर था....देविका से जुदाई के दर्द ने शिवा के गुस्से को भड़काया & उसके दिल मे इंदर से बदला लेने का जज़्बा & पुख़्ता हो गया.