RE: Kamukta Story बदला
मोहसिन जमाल & सुखी 1 बार फिर से शिवा की तलाश मे जुट गये थे.सुखी का तो
गुस्से से बुरा हाल था.शिवा के नाम की गालिया निकलते हुए वो कार ड्राइव
करता चला जा रहा था.1 बार फिर शिवा के मोबाइल पे मोहसिन की सेक्रेटरी से
1 बॅंक लोन बेचने की झूठी कॉल करवा उसकी लोकेशन निकलवा ली थी.शिवा अब
पुराने पंचमहल के उस हिस्से मे थे जिसे मोहसिन बड़े अच्छे तरीके से जानता
था-आख़िर उसका बचपन जो बीता था वाहा.अब तो वो यहा नही रहता था मगर उसके
रिश्तेदार & काई दोस्त अभी भी वाहा रहते थे.
मोहसिन रहमत बाज़ार पहुँचा & वाहा के इज़्ज़तदार बाशिंदे & अपने अब्बा के
ममुज़द भाई हाजी सार्वर हूसेन के घर पहुँचा,"आदाब,भाभी जान.",घर का
दरवाज़ा खोलने वाली औरत को आदाब करता मोहसिन अंदर दाखिल हुआ,"..घबराती
क्यू हो भाभी!मेरा दोस्त है,वैसे भी इस बिचारे को तुमसे घबराना
चाहिए!",मोहसिन ने अपनी भाभी को छेड़ा.
"हां जी!क्यू करू!अब आपके जैसा नूर तो है नही हमारे चेहरे पे.",उसकी भाभी
ने सुखी के आदाब का जवाब देते हुए मोहसिन को जवाब दिया.
"अरे भाभी!क्या बात करती हो?तुमसे ज़्यादा हसीन कोई हो सकता है भला!मैं
तो अभी भी यहा तुम्हे भगाने ही आया हू.चलो ना,रशीद भाई को पता भी नही
चलेगा!"
"धात!बदतमीज़.",उसकी भाभी शर्मा गयी.तीनो घर की बैठक मे आ गये थे जहा
सरवर हूसेन अपनी बेगम के साथ बैठे थे.मोहसिन की चाची ओर देखते ही उठ खड़ी
हुई & क़ुरान की आयात पढ़ उसके माथे को चूमा,"कितने दीनो बाद आया,मेरा
बच्चा.चल बैठ.",चाचा-चाची का हाल पुच्छने के बाद मोहसिन ने वाहा आने का
मक़सद बताया.
"ह्म्म..",सरवर हूसेन सोच मे पड़ गये,"..1 काम करते हैं,मैं पूरे मोहल्ले
मे इस शख्स के हुलिए & नाम के बारे मे बता देता हू & सबको नज़र रखने को
कहता हू.देखते हैं क्या होता है.",मोहसिन के आने की खबर सुन उसके कुच्छ
रिश्ते के भाई भी वाहा आ पहुँचे.थोड़ी ही देर मे सुखी भी सबसे खुल गया था
& उस खुशदील सरदार ने अपनी बातो से समा बाँध दिया.रात के 9 बजे 1 17 साल
का लड़का भागता हुआ बैठक मे आया,"आदाब,भाई जान..",लड़का ने हान्फ्ते हुए
मेज़ पे रखी पानी की बॉटल को उठाया & मुँह से लगा लिया.
"ओये,रेहान,आराम से पी बेटा.",मोहसिन की चाची ने उसे नसीहत दी.
"मोहसिन भाई..",लड़का अभी भी हाँफ रहा था.
"पहले साँस ले ले जवान.",मोहसिन ने उसे बिताया.
"भाई,आप जिसे ढूंड रहे हैं वो अभी मस्जिद के पास वाले होटेल मे बैठा खाना
खा रहा है."
"क्या?!किसके यहा?जमाल के ढाबे पे?"
"नही,भाई,जान.जमाल के छ्होटे भाई कमाल के ढाबे पे."
"दोनो भाइयो मे झगड़ा हो गया था,मोहसिन.",सरवर हूसेन ने बात सॉफ
की,"..जमाल के ढाबे के पीछे ही कमाल ने खुद का ढाबा खोल लिया है."
"मोहसिन & सुखी उठ खड़े हुए & वाहा बैठे सारे लड़के भी,"देखो
भाइयो,मस्जिद की तरफ चार गलिया जाती हैं & 1 अपना मैं रोड.हम सब इधर से
अलग-2 गलियो से वाहा पहुँचते हैं.सुखी,तू वाहा से मैं रोड पे चले
जाना.अगर वो वाहा से भागता है तो उसे रोकने की ज़िम्मेदारी तेरी & रशीद
भाई की."
"ठीक है,सर."
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शिवा होटेल मे बैठा खाना खा रहा था.शाम को टीवी पे उसने वो मनहूस खबर
सुनी थी & उसका दिल देविका के लिए तड़प उठा था.उसे पता था की देविका अगर
सबसे ज़्यादा किसी को चाहती थी तो वो था प्रसून.शिवा का दिल कर रहा था की
फ़ौरन एस्टेट पहुँचे & अपनी जान के गम को दूर कर दे.उसे पता था की ये सब
इंदर का किया हुआ है.उसने तय कर लिया था की अब इंदर को वो खुद सज़ा
देगा.प्रसून के खून की खबर सुनके शिवा की भूख-प्यास मर गयी थी लेकिन 1
फ़ौजी होने के नाते वो जानता था की भूखे पेट कोई भी लड़ाई नही जीती जा
सकती इसलिए वो अपने होटेल से निकल यहा खाना खाने आया था. उस बेचारे को ये
कहा पता था की कामिनी उसे ही क़ातिल समझ रही थी & ढाबे के बाहर खड़ा
मोहसिन उसे देख रहा था.
"मोहसिन,पकड़ साले को."
"नही,अभी नही.उसके पास हथ्यार भी हो सकता है."
शिवा खाकर बाहर आया & काउंटर पे बैठे कमाल को पैसे देने लगा,"अरे मोहसिन
भाई,कब आए?",कमाल मोहसिन को देख के चौंका.
"बस अभी-2.",शिवा बाकी पैसे वापस लेने के इंतेज़ार मे खड़ा था.
"आओ ना,बैठो.आप तो पहली बार आए हो मेरे होटेल मे.आपको अपना स्पेशल पान
खिलाता हू.",कमाल ने गल्ले से बाकी पैसे निकल शिवा को दिए.
"आज नही,कमाल.आज कुच्छ काम है."
"कैसा काम,मोहसिन भाई?"
"इन भाई साहब को जैल की सलाखो के पीछे पहुचाना है.",उसने शिवा का गिरेबान
थाम लिया मगर शिवा चौकन्ना था उसने अपनी बाई कोहनी मोहसिन की ठुड्डी के
नीचे मारी & गिरेबान छुड़ा भागा.लड़को की भीड़ उसके पीछे पड़ गयी.शिवा
तेज़ी से भागता मैं रोड पे पहुँचा..बस 1 बार वो यहा से निकल जाए तो फिर
इंदर को & उसके इन कुत्तो को भी देख लेगा मगर तभी उसका पाँव किसी चीज़ से
टकराया & वो औंधे मुँह गिरा.
उसने उठने की कोशिश की मगर तब तक उसकी पीठ पे सुखी सवार हो चुका था &
उसके हाथो मे हथकड़ी डाल रहा था,"साले!क़ातिल.फौज के नाम पे धब्बा है
तू!",तब तक वाहा बाकी लोग भी आ पहुँचे.मोहसिन पोलीस का आदमी तो नही था
मगर तब भी वो हथकड़ी ज़रूर रखता था & अपने आदमियो को भी रखने को कहता
था.उसका मानना था की किसी भी ख़तरनाक आदमी को काबू मे करने के लिए हथकड़ी
से बेहतर कुच्छ भी नही था.लड़के शिवा की पिटाई करना चाहते थे मगर मोहसिन
ने उन्हे रोका & शिवा के पैरो को रस्सी से बाँधा & कार की पिच्छली सीट पे
डाल दिया & फिर सुखी के साथ निकल गया.
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क्रमशः...............
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