RE: Kamukta Story बदला
गतान्क से आगे...
"क्या?!!ऐसा करना ज़रूरी है?"
"हां."
"मगर इसके अलावा कोई और रास्ता तो होगा?उसे..उसे क्यू..?"
"हमारे साथ क्या हुआ था?"
इस सवाल पे कान से मोबाइल लगाए खड़ा इंदर खामोश हो गया.
"बहुत ज़रूरी है ये हमारे बदले के लिए,भैया.ऐसा उन..-",तभी कोई आ गया &
उस इंसान ने फोन काट दिया.इंदर अपने बदले की हवस मे अँधा हो चुका था.उसे
कुच्छ भी ग़लत नही लगता था.सुरेन सहाय का क़त्ल किया था उसने,किसी चाकू
या पिस्टल से ना सही बल्कि 1 बीमार शख्स की दवा को ज़हर से बदल
के....लेकिन अब जो करने की तैय्यारि थी वो..!पहली बार इंदर का विश्वास
डगमगा रहा था....मगर उसका कहना भी सही था सहाय ने कभी उसके साथ इंसाफ़
किया था जोकि वो करता.उसने अपना फ़्लास्क उठाया & 1 लंबा घूँट भरा.शराब
की जलन ने उसे सुकून पहूचाया & उसने आँखे बंद कर ली....अब अगर यही तय हुआ
है तो यही होगा.आगे देखा जाएगा!
"साला!फ़ौजी होके धोकेबाज़ी करता है!",सुखबीर सिंग भुल्लर उर्फ सुखी ने
शिवा की तस्वीर को बड़ी नफ़रत से मेज़ पे पटका.मोहसिन जमाल का ये होशियार
जासूस शिवा की तरह ही फौज मे काम कर चुका था,"..फ़िक्र ना करो,सर.इस
कमिने को तो ढूंड ही निकालूँगा.",उसने तस्वीर को लिफाफे मे डाला & उसे
उठा वाहा से निकल गया.
सुखी ने काम तो शुरू कर दिया पर उसे बड़ी मुश्किले आ रही थी.शिवा पंचमहल
मे अपने भाई के यहा नही आया था बस उन्हे फोन पे खबर दी थी की अब उसने
एस्टेट की नौकरी छ्चोड़ दी है.सुखी को शिवा का भाई 1 भला आदमी लगा & उसकी
बातो से शिवा की तस्वीर भी 1 उसूलो के पक्के ईमानदार की शख्स भी उभर रही
थी मगर सुखी ने जासूसी के पेशे मे रहते इतना समझ लिया था की हर इंसान
चेहरे पे मुखौटा लगाए घूमता है & उनमे से कुच्छ मुखोटो के पीछे छीपी असली
शक्ल बड़ी ही घिनोनी होती है.
सुखी के हाथ शिवा का मोबाइल नंबर लग गया था & अब वो उसे ही मिला रहा था"हेलो."
"हेलो."
"सर,मैं स्टंप मोबाइल कंपनी से बोल रहा हू,आपके 2 मिनिट लेना चाहूँगा."
"किस सिलसिले मे?"
"सर,हमारी कंपनी ने 1 नयी सर्विस लॉंच की है जिसमे आपको.._"
"क्या मैं बाद मे बात कर सकता हू?"
"शुवर सर जैसी आपकी मर्ज़ी.आपका शुभ नाम जान सकता हू,सर?"
"शिवा."
थॅंक यू,शिवा सर.हॅव ए नाइस डे!",सुखी का काम हो गया था.जब से मोबाइल फोन
हमारी ज़िंदगी मे आए हैं हम झूठ कुच्छ ज़्यादा बोलने लगे हैं मसलन आप
अपनी गर्लफ्रेंड के जिस्म की गहराइयो मे डूब रहे होंगे & फोन बजेगा तो
बीवी को बोलेंगे की क्लाइंट के साथ बोरिंग मीटिंग मे हैं!अब ऐसे बेवफा
खविन्दो से निबटने के लिए बीवियो को कुच्छ तो चाहिए.
ऐसा ही 1 हथ्यार है मोबाइल ट्रॅकिंग सॉफ्टवेर जिसका 1 बहुत ही उम्दा
वर्षन मोहसिन ने अपनी एजेन्सी के लिए ले रखा था.सुखी ने शिवा से कोई
30-40 सेकेंड बात की थी & उसी बीच उसे पता लग गया था की शिवा बाहरगुँज मे
है.अपने भाई का घर होते हुए भी कोई आदमी होटेल मे रहे इसका क्या मतलब हो
सकता है?सुखी बाहरगुँज की ओर बाइक भगाता यही सोच रहा था....जो भी मतलब हो
शिवा वो तो तुम अब अपने मुँह से ही बोलॉगे!..बिके तेज़ी से बाहरगुँज की
दिशा मे बढ़ गयी.
बाहरगुँज मे सस्ते होटेल्स की भरमार थी.अब उस भूसे मे शिवा जैसी सुई को
ढूँढना सुखी को काफ़ी मुश्किल लग रहा था.उसने सारी बात मोहसिन को बताई.इस
वक़्त शाम के 6 बज रहे थे & पूरे इलाक़े मे ख़ासी चहल-पहल थी.सुखी 1
लस्सी की दुकान पे लस्सी का दूसरा ग्लास ख़त्म कर रहा था जब मोहसिन की
बाइक उस दुकान के सामने रुकी,"आओ पा जी..ला ओये इक और ग्लास!",दुकान के
नौकर ने 1 ग्लास मोहसिन को थमाया.
"यहा के थानेदार से बात कर आया हू..",मोहसिन ने लस्सी का घूँट भरा,"..वो
अपने कॉन्स्टेबल्स को काम पे लगा रहा है.शाम की बेटा के हवलदार हर होटेल
के रिजिस्टर चेक करेंगे & शिवा की उम्र & कद-काठी वाले आदमी के बारे मे
पुचहताच्छ करेंगे मगर किसी को ना शिवा का नाम बताएँगे ना उसे ढूँढने की
वजह."
"चलो,बढ़िया है सर ये भी कुच्छ काम करें वरना इन्हे तो बस हर दम इसी की
चिंता लगी रहती है.",सुखी ने हाथो की उंगलियो से रुपयो का इशारा किया.
"ऐसी बात नही है सुखी.अब क्या किया जाए!अँग्रेज़ चले गये मगर उनकी बनाई
हर चीज़ को हमने जैसे का तैसा अपना लिया.ये भूल गये की वो हमे ग्युलम
बनाने के लिए,दबाने के लिए पोलीस का इस्तेमाल करते थे.अब आज़ादी मिली तो
हमने अपनी पोलीस को कभी ये नही सिखाया की आप हमारी हिफ़ाज़त के लिए हैं
ना की हमे नियम क़ानून सिखाने के लिए!..उपर से हमारे नेता..अपनी जेब तो
भरते रहते हैं पर इन बेचारो का ना नये हथ्यार देते हैं ना बढ़िया
तनख़्वाह ना ही कोई और सुविधा."
"सर,ये तो सही बात है मगर फिर भी ईमानदार पोलीस वाले भी तो हैं."
"बिल्कुल है,सुखी.मैं ये नही कह रहा की हर पोलीस वाला मजबूरन बेईमान बनता
है,इनमे से कुच्छ तो ऐसे गलिज़ इंसान हैं की उन्हे देख लो तो मुजरिम भी
साधु लगने लगे,मैने तो बस सिक्के का दूसरा पहलू तुम्हारे सामने रखा
था.",मुल्क की पोलीस मे करप्षन पे शायद ये बहस और चलती अगर मोहसिन का
मोबाइल ना बजा होता,"चल,सुखी.काम हो गया."
"बैठो,मोहसिन.",थानेदार सतबीर सिंग बाथरूम से हाथ धोके रुमाल से पोंचछते
बाहर निकले,"अरे गंगा दस!"
"जनाब!",1 चुस्त हवलदार कॅबिन मे आया.
"बता भाई,मोहसिन भाई को क्या पता चला है तुझे.",सतबीर सिंग अपनी कुर्सी
पे बिल्कुल आड़ के बैठ गये.
"साहब,आपने जिस आदमी के बारे मे कहा था वो तो अपने नाम से & अपनी असली आइ
डी दिखा के होटेल रॉयल मे ठहरा हुआ है."
"अच्छा."
"हां,पिच्छले 4 दीनो से वाहा है & मॅनेजर से थोड़ी बहुत बात-चीत भी हुई
है उसकी तो उसने बताया की पहले सहाय एसटेट मे था.अब नौकरी छ्चोड़ कही और
ढूंड रहा है इसलिए ऐसे होटेल मे ठहरा है.वेटर्स को भी आदमी ठीक लगता है."
"ह्म्म....",थानेदार सतबीर ने दोनो हाथ जोड़ के अपने माथे पे रखे हुए
थे,"..बहुत अच्छे.किसी को शक़ तो नही हुआ ना,गंगा?"
"नही,जनाब.मैने यही बोला की उपर से ऑर्डर्स आए हैं कि ज़रा होटेल वालो को
टाइट करो."
"बढ़िया किया,बेटा.चल पहले चाइ पी & फिर निकल."
"जनाब.",सलाम ठोंक हवलदार गंगा दास कॅबिन से निकल गया.
थानेदार सतबीर सिंग कोई 40 बरस के होंगे.वक़्त के साथ लंबे कद के थानेदार
का पेट थोड़ा निकल आया था.सलीके से काढ़े बाल & मूँछछो मे वो 1 पक्का
पोलिसेवाला लगता था.उसके बैठने के अंदाज़ & हाव-भाव से लगता की वो आदमी
किसी बात को गंभीरता से नही ले रहा मगर ये बिल्कुल ग़लत बात थी.वो 1 बहुत
चालक & समझदार इंसान था.ऐसे ही वो थोड़े इस इलाक़े का-जहा से महकमे को
मोटी कमाई होती थी,
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